लगता है सरकार और सरकार के लोग पगलाय गए हैं?
हमने कई बार अपने से बड़ी उम्र या हमउम्र लोगों से सुना होगा कि तेरी मति फिर गई है क्या? जो इस तरह का काम कर रहा है। दूसरा वाक्य बदल भी सकता है। जैसे तेरी मति फिर गई है क्या? जो वहां मरने के लिए जा रहा है। अपन ने भी कई बार सुना है और हर बार सोचा है कि मति कैसे फिरती है? मति चकरी की तरह गोल-गोल फिरती है क्या? या फिर बावरे मन की तरह यहां-वहां फिरता है? नहीं तो यह होता होगा कि मति पहले खोपड़ी के आगे वाले हिस्से में होती होगी बाद में फिर कर पीछे चली जाती होगी, तब कहते होंगे मति फिर गई। जो भी हो अपन तो समझे नहीं उस समय, क्योंकि तब अपन बच्चे थे सो थोड़े कच्चे थे जी। अब केंद्रीय सरकार के एक कानून के बारे में सुनकर समझ आ गया है। पता चला है कि केंद्र एक नए कानून को व्यवहार में लाने की सोच रहा है, जिससे बच्चों पर हो रहा अत्याचार रुकेगा। कानून में तय किया जा रहा है कि गुरुजन ही नहीं माता-पिता भी अपने बच्चे को पिटाई नहीं कर सकेंगे। अगर वे बच्चों को पीटते हैं तो उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी।
लगता है केंद्र में बैठे लोगों की मति ही फिरी होगी तभी इस कानून को लाने का विचार किया गया। अब भला सज्जन पुरुषों से यह पूछो कौन माता-पिता अपने बच्चे को जान-बूझकर मारना चाहते हैं और क्या उनकी मार में अत्याचार होता है? क्या वह मां बच्चे पर अत्याचार कर सकती है जो खुद नौ माह कष्ट में रह कर उसे जन्म देती है? पैदा होने के बाद उसे अपने कलेजे से चिपकाकर रखती है। क्या वह मां उस पर बेवजह लाठी चला सकती है? जिसे वह बड़े लाड़ से पालती है, बिझौना जब बच्चे के सूसू से गीला हो जाता है तो वह ममता की मूर्ति स्वयं गीले में सो जाती है और अपने कलेजे के टुकड़े को सूखे में सुलाती है। पिता की बात करें तो वह भी बच्चे को प्रेम करने में मां से कहीं पीछे नहीं रहता। बाहर से कठोर दिखने वाला पिता अंदर से मां सा ही कोमल होता है। उसका बच्चा सुख से जी सके इसके लिए ही तो पिता सारे जतन करता है। क्या ये माता-पिता बच्चे पर अत्याचार कर सकते हैं? मुझे तो लगता है नहीं कर सकते। यह लिखने से पहले मैं कई लोगों से इस विषय पर बहुत लोगों से चर्चा कर चुका हूं। सबने ऐसे कानून की उपयोगिता पर आश्चर्य व्यक्त किया। तो क्या केंद्र सरकार में बैठे लोगों की मति फिर गई है? लगता तो यही है। वे जो कानून बना रहे हैं उसके तहत अगर माता-पिता बच्चे को मारते हैं तो उन्हें जेल हो सकती है, जुर्माना भी देना होगा। जो कानून बनने चाहिए उन पर तो सरकार ध्यान नहीं दे रही, लेकिन ऐसे हास्यपद कानूनों की तैयारी में जुटी है। आतंकवाद रुके, नक्सलवाद को नकेल लगे, महंगाई डायन के अत्याचार से जनता को कैसे बचाएं, लगातार बढ़ रहे अपराध को कैसे रोका जाए। इन सब पर तो कुछ काम नहीं किया जा रहा।
मेरा मत है कोई भी गुरुजन व माता-पिता अपने बच्चे को शिक्षा देने के लिए थोड़ा-बहुत पीट सकता है, जो अत्याचार की श्रेणी में नहीं आता। यह जरूरी भी है वरना बच्चों को बिगडऩे से कोई नहीं रोक सकेगा। मान लो सरकार यह कानून कठोरता से लागू कर देती है तो क्या स्थितियां निर्मित होंगी।
