शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

अपने सुख की चाबी अपने जेब में रखें

 च लो आज कुछ दार्शिनिक हुआ जाए। वैसे मैं जिस बात पर दार्शिनिक हो रहा हूं वह मन में कई रोज से चल रही थी। हालांकि उसको अपने व्यक्तित्व में उतार अभी तक नहीं सका हूं। फिर भी आपसे चर्चा कर रहा हूं। वैसे मैं उस बात के लिए किसी को नहीं कहता, जिसका मैं अपने जीवन में अनुसरण नहीं करता। हां तो मेरा मत है कि 'व्यक्ति को अपने सुख की चाबी अपनी जेब में रखनी चाहिए।' दरअसल होता क्या है कि सामान्य व्यक्ति कुछ लोगों की हरकत से दुखी हो जाता है और खुश भी। उसकी खुशी और दुख का कारण बहुत हद तक ऐसी बातें या कारण होते हैं जिनसे प्रत्यक्षत: उसका जुड़ाव नहीं होता। ऐसे लोग अतिसंवेदनशील श्रेणी में आते हैं। संत श्री १००८ लोकेन्द्र सिंह जी महाराज (हंसो मत) का कहना है कि अति भावुक लोगों को सुख से जीना है तो उन्हें इस प्रवृत्ति का त्याग करना पड़ेगा। उन्हें अपने सुख की चाबी दूसरों की जेब से निकाल कर अपनी जेब में रखनी होगी। महाराज का एक और कहना है कि इस दुनिया में मानवीय संवेदनाओं की कमी हो गई है, इसलिए सुख की चाबी अपनी जेब में रख कर आप भी संवेदनहीन न हो जाना। संवेदनाएं बचा कर रखना। क्योंकि बिना संवेदनाओं के मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता। 
 संत श्री १००८ लोकेन्द्र सिंह जी महाराज
        अब आप दुविधा में आ गए होंगे कि यह कैसे संभव है।  सब कुछ हो सकता है साहब प्रयास की जरूरत है। हालांकि पहले ही कह चुका हूं कि मैंने असफलता के डर से प्रयास ही नहीं किया। वैसे मेरे कुछ नजदीकी मित्रों का कहना है कि मेरे स्वभाव में परिवर्तन आया है। थोड़ा बहुत मुझे भी महसूस होता है। हालांकि मैं पलट कर उन्हें यही जवाब देता हूं कि नहीं मैं तो वैसा ही हूं, लेकिन मन ही मन यह विचार भी चलता रहता है कि आप लोगों के व्यवहार की वजह से ही ये बदलाव मुझमें आए हैं। मैंने खुद तो सुख की चाबी अपनी जेब में नहीं रखी, लेकिन मेरा यह काम दूसरों ने कर दिया। उन्होंने वह कीमती चाबी खुद ही अपनी-अपनी जेबों से निकाल कर मेरी जेब में डाल दी। दरअसल किसी को ऐसे व्यक्ति के लिए क्यों दु:खी होना चाहिए जिसे आपका खयाल ही न हो। उस व्यक्ति के लिए क्यों रोएं, जिसका मन आपकी आंखों में आंसू देख प्रफुल्लित होता हो। उस व्यक्ति के लिए क्यों दर्द होना चाहिए, जो बार-बार आपका भरोसा तोड़े?  इनकी फिक्र छोड़ो। कुछ ऐसे दोस्तों को ढूंढ़ों जो आपके जैसे हों। फिर मस्त गजल गाओ-
खूब निभेगी हम दोनों में,
मेरे जैसा तू भी तो है...
दोस्तों एक बात स्पष्ट करता चलूं कि भले ही मुझमें बदलाव आए हों, लेकिन मेरे भीतर की संवेदना अभी तक जिंदा हैं। और एक बात मेरे सुख की चाबी तो कुछ लोगों ने मेरी जेब में सरका दी, लेकिन आपको सलाह है कि आप 'अपने सुख की चाबी अपने ही जेब में रखो।'

10 टिप्‍पणियां:

  1. लोकेन्द्र जी ,
    स्वामी जी के विचारों में जीवन का मूल मन्त्र छिपा है !
    अपने सुख की चाबी अपने जेब में रखने वाला ही सुखी रह सकता है !
    पोस्ट पढ़ कर मन आनंदित हो गया!
    धन्यवाद,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  2. ... भले ही मुझमें बदलाव आए हों, लेकिन मेरे भीतर की संवेदना अभी तक जिंदा हैं। और एक बात मेरे सुख की चाबी तो कुछ लोगों ने मेरी जेब में सरका दी, लेकिन आपको सलाह है कि आप 'अपने सुख की चाबी अपने ही जेब में रखो।'
    ....bahut achhi seekh deti aapki post...
    ..bahut achha laga aapke blog par aakar...
    Saarthak prasuti ke liye aabhar

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  3. aapka parichay bhi padha...
    .....वैसे अपुन को बचपन से ही लिखने-पढऩे का शौक रहा, बहुत पहले तक धार्मिक कहानी-किस्से फिर चाचा चौधरी और सुपर कमांड़ो ध्रुव और नागराज। इसके बाद साहित्यप्रेमियों की संगत मिली तो कॉमिक्स की जगह साहित्य जगत की किताबों ने ले ली। जीवन में बहुत कुछ किताबों ने सिखाया लेकिन, जिंदगी के असल पाठ तो जिंदगी ने खुद सिखाए।
    ..sach mein asal path to jindagi hi sikhati hai...
    Nirrantar pragati kee raah par aage badho yahi hamari shubhkamnayen hain...

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  4. भले ही मुझमें बदलाव आए हों, लेकिन मेरे भीतर की संवेदना अभी तक जिंदा हैं। और एक बात मेरे सुख की चाबी तो कुछ लोगों ने मेरी जेब में सरका दी, लेकिन आपको सलाह है कि आप 'अपने सुख की चाबी अपने ही जेब में रखो।'

    क्या पते की बात कही है...यही सुख से रहने की कुंजी है, पर संवेदनशीलता को तो नहीं छोड़ा जा सकता। बहुत अच्छा...

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  5. पंकज कुमार झा24 दिसंबर 2010 को 6:33 pm बजे

    सादर सप्रेम साष्टांग दंडवत आ. लोकेंद्रानंद जी महराज को.

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  6. संत श्री 1008 लोकेन्द्र सिंह जी महाराज को मेरा प्रणाम स्वीकार हो. आप जल्द ही विवाह के बंधन में बंधने जा रहे है ऐसे में इस तरह के विचार, वाकई कबले तारीफ है. बहुत पते की बात

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  7. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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  8. चूँकि अब धीरे-धीरे हम सब एक बिलकुल नए-नवेले साल २०११ में पदार्पण करने जा रहे है,
    अत: आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ ! भगवान् करे आगामी साल सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!

    नोट: धडाधड महाराज की बेरुखी की वजह से ब्लोगों पर नजर रखने हेतु आपके ब्लॉग को मै आपकी बिना इजाजत अपने अग्रीगेटर http://deshivani.feedcluster.com/से जोड़ रहा हूँ, अगर कोई ऐतराज हो तो कृपया बताने का कष्ट करे !

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  9. पी. सी. गोदियाल जी आपको भी शुभकामनाएं....
    कोई ऐतराज नहीं...

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