पिता का साथ
दम भर देता है
सीने में
पकड़कर उसका हाथ
कोई मुश्किल नहीं होती
जीने में।
पिता के कंधे चढ़कर
सूरज को भींच सकता हूं
मुट्ठी में
उसकी मौजूदगी संबल देती है
पहाड़ों से भी टकरा सकता हूं
रास्तों में।
पिता पेड़ है बरगद का
सुकून मिलता है उसकी
छांव में
मुसीबत की भले बारिश हो
कोई डर नहीं, वो छत है
घर में।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
वीडियो देखिये...
दम भर देता है
सीने में
पकड़कर उसका हाथ
कोई मुश्किल नहीं होती
जीने में।
पिता के कंधे चढ़कर
सूरज को भींच सकता हूं
मुट्ठी में
उसकी मौजूदगी संबल देती है
पहाड़ों से भी टकरा सकता हूं
रास्तों में।
पिता पेड़ है बरगद का
सुकून मिलता है उसकी
छांव में
मुसीबत की भले बारिश हो
कोई डर नहीं, वो छत है
घर में।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
वीडियो देखिये...
बहुत मर्मस्पर्शी और सच्ची कविता . बचपन में मिला पिता का स्नेहमय संरक्षण आजीवन ऊर्जा देता है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीदी
हटाएंपढ़ कर बेहद सुकून मिला. अपने पिता की याद आ गई.
जवाब देंहटाएंपरसों ही उनकी पुण्य तिथि थी.
बरगद कभी बूढा नहीं होता.
अपने पंचू से मिल कर मन आनंदित हुआ.
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, अब दिख रहा होगा... ब्लॉग पर जुड़िये
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बहुत सुंदर प्रस्तुति पिता की महत्ता पर ।
जवाब देंहटाएंसार्थक अप्रतिम ।
बहुत धन्यवाद जी
हटाएंNice Kavita guru ji is Kavita me jindgi dikhaai padti hai
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