'टी वी और सिनेमा को हमेशा मनोरंजन के तौर पर नहीं देखा जा सकता है और न ही मनोरंजन का मतलब सिर्फ लोगों को हंसाना है। मैंने हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश की है। भारत में जमीन से जुड़े इतने हीरो हैं, जिनकी जिंदगी से काफी प्ररेणा ली जा सकती है। सत्यमेव जयते एक कार्यक्रम नहीं भारत जोड़ो और समाज जागरण का अभियान है।' हाल ही में शुरू हुए चर्चित शो 'सत्यमेव जयते' को लेकर यह कहना है आमिर खान का। मनोरंजन के जगत, खबरों की दुनिया, आभासी दुनिया और जनमानस के बीच में शो काफी चर्चा बटोर रहा है। शो का आगाज दमदार रहा है। आमिर खान ने सत्यमेव जयते के पहले ही एपिसोड में सबसे चर्चित और जरूरी मुद्दा उठाया है। मुद्दा है कोख में कत्ल का। स्त्री अत्याचार का। बेटा-बेटी में झूठे भेद का। शो में सिर्फ मुद्दा उठाया भर नहीं गया बल्कि इस विकराल समस्या के जन्मने के कारण और इसके खात्मे के उपायों की भी चर्चा हुई। साथ ही अपने ही अंश की अपनी ही कोख में हत्या के दंश को झेल चुकी बहादुर महिलाओं के साहस को भी सलाम किया गया। उन्हें इस रूप में प्रस्तुत किया गया कि समाज की और भी महिलाएं कह उठें- 'बस, अब बहुत हुआ। ये अत्याचार सहन नहीं।' पहले एपीसोड के बाद सत्यमेव जयते की आधिकारिक वेबसाइट पर इतनी प्रतिक्रियाएं आईं की वेबसाइट क्रेश हो गई। फेसबुक, ऑरकुट, गूगल प्लस, ट्वीटर और अन्य सोशल साइटों पर समाजसेवियों, सोशल हस्तियों, साहित्यकारों, मनोरंजन जगत के लोगों और आम आदमी ने सत्यमेव जयते को एक क्रांति बताया, शो की भरपूर सराहना की।
बेटा-बेटी का भेद समाज से अभी गया नहीं। जबकि समाज में शिक्षा बढऩे के साथ ही इसके जाने के कयास लगाए गए थे। लेकिन, घटनाओं को देखने से लगता है कि शिक्षा के प्रसार से भी अभी कोई अधिक फर्क नहीं आया है। शिक्षित लोग भी झूठी सामाजिक परंपरा में फंसे हैं। जबकि हम आसपास देखते हैं कि झूठ की बुनियाद पर खड़ी सभी सामाजिक परंपराएं दरक रहीं हैं। आज बेटी श्मशान घाट जाकर अपने माता-पिता को मुखाग्नि दे रही है तो नौकरी-व्यवसाय करके माता-पिता का भरण-पोषण कर रही है। एक सफेद झूठ समाज में प्रचारित किया गया है कि वंश बेटे से चलता है। जबकि वंश तो बेटी की कोख से ही पैदा होता है। बेटा चाहकर भी अकेले संतान पैदा नहीं कर सकता। इतना ही नहीं बेटियां सब क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। कार्यक्रम में मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की घटनाओं के बारे में बताया गया। जो सच सामने आया वह दिल दहलाने वाला है। कन्याओं को जन्म देने वाली माताओं के साथ किस तरह का बर्बर सलूक किया जाता है यह देखकर तमाम लोगों की आंखों में अश्रूधार और धमनियों में रक्त प्रवाह तेज हुआ होगा। कोख में दम तोड़तीं बेटियां चीख-चीख कर कहती हैं कि आज भी सामंती युग कायम है। हमने दुनिया को दिखा दिया है कि हम बेटों के मुकाबले कहीं कमतर नहीं इसके बावजूद हमारा स्वागत नहीं किया जा रहा। जबकि इन्ही प्रदेशों की कई बेटियों ने मिशाल कायम की है। राजस्थान और मध्यप्रदेश की दो महिला सरपंचों को केन्द्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय गौरव ग्राम पंचायत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राजस्थान के दौसा जिले की विमला देवी मीणा और मध्यप्रदेश के धार जिले की जामबाई मुनिया को यह सम्मान मिला। वहीं, पिछले साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र संघ की इंफोपॉवर्टी वल्र्ड कॉन्फ्रेंस में लाजवाब भाषण देकर राजस्थान के टोंक जिले के सोड़ा गांव की सरपंच छवि राजावत ने दुनिया में नाम कमाया। एमबीए डिग्रीधारी छवि अपने गांव के विकास के लिए ऊंची नौकरी छोड़कर गांव आकर बस गई। मध्यप्रदेश की साध्वी और तेजतर्रार नेता उमा भारती ने तो राजनीति में तमाम प्रतिमान स्थापित किए। हाल ही में घोषित हुए संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा परीणाम में भी बेटियों ने अपनी योग्यता का लोहा मनवाया। ऐसे तमाम उदाहरण हमारे आसपास मौजूद हैं।
