सोमवार, 13 जनवरी 2014

युवा नायक स्वामी

 म हज ३९ साल की आयु में दुनिया का दिल जीतकर चले जाना आसान नहीं होता। निश्चिततौर पर ऐसा कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। असाधारण होना नायक होने का पहला और नैसर्गिक गुण है। नायक प्रभावशाली होता है, वह लोगों की भीड़ को अपनी बातों से सम्मोहित कर सकता है। नायक अपने तेज से लोगों को अपनी ओर खींच सकता है। वह नई राह बनाता है लोगों के चलने के लिए। उसके पास समस्याएं नहीं बल्कि उनके हल होते हैं। नायक विचारवान, तर्कशील और तत्काल निर्णय लेने में सक्षम होता है। वह साहस, उत्साह और ऊर्जा से लबरेज रहता है। नायक कुशलता से लोगों का नेतृत्व करता है। इसके साथ ही तमाम दूसरे गुण कथनी-करनी में ईमानदार, आकर्षक व्यक्तित्व, न्याय प्रियता, निरपेक्षता, निर्लिप्तता, त्याग, संयम, शुचिता, वीरता, ओज, क्षमाभाव, प्रेम, समन्वयीकरण, प्रबंधन, परोपकार, परहित चिंता, दृढ़ता और इच्छाशक्ति भी नायक को औरों से अलग करते हैं। 
       स्वामी विवेकानंद ने 39 वर्ष की अल्पायु में नायक के इन सब गुणों का प्रगटीकरण किया। अब विचार करने की बात है कि स्वामी विवेकानंद नायक किसके? स्वामी विवेकानंद यूं तो सबके नायक साबित होते हैं। उनको लेकर कहीं कोई भेद नहीं है। न जाति के आधार पर उन्हें किसी ने बांटा है, न विचारधारा के नाम पर। लिंग और आयुवर्ग के आधार पर भी वे किसी एक के नायक नहीं है। वे तो सबकी बात करते हैं। फिर भी स्वामी विवेकानंद युवाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। दरअसल, स्वामी विवेकानंद के चिंतन में सदैव युवा केन्द्रीय बिन्दु रहा। स्वामी जी कहते थे कि मेरी आशा युवाओं में, इनमें से ही मेरे कार्यकर्ता आएंगे। स्वामी भली-भांति जानते थे कि भारत और हिन्दू धर्म के उत्थान में ओजस्वी और बलशाली युवाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। युवा यदि देश और धर्म से विमुख होगा तो स्थितियां बदतर हो जाएंगी। इसलिए स्वामी जी अकसर युवाओं का आव्हान करते थी कि उठो और अपनी जिम्मेदारी संभालो। जागो युवा साथियो, अपनी कमर कसकर खड़े हो जाओ। भारत मां की सेवा के लिए सामथ्र्य जुटाओ।  
       स्वामी विवेकानंद बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी बातों में जादू था। तभी तो 11 सितंबर 1893 को शिकागो में उनका जादू सिर चढ़कर बोला था। महज कुछ पलों में अपनी बात रखने का मौका स्वामी विवेकानंद को मिला था। इन चंद पलों में ही भारत के विवेक ने अमेरिका और दुनियाभर से जमा लोगों की बीच आनंद की लहर पैदा कर दी। इसके बाद तो धर्मसभा के आयोजकों ने उनका बड़े रोचक तरीके से इस्तेमाल किया। जब किसी के भाषण से श्रोताओं का मन ऊबने लगता और वे जाने को होते तब बीच में मंच पर आकर आयोजक उद्घोषणा करते कि एक भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद बोलेंगे, इतना सुनते ही भीड़ वहीं ठिठक जाती। यह जादू आज भी बरकरार है। रामकृष्ण मिशन और विवेकानंद केन्द्र सहित स्वामी जी के विचारों को लेकर काम कर रहे अलग-अलग संगठनों के मुताबिक आज भी स्वामीजी को पढऩे और समझने के लिए युवा लालायित रहते हैं। इन संगठनों से युवा बड़ी संख्या में जुड़कर काम भी कर रहे हैं। दरअसल, युवा स्वामी विवेकानंद को औरों की अपेक्षा अपने अधिक निकट पाते हैं। युवाओं के मन में स्वामीजी की युवा संन्यासी, देशभक्त युवक और क्रांतिकारी प्रणेता की छवि बसी हुई है। स्वामी विवेकानंद भी अकसर अपने भाषणों में आव्हान करते थे कि संसार को बस कुछ सौ साहसी युवतियों-युवकों की जरूरत है। स्वामी जी युवाओं में साहस भी असीम चाहते थे। समुद्र को पी जाने का साहस, समुद्र तल से मोती लेकर आने का साहस, मृत्यु का सामना कर सकने का साहस और पहाड़-सी चुनौतियों को स्वीकार कर सकने का साहस स्वामी जी युवाओं में चाहते थे। स्वामीजी हिन्दू संन्यासी होकर युवाओं से मंदिर में बैठकर माला जपने और देवता के आगे अगरबत्ती लगाने की बात नहीं कहते थे। वे हमेशा युवाओं के मन की बात करते थे, सिर्फ मन की नहीं असल में युवाओं के उत्थान की, राष्ट्र के विकास की और समाज के सुदृढि़करण की बात। उनका तो मानना था कि सबसे पहले हमारे तरुणों को मजबूत बनना चाहिए। धर्म इसके बाद की वस्तु है। युवा शक्तिशाली होगा, नशे-व्यसन से दूर होगा और कर्मशील होगा तो बाकी सब समस्याओं को दूर भगाना आसान होगा। स्वामी जी युवाओं को संबोधित करते हैं - 'मेरे मित्रो, शक्तिशाली बनो, मेरी तुम्हें यही सलाह है। तुम गीता के अध्याय की अपेक्षा फुटबाल के द्वारा ही स्वर्ग के अधिक समीप पहुंच सकोगे। ये कड़े शब्द हैं लेकिन मैं उन्हें कहना चाहता हूं क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूं। तुम्हारे स्नायु और मांसपेशियां अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे। इसलिए जाओ मैदान में फुटबाल खेलो।' 
