सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

राष्ट्रवादी विचारधारा का सशक्त प्रहरी ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’

 प्र वक्ता डॉट कॉम महज एक बेवसाइट नहीं बल्कि राष्ट्रवादी विचारों का एक सशक्त प्रहरी है। भारत राष्ट्र के हितचिंतक संजीव सिन्हा की एक सकारात्मक पहल के कारण प्रवक्ता डॉट कॉम के रूप में राष्ट्रीय विचारधारा को जीने वाले लोगों को लेखन के लिए एक सशक्त माध्यम मिला। अभिव्यक्ति की रक्षा करने में भी प्रवक्ता पूरी तरह सफल रहा है। अपनी विचारधारा को लेकर प्रवक्ता और उसके संस्थापक एवं संचालक संजीव सिन्हा जी की स्थिति एकदम स्पष्ट है। कोई दुराव-छिपाव नहीं। दोनों के लिए भारत और सनातन धर्म पहले है। भारत, भारत की परंपरा, उसके धर्म और राष्ट्रीयता के खिलाफ जाने वाले किसी भी विचार और व्यक्ति का दोनों ही प्रखर विरोध करते हैं। अन्यथा तो प्रवक्ता सभी विचारधारा के लोगों को अपनी बात कहने के लिए मंच प्रदान करता है। प्रवक्ता के जुड़े कई लेखक घोर वामपंथी हैं। इस सबके बावजूद यह पोर्टल भारतीयता और प्रखर राष्ट्रवाद का ‘प्रवक्ता’ है। प्रवक्ता डॉट कॉम पर 6000 से ज्यादा लेख हैं। प्रतिदिन 51 हजार से ज्यादा पेज देखे जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रवक्ता से आज 500 से अधिक लेखक जुड़े हैं। यह अपने तरह का रिकॉर्ड है। संभवतः किसी भी वेबपोर्टल से इतनी बड़ी संख्या में लेखक नहीं जुड़े होंगे। ज्यादातर लेखक अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं। स्थापित और ख्यातनाम लेखक प्रवक्ता के पास हैं। इससे समझ सकते हैं कि प्रवक्ता पर प्रकाशित सामग्री काफी समृद्ध है। यही नहीं प्रवक्ता की उपलब्धि यह भी है कि कई गुमनाम लेकिन अच्छे लेखकों को प्रवक्ता के कारण बड़ी प्रसिद्धि मिली। नियमित तौर पर समसामयिक घटनाओं, विषयों और चर्चाओं पर धारधार लेख एवं टिप्पणियों के कारण प्रवक्ता शीघ्र ही बेहद लोकप्रिय हो गया। 
शुरुआती पांच सालों में ही प्रवक्ता डॉट कॉम ने न्यू मीडिया/सोशल मीडिया/वैकल्पिक मीडिया में एक मील का पत्थर स्थापित कर दिया है। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में प्रबंधन और संपादक की विचारधारा के कारण जिन विचारों-समाचारों को जगह नहीं मिल सकती उनको वेबपोर्टल पर आसानी के साथ चर्चित कराया जा सकता है। बहस कराई जा सकती है। सकारात्मक परिणाम निकाला जा सकता है। प्रवक्ता पर प्रकाशित होने के बाद कई आलेखों पर अन्य-अन्य मंचों पर भी काफी चर्चा हुई। प्रवक्ता डॉट कॉम पर लगातार छपने के बाद लेखक के रूप में स्थापित होने वाले कई सज्जनों से मेरी सीधी बात होती है। उनका कहना होता है कि पहले कई समाचार-पत्र और पत्रिकाएं उन्हें प्रकाशित ही नहीं करते थे लेकिन अब कभी-कभी ही उनके आलेख, फीचर और साहित्यिक सामग्री को इन पत्र-पत्रिकाओं द्वारा लौटाया जाता है। यानी न्यू मीडिया/सोशल मीडिया/वैकल्पिक मीडिया के सशक्त मंच प्रवक्ता डॉट कॉम ने नए लेखकों, विचारधारा के लेखकों और तथाकथित सेक्यूलरवाद के नाम पर तथ्यों को छिपाए बिना साफ-साफ लिखने वाले लेखकों को अपनी बात सबसे कहने का माध्यम उपलब्ध कराया। साथ ही साथ परंपरागत मीडिया को चेतावनी दी कि तुम नहीं छापोगे-दिखाओगे तो हम छापेंगे, दिखाएंगे और बहस भी कराएंगे। इस सबके बीच प्रवक्ता ने परंपरागत मीडिया को कई लेखक और साहित्यकार भी दिए। 
