म ध्यप्रदेश की जनता ने शिवराज सरकार में भरोसा दिखाया है। भारी बहुमत से जनता ने भाजपा को राज्य की कुर्सी सौंपी है। भाजपा को 165 सीटों पर विजय मिली है। पिछले चुनाव से 22 सीट अधिक। कांग्रेस 58 सीट पर सिमट गई। उसे इस चुनाव में फायदा होने की जगह पिछले चुनाव के मुकाबले 13 सीट का नुकसान हो गया। यह जीत चौंकाने वाली है, भाजपा के लिए भी और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी। दरअसल, 'महाराज' ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंपकर कांग्रेस ने मुकाबला पेचीदा बना दिया था। बेहद कमजोर दिख रही कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जान फूंक दी थी। कांग्रेस पूरी ताकत के साथ भाजपा से मुकाबला करने खड़ी हो गई। माना जा रहा था कि कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करेगी और भाजपा पूरी ताकत लगाने के बाद बमुश्किल 120 सीट जीत सकेगी। एक अनुमान यह भी था कि कांग्रेस भी सत्ता हासिल कर सकती है। दो बार से प्रदेश की राजगद्दी से नीचे खड़ी कांग्रेस एक बार फिर सरकार में वापसी करना चाहती थी, इसके लिए तमाम गुटों ने एकजुटता दिखाने की भी कोशिश की। 'युवराज' राहुल गांधी ने भी खास फोकस किया मध्यप्रदेश के चुनाव पर, टिकट वितरण पर भी। यानी कांग्रेस की सारी कवायद देखकर अचानक से यह लगा था कि भाजपा के लिए आसान दिख रहा मुकाबला काफी कड़ा होगा। नतीजा शिवराज सिंह चौहान सहित पूरा भाजपा संगठन जबर्दस्त प्रचार अभियान पर निकल लिया। आखिरकार 'फिर भाजपा-फिर शिवराज' का नारा लेकर चुनावी रण में उतरी भाजपा और शिवराज सिंह चौहान को जनआशीर्वाद मिल गया है।
मौटेतौर पर देखा जाए तो मध्यप्रदेश में भाजपा की जीत शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय छवि की जीत है। सरकार की लोककल्याणकारी और लोक लुभावन योजनाओं की जीत है। भाजपा की विचारधारा की जीत है। नरेन्द्र मोदी फैक्टर का भी असर है। भाजपा इसे सुशासन की भी जीत मान रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई सरकारी योजनाओं से लोगों के दिलों में घर कर लिया है। लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना और बेटी बचाओ अभियान से जहां उन्होंने महिला वर्ग में खुद का महिला हितैषी ब्रांड बनाया वहीं बुजुर्गों को मुफ्त में तीर्थदर्शन करवाकर उनके वोट अपनी झोली में डाल लिए। अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए शिवराज सिंह चौहान जनआशीर्वाद मांगने के लिए प्रदेश के शहर-शहर और गांव-गांव तक पहुंचे। इस दौरान उन्होंने स्वयं की और सरकार की जमकर ब्रांडिंग की। हालांकि सरकार की तरफ से जनता के बीच सब अच्छा-अच्छा था, ऐसा भी नहीं था। प्रदेश सरकार के बहुतेरे मंत्रियों और विधायकों को लेकर जनता में भारी आक्रोश था। यही कारण है कि जनआशीर्वाद यात्रा और चुनाव प्रचार के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्याशी के लिए वोट न मांगकर अपने नाम पर मतदान करने की अपील जनता से की। चुनाव से पूर्व टिकट वितरण में भाजपा ने काफी हद तक सावधानी बरतकर इस जीत की राह बनाई थी। करीब ५० टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दिया गया। ज्यादातर नए चेहरे जीते हैं जबकि पांच-छह मंत्री, जिनके टिकट कट जाने चाहिए थे लेकिन किसी कारणवश कट नहीं सके, वे चुनाव हार गए। शिवराज सिंह चौहान ने इस चुनावी लड़ाई को आम आदमी बनाम महाराज भी बना दिया था। निश्चित यह तरकीब शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में काम कर गई। शिवराज समझ रहे थे कि लोगों को अब राजनीति में अपने बीच का नेता ही चाहिए, राजवंश या खास परिवार की राजनीति के दिन लद गए हैं। नतीजों में यह दिखा भी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही गढ़ में कांग्रेस को बहुत अधिक सीट नहीं जितवा सके। यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया का नया चेहरा, ईमानदार छवि और महाराज वाला असर कांग्रेस के किसी काम नहीं आया। हां, यह बात अलग है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को