गुरुवार, 16 मार्च 2023

भविष्य के भारत के लिए दिशा-संकेत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही समाजहित में सक्रिय है। भले ही राजनीतिक दल और उनके कुछ नेता संघ के बारे में भ्रामक प्रचार करें, लेकिन समाज में संघ की जो छवि बनी है, वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे है। देश-दुनिया में जब कोरोना जैसी महामारी आई थी, तब जहाँ भी संघ के कार्यकर्ता थे, उन्होंने निर्भय होकर लोगों की सहायता की, उनका हौसला बढ़ाया। कहने का अभिप्राय यही है कि जब भी समाज को संभालने की आवश्यकता होती है, संघ के कार्यकर्ता सबसे आगे खड़े होते हैं। आज जब भौतिकता अत्यधिक तेजी से हावी हो रही है, तब भारतीय समाज को सुदृढ़ करने की चिंता हर किसी के मन में है। संघ ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। आधुनिकता के साथ कैसे हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, इस दिशा में संघ पहले से ही कार्य कर रहा था, अब उसकी गति बढ़ाने का निर्णय किया गया है। संघ की निर्णायक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक हरियाणा में सम्पन्न हुई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि संघ आगामी समय में सामाजिक परिवर्तन के पांच आयामों पर अपने कार्य को अधिक केन्द्रित करेगा। इन पांच आयामों में सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण, नागरिक कर्तव्य सम्मिलित हैं। यह पांच आयाम अत्यधिक महत्व के हैं।

भारत विरोधी ताकतें संगठित होकर देश और हिन्दू समाज को कमजोर करने के लिए समाज में विभेद उत्पन्न करने का प्रयास कर रही हैं। ऐसे में आवश्यक है कि हिन्दू समाज इस प्रकार के सामाजिक विभेद खड़ा करनेवाले विमर्शों का समुचित उत्तर दे और समरसता के कार्यों को गति दे। 

इस संबंध में संघ सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने पत्रकारवार्ता में जो विचार दिया, उसे प्रत्येक हिन्दू को आत्मसात कर लेना चाहिए- “अस्पृश्यता समाज के लिए पाप और कलंक है तथा संघ इसे मिटाने के लिए प्रतिबद्ध है”। अस्पृश्यता को समाप्त करने में संघ के प्रयासों की प्रशंसा स्वयं महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर भी कर चुके हैं। ‘परिवार व्यवस्था’ भारतीय संस्कृति की विशेषता एवं ताकत रही है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बाह्य सांस्कृतिक आक्रमण एवं बाजारवादी ताकतों ने हमारी इस व्यवस्था पर गहरी चोट की है, जिसके कारण आज परिवार बिखर रहे हैं। हमारी परिवार व्यवस्था अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है। परिवार व्यवस्था को बचाये रखने एवं उसे मजबूत करने के लिए संघ ने कुटुम्ब प्रबोधन की गतिविधि पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय करके सराहनीय काम किया है। 

जब देश विश्व पटल पर प्रभावशाली भूमिका में आगे बढ़ रहा है, तब देशभक्त नागरिक होने के नाते हमारे क्या कर्तव्य होने चाहिए, यह भी हमें भान रहना चाहिए। बिना कर्तव्यों के अधिकारों की बात बेमानी है। इसके साथ ही हम स्वदेशी आचरण से अपने देश को मजबूती दे सकते हैं। ‘स्वदेशी आचरण’ का विचार बहुत महत्वपूर्ण है। यदि इसका व्यापक प्रसार हो जाए और अधिकतम अनुपालन होने लगे, तब देश की तस्वीर ही बदल जाएगी। विश्वास है कि संघ के प्रयासों से यह पाँचों आयाम जन साधारण तक पहुँचेंगे और उसका प्रभाव दिखायी देगा। इसके अतिरिक्त भी प्रतिनिधि सभा में ‘स्व’ के जागरण को लेकर एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया। 

शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को 350 वर्ष होने जा रहे हैं, इस पर भी संघ का वक्तव्य आया है। किसी भी राष्ट्र के आधार बिन्दु क्या होने चाहिए, इसका दर्शन शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ में किया जा सकता है। हिन्दवी स्वराज्य के मूल में ‘स्व’ का विचार था। अर्थात् भारतीय संस्कृति के मौलिक सिद्धाँतों के आधार पर एक मजबूत राष्ट्र खड़ा हो सकता है। ‘स्वराज्य’ में शिवाजी महाराज ने स्व-भाषा, स्व-तंत्र और स्व-संस्कृति को प्रधानता दी। आज जब हम भारत की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तब हमें भारत की आगे की यात्रा के बारे में विचार करते समय तय करना चाहिए कि देश ‘स्व’ के आधार पर आगे बढ़े। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रतिनिधि सभा ने भविष्य के भारत के लिए दिशा संकेत किया है। अब देखना होगा कि भारत इस ओर कितना आगे बढ़ता है। 

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