उत्तरप्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल पर बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने दूसरी बार प्रेसवार्ता आयोजित करके ईवीएम में छेड़छाड़ कर बेईमानी से चुनाव जीतने के आरोप भारतीय जनता पार्टी पर लगाए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा की जीत ईमानदारी की नहीं है, बल्कि ईवीएम में धांधली करके यह जीत हासिल की है। मायावती ने इस मामले पर उच्चतम न्यायालय जाने और आंदोलन करने की बात कही है। वहीं, बुधवार को ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एक प्रेसवार्ता में यह आरोप लगाए कि ईवीएम में गड़बड़ी करके पंजाब चुनाव में उनके मत चुराकर अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को हस्तांतरित किए गए हैं।
ईवीएम में गड़बड़ी को साबित करने के लिए केजरीवाल तर्क देते हैं कि हर सर्वे में आम आदमी पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन हम दूसरे स्थान पर चले गए। सबलोग मानकर चल रहे थे कि पंजाब में अकाली गठबंधन को हराने के लिए लोगों ने जमकर मतदान किया था, लेकिन इसके बावजूद गठबंधन को 30 प्रतिशत मत कैसे प्राप्त हो गया? पंजाब के लोग तक मानकर चल रहे थे कि यहां आआप जीत रही है, लेकिन हमें केवल 25 प्रतिशत मत ही प्राप्त हुआ, आखिर ऐसा कैसे हो गया? अरविंद केजरीवाल शायद यह भूल रहे हैं कि चुनावी सर्वे सौ फीसदी सही नहीं होते हैं। उनकी पार्टी के प्रवक्ता भी चुनावी सर्वे पर सवाल उठाते रहे हैं। पिछले वर्ष बिहार चुनाव में सर्वे भाजपा को जीतता दिखा रहे थे, लेकिन नतीजा क्या आया? 2009 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी ओपिनियन और एग्जिट पोल दावा कर रहे थे कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार फिर से सत्ता प्राप्त करेगी, लेकिन नतीजा सभी सर्वेक्षणों के उलट आया। इस बार के ही ज्यादातर सर्वे मणिपुर और गोवा में भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत दे रहे थे, लेकिन नतीजा क्या है?
अपनी हार को स्वीकार करने की जगह ईवीएम, भाजपा और चुनाव आयोग पर सवाल उठाना उचित नहीं है। इस वक्त ईवीएम पर सवाल उठाने वाले नेताओं और अन्य लोगों को याद करना होगा कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा गठबंधन को हार मिली, तब भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा नेता और सैफोलॉजिस्ट जीवीएल नरसिम्हा ने तो ईवीएम की त्रुटियों पर पूरी किताब ही लिख दी थी। मजेदार बात है कि तब भाजपा नेता आडवाणी और नरसिम्हा की आशंका एवं आरोपों पर चुटकी लेने वाले लोग आज स्वयं ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं। सुखद बात यह है कि अपने से इतर विचार-चिंतन रखने वाले व्यक्तियों को प्रबुद्ध या लेखक नहीं मानने वाले कम्युनिस्ट भी भाजपा नेता एवं लेखक जीवीएल नरसिम्हा की पुस्तक को ईवीएम प्रकरण में संदर्भ ग्रंथ की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उसको प्रचारित और प्रसारित भी कर रहे हैं।
बहरहाल, चुनाव आयोग ईवीएम में गड़बड़ी के सभी आरोपों को खारिज करता रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि जिन देशों में ईवीएम विफल साबित हुए हैं, उनसे भारतीय ईवीएम की तुलना 'गलत और भ्रामक' है। दरअसल, दूसरे देशों में पर्सनल कम्प्यूटर वाले ईवीएम का इस्तेमाल होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती हैं, इसलिए उन्हें हैक किया जा सकता है। जबकि भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले ईवीएम एक पूरी तरह स्वतंत्र मशीन होते हैं और वह किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़े होते और न ही उसमें अलग से कोई इनपुट डाला जा सकता है। भारतीय ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर चिप को केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। ईवीएम में छेड़छाड़ का दावा करने वाले लोगों को भी आयोग चुनौती दे चुका है कि ईवीएम में गड़बड़ी करके अपने आरोप सिद्ध करके दिखाओ। अभी तक कोई ईवीएम में छेड़छाड़ को सिद्ध नहीं कर सका है। अर्थात् ईवीएम में गड़बड़ी के दावे अभी तक कोरे आरोप ही हैं और कुछ नहीं। आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस के नेताओं को अपनी हार स्वीकार कर, जनादेश का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि, अपनी हार का दोष ईवीएम को देने से कोई लाभ नहीं होने वाला।
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