सोमवार, 15 जून 2015

राष्ट्रीय योग दिवस कब?

 भा रत सरकार 21 जून को 'पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' को दुनियाभर में व्यापक पैमाने पर मनाने की तैयारी कर रही है। 21 जून को दुनिया भारत के साथ योग करेगी। यह सुखद समाचार है। भारतीय संस्कृति और उसकी पहचान के लिए इसे 'अच्छे दिनों' की शुरुआत माना जा सकता है। पिछले वर्ष (2014) 27 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। यह पहली बार था कि भारत सरकार की ओर से अपनी सांस्कृतिक पहचान को दुनिया में स्थापित करने के लिए इस तरह का प्रयास किया गया। प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव को ईसाई और मुस्लिम देशों सहित करीब 177 देशों का अभूतपूर्व समर्थन मिला। पहली बार पश्चिमी देशों सहित अन्य देशों ने भारतीय वैज्ञानिक परंपरा का स्वागत किया था। 11 दिसम्बर, 2014 को महासभा के 193 सदस्यों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह पहली बार ही हुआ था कि किसी प्रस्ताव को इस कदर बहुमत मिला। यह भी पहली बार हुआ कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसी विशेष दिवस प्रस्ताव को मात्र 90 दिन में स्वीकृति मिल गई।
       अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को पहचान बिना किसी विवाद के मिल गई। 'भारतीय उपहार' का दुनिया ने खुले दिल से स्वागत किया। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या भारत में 'राष्ट्रीय योग दिवस' की घोषणा हो सकती है? अपनी वैज्ञानिक परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिल चुकी है, अब राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए कोई दिन तय किया जा सकता है क्या? जिस तरह ईसाई और मुस्लिम देशों का समर्थन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मिला, उसी तरह भारत में दोनों समुदायों का समर्थन राष्ट्रीय योग दिवस को मिल सकेगा क्या? जब दुनिया योग को स्वास्थ्य से जोड़कर देख रही है, उसका स्वागत कर रही है तब भारत में बात-बात में वितंडावाद खड़ा करने वाले लोग योग को धर्म से जोड़कर हो-हल्ला नहीं मचाएंगे? भारत में राष्ट्रीय योग दिवस का विचार करने पर इस प्रकार के प्रश्न उछल-कूद मचाने लगते हैं। क्योंकि, कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि नेताओं को प्रत्येक मसले में वोट बैंक नजर आता है। जनता के हित की उन्हें परवाह नहीं। राष्ट्रीय पहचान और राष्ट्रीय गौरव से तो कोई लेना-देना ही नहीं है। अपना वोट बैंक बढ़ाने के आगे, अपनी थाती बचाने का प्रश्न ही कहां आता है? किसी बात पर विवाद नहीं हो रहा होगा तो भी संकुचित हृदय के नेता विवाद खड़ा करने में सफल हो जाते हैं। बहरहाल, राष्ट्रीय योग दिवस के नाम पर ईसाई और मुस्लिम तो बाद में हंगामा खड़ा करेंगे, उससे पहले तथाकथित अल्पसंख्यकों के झंडाबरदार संगठन, राजनीतिक दल और महानुभावों के पेट में मरोड़ उठने लगेगी। उनकी चिल्ल-पों पहले शुरू हो जाएगी। सबने देखा कि मध्यप्रदेश में किस तरह 'सूर्य नमस्कार' का विरोध किया। लेकिन, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने योग को बढ़ावा देने के लिए, लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए प्रदेश में सूर्य नमस्कार करा ही दिया। हालांकि अभी भी विरोध रह-रहकर सिर उठाता रहता है। हम ऐसे क्यों हैं कि अपनी परंपरा का संवर्धन करना तो दूर उसे संजोकर भी रखने में सक्षम नहीं हैं? भारतीय वैज्ञानिकता को जब वैश्विक मान्यता मिल रही है तो हम आगे क्यों नहीं आते? तुच्छ राजनीति से कब पिण्ड छुड़ाएंगे? अपने ज्ञान का संवर्धन हमें ही करना होगा। आपसी विवाद, ओछी जिदें, फूट डालो राजनीति करो, इस तरह की मानसिकता से पीछा छुड़ाना होगा। 
       योग भारतीय परंपरा से निकला है। भारत की भूमि पर ऋषी वैज्ञानिकों ने समूची मानवता के हित में योग की विभिन्न क्रियाओं-आसनों की खोज की। योग करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक से अधिक आत्मिक सुख मिलता है। तन के साथ मन भी स्वस्थ होता है। दुनिया में जब तनाव सबसे गंभीर समस्या बनकर सामने आ रहा है, तब योग ही तनाव से निजात दिलाने का सटीक विकल्प नजर आता है। ईसाई और मुसलमानों को खौफ दिखाया जाता है कि योग करने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा, वे ईसाई-मुस्लिम नहीं रहेंगे। योग करने से जन्नत के रास्ते बंद हो जाएंगे। अमरीका में एक पादरी तो इसे 'शैतानी' बता चुके हैं। अलग-अलग देशों में चर्च योग को अपने यहां प्रतिबंधित भी कर चुके हैं। लेकिन, जिन्होंने भी योग करने के बाद शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सुख का अनुभव किया, वे इन प्रतिबंदों से डरे नहीं। उन्होंने योग को अपने जीवन में उतार लिया है। 
       भारतीयों को बाबा रामदेव का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने योग को स्वास्थ्य से जोड़कर अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई है। उनके मुताबिक योग से असाध्य रोगों को भी दूर किया जा सकता है। वे अपने प्रयोगों से यह करके भी दिखा रहे हैं। निश्चित ही बाबा रामदेव ने योग के प्रति लोगों को आकर्षित किया है। उन्होंने योग को घर-घर पहुंचा दिया है। अपनी परम्परा और ज्ञान को प्रतिष्ठित करने के लिए हमारी भी जिम्मेदारी बनती है। छोटे मन को बड़ा करने की जरूरत है। योग विशुद्ध रूप से भारतीय परम्परा की देन है। प्रत्येक भारतवासी के लिए गर्व का विषय होना चाहिए कि फिर से हमारे पूर्वजों के ज्ञान का लोहा विश्व मान रहा है। उस ज्ञान को प्रतिष्ठा दिलाने का हमारा प्रयास होना चाहिए। योग को राजनीति का मसला बनाने से हमें बचना चाहिए। सब भारतीयों को मिलकर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का स्वागत करते हुए 'राष्ट्रीय योग दिवस' की मांग करनी चाहिए।

भोपाल से प्रकाशित दैनिक एलएन स्टार 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-06-2015) को "घर में पहचान, महानों में महान" {चर्चा अंक-2008} पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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