गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

सपोर्टिंग इनिंग्स ; लोकेन्द्र सिंह

 Lokendra Singh Rajput                                                     महान सचिन की महान पारी - मेरे प्यारे शहर में मेरे पसंदीदा प्लेयर ने अद्भुत काम कर दिया। बड़े अरमान से मैच देखने कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम पहुंचा। बड़े दिनों से लगी थी सचिन से दौ सौ रन बनाने की उम्मीद, आज अपनी उपस्थिति में पूरी होते देखी। जैसे ही सचिन ने १८० रन पार किए उसके बाद तो गजब का रोमांच मैदान में था। सचिन के हर शॉट पर स्टेडियम में उपस्थित हरेक दर्शक उछल-उछल पड़ रहा था। अहा! क्या नजारा था। अद्वितीय सचिन ने अद्भुत कारनामा कर दिया। पूरा ग्वालियर झूम उठा। बिना संगीत के  ही सारा स्टेडियम नाचने लगा। मानो सचिन के बल्ले से स्वर लहरी फूट पड़ी हो। चौके-छक्के पर बल्ले से निकलने वाली आवाज यूं लगी की डीजे की धमक हो। सचिन की ऐतिहासिक कारनामें का गवाह सारा शहर बना और मैं भी, इसी सोच के साथ मन प्रफुल्लित होता रहा।
बेइज्ती करा दी- यूं तो मैच में खूब मजा आया, बस एक क्षण ऐसा काला रहा कि दिल दुख गया। भारतीय टीम बल्लेबाजी कर रही थी और सचिन का बल्ला आग उगल रहा था। उसी बीच किसी चिरकुट टाइप के लड़के ने जो हरकत की उसने सारे ग्वालियर को शर्मसार कर दिया। किसी ने भारी सुरक्षा के एक दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी को पत्थर फेंक कर मार दिया। उसके बाद पुलिस को मोर्चा संभालना पड़ा। मेहमानों को सॉरी कहना पड़ा। शहर के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अभद्रता न करने की अपील करनी पड़ी। जो भी था उसकी पहचान तो नहीं हो सकी लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर ग्वालियर की छवि धूमिल हो गई। हमारे बीच भी कई चिरकुट बैठे थे जिन्हें हम लोग संभाल रहे थे। चूंकि हम दस-बारह लोग थे सो उनको हमारी बात माननी पड़ रही थी। जब मैंने एक को अभद्रता करने से रोका तो वो मुझ पर ही बन बैठा होता पर जैसे ही उसने देखा की ये पूरी फौज के साथ ही तो पूरे मैच में शांत रहा।
सुरक्षा व्यवस्था में लगाई सेंध-मैच शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो सके इसके लिए भारी फोर्स तैनात किया गया था। सुरक्षाधिकारियों ने दावा किया था कि मैच में परिंदा भी पर नहीं फडफ़ड़ा सकेगा। सब दावों के बीच परिंदों ने पर फडफ़ड़ाए और बीट भी की। बीट करने वाले का तो ऊपर वर्णन आ ही गया है। पेन-पेंसिल से लेकर मोबाइल तक स्टेडियम में ले जाना प्रतिबंधित था। लेकिन सारी सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर कई लोग अंदर मोबाइल लेकर पहुंचे। जबकि पुलिस ने कम से कम छह जगह चैकिंग बिठा रखी थी। इतनी चैकिंग के बावजूद कैसे लोग मोबाइल अंदर लेकर पहुंचे, यह बात सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती है। शायद ऐसी ही सुरक्षा व्यवस्था है हमारे पास तभी हम आंतकवाद और नक्सलवाद के हमलों को रोकने में नाकामयाब हैं। हम तो घर से बढिय़ा घी के बने हुए मैथी के परांठे ले गए थे लेकिन बाहर ही छीन लिए गए सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर।

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