सहजता, सरलता, सादगी और बेबाकी इन सबको मिला दिया जाए तो एक बेहद उम्दा इंसान आपके सामने होगा। लोकेन्द्र पाराशर। जो उनके भीतर है, वह ही बाहर भी। कथनी-करनी में किंचित भी अंतर नहीं। खरा-खरा कहना, चाहे किसी को बुरा लगे या भला। आपसे मित्रवत मिलेंगे और हर संभव आपकी मदद करने को हर पल तैयार। समाजकंटकों के लिए अपनी लेखनी की आग और समाजचिंतकों के लिए अपनी आंखों के पानी के लिए वे देशभर में ख्यात हैं। वे लम्बे समय तक पत्रकारिता की पाठशाला कहे जाने वाले दैनिक स्वदेश (ग्वालियर) के संपादक रहे हैं। उनका चिंतन राष्ट्रवादी है। वे समाज और देशहित से जुड़े मुद्दों पर गहरी पकड़ रखते हैं। ग्रामवासी होने के कारण भारत को औरों की अपेक्षा कहीं अधिक नजदीक से देखते और समझते हैं। उनका चिंतन, उनकी सोच और उनके विचार उनके लेखन में झलकता है।
संवेदनशील पत्रकार और शानदार वक्ता लोकेन्द्र पाराशर बेहद सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। एक दफा 'एलीट क्लास' के 'सिटीजन्स' ने एक बौद्धिक कार्यक्रम का आयोजन किया। उसमें उन्होंने लोकेन्द्र पाराशर को भी आमंत्रित किया। आमतौर पर कुर्ता-पजामा पहनने वाले श्री पाराशर से उन्होंने अनुरोध किया कि आप सूट-बूट पहनकर आइएगा। कार्यक्रम में शहर-प्रदेश के बड़े-बड़े अफसर, आईएएस, आईपीएस और व्यापारीगण शामिल होंगे। 'जो है सो है' की धारणा में विश्वास करने वाले श्री पाराशर ने कह दिया-'यदि सूटबूट पहने व्यक्ति को ही कार्यक्रम में आने की अनुमति है तब फिर अपन नहीं आएंगे, आप किसी और को बुला लो।' बाद में, उन सज्जन ने माफी मांगी। अपनी विचारधारा को लोकेन्द्र जी कभी छिपाते नहीं बल्कि तर्क के साथ उसके महत्त्व को साबित करते हैं। पत्रकारिता में ऐसे राष्ट्रवादी पत्रकार कम ही हैं। किसी भी विषय पर कलम चलाने से पहले उनके दिल-दिमाग में हमेशा समाज, राष्ट्र और उसकी संस्कृति-गरिमा ध्यान में रहती है।
गालव की भूमि से देश का मिजाज समझने और समझाने निकले तमाम पत्रकारों को उन्होंने संतुलित पत्रकारिता की सीख दी है। मुझे भी पत्रकारिता का क-ख-ग उन्होंने ही सिखाया है। उनकी सीख मैं हमेशा गांठ में बांधकर चला। जहां अटका, उनके मंत्र याद आए। ''पत्रकारिता बहुत जिम्मेदारी भरा काम है। हमारी जरा-सी असावधानी कई बार समाज या किसी व्यक्ति के लिए घातक साबित हो सकती है। तुम्हारा स्रोत तुम्हें जो खबर दे रहा है, उसकी पूरी पड़ताल करना जरूरी है। किसी के खिलाफ कोई खबर है तो उसकी तह में जाओ, उसका पक्ष जरूर जानो, वरना आपकी लेखनी से उस व्यक्ति की जो प्रतिष्ठा धूमिल होगी, उसे आप वापस नहीं ला सकेंगे। खबर आत्मा की तरह पवित्र होनी चाहिए।'' उनके सिखाए हुए पत्रकारिता के इसी धर्म का पालन मैंने किया और अब इसी धर्म को आगे बढ़ा रहा हूं। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता, विकास की पत्रकारिता, संतुलित पत्रकारिता और सार्थक पत्रकारिता के शिक्षक हैं लोकेन्द्र पाराशर। उनके बारे में यह संक्षिप्त परिचय इसलिए प्रस्तुत किया है, क्योंकि वे नई भूमिका में हमारे सामने प्रस्तुत होने जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश मीडिया प्रभारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका उन्हें सौंपी है। निश्चित ही लोकेन्द्र पारासर अपने दायित्व को सफलतापूर्वक निभाएंगे। उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।
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