ऋष्वी के पांचवे जन्मदिन पर |
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सुनो, मीठी
नखरे बढ़ गए हैं तुम्हारे
ज़िद्दी पहले ही
बहुत थी तुम।
अब गुस्सा होकर
कोप भवन में बैठना
बड़ा प्यारा लगता है।
बता नहीं सकता
मनाना तुम्हें
कितना भाता है मुझे।
यह बात तो
जानती हो तुम भी
इसलिए नौटंकी तुम्हारी
मेरे घर आने पर ही
होती है शुरू।
मुझे पता है
तुम स्वभाव से
नखराली-ज़िद्दी नहीं हो।
बस बातें मनवाने
मुझसे खुशामद कराने
करती हो चालाकी तुम।
भरी है मासूमियत
सब अदाओं में।
परंतु, ध्यान रखना
मेरी प्यारी बेटी
ये ज़िद-नखरे
बुरी आदत न बन जाएं।
अन्यथा, खो जाएगा
चैन-ओ-सुकून दोनों का
रखना है बचाकर
अपनी समझदारी।
Wow such great
जवाब देंहटाएंSantali Mp3 Download
lovely
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है। ऐसे ही लिखते रहिए। हम भी लिखते हैं हमारे लेख पढ़ने के लिए आप नीचे क्लिक कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंDBMS in hindi
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