ब च्चा जब 100 तक गिनती सीख लेता है और बोलने लगता है तो उसकी मां मोहल्ले भर में ठसक से अपने बालक को सबके सामने गिनती सुनवाती है। मेहमानों और मेजबानों के सामने बड़े गर्व से कहती है- 'हमारे छुटकू को तो पूरी गिनती आती है। वह बिना भूले 100 तक गिन लेता है।' 100 का अपना अलग ही मजा है। आपको अपना बचपन याद होगा, एक-एक कर जब आपके पास 100 रुपए जमा हो जाते तो उस दिन कितने सारे प्लान बनाए जाते थे। मन करता था कि एक सौ रुपए में सारी दुनिया खरीद लें। क्रिकेट में ही देखिए, कितना ही अच्छा बल्लेबाज हो लेकिन जब तक वह सौ रन यानी शतक नहीं बना लेता वह दर्शकों को बल्ला उठाकर सलामी नहीं दे पाता। एक चुटकुला है - एक क्रिकेटर का जन्मदिन था। उसकी पत्नी को क्रिकेट के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। वह बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। पति का जन्मदिन था तो उसे पति को कुछ उपहार देना था। वह बाजार जाती है। बड़े से शोरूम पर पहुंचकर वह इधर-उधर देखती है। कर्मचारी पूछता है कि मैडम आपको क्या चाहिए। तब वह महिला कहती है- मेरे पति का जन्मदिन है। उनके पास शतक नहीं है। इसलिए वे अक्सर उदास होते हैं। मुझे आप एक शतक दे दो ताकि मैं उन्हें खुश कर सकूं। विश्व क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी सचिन को ही ले लीजिए 100 शतक बनाने पर उन्हें कितनी खुशी मिली और कितनी तारीफ मिली। भारतीय मनीषियों ने भी मानव जीवन को 100 साल का मानकर चार भागों में बांट दिया था। जो 100 बसंत पूरे करता है उसका समाज में बड़ा सम्मान होता है।
आप सोच रहे होंगे मैं 100 की महत्ता को लेकर क्यों बैठ गया हूं? तो दोस्तो मेरे ब्लॉग की यह 100वीं पोस्ट है। अब मैं भी महान ब्लॉगर हो गया हूं। सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों की सूची में शामिल होने की औकात अपनी भी हो गई है। वैसे अनुराग जी का धन्यवाद है कि उन्होंने मेरे ब्लॉग को पहले ही अच्छे ब्लॉग की सूची में शामिल कर रखा है। हालांकि एक ब्लॉगर एेसी ही कोई सूची बना रहे थे। उन्होंने इसकी घोषणा में लिखा था कि जिसके ब्लॉग पर स्वयं के द्वारा लिखी हुई 100 पोस्ट होंगी, उसे ही सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग की सूची में शामिल किया जाएगा। खैर, अपुन को किसी सूची में शामिल होने तमन्ना नहीं है। उन सज्जन को मेरा इतना ही कहना है कि महज 100 पोस्ट लिखना ही सर्वश्रेष्ठ होने की निशानी नहीं है। हालांकि उनकी सूची में शामिल होने की और भी शर्तें थी। चलो, अपुन तो अपनी बात करते हैं। हां तो मेरे ब्लॉग अपना पंचू की यह 100वीं पोस्ट है। इन 100 पोस्टों में समसामयिक लेख, व्यंग्य, कविता, कहानी, यात्रा वृत्तांत सब शामिल है। जब जी खुश था तब लिखा, जब क्रोध आया तब लिखा और जब रोमांचित था तब भी लिखा। इनमें से अधिकतर लेख व अन्य सामग्री अंतरजाल से लेकर समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। कई लेखों के लिए फोन कॉल आए, ई-मेल आए। कई महानुभावों ने खुले दिल से तारीफ की तो कुछ विरोध में भी रहे। कुछ लोगों ने आर्थिक मदद का प्रस्ताव भी दिया लेकिन पैसे का समाज हित में उपयोग करने के लिए मेरे पास कोई विस्तृत योजना नहीं थी इसलिए सब सुधीजनों को विनम्रता से इनकार कर दिया। समाज से आए पैसे का पूरा उपयोग समाज कल्याण के लिए हो एेसी सोच के साथ कई संस्थाएं समाज में कार्य कर रही हैं, मैंने उन महानुभावों को उनकी मदद का आग्रह जरूर किया।
आप सोच रहे होंगे मैं 100 की महत्ता को लेकर क्यों बैठ गया हूं? तो दोस्तो मेरे ब्लॉग की यह 100वीं पोस्ट है। अब मैं भी महान ब्लॉगर हो गया हूं। सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों की सूची में शामिल होने की औकात अपनी भी हो गई है। वैसे अनुराग जी का धन्यवाद है कि उन्होंने मेरे ब्लॉग को पहले ही अच्छे ब्लॉग की सूची में शामिल कर रखा है। हालांकि एक ब्लॉगर एेसी ही कोई सूची बना रहे थे। उन्होंने इसकी घोषणा में लिखा था कि जिसके ब्लॉग पर स्वयं के द्वारा लिखी हुई 100 पोस्ट होंगी, उसे ही सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग की सूची में शामिल किया जाएगा। खैर, अपुन को किसी सूची में शामिल होने तमन्ना नहीं है। उन सज्जन को मेरा इतना ही कहना है