प्रवक्ता डॉट कॉम के संस्थापक एवं संचालक संजीव सिन्हा जी से मेरी पहली मुलाकात भोपाल में आयोजित मीडिया चौपाल-2012 में हुई थी। हालांकि मैं तीन साल से लगातार प्रवक्ता पर लिख रहा था। इस नाते संजीव जी से परिचय तो पहले से था। मुझे ठीक-ठीक याद है, 2007 में मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, तब मेरी पहली बार संजीव सिन्हा जी से बात हुई थी। तब संजीव जी हितचिंतक ब्लॉग के माध्यम से आभासी दुनिया में सक्रिय थे। प्रवक्ता डॉट कॉम तब नहीं था। दरअसल, मुझे ब्लॉग बनाने के टिप्स चाहिए थे। संजीव जी के साथ इत्मिनान से मेरी बात हुई, कई अच्छे सुझाव उन्होंने मुझे दिए थे। हितचिंतक ब्लॉग सर्वाधिक चर्चित ब्लॉगों में से एक था। एक घोर वामपंथी ब्लॉगर के ब्लॉग पर एक चौकाने वाली घोषणा मैंने देखी/पढ़ी- ‘हितचिंतक और लालमिर्ची ब्लॉग का बहिष्कार किया जाए। ये समाज विरोधी हैं।’ हितचिंतक के जरिए संजीव सिन्हा और लालमिर्ची के जरिए अनिल सौमित्र वामपंथ और वामपंथियों की जबर्दस्त तरीके से पोल खोल रहे थे। इस घोषणा से पहले न तो मैं हितचिंतक-संजीव जी और न ही लालमिर्ची-अनिल जी से परिचित था। यह घोषणा मुझे इन दोनों ब्लॉग का बहिष्कार करने के लिए तो प्रेरित नहीं कर सकी बल्कि इन ब्लॉग तक पहुंचाने का माध्यम जरूर बन गई। एक और मजेदार बात यह हुई कि इससे पहले उक्त ब्लॉग और उसके संचालक से मेरा प्रत्यक्ष परिचय था, मैं उनका सम्मान भी करता था लेकिन इस घोषणा ने उस वामपंथी आदमी की ओछी मानसिकता को प्रदर्शित किया। 
हितचिंतक पर संजीव जी अकेले मोर्चा संभाले हुए थे। राष्ट्रवादी विचारों के प्रचार के लिए एक सशक्त प्रवक्ता की जरूरत महसूस की जा रही थी। इस जरूरत को निश्चित ही हितचिंतक संजीव सिन्हा ने सही समय पर समझा। परिणाम स्वरूप प्रवक्ता डॉट कॉम का जन्म हुआ। अब राष्ट्रवाद पर लिखने वालों की एक फौज खड़ी हो गई। अब कई हितचिंतक एक ही जगह पर जुट आए। बिना किसी लाभ की स्थिति के पांच साल तक बेवपोर्टल का सफल संचालन वाकई बड़ी बात है। इसके लिए तो संजीव सिन्हा जी का सम्मान होना चाहिए था। लेकिन वे विनय के साथ इस सफलता का सारा श्रेय प्रवक्ता के लेखकों को देते हैं। उनकी बात सही है लेकिन पांच साल तक अपनी गांठ का पैसा लगाकर विचार क्रांति की लौ को जलाए रखना कोई छोटी बात तो नहीं। सभी लेखकों को इतने लम्बे समय तक प्रवक्ता के साथ जोड़े रखना और उन्हें लेखन कार्य में व्यस्त रखना भी काबिलेतारीफ है। प्रवक्ता डॉट कॉम और संजीव सिन्हा एकमय हो गए हैं। बात प्रवक्ता की हो या संजीव सिन्हा की, एक ही है। प्रवक्ता डॉट कॉम महज वेबपोर्टल नहीं वरन सही मायने में राष्ट्रवाद का ‘प्रवक्ता’ है। भारतीय परंपरा का हितचिंतक है। राष्ट्रवादी आंदोलन है। एक विचारधारा भी है। इस सबके बीच प्रवक्ता अभिव्यक्ति का अपना मंच है। 
प्रवक्ता डॉट कॉम की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना...... 

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रवक्ता डाटकॉम राष्ट्रवादियों के मंच के समान है आज समय की अवस्यकता है की राष्ट्र वादी लेखकों का समूह खड़ा किया जाय धन्यबद,

    जवाब देंहटाएं
  2. संजीव सिन्हा का ईमानदार प्रयास प्रशंसनीय है। मेरे शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share