आमिर खान महज फिल्मी पर्दे पर समाज के लिए आवाज बुलंद करने वाले अभिनेता नहीं हैं। उन्होंने समय-समय पर प्रत्यक्ष रूप से समाज के लिए आगे आकर काम किया है। वे नर्मदा बांध के विस्थापितों के प्रति हमदर्दी रखते हैं। मेधा पाटकर के साथ आकर विस्थापितों की आवाज बुलंद करते हैं। भ्रष्टाचार रहित समाज के लिए प्रयासरत हैं। अण्णा के मंच से भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लोकपाल की सिफारिश करते हैं। बच्चों के प्रति समाज का रुख सकारात्मक रहे इसके लिए 'तारे जमीं' से संदेश देते हैं। ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं, आमिर खान इनसे भी अधिक कार्य समाज के लिए करते हैं। आमिर सकारात्मक और सार्थक सिनेमा रचने में विश्वास रखते हैं। भारतीय सिनेमा को १००वां साल शुरू हो गया है। ऐसे में बॉलीवुड के अन्य दिग्गज अभिनेताओं और निर्देशकों को सोचना चाहिए कि मुनाफा फिल्मों में नंगापन दिखाने से ही नहीं कमाया जा सकता, आमिर की तरह सकारात्मक सिनेमा रचकर भी कमाया जा सकता है। ऐसे सिनेमा से प्रसिद्ध और सफलता मुनाफे के साथ बोनस के रूप में मिलती है।
सत्यमेव जयते के पहले एपीसोड में मध्यप्रदेश के मुरैना जिले की परवीन खान की दास्तान दिखाई गई। परवीन साहस का प्रतिरूप है। परवीन की बेटियों को लगातार बेरहमी से मारा जाता रहा। आखिर वह इस सबसे तंग आ गई। उसने तय किया कि इस बार वह अपनी बेटी को दुनिया दिखाएगी, किसी भी कीमत पर। उसने ऐसा करके भी दिखा दिया। हालांकि बाद में उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उसके पति (क्षमा करें उसे पति कहना गलत होगा, ऐसे आदमी को बहशी दरिंदा ही कहा जाना उचित होगा) ने मुंह से परवीन की नाक चबा ली। मुरैना भ्रूण हत्या और कन्या हत्या के लिए काफी कुख्यात है। एक समय में यहां कन्या हत्या के बेहद घृणित तरीके प्रचलित रहे हैं। यहां उनका जिक्र करना भी उचित न होगा। हालांकि अब पहले की तुलना में स्थिति में काफी सुधार आया है। फिर भी 2011 की जनगणना के आंकड़े भी बयां करते हैं कि 2001 की तुलना में लिंगानुपात में अंतर बढ़ा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मुरैना ही मध्यप्रदेश में सबसे कम लिंगानुपात वाला जिला है। यहां छह साल तक की उम्र के बच्चों में 1000 लड़कों पर महज 825 लड़कियां हैं। जनगणना 2001 के मुताबिक यहां इस आयु वर्ग का लिंगानुपात 837 था। यानी एक दशक में यहां लिंगानुपात में 12 अंकों की गिरावट दर्ज हुई। जो निश्चिततौर पर चिंतनीय है। वैसे प्रदेश के हाल भी खराब ही हैं। जनगणना 2011 के आकंड़ों के मुताबिक प्रदेश में शून्य से छह वर्ष तक के आयु समूह का लिंगानुपात 912 है। यह 2001 की जनगणना के मुताबिक 932 था। यानी इस एक दशक में प्रदेश में भी 20 अंक की गिरावट हुई। प्रदेश में बेटी के यह हाल देखकर सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने बेटी बचाओ अभियान भी शुरू कर रखा है। लेकिन, बेटियों के प्रति सोच में बदलाव किसी एक के बूते आना संभव नहीं, हम सबके मिले-जुले प्रयास से ही संभव हो सकता है। पहले ही एपिसोड में आमिर खान ने पंजाब के एक गांव को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। जहां सभी ग्रामवासियों ने तय किया कि कोई भी भ्रूण हत्या नहीं करवाएगा। कोख में जिसे भी ईश्वर ने भेजा है दुनिया में उसका स्वागत किया जाएगा। नतीजा यह हुआ कि कुछ ही समय में उस गांव का लिंगानुपात समान हो गया। वहां लड़के-लड़कियों की संख्या समान हो गई। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए कि जितने भी सामाजिक बदलाव आए वे सब सामूहिक प्रयास से ही आए। इसलिए कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिशु हत्या को रोकना है तो सबको सामने आना होगा।
