शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

दो लड्डू और पंद्रह अगस्त

 ई साल बीत गए बोलते हुए गांधी जी की जय। वह वर्षों से देखता आ रहा है, स्कूल, तहसील और पंचायत की फूटी कोठरी पर तिरंगे का फहराया जाना। इतना ही नहीं मिठाई के लालच में हर साल शामिल होता है वह २६ जनवरी और १५ अगस्त के कार्यक्रम में, लेकिन अब तक नहीं समझ पाया बारेलाल आजादी का अर्थ
            दोपहर हो गई थी। सूरज नीम के विशाल पेड़ के ठीक ऊपर चमक रहा था। पेड़ चौपाल के ठीक बीच में था। नीम इतना विशाल था कि उसकी शाखाओं ने पूरी चौपाल और आसपास के रास्ते को ढक रखा था। इस वक्त चौपाल पर सूरज की एक-दो किरणें ही नीम की शाखाओं से जिरह करके आ पा रही थीं वरना तो पूरी चौपाल नीम की शीतल छांव के आगोश में थी। इधर-उधर कुछ बच्चे कंचे खेल रहे थे और कुछ बुजुर्ग नित्य की तरह ताश खेल रहे थे। पंचू कक्का अपनी चिलम बना रहे थे। उनका एक ही ऐब था चिलम पीना। यह भी उम्र के साथ आया। चौपाल पर इस वक्त लोगों का आना शुरू हो जाता है। बारेलाल भी अपने पशुओं को इसी वक्त पानी पिलाकर सीधे चौपाल पर आता है। आज उसे आने में थोड़ी देर हो गई थी। बारेलाल आज बड़े मास्साब के साथ आ रहा था।
           मास्साब ने आते ही पंचू कक्का को राम-राम कहा। कक्का ने पूछा- काहे बड़े बाबू कैसे हो? भोत दिनन में इतको आए हो, काहा बात है? सब खैरियत तो है। मास्साब ने कहा-बस दादा सब ईश्वर की कृपा और आपका आशीर्वाद है। बात यह है कि दो दिन बाद १५ अगस्त है। सो आपको न्योता देने आया था। कक्का की चिलम अब तक तैयार हो चुकी थी। उन्होंने एक दम लगाकर कहा-अरे मास्टर जी जा काम में न्योता की का जरूरत है, हम तो हर साल अपए आप ही चले आत हैं। सब बच्चा लोगन का नाटक, गीत-संगीत सुनत हैं। मास्साब ने सहमति में सिर हिलाते हुए निवेदन किया-कक्का वो तो हम भी जानते हैं आप स्कूल को लेकर बड़े संजीदा रहते हैं। बीच-बीच में भी बच्चों की पढ़ाई की जानकारी लेते रहते हैं। इस बार हम आपको स्वाधीनता दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में न्योता देने आए हैं। कक्का ने हंसते हुए कहा- अरे सरकार रहन दो आप। अतिथि और काहू को बनाए लो, हम तो ऐसेई आ जाएंगे। बारेलाल ने भी हां में हां मिलाई। मास्साब चाहते थे कि इस बार कक्का को ही मुख्य अतिथि बनाया जाए। असल में वह कक्का के विचारों और बच्चों की पढ़ाई को लेकर उनकी सजगता से काफी प्रभावित थे। कक्का की मदद से ही जर्जर स्कूल भवन का जीर्णोद्धार हो सका था। जब से गांव में शराब का प्रचलन बढ़ा, बुराइयों का जमावड़ा गांव में हो गया था। शराबी बोतल की जुगाड़ के लिए स्कूल के गेट-खिड़की तक उखाड़ ले गए थे। वो तो कक्का ही थे जिन्होंने पहल करके स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था चौकस की। मास्साब ने जिद करके उनसे कहा कि नहीं इस बार तो आपको ही झंडा फहराना है। बड़े मास्साब सहमति प्राप्त करके वापस चले गए।
          मास्साब के जाने के बाद व्याकुल बारेलाल ने पंचू कक्का से कहा-कक्का ये १५ अगस्त का होत है और ये १५ अगस्त को ही काए आतो है। तब कक्का ने उसे विस्तार से भारत का इतिहास सुनाया। तब जाकर बारे बारेलाल को कुछ पल्ले पड़ा। उसने सिर खुजाते हुए कहा-धत् तेरे की! मैं तो अब तक जो सब जानत ही नहीं हतो। मैं तो बस जई जानतो हतो की जा दिना पुराने स्कूल और तहसील की पीली बिल्डिंग पर झंडा लहराओ जात है। और सही बताऊं तो मैं जा दिना स्कूल में सिर्फ दो लडुआ (लड्डू) लेवे ही जात हतो। अब समझ में आई जै दिन तो हमें बड़े जतन के बाद नसीब हुआ था। जै हो उन वीरां लोगन की जिनकी बदौलत हमें आजादी की आबो-हवा मिली है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha aapne.. hum bhi school mein ladoo lene ke liye hi jate the..

