बुधवार, 10 जुलाई 2013

भाजपा के सेक्स लीडर

मध्यप्रदेश की राजनीति में कई बड़े सेक्स स्कैंडल हुए हैं, जिनके कारण ताकतवर नेताओं की राजनीति खत्म हो गई या उन्हें हाशिए पर जाना पड़ा और पार्टी की साख भी खराब हुई। संस्कारी नेताओं की फौज होने का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों में सेक्स लीडर हैं। प्रदेश में पहला सेक्स स्कैंडल संभवत: १९६९ में चर्चा में आया था, तब कांग्रेसनीत प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री गंगाराम तिवारी एक नर्स के साथ पाए गए थे। तब से अब तक कई नेताओं के उजले पाजामे के नाड़े खुल चुके हैं। फिलहाल तो मध्यप्रदेश की राजनीति में राघवजी सीडी काण्ड से बवंडर आया हुआ है। नौकर के साथ व्यभिचार में लिप्त राघवजी की सीडी फुल स्पीड से प्रदेश में चल रही है। मोबाइल-दर-मोबाइल राघवजी की नंगई ब्लूटूथ और व्हाट्अप से शेयर कर देखी जा रही है। नौकर ने पुलिस से शिकायत में राघवजी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उसने कहा है कि राघवजी के एक अन्य कर्मचारी की पत्नी से भी १५ साल से शारीरिक संबंध हैं। राघवजी उस पर दबाव डालते थे कि उनकी खातिर वह गर्लफ्रेंड बनाए और शादी भी कर ले। आरोप और भी हैं। 
भाजपा के वयोवृद्ध नेता और प्रदेश सरकार में वित्तमंत्री राघवजी की घिनौनी हरकत पर भारतीय जनता पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे के सिद्धांत पर अंगुली उठाई जा रही है। ७९ वर्षीय राजनेता ने अपनी जमा पूंजी एक झटके में राजनीतिक ढलान पर चुका दी है। अपना मुंह तो काला किया ही पार्टी को भी परेशानी में डाल दिया। हालांकि राघवजी को पहले मंत्री पद से बर्खास्त करके और फिर दूसरे दिन पार्टी से निष्कासित कर भाजपा ने अपना चेहरा बचाने की कोशिश की है। इस त्वरित एक्शन से उसको अपना बचाव करने में मदद मिल रही है और आगे भी मिल सकती है। भाजपा कह सकती है पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा वही है जो पहले था। गलत कार्यों में लिप्त नेताओं के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है। यही कारण है कि ५८ साल पार्टी की सेवा करने वाले राघवजी को घिनौने कृत्य पर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या पार्टी को यह कदम पहले नहीं उठा लेना चाहिए था? क्या पार्टी को अब तक राघवजी की रंगीन रातों और काले दिनों की खबर नहीं थी? दूसरे नेताओं के खाते में भी तो इस तरह के गंभीर आरोप हैं, उन्हें क्यों नहीं पार्टी से बाहर किया गया? क्या सिर्फ इसलिए कि उनकी सीडी बाहर नहीं आई है? क्या सीडी बाहर आना ही कार्रवाई के लिए जरूरी है? नेता में उच्च चारित्रिक गुणों की अपेक्षा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी में आखिर सेक्स लीडर घुस कैसे जाते हैं? और जानकर भी क्यों पार्टी के आला नेता कार्रवाई से बचते हैं?
राघवजी के काले चेहरे को भाजपा के ही कार्यकर्ता शिवशंकर पटैरिया ने सीडी में कैद किया है। पटैरिया के मुताबिक उन्होंने राघवजी की २३ सीडी बनाई हैं। प्रदेश के अन्य नेताओं की सीडी होने का भी दावा पटैरिया ने किया है। उनका दावा है कि वे लम्बे समय से पार्टी में गंदे नेताओं की शिकायत करते रहे हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होते देख उन्होंने सीडी बनाने का फैसला किया। पटैरिया के इस दावे में सच्चाई है। प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री अरविन्द मेनन, मंत्री बाबूलाल गौर, कुंवर विजय शाह, नरोत्तम मिश्रा, अजय विश्नोई, विधायक ध्रुवनारायण सिंह जैसे कई नाम शामिल हैं, जिनके खिलाफ भाजपा में ऊपर तक चारित्रिक दोष की शिकायतें