रविवार, 30 अप्रैल 2017

धूलिकण : चितेरों की दृष्टि में डॉक्टर साहब

 विश्व  के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पिछले वर्ष ही अपने 90 वर्ष पूर्ण किए हैं। हम जानते हैं कि वर्ष 1925 में विजयादशमी के अवसर पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने एक बीज बोया था, जो आज ऐसा वटवृक्ष बन गया है कि उसकी छाया में राष्ट्रीय विचार पोषित हो रहे हैं। भारतीयता से ओतप्रोत दूरदृष्टा डॉ. हेडगेवार का जन्म वर्ष प्रतिपदा के शुभ अवसर पर 1 अप्रैल, 1889 को हुआ था। तद्नुसार इस वर्ष उनकी 127वीं जयंती हैं। देशभर में स्वयंसेवक अपने प्रेरणा पुँज को अनूठे ढंग से स्मरण कर रहे हैं। इसी श्रृंखला में भोपाल की श्री कला संस्था ने चित्र प्रदर्शनी 'धूलिकण' का आयोजन किया। पाँच दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन 15 अप्रैल को अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति मोहनलाल छीपा, अभिनेता एवं संस्कार भारती मध्य भारत प्रांत के अध्यक्ष राजीव वर्मा और स्वदेश के प्रधान संपादक राजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ चित्रकार देवी दयाल धीमान और समाजसेवी शशिभाई सेठ भी उपस्थित रहे। राष्ट्रनिर्माता डॉ. साहब पर केंद्रित इस प्रदर्शन का उचित ही नामकरण किया गया। डॉ. साहब भारत भूमि के ऐसे धूलिकण थे, जिसमें समाज को पोषित करने की शक्ति निहित थी।
          'धूलिकण' प्रदर्शनी के संयोजक एवं चित्रकार राहुल रायकवार ने बताया कि प्रदर्शनी संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन पर केंद्रित है। उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को मध्यप्रदेश के चित्रकारों ने अपने कैनवास पर साकार किया है। चित्र तैयार करने की प्रक्रिया 1 जनवरी, 2017 को शुरू हुई थी। सभी चित्रकारों को सबसे पहले डॉ. हेडगेवार की जीवनी पढऩे के लिए दी गई। ताकि चित्रकार पहले यह जान लें कि वह एक ऐसे स्वप्न दृष्टा का चित्र बनाने वाले हैं, जिसने भारत को परम वैभव पर ले जाने का दिव्य स्वप्न देखा था। 28 चित्रकारों की तीन महीने की साधना के बाद 'धूलिकण' का प्रदर्शन संभव हो पाया है। विशेष बात यह है कि धूलिकण के लिए चित्र तैयार करने वाले ज्यादातर चित्रकार 25 वर्ष के युवा हैं। इनमें एक 16 साल की चित्रकार राशि सेन ने भारतीय संस्कृति के प्रतीक 'भगवा ध्वज' का आकर्षक चित्र बनाया है। धर्म, संस्कृति, त्याग और संन्यासवृत्ति का प्रतिबिंब भगवा ध्वज ही संघ में गुरु के स्थान पर है। दो चित्रों में ऑइल पेंट और शेष सभी एग्रीलिक कलर का उपयोग किया गया है। दरभंगा, बिहार के अनिल पंडित ने डॉ. साहब का एक स्कल्पचर बनाया है। जबकि भोपाल के ही अवनीश सोनी ने डॉ. साहब ही एक चित्र पेपर कोलाज विधा से तैयार किया है।
          15 से 19 अप्रैल तक पाँच दिनों में जो भी व्यक्ति रवींद्र भवन परिसर में स्वराज कला वीथिका में पहुँचा, उसे 40 चित्रों ने राष्ट्रनायक डॉ. हेडगेवार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा की कहानी सुनाई। चित्रों में युवा चित्रकारों ने युगपुरुष डॉ. हेडगेवार के जीवन की प्रमुख घटनाओं, संघ की कार्यपद्धति और संघ के विराट स्वरूप को कैनवास पर रंगों के संयोजन से जीवंत किया है। संयोजक राहुल रायकवार ने डॉ. हेडगेवार का चित्र बनाया है। वहीं, नेहा रायकवार ने संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों को विशाल वटवृक्ष के रूप में चित्रित किया है। कानपुर के चित्रकार निखिल मिश्रा ने अपने कैनवास पर महात्मा गांधी और डॉ. हेडगेवार की ऐतिहासिक भेंट को दिखाया है, जब महात्मा गांधी 1934 में वर्धा में