हमने कई बार अपने से बड़ी उम्र या हमउम्र लोगों से सुना होगा कि तेरी मति फिर गई है क्या? जो इस तरह का काम कर रहा है। दूसरा वाक्य बदल भी सकता है। जैसे तेरी मति फिर गई है क्या? जो वहां मरने के लिए जा रहा है। अपन ने भी कई बार सुना है और हर बार सोचा है कि मति कैसे फिरती है? मति चकरी की तरह गोल-गोल फिरती है क्या? या फिर बावरे मन की तरह यहां-वहां फिरता है? नहीं तो यह होता होगा कि मति पहले खोपड़ी के आगे वाले हिस्से में होती होगी बाद में फिर कर पीछे चली जाती होगी, तब कहते होंगे मति फिर गई। जो भी हो अपन तो समझे नहीं उस समय, क्योंकि तब अपन बच्चे थे सो थोड़े कच्चे थे जी। अब केंद्रीय सरकार के एक कानून के बारे में सुनकर समझ आ गया है। पता चला है कि केंद्र एक नए कानून को व्यवहार में लाने की सोच रहा है, जिससे बच्चों पर हो रहा अत्याचार रुकेगा। कानून में तय किया जा रहा है कि गुरुजन ही नहीं माता-पिता भी अपने बच्चे को पिटाई नहीं कर सकेंगे। अगर वे बच्चों को पीटते हैं तो उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी।
लगता है केंद्र में बैठे लोगों की मति ही फिरी होगी तभी इस कानून को लाने का विचार किया गया। अब भला सज्जन पुरुषों से यह पूछो कौन माता-पिता अपने बच्चे को जान-बूझकर मारना चाहते हैं और क्या उनकी मार में अत्याचार होता है? क्या वह मां बच्चे पर अत्याचार कर सकती है जो खुद नौ माह कष्ट में रह कर उसे जन्म देती है? पैदा होने के बाद उसे अपने कलेजे से चिपकाकर रखती है। क्या वह मां उस पर बेवजह लाठी चला सकती है? जिसे वह बड़े लाड़ से पालती है, बिझौना जब बच्चे के सूसू से गीला हो जाता है तो वह ममता की मूर्ति स्वयं गीले में सो जाती है और अपने कलेजे के टुकड़े को सूखे में सुलाती है। पिता की बात करें तो वह भी बच्चे को प्रेम करने में मां से कहीं पीछे नहीं रहता। बाहर से कठोर दिखने वाला पिता अंदर से मां सा ही कोमल होता है। उसका बच्चा सुख से जी सके इसके लिए ही तो पिता सारे जतन करता है। क्या ये माता-पिता बच्चे पर अत्याचार कर सकते हैं? मुझे तो लगता है नहीं कर सकते। यह लिखने से पहले मैं कई लोगों से इस विषय पर बहुत लोगों से चर्चा कर चुका हूं। सबने ऐसे कानून की उपयोगिता पर आश्चर्य व्यक्त किया। तो क्या केंद्र सरकार में बैठे लोगों की मति फिर गई है? लगता तो यही है। वे जो कानून बना रहे हैं उसके तहत अगर माता-पिता बच्चे को मारते हैं तो उन्हें जेल हो सकती है, जुर्माना भी देना होगा। जो कानून बनने चाहिए उन पर तो सरकार ध्यान नहीं दे रही, लेकिन ऐसे हास्यपद कानूनों की तैयारी में जुटी है। आतंकवाद रुके, नक्सलवाद को नकेल लगे, महंगाई डायन के अत्याचार से जनता को कैसे बचाएं, लगातार बढ़ रहे अपराध को कैसे रोका जाए। इन सब पर तो कुछ काम नहीं किया जा रहा।
मेरा मत है कोई भी गुरुजन व माता-पिता अपने बच्चे को शिक्षा देने के लिए थोड़ा-बहुत पीट सकता है, जो अत्याचार की श्रेणी में नहीं आता। यह जरूरी भी है वरना बच्चों को बिगडऩे से कोई नहीं रोक सकेगा। मान लो सरकार यह कानून कठोरता से लागू कर देती है तो क्या स्थितियां निर्मित होंगी।
- - बच्चे का मन स्कूल जाने का नहीं हो रहा, माता-पिता उसे पिटाई का डर तो दिखा नहीं सकते। ऐसे में हो सकता है वे उसे स्कूल जाने के लिए कोई लालच दें, अगर ऐसा होता है तो बच्चे में रिश्वत लेने की आदत बचपन से ही पैदा हो जाएगी।
- - बच्चा स्कूल का होमवर्क ले जाए या नहीं टीचर उसे पीट तो सकता नहीं है। माता-पिता से शिकायत करके भी क्या फायदा। क्लास रूम में धमा-चौकड़ी मचाते हैं तो भी शिक्षक कुछ न कर सकेंगे।
- - माना वह शिक्षक उसे डांट और बालक इसका बदला लेने के लिए शिक्षक के मुंह पर थूक दे, चांटा मार दे, धूल फेंक दे या फिर शिक्षक रास्ते से जा रहा हो और वह उन्हें पत्थर मार दे। तब क्या किया जाए?