चलते-चलते सत्यमेव जयते के बहाने दूरदर्शन की ताकत की भी बात कर ली जाए। यह शो आठ भाषाओं में नौ चैनलों पर १०० देशों में दिखाया जाएगा। इतना ही नहीं यह पहला शो है जो निजी चैनल्स पर प्रसारित होने के साथ ही साथ दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल (डीडी-१) पर भी प्रसारित होगा। दरअसल, तमाम टीआरपी के आंकड़ों के बाद भी यह व्यवहारिक सत्य है कि दूरदर्शन की जितनी पहुंच है उतनी किसी भी निजी चैनल की नहीं। टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) में भले ही दूरदर्शन पिछड़ा नजर आता हो, क्योंकि यह मनोरंजन बेच रहे लोगों की चालाकी है। आमिर खान कहते हैं कि मैं ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचना चाहता हूं इसलिए टेलीविजन का उपयोग कर रहा हूं। उन्हें पता है कि निजी चैनलों की पहुंच शहर और शहर से लगे कुछ कस्बों तक ही है। जबकि भारत तो गांवों में बसता है। समाज जागरण करना है तो मास तक पहुंचना होगा। मास तक पहुंचने का माध्यम सिर्फ दूरदर्शन ही है। दूरदर्शन की पहुंच शहर से लेकर दूरदराज के गांव तक है। सत्यमेव जयते को शुरुआत से मिल रही सफलताओं को देखकर कहा जा सकता है कि यह मनोरंजन के जगत से लेकर सामाजिक जगत में परिवर्तन ला सकता है। बस, इसके लिए आमजन के साथ ही जरूरत है।
बेटा-बेटी का भेद समाज से अभी गया नहीं। जबकि समाज में शिक्षा बढऩे के साथ ही इसके जाने के कयास लगाए गए थे। लेकिन, घटनाओं को देखने से लगता है कि शिक्षा के प्रसार से भी अभी कोई अधिक फर्क नहीं आया है। शिक्षित लोग भी झूठी सामाजिक परंपरा में फंसे हैं। जबकि हम आसपास देखते हैं कि झूठ की बुनियाद पर खड़ी सभी सामाजिक परंपराएं दरक रहीं हैं। आज बेटी श्मशान घाट जाकर अपने माता-पिता को मुखाग्नि दे रही है तो नौकरी-व्यवसाय करके माता-पिता का भरण-पोषण कर रही है। एक सफेद झूठ समाज में प्रचारित किया गया है कि वंश बेटे से चलता है। जबकि वंश तो बेटी की कोख से ही पैदा होता है। बेटा चाहकर भी अकेले संतान पैदा नहीं कर सकता। इतना ही नहीं बेटियां सब क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। कार्यक्रम में मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की घटनाओं के बारे में बताया गया। जो सच सामने आया वह दिल दहलाने वाला है। कन्याओं को जन्म देने वाली माताओं के साथ किस तरह का बर्बर सलूक किया जाता है यह देखकर तमाम लोगों की आंखों में अश्रूधार और धमनियों में रक्त प्रवाह तेज हुआ होगा। कोख में दम तोड़तीं बेटियां चीख-चीख कर कहती हैं कि आज भी सामंती युग कायम है। हमने दुनिया को दिखा दिया है कि हम बेटों के मुकाबले कहीं कमतर नहीं इसके बावजूद हमारा स्वागत नहीं किया जा रहा। जबकि इन्ही प्रदेशों की कई बेटियों ने मिशाल कायम की है। राजस्थान और मध्यप्रदेश की दो महिला सरपंचों को केन्द्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय गौरव ग्राम पंचायत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राजस्थान के दौसा जिले की विमला देवी मीणा और मध्यप्रदेश के धार जिले की जामबाई मुनिया को यह सम्मान मिला। वहीं, पिछले साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र संघ की इंफोपॉवर्टी वल्र्ड कॉन्फ्रेंस में लाजवाब भाषण देकर राजस्थान के टोंक जिले के सोड़ा गांव की सरपंच छवि राजावत ने दुनिया में नाम कमाया। एमबीए डिग्रीधारी छवि अपने गांव के विकास के लिए ऊंची नौकरी छोड़कर गांव आकर बस गई। मध्यप्रदेश की साध्वी और तेजतर्रार नेता उमा भारती ने तो राजनीति में तमाम प्रतिमान स्थापित किए। हाल ही में घोषित हुए संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा परीणाम में भी बेटियों ने अपनी योग्यता का लोहा मनवाया। ऐसे तमाम उदाहरण हमारे आसपास मौजूद हैं।
आमिर खान महज फिल्मी पर्दे पर समाज के लिए आवाज बुलंद करने वाले अभिनेता नहीं हैं। उन्होंने समय-समय पर प्रत्यक्ष रूप से समाज के लिए आगे आकर काम किया है। वे नर्मदा बांध के विस्थापितों के प्रति हमदर्दी रखते हैं। मेधा पाटकर के साथ आकर विस्थापितों की आवाज बुलंद करते हैं। भ्रष्टाचार रहित समाज के लिए प्रयासरत हैं। अण्णा के मंच से भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लोकपाल की सिफारिश करते हैं। बच्चों के प्रति समाज का रुख सकारात्मक रहे इसके लिए 'तारे जमीं' से संदेश देते हैं। ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं, आमिर खान इनसे भी अधिक कार्य समाज के लिए करते हैं। आमिर सकारात्मक और सार्थक सिनेमा रचने में विश्वास रखते हैं। भारतीय सिनेमा को १००वां साल शुरू हो गया है। ऐसे में बॉलीवुड के अन्य दिग्गज अभिनेताओं और निर्देशकों को सोचना चाहिए कि मुनाफा फिल्मों में नंगापन दिखाने से ही नहीं कमाया जा सकता, आमिर की तरह सकारात्मक सिनेमा रचकर भी कमाया जा सकता है। ऐसे सिनेमा से प्रसिद्ध और सफलता मुनाफे के साथ बोनस के रूप में मिलती है।
सत्यमेव जयते के पहले एपीसोड में मध्यप्रदेश के मुरैना जिले की परवीन खान की दास्तान दिखाई गई। परवीन साहस का प्रतिरूप है। परवीन की बेटियों को लगातार बेरहमी से मारा जाता रहा। आखिर वह इस सबसे तंग आ गई। उसने तय किया कि इस बार वह अपनी बेटी को दुनिया दिखाएगी, किसी भी कीमत पर। उसने ऐसा करके भी दिखा दिया। हालांकि बाद में उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उसके पति (क्षमा करें उसे पति कहना गलत होगा, ऐसे आदमी को बहशी दरिंदा ही कहा जाना उचित होगा) ने मुंह से परवीन की नाक चबा ली। मुरैना भ्रूण हत्या और कन्या हत्या के लिए काफी कुख्यात है। एक समय में यहां कन्या हत्या के बेहद घृणित तरीके प्रचलित रहे हैं। यहां उनका जिक्र करना भी उचित न होगा। हालांकि अब पहले की तुलना में स्थिति में काफी सुधार आया है। फिर भी 2011 की जनगणना के आंकड़े भी बयां करते हैं कि 2001 की तुलना में लिंगानुपात में अंतर बढ़ा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मुरैना ही मध्यप्रदेश में सबसे कम लिंगानुपात वाला जिला है। यहां छह साल तक की उम्र के बच्चों में 1000 लड़कों पर महज 825 लड़कियां हैं। जनगणना 2001 के मुताबिक यहां इस आयु वर्ग का लिंगानुपात 837 था। यानी एक दशक में यहां लिंगानुपात में 12 अंकों की गिरावट दर्ज हुई। जो निश्चिततौर पर चिंतनीय है। वैसे प्रदेश के हाल भी खराब ही हैं। जनगणना 2011 के आकंड़ों के मुताबिक प्रदेश में शून्य से छह वर्ष तक के आयु समूह का लिंगानुपात 912 है। यह 2001 की जनगणना के मुताबिक 932 था। यानी इस एक दशक में प्रदेश में भी 20 अंक की गिरावट हुई। प्रदेश में बेटी के यह हाल देखकर सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने बेटी बचाओ अभियान भी शुरू कर रखा है। लेकिन, बेटियों के प्रति सोच में बदलाव किसी एक के बूते आना संभव नहीं, हम सबके मिले-जुले प्रयास से ही संभव हो सकता है। पहले ही एपिसोड में आमिर खान ने पंजाब के एक गांव को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। जहां सभी ग्रामवासियों ने तय किया कि कोई भी भ्रूण हत्या नहीं करवाएगा। कोख में जिसे भी ईश्वर ने भेजा है दुनिया में उसका स्वागत किया जाएगा। नतीजा यह हुआ कि कुछ ही समय में उस गांव का लिंगानुपात समान हो गया। वहां लड़के-लड़कियों की संख्या समान हो गई। