द शहरा आने को है। सब ओर तैयारियां चल रही हैं। मोहल्लों में रहने वाले बच्चे खुद ही रावण तैयार कर रहे हैं जबकि बड़ी मंडलियां चंदा जमा कर रही हैं, बाजार से रेडीमेड बड़ा रावण खरीदा जाएगा। छोटे-बड़े सभी रावणों को गली-मैदान में स्वाह कर दिया जाएगा। उल्लास मनाएंगे कि बुराई का अंत कर दिया। सब माया है। रावण तो जिन्दा है। हम सबके भीतर। तैयारी उसे मारने की होनी चाहिए। भीतर का रावण एक तीर से नहीं मरता, उसके लिए रोज सजग रहना पड़ता है कमान खींचकर, जैसे ही सिर उठाए, तीर छोड़ देना होता है। कई दिन तो रोज उसे मारना पड़ता है। इसके बाद फिर समय-समय पर उसका वध करना होता है। यह सतत प्रक्रिया है। लेकिन, हम मार किसे रहे हैं, बाहर के रावण को, वह भी पुतले को। असल रावण तो जीते रहते हैं, हम में और तुम में। ये हम और तुम का रावण मर गया फिर सब ठीक हो जाएगा।
अब सवाल यह है कि आखिर भीतर कौन-सा रावण है। लोभ, वासना, बेईमानी, कायरता, आलस, क्रोध, स्वार्थ, कपट, झूठ और फरेब। ये सब भीतर के रावण हैं। इनसे युद्ध मनुष्य की प्राथमिकता होनी चाहिए। लोभ मनुष्य को भ्रष्टाचारी बनाता है। लोभ ही हमे बेईमान भी बनाता है। अब हम देखें कि लोभ के कारण आज देश की क्या स्थिति है और आम समाज को क्या नुकसान है। लोभ पर शुरुआत से ही काबू नहीं किया गया तो यह बढ़ता ही जाता है। यह कभी-भी कम नहीं होता। लोभी मनुष्य ने पहले हजारों के घोटाले किए फिर लाखों के और अब लाखों के घोटाले उनके लिए घोटाले ही नहीं हैं। क्योंकि लोभ बढ़ गया। यानी भ्रष्टाचार की सीमा बढ़ गई। देश-समाज का नुकसान ज्यादा बढ़ गया। यही हाल वासना रूपी रावण का है। वासना के फेर में फंसकर अच्छे से अच्छा व्यक्तित्व धूमिल हो जाता है, क्षणभर में। सिर्फ व्यक्तित्व धूमिल नहीं होता बल्कि उसके साथ जुड़े मानबिन्दुओं पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा होता है। यदि धार्मिक चोला ओढ़कर बैठा व्यक्ति काम का शिकार हो जाता है तो लोगों का विश्वास डिगता है। इसका फायदा धर्म-परंपरा विरोधी लोग उठाते हैं। धर्म-परंपरा के नाम पर अपना जीवनयापन कर रहे चारित्रिक रूप से कमजोर व्यक्ति की आड़ में धर्म विरोधी लोग हमलावर भूमिका में आ जाते हैं। वे संबंधित धर्म पर आक्षेप लगाते हैं। परंपराओं पर अंगुली उठाते हैं। हालांकि जिस धर्म और समाज पर अगुंली उठाई जा रही होती है, वह धर्म और समाज ही चारित्रिक रूप से पतित व्यक्ति को स्वीकार नहीं करता है। रावण को प्रकांड ब्राह्मण बताया जाता है लेकिन इसके बावजूद हिन्दू समाज में उसका आदर नहीं है। कारण, उसका अमर्यादित आचरण। इसलिए आपने जीवनभर में नाम रूपी जो पूंजी कमाई है, उसे बचाए रखना चाहते हैं, अपनी आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करना चाहते हैं तो वासना रूपी रावण का अंत बार-बार करते रहिए।
दशहरा चूंकि शक्ति का पर्व है। इस दिन क्षत्रिय अपने हथियारों की पूजा करते हैं। पूर्वजों ने समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है कि ताकत हासिल कीजिए। साथ में यह भी संकेत कर दिया कि इसका दुरुपयोग मत कीजिए। गरीब, असहाय पर अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं करें बल्कि उनकी रक्षा के लिए आगे खड़े रहें। साथ ही अन्य लोगों को भी यह आभास बना रहना चाहिए कि यह शक्तिशाली है ताकि वह आप पर हावी न हो सके। कमजोर को हर कोई दबाना चाहता है। भारतीय राजनीति इसका अच्छा उदाहरण है। यहां बाहुबली नेतागिरी कर रहे हैं। कमजोर की कोई पूछ नहीं। जो शक्तिशाली है, संगठित वोट बैंक हैं उनकी भारतीय राजनीति में भारी पूछपरख है, मौज भी उनकी ही है। शासन की योजनाएं भी उनके लिए हैं जबकि असंगठित बहुसंख्यक समाज की फिक्र तक किसी को नहीं। उसकी भावनाएं भी गईं चूल्हे में।
मजबूत और शक्तिशाली दिखने की जरूरत जितनी व्यक्तिगत स्तर पर है, उससे कहीं अधिक एक देश के लिए आवश्यक है। इजराइल के संबंध में समझा जा सकता है। इजराइल छोटा-सा देश है लेकिन साहस उसका किसी ऊंचे पर्वत से भी विशाल है। चारों तरफ से शत्रु देशों से घिरा है लेकिन मजाल है कि कोई उसकी तरफ आंख उठाकर देख जाए। इजराइल ने अपनी शक्तिशाली छवि यूं ही नहीं बनाई है। उसने करके दिखाया है। अपने शत्रुओं को ईंट का जवाब पत्थर से दिया है। जबकि भारत और पाकिस्तान के संबंध में ऐसा नहीं दिखता। पाकिस्तान बार-बार गुर्राता है। भारत की ओर आंखें तरेरता है। चार युद्ध हारने के बाद भी उसकी इतनी हिम्मत भारत की सुरक्षात्मक नीति के कारण है। भारत सरकार बार-बार उसके अमर्यादित व्यवहार को माफ करती है। जबकि होना यह चाहिए कि पाकिस्तान की ओर से कोई संदिग्ध गतिविधि की आशंका दिखे तो घटना घटने से पहले ही भारत की ओर से कार्रवाई कर दी जानी चाहिए। यदि ऐसा हो जाए तो पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने आ जाए। वह भारत विरोधी कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेगा।
दशहरा महज उल्लास का पर्व नहीं है। बल्कि बहुत कुछ संकेत की भाषा में बताने की कोशिश करता है। अपने भीतर के तमाम रावणों को मारो-जलाओ बाकि बाहर सब ठीक हो जाएगा। खुद सशक्त बनो तो समाज ताकतवर बनेगा और देश को भी मजबूती मिलेगी। आखिर लोकतंत्र है भारत में, नेता इसी समाज से चुनकर जाने हैं। जैसा हम समाज बनाएंगे, वैसे ही नेता चुने जाएंगे। लोभ, लालच, स्वार्थ सहित अन्य सारे रावणों पर विजय पा लेंगे तभी तो हम आने वाले वक्त में सही चुनाव कर सकेंगे। तो खींच लो कमान अब ज्यादा वक्त नहीं बचा।
नित नये राक्षसों को मिटाना है मन से।
जवाब देंहटाएंअनीति से लड़ने की शक्ति दे ,,,
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
सच है ...मन और जीवन दोनों से बुराइयों को दूर करें ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय भावना। हम अपने भीतर और आस-पास के रावण पर विजय पाएँ
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