भारतीय जनता पार्टी सदैव राजनीतिक शुचिता और राजनीति में आदर्श स्थापित करने के विचार का प्रतिपादन करती रही है। अनेक अवसर पर उसने अपने इस विचार को स्थापित करने के प्रयास भी किए हैं। इस समय पार्टी का अघोषित सिद्धांत बन गया है कि 75 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले राजनेताओं को मंत्री पद और सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। हाल में केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में इस सिद्धांत का पालन होते दिखा। राज्य (मध्यप्रदेश) के मंत्रिमंडल में भी इसका असर दिखाई दिया। यहाँ तक कि पार्टी के विचार को पुष्ट करने के लिए केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने स्वयं मंत्री पद से अपना त्याग पत्र प्रस्तुत कर आदर्श व्यवहार प्रस्तुत किया। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से जिस अनुशासन की अपेक्षा रहती है, उसका प्रदर्शन गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने भी किया है। उन्होंने भी अपनी उम्र को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र की पेशकश की है।
मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने इस बात को सार्वजनिक रूप से अपने फेसबुक पेज पर भी लिखा है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में कहा कि 'पिछले कुछ समय से पार्टी की परंपरा है कि जो नेता 75 की उम्र पूरी कर लेते हैं, वे अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेते हैं। मैं नवंबर में 75 की हो जाऊंगी। पार्टी से आग्रह है कि मुझे दो माह पहले ही कार्यमुक्त कर दिया जाए, ताकि नए मुख्यमंत्री को 2017 में विधानसभा चुनाव और वाइब्रेंट गुजरात की तैयारी का मौका मिल सके।' राजनीतिक विश्लेषक और भाजपा से मतभिन्नता रखने वाले विचारक आनंदी बेन पटेल के मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र की पेशकश के चलताऊ राजनीतिक निहितार्थ निकाल सकते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो यहाँ तक कह ही दिया है कि आम आदमी पार्टी और उनसे डर कर आनंदी बेन पटेल ने इस्तीफा दिया है। यह बेहद हास्यास्पद दलील है। खैर, भारतीय मानस अब केजरीवाल से गंभीर राजनीतिक टिप्पणी की उम्मीद भी नहीं करता है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि आनंदी बेन पटेल अपने दो साल के कार्यकाल में गुजरात को ठीक से संभाल नहीं पाईं। भाजपा ने उनसे जितनी उम्मीद की थी, वह उस पर खरी नहीं उतर सकीं। आरक्षण के लिए उग्र आंदोलन हो या फिर दलित उत्पीडऩ का मामला, इन मुद्दों को ठीक से नहीं संभाल पाने के कारण आनंदी बेन पटेल पर काफी दबाव था। कुछ समय से यह सुगबुगाहट भी चल रही थी कि गुजरात का मुख्यमंत्री बदला जा सकता है। यह विचार और तथ्य विमर्श का हिस्सा हो सकते हैं। लेकिन, सम्पूर्ण सच यह नहीं है। सकारात्मक नजरिए से हम इस घटना पर विमर्श करेंगे, तब भारतीय राजनीति से जिस व्यवहार की अपेक्षा हम करते हैं, उस दिशा में एक बहस की शुरुआत हो सकती है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बात को रेखांकित किया है कि आनंदी बेन पटेल ने यह फैसला सिर्फ इसलिए नहीं लिया है कि वह 75 वर्ष की हो रही हैं। बल्कि वह एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रही हैं। यकीनन इस मामले में आनंदी बेन पटेल के निर्णय की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने जिस तरह से अपने त्यागपत्र की प्रस्तुति की है, उससे 75 के नजदीक आ रहे या ७५ पार हो रहे भाजपा के अन्य नेताओं पर भी नैतिक दबाव बनेगा। अन्य पार्टियों के समक्ष भी भाजपा एक नई लकीर खींच रही है। नए नेतृत्व को मौका देने की भाजपा की यह परंपरा निश्चित ही अन्य पार्टियों के सामने चुनौती पेश करेगी।
बहरहाल, एक उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की भाजपा में नई परंपरा नहीं है। नानाजी देशमुख जैसे कर्मयोगी इसकी परिपाटी रख चुके हैं। इसलिए अभी मंत्री पद से हट रहे भाजपा नेताओं को नानाजी से सीख लेनी चाहिए। क्योंकि, सक्रिय राजनीति से हटने का मतलब निष्क्रीय हो जाना नहीं है। बल्कि, सक्रिय राजनीति से अपने को अलग करने वाले नेताओं को सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में जुड़ जाना चाहिए। उसका उदाहरण नानाजी देशमुख ने प्रस्तुत किया है। आज नानाजी देशमुख जितना अपनी आदर्श राजनीति के लिए जाने जाते हैं, उससे कहीं अधिक उनको सामाजिक कार्यों के लिए माना जाता है।
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