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लोकेंद्र
बुधवार, 21 मार्च 2018
बेटी के लिए कविता – 5
हो बहुत उतावली
उगाना चाहती हो
सरसों हथेली पर।
क्षणभर,
गर हो जाए देर
नौटंकी तुम्हारी
बिना देरी हो जाती शुरू।
- लोकेन्द्र सिंह -
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