बांग्लादेश की राजधानी ढाका के डिप्लोमैटिक जोन के होली आर्टीजन बेकरी रेस्तरां में आतंकी हमले ने दुनिया को दहला दिया है। यह हमला बांग्लादेश की अनदेखी का नतीजा है। पिछले कुछ समय से जिस तरह बांग्लादेश में आतंकियों द्वारा उदारवादी लेखकों, ब्लॉगरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और हिन्दुओं की सुनियोजित तरीके से हत्या की जा रही थी, उससे बांग्लादेश की सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा था। ज्यादतर हत्याओं की जिम्मेदारी आईएस जैसे खतरनाक आतंकी संगठन ने ली थी, लेकिन प्रधानमंत्री शेख हसीना बार-बार खारिज करती रहीं कि उनके देश में आईएस की उपस्थिति नहीं है। जबकि हकीकत उसके उलट थी। हकीकत से नजरें चुराने के कारण ही आईएस के आतंकी ढाका के सबसे संवेदनशील और सुरक्षित क्षेत्र गुलशन डिप्लोमैटिक जोन से यह संदेश देने में सफल रहे कि बांग्लादेश में उनकी सशक्त मौजूदगी है। इस आतंकी हमले की तुलना भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में होटल ताज में हुए २६/११ से की जा रही है। गौरतलब है कि ढाका हमले में मरने वालों में लगभग सभी विदेशी नागरिक हैं। आतंकियों की बर्बरता का शिकार होने वालों में एक भारतीय युवती तारुषी भी शामिल है।
यह हमला इसलिए और घातक हो गया, क्योंकि बांग्लादेश की पुलिस एवं सेना को इस तरह के आतंकी हमले से निपटने का कोई पूर्व अनुभव और प्रशिक्षण प्राप्त नहीं था। शुक्रवार की रात को आतंकियों ने अल्लाह-हो-अकबर का नारा बुलंद करते हुए रेस्तरां पर कब्जा किया और वहाँ मौजूद करीब ४० लोगों को बंधक बना लिया। काफी समय बीतने तक बांग्लादेश की पुलिस को समझ नहीं आया कि आतंकियों से कैसे संपर्क किया जाए। बंधकों को मुक्त कराने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए? बाद में सेना की ओर से कमांडो ऑपरेशन चलाया गया। लेकिन, तब तक आतंकी कई विदेशी नागरिकों को मौत के घाट उतार चुके थे। चौकाने की बात यह है कि आतंकियों ने बड़ी बेरहमी और बर्बर तरीके से बंधकों की हत्या की। उन्होंने बंधकों को गोली या बम से नहीं उड़ाया बल्कि चाकू से गला रेतकर तड़पा-तड़पाकर मारा। इससे उनकी बर्बरता और हैवानियत जाहिर होती है। वह दहशत फैलाना चाहते थे, जिसमें काफी हद तक सफल रहे।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि उन्होंने चिह्नित करके लोगों की हत्या की। उन्होंने पहले लोगों से कुरान की आयतें पढऩे के लिए कहा, जिन लोगों ने कुरान की आयतें पढ़ दीं, उनके साथ आतंकियों ने अच्छा सलूक किया, उन्हें खाना भी खिलाया और जो आयतें नहीं पढ़ सके (यानी गैर-मुस्लिम) उन्हें बेरहमी से कत्ल कर दिया। क्या अब भी हम इस्लामिक आतंकवाद की पहचान से मुंह मोडऩा चाहते हैं? आतंक का समूल नाश करना है तब उसकी सही पहचान जरूरी है। इस्लाम के सच्चे पैरोकारों को भी इस तरह की घटनाओं का विरोध करने के लिए सामने आना चाहिए। उनकी खामोशी के कारण ही इस्लाम के नाम पर आईएस जैसे संगठन विस्तार पा जाते हैं। शेख हसीना ने सच ही तो कहा कि रमजान जैसे पाक महीने में लोगों का खून बहाने वाले ये कैसे मुसलमान हैं? असल में यह मुसलमान नहीं हैं, बल्कि इस्लाम के कट्टर दुश्मन हैं। इनकी पहचान इसी रूप में कराने की जरूरत है।
बहरहाल, संभव है कि इस आतंकी हमले से बांग्लादेश सरकार की तंद्रा भंग हो गई होगी। उसे समझ आ गया होगा कि राजनीतिक नफे-नुकसान के लिए चरमपंथियों की हरकतों की अनदेखी करना ठीक नहीं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने यह कहा कि हम अपनी जमीन से आतंक को खदेड़ कर मानेंगे। भारत की सीमा से महज ३०० किलोमीटर ढाका में हुए आतंकी हमले से भारत को भी सचेत हो जाना चाहिए। हम जानते हैं कि आईएस भारत को निशाना बनाना चाहता है। यदि आईएस बांग्लादेश में अपना संगठन मजबूत कर लेता है तब वहाँ से भारत में आकर हमला करना उसके लिए आसान हो जाएगा। बांग्लादेश में बंगाल खलीफा के चीफ शेख अबु इब्राहिम अल-हनीफ के एक साक्षात्कार से भी यह खुलासा हुआ है कि आईएस एक बार जब बंगाल (बांग्लादेश) में अपने जेहादी ठिकाने बना लेगा तो इसके बाद वह ईस्ट और वेस्ट इंडिया में हमले करेगा। इसलिए भारत को बांग्लादेश सरकार के साथ इस मसले पर गंभीरता से बातचीत करनी चाहिए। आईएस को रोकने के लिए बांग्लादेश को भारत के साथ सूचनाएं साझा करने का कोई सिस्टम बनाना चाहिए। खुद बांग्लादेश भी आतंकवाद की फैक्ट्री बनने से बचना चाहता है तब उसे भारत की मदद लेनी ही चाहिए।
ईराक़ और सीरिया से लेकर पूरे विश्व में आतंकवाद को इस्लाम के नाम पर ही स्थापित किया गया है । "आतंक का कोई धर्म नहीं होता" जैसे जुमले बोलने वालों को हम शुतुर्मुर्ग भी नहीं कह सकते ...धूर्त कह सकते हैं ।
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