और पहले काम करने का मौका कांग्रेस ने दिया होता तो शायद कुछ संभावना बनती, कांग्रेस के मजबूत होने की। संभवत: कांग्रेस की रणनीति रही होगी कि नवमतदाता यानी यूथ वोटर को सिंधिया के ग्लैमर से आकर्षित कर लिया जाए। लेकिन, नवमतदाताओं में तो नरेन्द्र मोदी का असर था। केन्द्र के चुनाव के लिए मोदी की तैयारी को मजबूत करने के लिए भी युवाओं ने अभी भाजपा को वोट दिया। केन्द्र में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए भाजपा को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत की दरकार थी। यही कारण था कि मोदी ने चारों राज्यों में अथक चुनाव प्रचार किया। कई सभाएं लीं। एक ही दिन में अलग-अलग राज्यों में जनता को संबोधित किया। नतीजों में इसका असर भी दिखा है। मध्यप्रदेश में भी जहां-जहां नरेन्द्र मोदी ने सभा को संबोधित किया किया, वहां-वहां भाजपा के हित में नतीजे आए।
मध्यप्रदेश के विकास को भी शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनाया। शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषणों में जनता को दिग्विजय सिंह के शासन काल की याद दिलाई। कांग्रेस के ६० साल के विकास से अपने १० साल के विकास की तुलना कराई। उन्होंने जनता से वादा भी किया कि भाजपा को फिर सरकार में आई तो विकास की रफ्तार और तेज होगी। इस बात में कोई शंका नहीं कि पिछले १० साल में मध्यप्रदेश में काफी काम हुए हैं। यह जनता को दिख भी रहा था। यानी यह भी कहा जा सकता है कि सरकार ने विकास ने नाम पर जीत हासिल की है। अब देखना है कि भाजपा और उनके लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता की भावनाओं को कैसे संभालकर रखते हैं। जनआशीर्वाद का कितना सम्मान करेंगे। जनादेश का कितना पालन करेंगे। इस बार शिवराज सिंह चौहान और भाजपा संगठन को इस बात पर सख्त होना पड़ेगा कि सरकार में भ्रष्टाचार न पनपे। साथ ही नेता जीत के बाद लापता न हो जाएं, जनता के बीच रहें, जनता के बीच दिखें, जनता के सुख-दु:ख में शामिल हों, जनता की समस्याएं सुनें और उनकी परेशानियों को दूर करने की दिशा में पहल करते दिखें। लगातार तीसरी बार जीत है, बड़ी जीत है, तो भाजपा गुरूर न करे। अदब से जनादेश को स्वीकार करें और विकास की पार्टी के रूप में बनी अपनी छवि को साबित करे।
इधर, भोपाल में शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया से बात करते हुए भारी बहुमत के लिए जनता को धन्यवाद दिया। कार्यकर्ताओं की मेहनत को स्वीकार किया। प्रदेश से लेकर केन्द्रीय नेताओं का सहयोग के लिए आभार जताया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि जनता ने जिस उम्मीद और भरोसे के साथ भाजपा को फिर से सरकार बनाने का मौका दिया है, हम उस उम्मीद और भरोसे के लिए दिन-रात काम करेंगे। मध्यप्रदेश की जनता की सेवा के लिए रात-दिन एक कर देंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आम चुनाव में केन्द्र में सरकार बनाने के लिए मध्यप्रदेश अन्य राज्यों के अनुपात में अधिक सीटें देगा। बहरहाल, भाजपा के हौंसले बुलंद हैं, इस जीत से। दिल्ली में हुई प्रेसवार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा है कि शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। बड़ी जीत और तीसरी पारी से शिवराज सिंह चौहान की केन्द्र में स्थिति मजबूत होगी और भूमिका भी बढ़ेगी।
बढ़िया-
जवाब देंहटाएंअदब से इसे कबूल करे शिवराज सरकार ... जनता के लिए काम करे ... स्वक्ष्ता से काम करे ... सही विश्लेषण किया है आपने ...
जवाब देंहटाएंजीत में मुद्दे कम और उम्मीदवार की छबि ज्यादा काम आती है क्योंकि 'पब्लिक' सब जानती है । लेकिन जीत जाना ही काफी नही । अब शिवराज सरकार को इस जीत का मान रखते हुए आन्तरिक तौर पर वह सब भी देखना होगा जो किसी कारणवश अनदेखा रहा है । उम्मीद है कि ऐसा ही होगा ।
जवाब देंहटाएंविश्वास है कि शिवराज जी में दंभ नहीं आयेगा और वो पहले से भी ज्यादा अच्छा शासन देंगे।
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