दु:खद है कि अपने आराध्य के बारे में कथित आपत्तिजनक बात सुनने का साहस नहीं रखनेवाली कौम ने शिवलिंग को लेकर की गईं घोर निदंनीय बातों के लिए एक बार भी खेद प्रकट नहीं किया है। इसके अलावा एक महिला के लिए जिस प्रकार से पिछले सप्ताहभर से विषवमन किया जा रहा है, फतवे जारी किए जा रहे हैं और अश्लील टिप्पणियां की जा रही हैं, उसके लिए भी अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए संवेदनशील कौम ने कोई समझ की बात नहीं की है। किसी मौलाना ने भी इस प्रकार की घृणित बातों को रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय से अपील नहीं की है। क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि यह जो हिंसक प्रदर्शन, घृणित एवं अश्लील टीका-टिप्पणियां की जा रही हैं, वे सब स्वस्थ और स्वीकार्य हैं?
क्या इस्लाम के जानकारों का दायित्व नहीं बनता कि घृणा की इस आंधी को रोकने के लिए आगे आएं? ऐसा लग रहा है कि यह वर्ग किसी ऐसे मौके की तलाश में बैठा था, जब यह अपनी संगठित ताकत के बल पर शासन-प्रशासन एवं अन्य समुदायों को भयाक्रांत करे। इसलिए तिल को ताड़ बनाकर, हो-हल्ला किया जा रहा है। देश के अन्य समुदायों एवं सज्जनशक्ति को इस घटनाक्रम से सबक लेना चाहिए। सरकार को भी हिंसा करनेवाले और हिंसा के लिए उत्प्रेरित करनेवाले तत्वों को चिह्नित करके कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए। अन्यथा, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर भीड़तंत्र हावी हो जाएगा।
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