शनिवार, 20 जुलाई 2013

सुनहरे पन्नों का खजाना

सं वेदनाएं, सरलता और सहज भाव कहानी को हृदय में गहरे तक उतारने के लिए बेहद जरूरी हैं। कहानी सरस हो, उत्सुकता जगाती हो तो फिर वह आनंदित करेगी ही। फिर भले ही वे बाल कहानियां ही क्यों न हों। स्थापित कहानीकार गिरिजा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह 'मुझे धूप चाहिए' कुछ ऐसा ही है, बिल्कुल सरस और सुरुचिकर। मुझे धूप चाहिए में आठ कहानियां शामिल हैं। इसे प्रकाशित किया है एकलव्य प्रकाशन भोपाल ने। एकलव्य बच्चों की शिक्षा और उनके विकास को लेकर काम कर रही संस्थाओं में एक बड़ा नाम है। पुस्तक ११वीं की छात्रा सौम्या शुक्ला के बेहद खूबसूरत रेखाचित्रों से सजी हुई है। कहानी की विषय वस्तु और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सौम्या ने उम्दा चित्रांकन किया है। 'मुझे धूप चाहिए' ४२ पेज की पुस्तक है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सकता है। खास बात यह है कि दो वक्त की दाल-रोटी को तरसाने वाली महंगाई के दौर में इस बेहतरीन किताब के दाम बेहद कम हैं। महज २५ रुपए।
  दुनिया की खूबसूरती रिश्तों में है और रिश्ते जरूरी नहीं, इंसान-इंसान और जीव-जीव के बीच ही बने। रिश्ते तो किसी के बीच भी पनप सकते हैं। मनुष्य-जीव-जानवर-पेड़-पौधे-सूरज-धरती आदि-आदि किसी के बीच भी। जहां प्रेम और संवेदना रूपी खाद-पानी हो, वहां तो ये बांस की तरह तेजी से बढ़ते हैं। संसार के सूत्रधार की अद्भुत और अद्वितीय कृति है मां। उसके हृदय में जितना प्रेम और करुणा भरी है, उतनी तो दुनिया के सात महासागरों में पानी भी नहीं होगा। त्याग की प्रतिमूर्ति, बच्चों के लिए तमाम कष्ट सह जाना, बच्चों की परवरिश और परवाह में जिन्दगी गुजार देना मां अपना धर्म समझती है और भले से निभाती भी है। मनुष्य जाति हो या फिर जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सबदूर मां की भूमिका समान है, उसका स्वभाव एकजैसा है, कोई भेद नहीं। गिरिजा कुलश्रेष्ठ की तीन कहानियां पूसी की वापसी, कुट्टू कहां गया और मां बड़ी खूबसूरती के साथ मां के धर्म और उसकी महानता को बयां करती हैं। इसी तरह इंतजार कहानी मां (गाय) के प्रति संतान (बछड़े) के प्रेम को बताती है। छुटपन में किसी भी बच्चे के लिए उसकी दुनिया मां ही होती है। सब उसके आसपास हों लेकिन मां दिखाई न दे तो उसका मन व्यथित रहता है। उसके लिए मां के आगे और सब गौण हैं। एक अन्य कहानी 'मीकू फंसा पिंजरे में' बाल मन की संवेदनाओं का शब्दचित्रण करती है। एक शैतान चूहे के पिंजरे में बंद होने के बाद कैसे एक छोटी-सी बच्ची का हृदय करुणा से भर जाता है। उसके हमउम्र भाई उस शैतान चूहे को कैदकर सताते हैं तो वह सुकोमल छोटी-सी बच्ची रो देती है। निरीह जीव को आजाद करने की गुहार लगाती है। 'मुझे धूप चाहिए' कहानी एक नन्हें पौधे के बड़े होने की कहानीभर नहीं है बल्कि यह एक बालक के किशोर और युवा होने की कहानी है। किसी भी क्षेत्र के स्थापित लोगों के बीच नए व्यक्ति को पैर जमाने में किस तरह की कठनाइयां आती हैं, 'मुझे धूप चाहिए' उसी बात को कहती है। सच ही तो है जैसे बड़े पेड़ों के झुरमुट में छोटे पौधे पनप नहीं पाते, कई पौधे तो अंगड़ाई लेते ही मर जाते हैं। बड़े पेड़ उन तक धूप ही नहीं पहुंचने देते। कहानी का मर्म यही है कि आपको स्थापित होना है तो जरा-से धूप के टुकड़े को पकड़ लीजिए और आगे बढ़ जाइए, बहुत से लोग विरोधकर तुम्हारा दमन करने को आतुर होंगे, बहुत से लोग निर्लज्जता से आपका उपहास उड़ाएंगे लेकिन आपको पूरे साहस और लगन से लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते जाना है। 
कथाकार गिरिजा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह 'मुझे धूप चाहिए' ऐसी पुस्तक है जो बच्चों को उनके जन्मदिन पर उपहार स्वरूप दी जानी चाहिए। पुस्तक क्या है यह बचपन की यादों के सुनहरे पन्नों का खजाना है। किशोरों, युवाओं और बड़ी उम्र के लोगों को भी ये कहानियां गुदगुदा कर, कुछ पलों में रुआंसा करके तो कई जगह रोमांचित कर बचपन की ओर खींच ले जाती हैं।

पुस्तक : मुझे धूप चाहिए
लेखिका : गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मूल्य : २५ रुपए
प्रकाशक : ई-१०, शंकर नगर बीडीए कॉलोनी, 
शिवाजी नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) - ४६२०१६
फोन : ०७५५ - २५५०९७६, २६७१०१७

6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी सामग्री का प्रचार-प्रसार ज्यादा से ज्यादा होना चाहिये।

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  2. भाई लोकेन्द्र आपने पुस्तक पढी । कहानियों के कथ्य का मर्म समझा है और उसे प्रभाव के साथ यहाँ व्यक्त किया है । मेरा और हर रचनाकार का यही अभीष्ट होता है कि उसकी बात को पाठक ठीक उसी रूप में अनुभव करे जिस रूप में उसने अनुभव की है । अच्छी समीक्षा रचना के प्रसार की राह बनाती है । मुझे आसा है कि यहाँ पढ कर पुस्तक अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचेगी ।

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  3. सुन्दर समीक्षा, अच्छी पुस्तकों को समुचित प्रचार और प्रसार मिले।

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  4. बहुत अच्छी समीक्षा....
    जल्द से जल्द खरीदती हूँ..मेरे भीतर के बच्चे को भी ज़रूर पसंद आएगी.
    कब से सोचा था खरीदूं, ज़ेहन से निकल ही गयी थी.
    शुक्रिया लोकेन्द्र जी
    अनु

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  5. सुन्‍दर, प्रभावी समीक्षा। और यह तब ही हो सका जब पुस्‍तक के अध्‍यायों से समीक्षाकर्ता तादात्‍म्‍य स्‍थापित कर उनसे उस रुप में प्रभावित हो सका, जिस रुप में रचनाकर्ता ने उन्‍हें रचा है।

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