रविवार, 4 दिसंबर 2022

जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार को नकारनेवालों की मानसिकता है ‘वल्गर’

गोवा में आयोजित भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव (आईएफएफआई) के समापन समारोह में इजराइल मूल के फिल्म निर्माता नदव लैपिड ने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के संबंध में आपत्तिजनक टिप्पणी करके इस्लामिक आतंकवाद की क्रूरता का शिकार हुए हिन्दुओं के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया। लैपिड इस आयोजन के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष थे। फिल्म को लेकर की गई टिप्पणी में शब्दावली का चयन बता रहा है कि वह किसी खास विचार से प्रेरित हैं और ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर जानबूझकर टिप्पणी की है। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा कि फिल्म उत्सव में इस फिल्म की स्क्रीनिंग को देखकर वे परेशान हुए और उन्हें झटका लगा। यह फिल्म वल्गर और प्रोपेगंडा है। यकीनन फिल्म देखकर लैपिड को झटका लगा होगा, वह क्रूरता के दृश्य देखकर परेशान भी हो गए होंगे, क्योंकि दृश्य परेशान करनेवाले और दिल-दिमाग को हिला देनेवाले ही हैं। भारत में पहली बार किसी फिल्म निर्माता ने साहस दिखाकर जम्मू-कश्मीर में हुए हिन्दुओं के नरसंहार को सामने लाने का काम किया है।

जब से फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ प्रदर्शित हुई है, उसी दिन से झूठों के समूह, टुकड़े-टुकड़े गिरोह, तथाकथित सेकुलरों के विरोध का सामना कर रही है। दरअसल, उन्होंने अपने इको-सिस्टम से जिस अकल्पनीय नरसंहार को छिपाने का प्रयास वर्षों से किया था, उसको यह फिल्म एक झटके में सामने ले आती है। साथ में, उस इको-सिस्टम की धूर्तता को भी फिल्म में दिखाया गया है। हिन्दुओं की हत्याएं करने के बाद जिस तरह आज उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया जा रहा है, वैसा ही उस समय भी किया जा रहा था। रातों-रात हजारों की संख्या में कश्मीरी हिन्दू अपने घर छोड़ने के लिए क्यों मजबूर हुए? अपने घर-दुकान, बहन-बेटियों को छोड़कर कश्मीर से चले जाने के नारे लगानेवाले लोगों के अपराध को हमेशा छिपाने का काम किया गया। पीड़ित हिन्दुओं के प्रति संवेदनाएं रखने की जगह उन्हें ही कठघरे में खड़ा किया जाता रहा। 

याद रखें कि यह फिल्म वल्गर और प्रोपेगंडा नहीं है बल्कि हिन्दुओं के दर्द, उनकी पीड़ा और आंसूओं को झुठलानेवाले लोगों की मानसिकता ही अश्लील और दूषित है। इस एक प्रकरण से भारत में एक बार फिर उन लोगों की पहचान उजागर हो गई, जिनकी संवेदनाएं हिन्दुओं के प्रति नहीं हैं। कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित पत्रकार, लेखक, कलाकार एक ऐसे व्यक्ति की टिप्पणी पर लहालोट होने लगे, जिसे न तो जम्मू-कश्मीर की जानकारी है और न ही वहाँ हुए दर्दनाक नरसंहार से वह परिचित है। दुर्भाग्यजनक है कि इस सबमें भारत के मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल के नेता भी आनंदित होकर नवद लैपिड की टिप्पणी पर प्रसन्नता व्यक्त कर हिन्दुओं पर हुए अत्याचार की सच्ची तस्वीर दिखानेवाली फिल्म को वल्गर और प्रोपेगंडा सिद्ध करने लगे। 

अभी पिछले दिनों सेना पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में भी इस राजनीतिक दल के नेता सिने अभिनेत्रा ऋचा चढ्ढा के पाले में खड़े थे। ये लोग सेना के साथ खड़े अक्षय कुमार को विदेशी नागरिक ठहराकर ऋचा चढ्ढा को नसीहत नहीं देने की सलाह दे रहे थे। अजीब विडंबना है कि इस राजनीतिक दल और उसके समर्थक बुद्धिजीवी भारतीय मूल के अक्षय कुमार को उलाहना देते हैं, जबकि विदेशी फिल्मकार नवद लैपिड के आपत्तिजनक वक्तव्य को सत्य मानकर लहालोट होते हैं। भारत के नागरिक देख रहे हैं और यह मान रहे हैं कि नवद लैपिड की टिप्पणी के साथ प्रसन्नता व्यक्त कर रहे सभी लोग हिन्दुओं के घावों पर नमक छिड़क रहे हैं। जबकि इजराइल के राजदूत एवं वहाँ के अन्य प्रमुख राजनेताओं ने नवद लैपिड के दुर्व्यवहार के लिए खेद प्रकट करके भारत विरोधी सभी ताकतों को आईना दिखाया है। इजराइल के राजनेताओं की ओर से आई टिप्पणियां यह भी संदेश देती हैं कि भारत और इजराइल की मित्रता बहुत गहरी है। यह दोनों देश एक-दूसरे के सुख-दु:ख की गहरी अनुभूति रखते हैं। 

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