      अपनी ओजस्वी वाणी और तर्क के आधार पर विश्व में भारत की आध्यात्मिक परंपरा का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद तरुणों में ही लोकप्रिय नहीं है, वे युवतियों के भी हीरो हैं। इस युवा संन्यासी ने भारत की स्त्री शक्ति की भी चिंता की। उनकी महत्ता प्रतिपादित की। स्त्रियों को उनका अस्तित्व याद दिलाया। फलत: अमेरिका सहित यूरोप की कई स्त्रियां उनकी अनुयायी बन गईं। स्वामीजी के मार्ग पर चल निकलीं। स्त्रियों के साथ उस समय हो रहे दोयम दर्जे के व्यवहार पर विवेकानंद ने रोष प्रकट किया और पुरुष सत्ता को संभलने की चेतावनी दी। स्वामीजी कहते थे कि स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुए बिना संसार के कल्याण की कोई संभावना नहीं है। एक पक्षी का केवल एक पंख के सहारे उड़ पाना संभव नहीं है। यहां स्पष्ट कर देना होगा कि स्वामीजी भारत में स्त्रियों की स्थिति को लेकर ही चिंतित नहीं थे वरन् उनकी चिंता दुनियाभर में स्त्रियों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर थी। स्वामीजी सीधे स्त्रियों से भी अपेक्षा करते थे कि वे अपने काम स्वयं करें, पुरुषों के भरोसे रहे ही नहीं। उनका स्पष्ट मत था कि स्त्रियों में अवश्य ही यह क्षमता होनी चाहिए कि वे अपनी समस्याएं अपने ढंग से हल कर सकें। उनका यह कार्य न कोई दूसरा कर सकता है और न ही दूसरे को करना चाहिए। स्त्रियों को शिक्षित करने की दिशा में भी स्वामी जी की चिंता स्पष्ट दिखती है। वे जानते थे कि स्त्री शिक्षा के मायने क्या हैं। परिवार और समाज निर्माण की बुनियाद स्त्रियों के हाथ में पुरुषों की अपेक्षा कुछ अधिक रहती है। स्पष्ट है ऐसे में घर में मां और बहन का पढ़ा-लिखा होना कितना जरूरी है। स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रिय शिष्या भगिनी निवेदिता (मार्गरेट नोबल) को भारत में नए सिरे से नारी शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से ही भगिनी निवेदिता ने सारदा बालिका विद्यालय की स्थापना की। साथ ही देशभर में नारी शिक्षा को मजबूत करने के लिए आंदोलन भी चलाया। 
       साहस, उत्साह और ऊर्जा के पुंज स्वामी विवेकानंद के क्रांतिकारी विचार उनके समय से अब तक युवाओं को आत्मविश्वास से भर देते हैं। विवेकानंद का नाम मस्तिष्क में आते ही हृदय स्फूर्ति और उत्साह से भर जाता है। स्वामीजी के ओजस्वी विचार आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं। 'उठो जागो और तब तक न रुको जब तक मंजिल न प्राप्त हो जाए' स्वामी विवेकानंद का यह वाक्य आज भी दुनियाभर के युवाओं का मार्गदर्शन करने का काम करता है। विद्यार्थी जीवन में तो अधिकतर युवा इस वाक्य को सदैव अपने अध्ययन की मेज के सामने लिखकर ही रखते हैं। युवाओं को स्वामी विवेकानंद अपने नायक तो दिखते ही हैं, मित्र की तरह भी महसूस होते हैं। युवाओं में स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता का कारण है कि उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि वर्तमान युवा पीढ़ी उन्हें आदर्श जरूर मानती है लेकिन उनके विचारों और सिद्धांतों का पालन करने में बहुत पीछे है। जरूरत इस बात की है युवा आगे आएं और अपने नायक को अपने जीवन में उतारें। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत को फिर से विश्वगुरु कोई बना सकता है तो वह है भारत की युवाशक्ति। स्वामी विवेकानंद के स्वप्न को साकार करने की महती जिम्मेदारी भारत की युवा पीढ़ी पर है, वे ऐसा कर सकते हैं, बस उन्हें जरूरत है अपने हीरो विवेकानंद के बताए मार्ग पर आगे बढऩे की। भारत की युवा शक्ति को जागृत करने और नई सोच देने के लिए विवेकानंद बहुत कुछ कह गए हैं। आज के युवा उसे पढ़ें, समझें और तब तक नहीं रुकें, जब तक स्वामी जी के स्वप्न साकार नहीं हो जाएं। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. हम पने हीरों विवेकानंद के जी के बताए मार्ग पर ही आगे बढ़ेंगे.........सादर नमन विवेकानंद को और आपकी लेखनी को..।

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  2. aapne bahut sargabhit lekh swami ji ke bare me likha hai yadi bharat varsh ko janana hai to swami ji ko padhiye athwa janiye .
    bahut-bahut dhanyabad

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  3. युगपुरुष, जिसने देश को गर्व दिया।

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  4. खांटी नायक, प्रेरणापुंज, ओजस्वी।

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  5. यह लेख प्रेरणादायक हैं। बहुत अच्छा लेख है।

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