कि महज 100 पोस्ट लिखना ही सर्वश्रेष्ठ होने की निशानी नहीं है। हालांकि उनकी सूची में शामिल होने की और भी शर्तें थी। चलो, अपुन तो अपनी बात करते हैं। हां तो मेरे ब्लॉग अपना पंचू की यह 100वीं पोस्ट है। इन 100 पोस्टों में समसामयिक लेख, व्यंग्य, कविता, कहानी, यात्रा वृत्तांत सब शामिल है। जब जी खुश था तब लिखा, जब क्रोध आया तब लिखा और जब रोमांचित था तब भी लिखा। इनमें से अधिकतर लेख व अन्य सामग्री अंतरजाल से लेकर समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। कई लेखों के लिए फोन कॉल आए, ई-मेल आए। कई महानुभावों ने खुले दिल से तारीफ की तो कुछ विरोध में भी रहे। कुछ लोगों ने आर्थिक मदद का प्रस्ताव भी दिया लेकिन पैसे का समाज हित में उपयोग करने के लिए मेरे पास कोई विस्तृत योजना नहीं थी इसलिए सब सुधीजनों को विनम्रता से इनकार कर दिया। समाज से आए पैसे का पूरा उपयोग समाज कल्याण के लिए हो एेसी सोच के साथ कई संस्थाएं समाज में कार्य कर रही हैं, मैंने उन महानुभावों को उनकी मदद का आग्रह जरूर किया।
टिप्पणी किसी भी पोस्ट की लोकप्रियता की द्योतक नहीं हैं। इस बात को यूं समझा जा सकता है कि मेरे कई लेखों पर जितनी टिप्पणी नहीं आती थी उससे अधिक फोन कॉल आए। उन मौकों पर सर्वाधिक प्रसन्नता हुई जब मुझे मेरे ब्लॉग की वजह से पहचाना गया। एक जगह मेरा भाषण था, वहां कोई मुझे ब्लॉगर के नाते नहीं जानता था। भाषण खत्म होने के बाद औपचारिक बातचीत में एक-दो एेसे लोग सामने आए जिन्होंने कहा- सर, आपका तो ब्लॉग है न, अपना पंचू। हम नियमित आपके ब्लॉग को पढ़ते हैं। हालांकि उन्होंने कभी भी किसी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं छोड़ी थी। कभी-कभी प्रोफेशन की व्यवस्तता के चलते नियमितता का क्रम भी टूटा लेकिन मैंने इस बिखरने नहीं दिया। ब्लॉगिंग मेरे जीवन का अहम हिस्सा है। इसलिए तमाम व्यस्तताओं के बीच भी मैंने ब्लॉगिंग के लिए समय निकाला ही। संजय तिवारी (आरम्भ), पंकज मिश्र (उद्भावना), सलिल वर्मा (चला बिहारी ब्लॉगर बनने), अनुराग शर्मा (पिट्सबर्ग में एक भारतीय), पीसी गोदियाल (पीसी गोदियाल का अंधड़), रश्मि प्रभा (मेरी भावनाएं), डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" (उच्चारण), दिनेश गुप्ता "रविकर", संजय जी (मो सम कौन कुटिल खल), सुनील दत्त (जागो हिन्दू जागो), दीर्घतमा, दिगम्बर नासवा (स्वप्न मेरे), गिरिजा कुलश्रेष्ठ (ये मेरा जहाँ), शिखा वार्ष्णेय (स्पंदन), संगीता स्वरूप (बिखरे मोती), रविशंकर (छींटें और बौछारें), केवल राम (चलते-चलते), महेंद्र वर्मा (शाश्वत शिल्प), डॉ. दिव्या (zeal), राहुल सिंह (सिंहावलोकन), धीरेन्द्र धीर (फुहार), जीत भार्गव (सेकुलर- ड्रामा), राकेश सिंह (सृजन), संजय भास्कर (आदत...मुस्कुराने की), कविता रावत, डॉ. वर्षा सिंह, वीना (वीणा के सुर), सुलभ जैसवाल ('सतरंगी यादों के इंद्रजाल), ज्ञानचंद मर्मज्ञ (मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच"), आशुतोष (आशुतोष की कलम), दिवस दिनेश गौर (भारत स्वाभिमान दिवस), एसएन शुक्ला (मेरी कवितायेँ), चर्चामंच (रविकर फैजाबादी), डॉ. जेन्नी शबनम (लम्हों का सफ़र), पंकज त्रिवेदी (नव्या), डॉ॰ मोनिका शर्मा (परवाज़...शब्दों के पंख), कौशलेन्द्र और सुमित प्रताप सिंह, आप सभी मित्रों का शुक्रिया जो समय-समय पर मुझे हौसला दिया सच लिखने का, सच का साथ देने का। जिन साथियों के नाम का उल्लेख में यहाँ नहीं कर सका उनसे माफ़ी चाहूँगा... उनका भी तहेदिल से शुक्रिया... ब्लॉग जगत में आगे भी सबका साथ मिलता रहेगा ऐसी उम्मीद है।
मेरे दोस्तो आप खुश तो बहुत होंगे कि आपका लोकेन्द्र शतकवीर हो गया है। वैसे मेरे पास आपके लिए इससे भी बड़ी खुशखबरी है। मैं एक खूबसूरत से बालक का पिता बन गया हूं, मैं पूर्ण हो गया हूं। कहते हैं स्त्री मां बनने पर पूर्ण होती है लेकिन मेरा मानना है कि यही बात पुरुष पर भी लागू होती है। वह भी पिता बनने पर पूर्ण होता है। जब मैंने पहली बार अपने बालक को हथेली पर छुआ तो एक अलहदा अहसास हुआ। उस अहसास को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। दोस्तो मैं तो पिता बन गया, आप लोग अपना-अपना हिसाब-किताब लगा लो कौन क्या बन गया। हां, घर आआे तो कुछ मीठा लेते आना, दोहरी खुशी जो दी है आपको।