भा रत सरकार 21 जून को 'पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' को दुनियाभर में व्यापक पैमाने पर मनाने की तैयारी कर रही है। 21 जून को दुनिया भारत के साथ योग करेगी। यह सुखद समाचार है। भारतीय संस्कृति और उसकी पहचान के लिए इसे 'अच्छे दिनों' की शुरुआत माना जा सकता है। पिछले वर्ष (2014) 27 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। यह पहली बार था कि भारत सरकार की ओर से अपनी सांस्कृतिक पहचान को दुनिया में स्थापित करने के लिए इस तरह का प्रयास किया गया। प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव को ईसाई और मुस्लिम देशों सहित करीब 177 देशों का अभूतपूर्व समर्थन मिला। पहली बार पश्चिमी देशों सहित अन्य देशों ने भारतीय वैज्ञानिक परंपरा का स्वागत किया था। 11 दिसम्बर, 2014 को महासभा के 193 सदस्यों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह पहली बार ही हुआ था कि किसी प्रस्ताव को इस कदर बहुमत मिला। यह भी पहली बार हुआ कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसी विशेष दिवस प्रस्ताव को मात्र 90 दिन में स्वीकृति मिल गई।
सोमवार, 15 जून 2015
सोमवार, 1 जून 2015
व्यक्ति और राष्ट्र हित में मूल्यपरक शिक्षा
शि क्षा के अभाव से कितनी समस्याएं और विसंगतियां उत्पन्न होती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। विशेषकर मूल्यहीन शिक्षा व्यवस्था के कारण तो कई प्रकार की नई समस्याएं जन्म ले लेती हैं। अपनी बौद्धिक और तर्क क्षमता से दुनिया पर विजय प्राप्त करने वाले युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द तो यहां तक कहते हैं- 'यदि शिक्षा से सम्पन्न राष्ट्र होता तो आज हम पराभूत मन:स्थिति में न आए होते।' इस देश का सबसे अधिक नुकसान शिक्षा के अभाव के कारण ही हुआ है। भारत के संदर्भ में शिक्षा का अभाव ही एकमात्र चुनौती नहीं है बल्कि उचित शिक्षा का अभाव ज्यादा गंभीर मसला है। इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि एक समर्थ राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कहना ज्यादा उचित होगा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा पहली और अनिवार्य आवश्यकता है। लेकिन, यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है? सब लोग पढऩा-लिखना सीख लें, अंगूठे की जगह हस्ताक्षर करना सीख लें, केवल इतना भर शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए क्या? मनुष्य अपने हित-अहित के संबंध में जागरूक हो जाए, उसे इतना शिक्षित करने मात्र से काम चलेगा क्या? अच्छे-भले मनुष्य को पैसा कमाने की मशीन बना देना, शिक्षा है क्या? अच्छी नौकरी पाने के योग्य हो जाना, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाना, किताबें पढऩा-लिखना सीख लेना ही शिक्षा और शिक्षा का उद्देश्य नहीं है, तो भला क्या है?
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