लो कतंत्र में सवाल पूछने की पूरी आजादी है। यह अच्छा भी है। जिसे हमने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वाहन करने के लिए चुना है, उससे फीडबैक लेने के लिए सवाल पूछना जरूरी है। ताकि देश जान सके कि सरकार की गति ठीक है या नहीं। यह परंपरा विकसित होनी चाहिए लेकिन उत्तरदायित्व के साथ। हम जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछ रहे हैं तो कुछ सवालों के जवाब देने के लिए हमें भी तैयार रहना चाहिए। यह ठीक नहीं कि जब हमसे सवाल पूछे जाएं तो हम बिदक जाएं और सवाल पूछने वाले पर ही दोषारोपण करने लगें। आम आदमी पार्टी (आआपा) के महत्वपूर्ण चेहरे अरविन्द केजरीवाल के साथ यही दिक्कत है। देशभर में घूम-घूमकर अन्य पार्टियों के नेताओं से सवाल पूछ रहे दिल्ली के 49 दिन के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तब उखड़ जाते हैं जब कोई उनकी तरफ सवाल उछाल देता है। उन्हें सवाल पूछने की तो आदत है लेकिन जवाब देना उन्हें शायद शोभनीय नहीं लगता। या फिर उनके पास सवालों के उचित जवाब नहीं होते। ऐसे में अन्य नेताओं की तरह अरविन्द भी चुप्पी साध जाते हैं या फिर घुमा-फिराकर सफाई देने की कोशिश करते हैं। मीडिया जब तक उन्हें स्थापित करता रहा, उन्हें स्पेस देता रहा, उनकी सुनता रहा तब तक सबकुछ ठीक था। लेकिन, दिल्ली की जिम्मेदारी से भाग खड़े अरविन्द केजरीवाल, अपने कई बयानों से पलट चुके अरविन्द केजरीवाल और दोहरे आचरण वाले अरविन्द केजरीवाल से जब मीडिया ने सवाल पूछने शुरू किए तो उन्होंने मीडिया को बिकाऊ बता दिया। कह दिया मीडिया मैनेज हो रही है। मीडिया को मैनेज करने के मामले पर तो अरविन्द केजरीवाल का चेहरा सबके सामने आ गया है। उनकी पोल खुल गई है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में अरविन्द केजरीवाल और पुण्यप्रसून वाजपेयी क्या कर रहे हैं? उनकी बातचीत से साफ जाहिर हो रहा है कि मीडिया को मैनेज किया जा रहा है। पत्रकारिता धर्म का उल्लंघन किया जा रहा है। सवाल पूछने की परंपरा का शुभारम्भ करने के लिए अरविन्द केजरीवाल प्रशन्सा के पात्र हैं। लेकिन केजरीवाल को समझना होगा कि उन्हें सिर्फ सवाल पूछने का ही अधिकार नहीं है, जवाब देने की जिम्मेदारी से वे भी नहीं बच सकते। राजनीतिक बदलाव की बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अब तक के सफर का आकलन करने पर कई सवाल बनते हैं। कुछ सवाल अरविन्द केजरीवाल से हैं, जिनके जवाब उन्हें देना चाहिए, क्योंकि जनता जानना चाहती है।
आआपा के मुखिया अरविन्द केजरीवाल से सबसे पहला सवाल तो यही बनता है कि आपने अन्ना का साथ क्यों छोड़ा? जबकि आप कहते थे कि जो अन्ना कहेंगे वही होगा? फिर क्या कारण रहे कि अन्ना को छोड़कर राजनीतिक पार्टी बनाने की ठान ली? इस सवाल का गोलमोल जवाब अरविन्द कई बार देते हैं कि उन्हें राजनीति में आने के लिए बाध्य किया गया। लेकिन यह सम्पूर्ण जवाब नहीं है। जनता तो अब मानने लगी है कि आपने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया। भ्रष्टाचार के प्रति जनता के गुस्से को आपने कैश कराया। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खड़ाकर राजनीति में पहुंचने के लिए रास्ता बनाया। अन्ना हजारे कहते हैं कि अरविन्द अब बदल गया है। वह सत्ता लोलुप हो गया है। क्या आप सत्ता लोलुप हैं? यदि नहीं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए आप अपने बच्चों की सौंगध को कैसे भूल गए? ऐसा तो कोई कुटिल राजनीतिज्ञ ही कर सकता है। आपने तो जिस पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला था, उसी पार्टी से समर्थन लेकर सरकार बना ली। आप मुख्यमंत्री बन गए। आखिर क्या कारण रहे इसके पीछे?
