रविवार, 4 सितंबर 2022

गुलामी के चिह्न मिटाकर ‘स्व’ की स्थापना

नया भारत विश्व क्षितिज पर अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के साथ ही अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। अपनी जड़ों से जुड़कर ही भारत अनंत आकाश को नाप सकेगा। स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद जब भारतीय नौसेना को अपना प्रथम स्वदेशी विमान वाहक पोत मिला तब नया भारत एक नया इतिहास लिख रहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसे कुछ इस तरह अभिव्यक्ति दी- ‘‘केरल के समुद्री तट पर पूरा भारत एक नए भविष्य के सूर्योदय का साक्षी बन रहा है। आईएनएस विक्रांत पर हो रहा यह आयोजन, विश्व क्षितिज पर भारत के बुलंद होते हौसलों की हुंकार है’’। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में विश्वास की गूंज है, जो अब दूर-दूर तक सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को सक्षम बनाने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ का जो सपना देखा और दिखाया, अब हम उसकी ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर हमने बहुत कम समय में उल्लेखनीय प्रगति की है। उसका जीवंत और सबसे बड़ा उदाहरण है- आईएनएस विक्रांत। नि:संदेह, आईएनएस विक्रांत का सेवा में आना रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बात स्वादेशी विमान वाहक पोत तक सीमित नहीं है अपितु शासन की दृष्टि में भी ‘स्व’ का भाव आने लगा है। सोचिए, हम पिछले 75 वर्षों से भारतीय नौसेना के ध्वज पर औपनिवेशिक दासता की निशानी ‘सेंट जॉर्ट क्रॉस’ को ढो रहे थे। वर्ष 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस गुलामी के निशान को नौसेना के ध्‍वज से हटाया था लेकिन जब कांग्रेस की सत्ता लौटी तो 2004 में फिर से भारतीय नौसेना के झंडे पर ‘सेंट जॉर्ट क्रॉस’ को थोप दिया गया। ब्रिटेन के उपनिवेश रहे अन्य देश जब इस चिह्न को हटा रहे थे तब कांग्रेस न जाने किसके इशारे पर गुलामी के चिह्न को फिर से भारतीय नौसेना के ध्वज में शामिल कर रही थी? कांग्रेस और भाजपा को यह सोच ही अलग करती है। 

भाजपा जब राष्ट्रीय महत्व के प्रतीकों का भारतीयकरण करती है, तब न जाने क्यों  कुछ ताकतों के उदर में कष्ट होने लगता है? ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें भारतीयकरण से भारी दिक्कत है। प्रधानमंत्री मोदी जब राष्ट्र  को उसका पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत समर्पित कर रहे थे, तब उसके साथ ही उन्होंने भारतीय नौसेना को उसका नया ध्वज भी सौंपा, जो छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित है। शिवाजी महाराज भारतीय नौसेना के जनक हैं। नौसेना के नये ध्वज से औपनिवेशिक दासता के चिह्न ‘सेंट जॉर्ट क्रॉस’ को हटा दिया गया है और अब नौसेना के ध्वज पर राष्ट्रध्वज तिरंगे के साथ शिवाजी महाराज की मुहर से लिया गया निशान शोभित हो रहा है। नए ध्वज पर संस्कृत भाषा में ‘शं नो वरुणः’लिखा है। इसका अर्थ है ‘हमारे लिए वरुण शुभ हों’। 

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से देश के नाम संबोधन में कहा था कि ‘‘हमें गुलामी के हर प्रतीक से मुक्ति पानी चाहिए’’। स्वतंत्रता के बाद ही यह प्रयास प्रारंभ हो जाने चाहिए थे, लेकिन पता नहीं उस समय के सत्ता प्रतिष्ठान किस मानसिकता से शासन चला रहे थे? यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि यह जो भारतीयता के अनुरूप परिवर्तन हैं, वह भारतीय विचार से ओत-प्रोत शासन व्यवस्था में ही संभव हैं। इसलिए देश को इतने लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और राज्य- सरकारों ने देशभर में अनेक ऐसे बदलाव किए हैं, जो राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति पैदा करते हैं। औपनिवेशिक निशानों को मिटाकर ‘स्व’ की स्थापना करने के अनुकरणीय एवं करणीय कार्य भाजपा सरकारों ने किए हैं। बहरहाल, अब छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित नौसेना का नया ध्वज समंदर और आसमान में लहराएगा। 

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