- - बच्चा सुबह से कार्टून चैनल देख रहा है। मना करने और समझाने पर मान नहीं रहा, तब माता-पिता क्या करें? क्या जेल जाने के भय से उसे अपना भविष्य खराब करते रहने दें। उसे लगातार टीवी देखकर अपनी आंखे खराब करते रहने दिया जाए।
- - वह गली-मोहल्ले में किसी दूसरे बच्चे से मारपीट करके आता है, तब क्या करें परिजन की वह भविष्य में ऐसा न करें।
- - पत्थरों से वह पड़ोसियों के खिड़की के कांच तोड़ दे, तब पिता उसे कैसे समझाए और समझाने के बाद बार-बार वह ऐसा करे तब क्या करें?
- - मान लो वह कहीं से गंदी-गंदी गालियां सीखकर आता है और जोर-जोर से बकता है। आपकी लड़की को भी वह अपशब्द कहे तो क्या करोगे?
जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों महंगाई, आतंकवाद... से हटा रहे इसके लिए तो कुछ ना कुछ सगुफा छोड़ते रहना पडेगा ना ....
जवाब देंहटाएंदरअसल अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में ऐसा कानून बहुत समय से चला आ रहा है | उन देशों को ऐसे कानून की आवश्याकता भी है क्यूंकि उन देशों में डिवोर्स (तलाक) इतनी बार हो जाता है की कई बार बच्चे अपने वास्तविक माता-पिता के बजाय step father & step mother के पास रहने लगता है| step father & step मदर को इन बच्चों से लगाव नहीं होने के कारन बच्चों पे अमानवीय व्यवहार आम है | पर भारत में इस कानून की आवश्यकता समझ से परे है | पश्चिम का अन्धानुकरण इस कानून को लागू करने का एक बड़ा कारन हो सकता है |
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जवाब देंहटाएंNew Indian Rupee Symbol And Times Of India Media Hoax
bhaut khoob...........
जवाब देंहटाएंएगो अऊर कहावत है बाँझ का जाने प्रसब का पीड़ा... कानून अंधा होता है, सम्बेदन हीन… अब ऊ लोग को कहाँ पता चलेगा कि माँ बाप अऊर सच्चा गुरू के प्यार अऊर पिटाई में कोनो भेद नहीं होता है... प्यार अपना बच्चा को करेंगे अऊर पीटने के लिए पड़ोसी का बच्चा... मति फिर नहींगया है, मति भ्रस्ट हो गया है...
जवाब देंहटाएंअच्चा लिखा है सर जय माता दी
जवाब देंहटाएंthoda jo gao ki bhasa ka put tum lekhni me lane koshish karte ho waha tum puri tarah safal nahi ho pate. wese achcha likha he......... good
जवाब देंहटाएंVery good! Is vishay par kya patrika me bhi kuchh likha?
जवाब देंहटाएंaise 3-4 kanun aa rahe hai. 2 aa gaye. 1. Domestic violence. 2.Care of parents
ye sab parivar ko todane wale kanun hai. Ab videshon me bhi wo log samajh gaye hai ki ye gadbad hai.
Ek aur badi samsya hai jis par likhna chahiye- ye jo Pahachan card de rahe hai jiska incharge nandan nilkeni hai wo bhi sare bangladeshiyon ko citizenship dene ka shadayantra hai.
अच्छा लिखा है, लेकिन कुछ कमी है। अपना देश अमेरिका व अन्य यूरोपिय देशों की तुलना कर रहा है उक्त मामले में सरकार को चाहिए था कि वह पहले इन देशों की भांति बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं पर ध्यान दें। उसके बाद इस प्रकार के कानूनों के बारे में सोचे।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंbahut hi umda aalekh .aapne bilkul sahi waqt par sahi mudda uthaya hai.iske liye bahut-bahut aabhaar.
जवाब देंहटाएंpoonam
अपने देश को अमेरिका नहीं बना पाए तो कम से कम कानून तो बना लेने दो भाई। काहे को इतना हल्ला।
जवाब देंहटाएंarticle pad kar acha laga..
जवाब देंहटाएंmere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...
http://asilentsilence.blogspot.com/