अरविन्द केजरीवाल से एक अहम सवाल। यह सवाल आजकल हरकोई उनसे पूछ रहा है लेकिन वे ईमानदारी भरा जवाब नहीं दे रहे। आपकी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है या फिर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ? केन्द्र की यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई आखिर नरेन्द्र मोदी के विरोध तक कैसे पहुंच गई? जबकि नरेन्द्र मोदी तो स्वयं ही भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हैं। फिर आप नरेन्द्र मोदी के विरोध में हंगामा करके क्या जताना चाहते हैं? कहीं आप कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब तो नहीं देख रहे? जिस तरह दिल्ली विधानसभा से पूर्व कांग्रेस को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी पार्टी बताकर आपने जीत हासिल की और चुनाव के बाद उसी पार्टी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली की कुर्सी पर बैठ गए। मुख्यमंत्री बनने के लिए आपने अपने सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी। तमाम घोटालों के लिए दोषी पार्टी का समर्थन ले लिया। इसके बाद 49 दिन तक जिस तरह से आपकी सरकार चली, उससे आपकी नेक-नीयत पर भी कई सवाल खड़े हुए। क्या कारण था कि सरकार में आने के बाद आपने कॉमनवेल्थ गेम में हुए भ्रष्टाचार के मामले में दोषी लोगों के खिलाफ एफआईआर नहीं कराई? जबकि अन्ना आंदोलन के दौरान आप माइक पर चीख-चीखकर कहते थे कि हमारे पास सुबूत हैं। हम एफआईआर कराएंगे इस मामले में। आपके मुताबिक शीला दीक्षित भ्रष्टाचार की पर्याय थीं तो क्या कारण रहे कि सरकार में आने के बाद भी आपने शीला दीक्षित को जेल नहीं भिजवाया? आपने सरकार में आने के बाद शीला दीक्षित के एक भी घोटाले की जांच के आदेश जारी क्यों नहीं किए? संभवत: मुख्यमंत्री बनने के लिए आपने कांग्रेस से समर्थन ही इन्हीं शर्तों पर लिया होगा कि आप कांग्रेस के भ्रष्टाचार को भूल जाएंगे।
अरविन्द केजरीवाल की नाटकीय और विरोधाभास से भरी राजनीति में बेचारी दिल्ली की जनता खुद को ठगा-सा महसूस कर रही है। उसकी उम्मीदों को जोर का झटका जोर से लगा है। दु:खों का पहाड़ छोटा होगा, इस आस में जिस पर भरोसा दिखाया वह तो जिम्मेदारी से भाग खड़ा हुआ। दरअसल केजरीवाल को भ्रम हो गया है कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उन्हें जिस तरह आशा के विपरीत सफलता मिली, उसी तरह आम चुनाव में भी वे अच्छी तादाद में सीटें जीत लेंगे। अब उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। यही कारण है कि केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को उसके हाल पर छोड़कर प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर दौड़ लगा दी है। दिल्ली की जनता की ओर से अरविन्द केजरीवाल से कुछ और सवाल हैं। आपने मुख्यमंत्री बनने से पूर्व घोषणा की थी कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो दिल्ली में ठेकाप्रथा को खत्म करेंगे। विभिन्न विभागों में ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों को स्थायी नौकरी देंगे? मुख्यमंत्री बनने के बाद कितने कर्मचारियों को स्थायी नौकरी दी? आपने दिल्लीवासियों से वादा किया था कि सरकार में आए तो बिजली के बिल माफ किए जाएंगे? क्या हुआ आपके इस वादे का? आपने वादा किया था दिल्लीवासियों से कि सबको पानी दिया जाएगा मुफ्त में। क्या हुआ आपके इस वादे का? दिल्ली के कई इलाके क्यों प्यासे रह गए?
अरविन्द केजरीवाल क्या आपका आचरण दोहरा है? आपकी ईमानदारी और नैतिकता के मापदण्ड अपने लोगों के लिए अलग हैं और दूसरी पार्टियों के नेताओं के लिए अलग। महिलाओं को प्रताडि़त करने का गंभीर आरोप आआपा के नेता सोमनाथ भारती पर लगा। वेबसाइट के माध्यम से अवैध तरीके से लोगों को ठगने का आरोप भी सोमनाथ भारती पर लगा। इसके बावजूद आपने क्यों नहीं सोमनाथ भारती को पार्टी से बाहर किया? क्यों नहीं आपने आरोपों की जांच कराई? क्यों नहीं आपने सोमनाथ भारती के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई? आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं के संबंध में भी आपका यही स्टैण्ड रहा। आपके ये दोहरे मापदण्ड आखिर क्या जाहिर करते हैं? क्या ऐसे राजनीतिक बदलाव आएगा?
अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक बदलाव की बात करते हैं। उनकी वेबसाइट पर दावा किया गया है कि वे औरों से अलग हैं। उनकी राजनीति साफ-सुथरी है। उनकी पार्टी का एजेण्डा है भ्रष्टाचार को खत्म करना। देश के सामने सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। लेकिन, हकीकत यह है कि आआपा कहीं से भी औरों से अलग नहीं है। अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति में कूद पड़ी है। मुस्लिम वोटों को अपनी झोली में करने के लिए आपकी पार्टी के एक जिम्मेदार नेता कश्मीर पर बेहद ओछा और आपत्तिजनक बयान देते हैं। लेकिन, आपने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह उनकी निजी राय है। यह तो बाकि की पार्टियां भी करती हैं। फिर आप सबसे अलग होने का दावा किस आधार पर करते हैं? किसी दूसरे की बात तो छोडि़ए जनाब आप तो खुद की ही बताइए। 'सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा है।' आपने मुस्लिमों के बीच इंडियन इस्लामिक कल्चर सेंटर में यह बयान देकर क्या मुस्लिमों का नया रहनुमा बनने की कोशिश की है? आपकी बदली हुई चाल देखकर शंका होती है कि आप कैसे देश को वैकल्पिक राजनीति देंगे? आपके बदलते रंग देखकर तो यही लग रहा है कि आप भी तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा देंगे।
आखिर में बिना किसी भूमिका के कुछ सवाल अरविन्द केजरीवाल से हैं। आपकी ही पार्टी की एक महिला नेता ने आप पर आरोप लगाया कि बहुत से काम जनता की राय से करने वाले अरविन्द टिकट बांटने में क्यों जनता की राय नहीं मांगते? आपकी वेबसाइट पर लिखा है कि आआपा में कोई हाईकमान नहीं है। लेकिन, दुनिया को तो पता है कि आपकी मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं होता? आम आदमी पार्टी की वेबसाइट पर 'हम औरों से अलग क्यों' सेक्शन में झूठों की भरमार है। जैसे आपके विधायक और मंत्री लालबत्ती नहीं लेंगे। सरकारी बंगले में नहीं रहेंगे। लेकिन आपके नेताओं ने सरकारी बंगले लिए। बत्ती लगाकर भी घूमे। आखिर क्यों? आपने भी तो अब तक सरकारी बंगला खाली नहीं किया। जबकि अब आप मुख्यमंत्री नहीं हैं।
आम आदमी होने का दंभ भरने और आम आदमी के जैसा दिखने के लिए आपने खूब ड्रामे किए हैं। संभवत: आप इसमें सिद्धहस्त हैं। माहिर हैं। धरना और प्रदर्शन में आपकी विशेषज्ञता है। खैर, सीधा सवाल है कि आप तो आम आदमी है। यदि गुजरात के पुलिसकर्मी ने कुछ पूछताछ के लिए आपको रोक लिया तो इतना हंगामा क्यों खड़ा कर दिया आपने और आपकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने? खुद को आम आदमी साबित करने के लिए गणतंत्र दिवस के मौके पर आपने कहा था कि आप जनता के बीच बैठकर परेड देखेंगे लेकिन टीवी पर आप यूपीए के मंत्रियों के साथ बैठे दिखाई दिए। यूपीए के मंत्रियों के साथ आपके क्या कनेक्शन हैं? जनता को मालूम है कि आप इन सवालों के जवाब नहीं देंगे। आप ही की पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते विनोद कुमार बिन्नी ने भी आपसे बहुत से सवाल पूछे थे लेकिन आपने उनके एक भी सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया है। मीडिया के सवालों के भी जवाब नहीं दिए हैं। फिर आम जनता की आप क्यों सुनेंगे। लेकिन, ये पब्लिक है बॉस सब जानती है।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (21.03.2014) को "उपवन लगे रिझाने" (चर्चा अंक-1558)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
शुक्रिया राजेंद्र जी
हटाएंबहुत सुंदर लेख लेकिन केजरीवाल से क्या प्रश्न जिसे देश और दिसा का ज्ञान नहीं उससे क्यों प्रश्न ? हो सकता है की आपको मेरा सुझाव अच्छा न लगे लेकिन केजरीवाल इस लायक नहीं.।
जवाब देंहटाएंआपको सुझाव देने और अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है सूबेदार जी.....
हटाएंसोमनाथ भारती और युगांदा की महिलाओं वाले मामले के बाद अरविन्द बार बार टीवी पर इस बात को दोहरा रहे थे कि एक मंत्री का कहना एक थानेदार (या ए सीपी) नहीं मान रहा। ’एक मंत्री’ के क्या मायने? पुलिस एक आम नागरिक की सही बात न माने, वो स्वीकार्य लेकिन चूंकि हमारा कोई मंत्री कह रहा है तो मान लेना चाहिये? इनकी बातों में बहुत झोल हैं। इनके इस्तीफ़ा देकर भागने तक हम भी चुप थे कि शायद ये सही ही हों लेकिन अपना अंदाजा कि ये गर्मियों से पहले दिल्ली छोड़कर भागेंगे, सही निकला। सुधार करने के लिये नहीं आये, कुछ और ही उद्देश्य हैं सरजी के।
जवाब देंहटाएंकांग्रेस गंदगी की ढाल-केजरीवाल केजरीवाल।
जवाब देंहटाएंगंदगी की बड़ी मिसाल-केजरीवाल केजरीवाल।
ओढ़ली टोपी बदला वेश,
झूठ बोल कर बांटे देश।