कैलेंडर में 22 जनवरी पर अंगुली रखते हुए आज सुबह–सुबह बिटिया ने पूछा– “22 तारीख के नीचे कुछ लिखा क्यों नहीं है?”
उसके प्रश्न के मूल को समझे बिना मैंने उत्तर दिया– “लिखा तो है– द्वादशी”। चूंकि भारतीय कालगणना को लेकर बात चल रही थी, इसलिए यह उत्तर मैंने दिया।
अपने प्रश्न का उत्तर न पाकर, उसने फिर से आश्चर्य के भाव के साथ कहा– “हमने कल जो त्योहार मनाया, दीप जलाए, रोशनी की। यहां उसके बारे में कहां लिखा है?”
मैंने हर्षित मन से उसे बताया– “अब जो कैलेंडर छपकर आयेंगे, उन पर लिखा होगा ‘राम दीपावली’। परंतु उसे भी हमें 22 जनवरी को नहीं, पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ही इसी उत्साह से मानना है”।
“मतलब, अब हम दो बार दीवाली मनाएंगे। फटाखे चलाएंगे और मिठाई भी खायेंगे। जय हो रामलला की”। उसका उत्साह देखते ही बन रहा था। अभी उसे पता नहीं कि अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम का मंदिर बनने का क्या महत्व है? कितना बड़ा संघर्ष इस राम दीपावली के लिए रहा है? मैं उसे पूरी राम कहानी बताऊंगा। भारत के प्राण, उत्साह और विश्वास से परिचित कराऊंगा।
उसे यह जानना ही चाहिए कि ‘राम दीपावली’ मनाने का यह सौभाग्य हमें यूं ही प्राप्त नहीं हो गया है। इसके पीछे 500 वर्ष का संघर्ष, कठिन तपस्या और हजारों रामभक्तों का बलिदान है...
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