    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

    A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..

    Banned Area News : Aniston hits back at Fox News host for calling her 'destructive to society'

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  2. लोकेंद्र बाबू ..बात बात में गहराई वाला बात बोल गए आप..ई 15 अगस्त का होता है अऊर 15 अगस्ते के दिन काहे आता है, अऊर दूगो लड्डू माने 15 अगस्त...कुछ कहने लायक नहीं छोड़े आप... पंचू कक्का अऊर बारेलाल त होंगे अनपढ आज पढा लिखा लोग भी समझता है 15 अगस्त माने रिलाक्स... ई रिलैक्स कइसे नसीब हुआ ..फालतू का बात है!!

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  3. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  4. वाह पंचू भैया, बहुत शानदार। बात सही और वही है जो हम सोचते थे। शायद हम भी लड्डू लेने ही जाते थे। शायद तब समझ नहीं थी लड्डू और आजादी में क्या फर्क है।
    आजादी आजादी है लड्डू लड्डू। लड्डू खाने से कोई आजाद नहीं हो सकता लेकिन आजाद होकर लड्डू खा सकता है। लड्डू गोल होता है और आजादी का कोई मूर्त रूप नहीं होता। लड्डू का अगर हम सही इस्तेमाल करें तो वह खत्म हो जाता है लेकिन आजादी का अगर हम सही इस्तेमाल करें तो वह खत्म नहीं होती। बातें बहुत हैं पर कहां तक। फिलहाल इतना ही। अब यह बताओ की आजादी के दिन लड्डू बांटने की प्रथा क्यों शुरू हुई और किसने शुरू की जब दोनों कोई समानता ही नहीं है।

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  5. बारेलाल को तो पढने का अवसर ही नहीं मिला, मगर पढे लिखों का क्या? स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!

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    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

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  7. bahut khub bhai...... kahani bahut hi achchhiiiiiii he. aanand aa gaya..

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  8. जय उन वीरों को...जो आज सरहदों से लेकर देश के अंदर तर हमारी रक्षा करने में जुटे हुए हैं.।।आपको आजादी की हार्दिक बधाईं.....

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  9. लाजवाब लिखा है ..... आज़ादी की ६३ वर्षगाँठ पर बहुत कुछ कह गये आप ........ सार्थक लिखा है ....
    आपको आज़ादी का जश्न मुबारक

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  10. अत्यंत सादगी से लिखी गई बड़ी बात. समाज सुधार के लिए बुजुर्गों का आगे आना और ऐसे आगे आने वालों को उचित सम्मान देना जरूरू है.
    ..बधाई.

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  11. आपकी टिपण्णी मिलने पर बहुत अच्छा लगता है! इस हौसला अफ़जाही के लिए आपका शुक्रिया! आपके नए पोस्ट का इंतज़ार रहेगा!

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  12. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  13. 15 अगस्त को तो कहीं न कहीं कई लोग स्वतंत्रता दिवस के रूप में जानते हैं लेकिन अगा 26 जनवरी की बात करें तो उस दिन अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग वाकई लडुआ खावे जात हैं। हाहाहा आपने बहुत बेहतरीन व रोचक ढंग से लिखा है...

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