महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस के विरुद्ध बड़ी लड़ाई का आह्वान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नागरिकों से किया है। सरकार के साथ हम सब नागरिकों का कर्तव्य है कि महामारी से स्वयं बचें और अपने लोगों को बचाएं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम सब प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर ‘जनता कर्फ्यू’ को सफल बनाएं। प्रधानमंत्री मोदी का यह ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ सदैव याद किया जाएगा। उनका यह उद्बोधन मानवता और अपनत्व से भरा हुआ था। प्रधानमंत्री गुरुवार रात को जब देश की जनता को संबोधित कर रहे थे, तब वे एक अभिभावक की तरह भी नजर आए। महामारी कोरोना के संदर्भ में अन्य बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी अपने-अपने देश की जनता को संबोधित किया, लेकिन उनके भाषण में वह मर्म नहीं था, जो प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में अनुभूत होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर अधिक जोर नहीं दिया कि उनकी सरकार ने कैसे अब तक कोरोना को काबू में रखा है, सरकार की तैयार क्या है? इसकी अपेक्षा उन्होंने लोगों को जागरूक करना अधिक जरूरी समझा, जो कि अधिक महत्वपूर्ण था।
अपनी स्वीकार्यता को जनता के हित में उपयोग करना ही बड़े और महान नेताओं की पहचान है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता पर पूर्ण विश्वास और आत्मीयता प्रकट करते हुए कहा- ‘मैंने आपसे जब भी कुछ माँगा है, आपने मुझे कभी निराश नहीं किया है। इस बार मुझे आपका आने वाला कुछ समय, संकल्प और संयम चाहिए।’ देश की जनता से यह आग्रह वह राजनेता ही कर सकता है, जिसे नीति और नीयत पर लोगों को भरोसा हो। प्रधानमंत्री मोदी के इस आह्वान के तत्काल बाद ही समूचे देश से उन्हें समर्थन मिलना शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर आम लोगों की टिप्पणियां इसकी साक्षी हैं।
संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश (भैय्याजी) जोशी ने वक्तव्य जारी कर देश के प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवकों से आग्रह किया है- “महामारी कोरोना वायरस की चुनौती का सामना करने के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम जो आह्वान किया है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन सभी प्रयासों का समर्थन करता है। ‘संकल्प और संयम’ इस मंत्र को लेकर 22 मार्च के ‘जनता कर्फ्यू’ सहित केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के सभी प्रयासों की सफलता के लिए सभी स्वयंसेवक अपने परिवार की मानसिकता तैयार कर समाज जागरण में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर इस चुनौती का सामना करने में अपना योगदान दें।” संघ की तरह अन्य सामाजिक संगठन भी जनता कर्फ्यू को सफल बनाने के लिए आगे आए हैं।
मा. सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी का वक्तव्य : #COVID2019 की चुनौती का सामना करने के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम जो आवाहन किया है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन सभी प्रयासों का समर्थन करता है।— RSS (@RSSorg) March 19, 2020
1/2
याद कीजिए, देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अकाल जैसी कठिनाई से जीतने के लिए जब देश की जनता से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का आग्रह किया था, तब कैसे जनता उनके साथ खड़ी हो गई थी। अमेरिका ने उस समय कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की थी। शास्त्री जी जानते थे कि अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जाएगा। ऐसे में उन्होंने अपने नैतिक बल का उपयोग करते हुए देशवासियों से आह्वान किया- ‘पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो।’ उनके आह्वान का देशवासियों पर गहरा असर पड़ा। लोगों ने सहर्ष पूर्ण उत्साह के साथ अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर भरोसा किया और देश का स्वाभिमान बचाने के लिए सप्ताह में एक दिन उपवास करना प्रारंभ कर दिया। परिणामस्वरूप हम अमेरिका के यहाँ अपना स्वाभिमान गिरवीं रखे बिना ही अकाल के विरुद्ध लड़ाई जीत गए। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान में भी वही नैतिक बल दिखाई देता है।
प्रधानमंत्री मोदी इस अपील के मर्म को भी समझने की जरूरत है, जिसमें वे सेठों/मालिकों से आग्रह कर रहे हैं कि वे अपने कर्मचारियों का वेतन न काटें, उनके आर्थिक हितों का ध्यान रखें, क्योंकि कर्मचारियों को भी अपना परिवार पालना है। प्रधानमंत्री को यह बखूबी ध्यान रहता है कि यदि आम आदमी काम पर नहीं जाएगा तो सेठ/मालिक उनका वेतन काट लेगा, ऐसे में बहुत लोगों के सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो जाएगा। इसके साथ ही वे उन सब लोगों का हौसला बढ़ाने से भी नहीं चूके जो अपना जीवन दांव पर लगा कर कोरोना वायरस से पीडि़त लोगों का इलाज कर रहे हैं। कोरोना के विरुद्ध लड़ रहे हैं। उसके लिए उन्होंने आम जनता से आह्वान किया कि वह करतल-ध्वनि या थाल-घंटी बजा कर उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करे।
मोदी विरोध में तर्क विहीन हो चुके उन लोगों की बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है, जो जनता-कर्फ्यू जैसे व्यवहारिक और जरूरी प्रयोग एवं करतल या थाल-घंटी बजाने के भारतीय अभिवादन के तौर-तरीका का उपहास उड़ा रहे हैं। इससे उनकी ओछी सोच ही प्रकट होती है। यह भारत है। यहाँ लोकभावना का उपहास स्वीकार नहीं होता। इसलिए तथाकथित बुद्धिजीवी भारत के लोकप्रिय नेता के आत्मीय आह्वान का जितना मर्जी आए मजाक बना लें, किंतु जनता 22 मार्च को न केवल ‘जनता कर्फ्यू’ को अभूतपूर्व समर्थन देगी बल्कि उतने ही उत्साह से थाल-घंटी बजा कर ‘कोरोना से लडऩे वाले योद्धाओं’ का अभिवादन भी करेगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share