शनिवार, 11 जून 2022

नूपुर शर्मा विवाद : प्रदर्शन और मानसिकता


कथित विवादास्पद टिप्पणी के मामले में मुस्लिम समुदाय की ओर से किए जा रहे प्रदर्शन रुकने की बजाय हिंसक होते जा रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। इन प्रदर्शनों से भविष्य के लिए गंभीर संकेत मिल रहे हैं। जिस छोटे से घटनाक्रम का पटाक्षेप भाजपा प्रवक्ताओं के खेद प्रकट करने के साथ ही हो जाना चाहिए था, वह प्रवक्ताओं के निलंबन और पुलिस प्रकरण दर्ज होने के बाद भी थम नहीं रहा है। शुक्रवार को नमाज के बाद जिस तरह देश के विभिन्न शहरों में सड़कों पर निकलकर धर्मांध भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किए हैं, उससे इस वर्ग की मानसिकता भी प्रकट होती है। एक ऐसी टिप्पणी पर यह वर्ग हिंसातुर हो गया है, जिसका जिक्र उनकी किताबों में है और प्रमुख मुस्लिम प्रवक्ता उस बात का उल्लेख करते रहते हैं। जबकि इस वर्ग के लोगों की ओर से पिछले दिनों में भगवान शिव के लिए कितनी ही ओछी और अश्लील बातें कही गई हैं, लेकिन न तो हिन्दू समाज ने हिंसक प्रदर्शन किए और न ही किसी का सिर काटने पर ईनाम की घोषणा की। किसी हिन्दू संगठन या हिन्दू धर्मगुरु ने सड़कों पर हिंसा करने के लिए उकसाने वाले भाषण भी नहीं दिए हैं। शिव की तरह हिन्दू समाज गरल को अपने कंठ में धारण करके बैठ गया है। मानवता के लिए कुछ कड़वी बातों को सहन कर ही लेना उचित होता है। यह धैर्य अन्य संप्रदायों को हिन्दू समाज से सीखना चाहिए। 

दु:खद है कि अपने आराध्य के बारे में कथित आपत्तिजनक बात सुनने का साहस नहीं रखनेवाली कौम ने शिवलिंग को लेकर की गईं घोर निदंनीय बातों के लिए एक बार भी खेद प्रकट नहीं किया है। इसके अलावा एक महिला के लिए जिस प्रकार से पिछले सप्ताहभर से विषवमन किया जा रहा है, फतवे जारी किए जा रहे हैं और अश्लील टिप्पणियां की जा रही हैं, उसके लिए भी अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए संवेदनशील कौम ने कोई समझ की बात नहीं की है। किसी मौलाना ने भी इस प्रकार की घृणित बातों को रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय से अपील नहीं की है। क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि यह जो हिंसक प्रदर्शन, घृणित एवं अश्लील टीका-टिप्पणियां की जा रही हैं, वे सब स्वस्थ और स्वीकार्य हैं? 

          क्या इस्लाम के जानकारों का दायित्व नहीं बनता कि घृणा की इस आंधी को रोकने के लिए आगे आएं? ऐसा लग रहा है कि यह वर्ग किसी ऐसे मौके की तलाश में बैठा था, जब यह अपनी संगठित ताकत के बल पर शासन-प्रशासन एवं अन्य समुदायों को भयाक्रांत करे। इसलिए तिल को ताड़ बनाकर, हो-हल्ला किया जा रहा है। देश के अन्य समुदायों एवं सज्जनशक्ति को इस घटनाक्रम से सबक लेना चाहिए। सरकार को भी हिंसा करनेवाले और हिंसा के लिए उत्प्रेरित करनेवाले तत्वों को चिह्नित करके कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए। अन्यथा, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर भीड़तंत्र हावी हो जाएगा।

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