पहुंची हैं। मीडिया में आए दिन ऐसे मामलों को लेकर भाजपा के कई सेक्स लीडर सुर्खियों में रहे हैं। अरविन्द मेनन के खिलाफ जबलपुर की सुशीला मिश्रा ने शोषण के आरोप लगाए हैं। इस मामले में मानवाधिकार आयोग में भी शपथ-पत्र दायर किया गया है। लेकिन, भाजपा आरोप साबित नहीं होने के बहाने अपने संगठन मंत्री को बचाने में लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का नाम भी भाजपा की ही कार्यकर्ता शगुफ्ता कबीर के साथ जोड़ा गया। शगुफ्ता कबीर के पति ने प्रेस कांफ्रेंस कर आरोप लगाया था कि गौर उनकी गृहस्थी उजाड़ रहे हैं। इसके बाद पार्टी के अंदरखाने में काफी बवाल मचा और बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। इतना सब होने के बाद भी उन्हें पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया। विधानसभा में भी कांग्रेसी नेता महिलाओं के साथ गौर के आपत्तिजनक फोटो लहरा चुके हैं। आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद मर्डर के बाद तो भाजपा के विधायक ध्रुवनारायण सिंह से लेकर सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय का नाम सेक्स संबंधों में सामने आया। तरुण विजय के शहला मसूद से करीबी संबंध उजागर हुए तो शहला-ध्रुवनारायण-जाहिदा ट्रायएंगल लव के किस्से तो प्रदेशभर में नमक-मिर्च लगाकर सुने-सुनाए जाने लगे। लेकिन, राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। जबकि गंभीर सबूत होने के बावजूद ध्रुवनारायण सिंह को पार्टी से निष्कासित न करके, दिखावे के लिए उनका प्रदेश उपाध्यक्ष का पद छीन लिया गया। कामक्रीड़ा में डूबे मंदसौर के जिलाध्यक्ष कारूलाल सोनी को जरूर बाजार में सीडी आने के कारण पार्टी से चलता कर दिया गया। ऐसे में कारूलाल सोनी और राघवजी का मामला यह स्पष्ट करता है कि जब तक सीडी बाजार में नहीं आ जाती, तब तक पार्टी खूब अय्याशी की छूट देती है। यही कारण है कि करीब एक साल पहले ही इन्हीं राघवजी की महिला के साथ सीडी बनने की चर्चा जोरों पर थी लेकिन बाजार में नहीं आने के कारण भाजपा ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि मामले को दबा दिया। यदि तब ही राघवजी पर कार्रवाई हो जाती तो आज भाजपा को राघवजी के कारण लज्जित नहीं होना पड़ता। 
असल में पार्टी संगठन को सब जानकारी रहती है कि कौन सेक्स लीडर है। लेकिन, कार्रवाई करने वाले नेताओं के पाजामे के नाड़े भी उतने ही ढीले हैं। उनका नाड़ा भी किसी ने थाम रखा है, ऐसे में खुद के नंगे होने का भी डर रहता है। यही कारण है कि आला नेता भी सब हकीकत जानकर भी चुप रहते हैं। लेकिन भाजपा को खुद को कांग्रेस या कांग्रेस से भी गया बीता होने से बचाना है तो कठोर नियम बनाने होंगे। औरों से अलग दिखने की धारणा को साबित करने के लिए गंदगी तो रोकनी ही होगी। नेता-कार्यकर्ता के खिलाफ शुरुआती शिकायतों की पार्टी स्तर पर ही जांच करा लेनी चाहिए। शिकायतें सही पाए जाने पर तालाब गंदा हो, कमल मुरझाए उससे पहले ही सड़ी मछली को बाहर फेंक देना चाहिए। इसका असर यह होगा कि बीमार मानसिकता और नैतिक रूप से पतित नेता भाजपा में आने की सोच ही नहीं सकेंगे क्योंकि उन्हें ध्यान रहेगा कि भाजपा औरों से अलग है। यहां गंदे काम पर राजनीतिक करियर किसी भी मोड़ पर चौपट होने में देर नहीं लगेगी। राघवजी प्रकरण से भाजपा को सबक लेना चाहिए कि नेता का जनाधार, लोकप्रियता, सीट जिताऊ क्षमता और धन की नदी बहाने की काबिलियत के आधार पर कार्रवाई में पक्षपात न हो, देर न हो, इसकी भी पार्टी स्तर पर चर्चा की जाने की जरूरत है। नेता कोई भी हो कठोर नियम पूरी कठोरता से लागू किया जाए। 