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए कि जितने भी सामाजिक बदलाव आए वे सब सामूहिक प्रयास से ही आए। इसलिए कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिशु हत्या को रोकना है तो सबको सामने आना होगा।
चलते-चलते सत्यमेव जयते के बहाने दूरदर्शन की ताकत की भी बात कर ली जाए। यह शो आठ भाषाओं में नौ चैनलों पर १०० देशों में दिखाया जाएगा। इतना ही नहीं यह पहला शो है जो निजी चैनल्स पर प्रसारित होने के साथ ही साथ दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल (डीडी-१) पर भी प्रसारित होगा। दरअसल, तमाम टीआरपी के आंकड़ों के बाद भी यह व्यवहारिक सत्य है कि दूरदर्शन की जितनी पहुंच है उतनी किसी भी निजी चैनल की नहीं। टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) में भले ही दूरदर्शन पिछड़ा नजर आता हो, क्योंकि यह मनोरंजन बेच रहे लोगों की चालाकी है। आमिर खान कहते हैं कि मैं ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचना चाहता हूं इसलिए टेलीविजन का उपयोग कर रहा हूं। उन्हें पता है कि निजी चैनलों की पहुंच शहर और शहर से लगे कुछ कस्बों तक ही है। जबकि भारत तो गांवों में बसता है। समाज जागरण करना है तो मास तक पहुंचना होगा। मास तक पहुंचने का माध्यम सिर्फ दूरदर्शन ही है। दूरदर्शन की पहुंच शहर से लेकर दूरदराज के गांव तक है। सत्यमेव जयते को शुरुआत से मिल रही सफलताओं को देखकर कहा जा सकता है कि यह मनोरंजन के जगत से लेकर सामाजिक जगत में परिवर्तन ला सकता है। बस, इसके लिए आमजन के साथ ही जरूरत है।
पंजाब के एक जिले में एक डिप्टी कमिश्नर आये थे, मि. कृष्ण कुमार| उस जिले में गर्भवती महिलाओं का इतना जबरदस्त रिकार्ड सरकारी अमले के द्वारा रखा गया था कि पूछिए मत| अगर वो महिला मायके भी गई तो उसका ट्रैक रखा गया, मंतव्य यही था कि कन्या भ्रूण ह्त्या न हो और उसके सुखद परिणाम आये भी|
जवाब देंहटाएंकाश आमिर खान के शो सत्यमेव जयते से लोग सीख ले,तो सुखद परिणाम आ सकते है,,,
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
बदलाव आना चाहिए ..माध्यम फिर कुछ भी हो . सत्यमेव जयते को लोग बेशक एक व्यावसायिक अप्रोच कहें फिर भी एक सकारात्मक पहल के लिए उसकी सराहना की ही जानी चाहिए.
जवाब देंहटाएं"सत्यमेव जयते" में उठाये गए मुद्दे और उनकी प्रस्तुति इतनी प्रभावशाली है कि दर्शक बंधे बिना नहीं रह पाता है... देखना है इन सरोकार पर सरकार की नज़र कब पड़ती है!
जवाब देंहटाएंसंजय जी का उदाहरण यह बताता है कि उम्मीद की किरण अभी भी बहाल है.. ज़रूरत है तो सिर्फ जज्बे की!! इंसानियत ज़िंदा है, यह भी एक भरोसा है!!
बहुत संतुलित पोस्ट!!
बेहद सार्थक और संतुलित समीक्षा की है आपने ..बहुत से तथ्य और विचार उभर कर सामने आये हैं ....यह बड़ा दुखदायी लगता है कि आज का इंसान खुद को बड़ा बुद्धिमान समझता है लेकिन अभी तक वह मानवीय पहलूओं को ही नहीं समझ पाया ...इसलिए तो यह नकारात्मक प्रवृतियां हमारे देश और समाज को खोखला कर रही हैं .....इन सबके लिए इंसान जिम्मेवार नहीं तो और कौन है ?
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