मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

तमिलनाडु में आरएसएस को रोकने की चाल असफल

RSS route marches at 45 places in Tamil Nadu


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को रोकने का सपना देखनेवाली ताकतों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है। तमिलनाडु सरकार अतार्किक बहाने बनाकर आरएसएस के पथ संचलनों पर रोक लगाने के प्रयास कर रही थी। संघ ने राज्य सरकार के पक्षपाती और लोकतंत्र विरोधी निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के निर्णय को पलट दिया और संघ को पथ संचलन निकालने की अनुमति दे दी। परंतु एन–केन–प्रकारेण संघ को रोकने के लिए तैयार बैठी सरकार कहां उच्च न्यायालय के निर्णय को मानती। सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। लेकिन तमिलनाडु सरकार को यहां भी मुंह की खानी पड़ी। हैरानी होती है कि एक ओर विभिन्न राजनीतिक दल संविधान और लोकतंत्र की बात करते हैं लेकिन व्यवहार ठीक उल्टा करते हैं। हिन्दू और राष्ट्रीय विचार के संगठनों का प्रश्न आने पर तथाकथित सेकुलर समूह किसी तानाशाही की तरह व्यवहार करते दिखाई देते हैं। कई बार तो यही लगने लगता है कि इनके दिखाने के दांत अलग है और खाने के दांत अलग हैं। इन सभी का मूल स्वभाव अलोकतांत्रिक ही है, जो विभिन्न अवसरों पर प्रकट होता रहता है।

इस पूरे प्रकरण में तमिलनाडु सरकार के तर्क इतने बचकाने थे कि सर्वोच्च न्यायालय को राज्य सरकार को उसकी जिम्मेदारी और भूमिका का स्मरण कराना पड़ गया। तमिलनाडु सरकार ने आरएसएस के पथ संचलनों पर रोक लगाने के लिए तर्क दिया कि वह पथ संचलनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव नहीं डाल रही, बल्कि केवल कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा के मुद्दे को उजागर कर रही है। हम पथ संचलनों और जनसभाओं का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह हर गली, हर मुहल्ले में नहीं हो सकते हैं। संघ के पथ संचलनों पर हमले हो सकते हैं, इसलिए हम राज्य की कानून–व्यवस्था को ध्यान में रखकर पथ संचलनों को कई स्थानों पर अनुमति नहीं दे सकते। 

संघ की ओर से पक्ष रख रहे अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने उचित तर्कों के साथ न केवल राज्य सरकार के कुतर्कों को हवा में उड़ा दिया अपितु सरकार को आईना दिखाने का भी काम किया। आखिर कोई सरकार आतंकी हमले की आशंकाओं का हवाला देकर किसी संगठन को शांतिपूर्ण आयोजन करने से कैसे रोक सकती है? बहरहाल, यदि तमिलनाडु सरकार के तर्कों को मान्यता दे दी जाए तो इन तर्कों के आधार पर राज्य सरकारें लोगों का घरों से निकलना भी बंद करा सकती हैं। सरकारें कह सकती हैं कि इतनी बड़ी आबादी को वह अपराधियों, सड़क दुर्घटनाओं और अन्य समस्याओं से सुरक्षित नहीं रख सकतीं, इसलिए सरकार लोगों के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगाती है। 

तमिलनाडु की डीएमके सरकार को आईना दिखाते हुए जेठमलानी ने कहा कि “राज्य सरकार एक आतंकवादी संगठन को नियंत्रित करने में असमर्थ है, इसलिए वह पथ संचलन पर प्रतिबंध लगाना चाहती है। अगर मुझ पर एक आतंकवादी संगठन द्वारा हमला किया जा रहा है, तो राज्य को मेरी रक्षा करनी होगी”। नि:संदेह, किसी भी प्रकार के हमले से व्यक्ति/संगठन की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। संघ के शांतिपूर्ण पथ संचलनों पर रोक लगाने की अपेक्षा सरकार को सुरक्षा व्यवस्था चौकस करने पर जोर देना चाहिए था। सरकार यदि स्वयं को बुनियादी जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ मानकर चल रही है, तब उसे स्वतः ही सत्ता से बाहर हो जाना चाहिए। 

दरअसल, सच यही है कि तमिलनाडु की डीएमके सरकार अतार्किक आधार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को रोकना चाह रही थी। अपनी मंशा को तर्क संगत दिखाने के लिए ही वह तमाम प्रकार के मनगढंत विचार प्रस्तुत कर रही थी। डीएमके को याद रखना चाहिए था कि उससे पहले इस प्रकार के प्रयास अनेक राजनीतिक दल कर चुके हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति का झंडा उठाकर चलनेवाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ को अब तक कोई दबा नहीं सका है। 

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद संघ ने तमिलनाडु में 45 स्थानों पर पथ संचलन निकाले। किसी भी पथ संचलन से अव्यवस्था पैदा नहीं हुई और न ही सांप्रदायिकता भड़की। देखने की बात है कि अनेक स्थानों पर समाज के संवेदनशील नागरिकों ने आगे बढ़कर पथ संचलनों का स्वागत किया। पथ संचलन में शामिल स्वयंसेवकों एवं भगवा ध्वज का वंदन करते हुए बुजुर्ग माताओं की भावुक तस्वीरें भी मीडिया में आई हैं। यह तस्वीरें तमिलनाडु सरकार को आईना दिखानेवाली हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share