गंदगी कहां से आ रही है : समस्या सिर्फ राजनीति की ही नहीं है। आम समाज भी सेक्स और पैसे के पीछे अंधे घोड़े की तरह भाग रहा है। उसी समाज के बीच से नेता चुनकर राजनीति में आ रहे हैं। हालांकि राजनीति में प्रवेश के समय सभी नेता सात्विक, चारित्रिक और सेवाभावी छवि का मुखौटा लगाए रहते हैं लेकिन सत्ता पाते ही औकात पर आ जाते हैं। चूंकि राजनेता मीडिया की निगाहों में रहते हैं इसलिए उनके सेक्स शौक के चर्चे आम आदमी की तुलना में बेहद चर्चित हो जाते हैं। यूं भी राजनेताओं से आम नागरिक की तरह व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। असल में समाज के नेता की भूमिका में बने रहने के लिए तपस्वी जीवन जरूरी है। लोकतांत्रिक राजनीति के विकास और विस्तार के लिए भी चरित्रवान लोगों का होना बुनियादी शर्त है। चूंकि भाजपा से जनमानस की अधिक अपेक्षाएं हैं, समाज भाजपा को भारतीय मूल्यों के प्रतिनिधि के रूप में देखता है, भाजपा की छवि राष्ट्रवादी पार्टी की है, ऐसे में भाजपा के बड़े लीडरान को इस मसले पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जब कुंए में ही भांग पड़ी है तो क्या किया जा सकता है। राघव जी जैसे घिनौने लोग हर जगह हैं, जरुरत हैं इनकी पहचान करके निराई गुराई करने की। तभी चाल-चरित्र-चेहरा की उक्ति सार्थक होगी।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11/07/2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  3. बेहद शर्मनाक । मौत के कगार पर बैठे या देश को चलाने का जिम्मा लेकर बैठे इन नेताओं के लिये चुल्लूभर पानी में डूब मरने वाली बात । जनता कहाँ जाए । नेता कुकर्म करते हैं और मीडिया आँगन-आँगन बिखरा देता है कीचड और विष्ठा ( साफ करने व विरोध वाली कोई बात नही )अब तिलमिलाती रहे जनता । बदबू और गन्दगी से । क्या होगया है पौरुष को । न मर्यादा देखे न गरिमा । अभी एक शिक्षक द्वारा दो मासूम(6-7 वर्ष) छात्राओं के साथ बर्बर दुष्कृत्य करने का समाचार देखा । गन्दगी जितनी सामने आएगी, बढती ही जाएगी क्योंकि समाचार तो मिलते हैं पर न्याय नही । इन दुराचारियों को भी यकीन होता है कि वे येन-केन-प्रकारेण छूट ही जाएंगे । सीडी निर्माता व शिकायत कर्ता भी दोषी हैं । एक सिर्फ सबूत इकट्ठे करने के लिये सारा खेल मजे में देखता रहा और दूसरा इतने दिन चुप कैसे रहा और अब क्या होगया कि पूरी बेशर्मी से काण्ड उजागर कर दिया । झूठ हो या कि सच लेकिन है बहुत ही बेशर्मी भरा काण्ड ।

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  4. राजनीति के चरित्र को बदलना बहुत जरूरी है ...
    सुधार तभी आएगा समाज में ...

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  5. बिलकुल दुरुस्त फरमा रहें हैं लोकेन्द्र भाई, पता तो सबको होता है लेकिंन जो सार्वजनिक रूप से नंगा हो गया, उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जब अपना नाड़ा ही ढीला है तो दूसरे का कैसे थामा जाए। व्यक्ति या व्यक्तित्व को देखे बिना यदि चरित्र ख़राब है, तो उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए, तभी पार्टी विथ डिफरेंस का नारा सही बैठेगा। नहीं तो इनमें और उनमें कोई अंतर नहीं रह पाएगा।

    --
    सादर,
    शिवेंद्र मोहन सिंह

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  6. जब कुंए में ही भांग पड़ी है तो क्या किया जा सकता है। राघव जी जैसे घिनौने लोग हर जगह हैं, जरुरत हैं इनकी पहचान करके निराई गुराई करने की। तभी चाल-चरित्र-चेहरा की उक्ति सार्थक होगी।

    @ ललित शर्मा जी की इस टिप्पणी से १००% सहमत|
    Gyan Darpan

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