ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के निर्णय एवं प्रस्ताव स्पष्ट करते हैं कि मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा रखने एवं उसमें सांप्रदायिक कट्टरता को बढ़ावा देने में इस संस्था की बड़ी भूमिका है। अपनी सांप्रदायिक सोच एवं प्रस्तावों के कारण यह संस्था विवादों में रहती है। पिछले दिनों भारत में पाकिस्तान के घोर सांप्रदायिक ‘ईशनिंदा कानून’ को भारत में लागू करने की माँग करके मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विवादों में रहा था। उस समय देशभर में इस सांप्रदायिक माँग का विरोध किया गया। लेकिन उसके बाद भी बोर्ड ने अपनी सोच को बदला नहीं है। अब बोर्ड ने सूर्य नमस्कार का विरोध करके जता दिया है कि उसे कथित ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ से उसको कोई लेना-देना नहीं है। सबको मिलकर ऐसी कट्टर और संकीर्ण विचारों का विरोध करना चाहिए। इस तरह के विचारों को हतोत्साहित करना सभी समुदायों के हित में है।
उल्लेखनीय है कि स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव के अंतर्गत सरकार ने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार कराए जाने के लिए निर्देश दिए हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसी आदेश के विरोध में पत्र जारी करके अपना विरोध दर्ज कराया है। पत्र में कहा गया है कि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता कि शिक्षण संस्थाओं में किसी धर्म विशेष की शिक्षाएं दी जाए या किसी विशेष समूह की मान्यताओं के आधार पर समारोह आयोजित किए जाएं। अपने मूर्खतापूर्ण पत्र में बोर्ड ने इसे ‘असंवैधानिक और देशप्रेम का झूठा प्रचार’ बताया है। यह पत्र अपने आप में यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाला यह संगठन किस हद तक कट्टर सांप्रदायिक सोच से ग्रसित है और अन्य विचारों के प्रति कितना असहिष्णु है। ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तय कर रखा है कि वह मुस्लिम समुदाय को आधुनिक समय के साथ कदमताल नहीं करने देगा। वह मुस्लिम समुदाय को अब भी कबीलाई स्थिति में रखने की कोशिश कर रहा है।
सूर्य नमस्कार का विरोध कोई निरा मूर्ख ही कर सकता है। पहली बात तो यह कि सूर्य नमस्कार योग का समुच्य है। इस एक योग में सात योग क्रियाएं शामिल हैं। आधुनिक समय में यह एक योग ही व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करने में प्रभावी है। योग का क्या महत्व है, यह किसी से छिपा नहीं है। कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच योग की महत्ता हर किसी के सामने है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कर्ताधर्ताओं को याद रखना चाहिए कि जब संयुक्त राष्ट्र के सामने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने का प्रस्ताव लाया गया था, तब अनेक इस्लामिक देशों ने सहर्ष इसका स्वागत किया था। दूसरी बात यह कि सूर्य के प्रति घृणा क्यों, जबकि वह तो बिना किसी भेदभाव के सबको समान रूप से अपनी ऊर्जा देता है।
यदि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ‘सूर्य नमस्कार’ को सिर्फ उपासना के तौर पर देख रहा है तब उसको समझना चाहिए कि सूर्य की उपासना एक उदात्त विचार है। उसका विरोध करने की जगह, इस विचार का अनुसरण एवं अनुपालन करना चाहिए। यह विचार उदारता और सह-अस्तित्व की भावना को मजबूत करता है। भारतीय संस्कृति सिखाती है कि जो भी मानवता का पोषण करने वाला तत्व है, उसके प्रति हमें कृतज्ञ रहना चाहिए।
मेरे विचार में समस्या यह लोग नहीं हैं, लेफ्ट-लिबरल मीडिया बुद्धिजीवी नेता अभिनेता वगेरा हैं जो ऐसी सोच को हर फोरम पर बढ़ावा देते हैं.
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