आयोजित संघ शिक्षावर्ग को देखने पहुँचे थे। सामाजिक समरसता का अनुभव कर महात्मा गांधी संघ के काम से प्रभावित हो गए थे। बाद में उन्होंने 12 सितंबर, 1947 को दिल्ली की भंगी कॉलोनी में अपने भाषण वर्धा शिविर के अनुभव को सुनाते हुए कहा भी कि संघ का अनुशासन और छुआछूत खत्म करने के प्रयास से वह प्रभावित हुए हैं। भोपाल के चित्रकार ऋषि बाथम ने उन सब महान विभूतियों का चित्र बनाया है, जिन्होंने संघ नींव में स्वयं को विसर्जित कर दिया। वर्ष 1939 में सिंध में आयोजित बैठक को उन्होंने अपने कैनवास पर चित्रित किया है, जिसमें डॉ. साहब, श्री गुरुजी, अप्पाजी जोशी, बबनराव पंडित, विट्ठल राव पत्की और बाला साहब देवरस एक साथ हैं। इसी तरह रतलाम की दिव्या चौरसिया ने दिसंबर 1937 में वीर सावरकर के विदर्भ के दौरे को अपने चित्र के लिए चुना। इस दौरान वीर सावरकर ने नागपुर में आयोजित हेमंत शिविर में स्वयंसेवकों को संबोधित किया था और कहा था कि 'मैं संघ की वृद्धि की कामना करता हूँ।' हुतात्माओं की नेक कामनाओं का ही प्रतिफल है कि 90 वर्षों में संघ का 'ईश्वरीय कार्य' निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। कम्युनिस्टों के लाल आतंक के विरुद्ध संघर्ष को भी एक चित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। हम जानते हैं कि पश्चिम बंगाल और केरल में समाजसेवा और राष्ट्रसेवा में संलग्न अनेकों स्वयंसेवकों की हत्या कर कम्युनिस्ट कर चुके हैं। लेकिन, स्वयंसेवक कभी भी अपने पथ से डिगे नहीं, भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए उनका समर्पण अनवरत जारी है। दिग्विजय की कामना लिए ध्येय पथ पर बढ़ते स्वयंसेवकों का चित्र भी प्रदर्शनी में आकर्षण का केंद्र बन गया। चित्रकार टीनू दास बाला ने इसे तैयार किया। 
          इस अनूठी प्रदर्शनी में गोविंद विश्वकर्मा, विजय गहरवार, आनंद नंदेश्वर, कुनाल बागड़े, दिनेश ठकोरिया, दीपक राठौर, जिगिषा सेन, राजू विश्वकर्मा, अनिल पंडित, विपिन वर्मा, वीर सिंह राजपूत, कैलाश तिवारी, आकृति राठौर, निखिल मिश्रा, अंकिता जैन, नेहा बामलिया, किरण बाथम, विवेक अहिरवार, संगीता नंदेश्वर, ज्योति बाकोरिया, स्वाति वर्मा, रिंकी साहू और सुधांशु अग्रवाल के आकर्षक चित्र भी शामिल थे। इन चित्रों में डॉ. साहब का घर, उनका समाधि स्थल, शाखा स्थल, स्वयंसेवक, स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष, समाज जागरण के प्रसंग और पथ संचलन को कैनवास पर दिखाया गया है। 
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डॉ. हेडगेवार जी की 127 वीं जयंती के उपलक्ष्य में उनके जीवन पर 40 पेंटिंग मध्यप्रदेश के कलाकारों द्वारा बनाई गई। कलाकारों के परिश्रम से मातृभूमि का गौरव बढ़ाने वाले महान व्यक्तित्व डॉ. साहब के जीवन प्रसंगों को समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने का एक प्रयास हम लोगों ने किया है। हालाँकि उनका जीवन विराट सागर की तरह है, जिस संघ के नजदीक आकर ही जाना जा सकता है।
- राहुल रायकवार, धूलिकण, संयोजक
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धूलिकण प्रदर्शनी से युवाओं को एक नई प्रेरणा मिलेगी, जिससे राष्ट्रवादी विचारधारा को और भी बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। 40 चित्रों ने संघ और उसके संस्थापक के विषय में और अधिक जानकारी एकत्र करने की रुचि जगाई है।
- परेश उपाध्याय, दर्शक
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चित्रकला के माध्यम से संघ को समझाने का यह अनूठा प्रयास है। इस प्रकार के आयोजन अन्य स्थान पर भी होने चाहिए।
- शम्भूदयाल राठौर, मध्य भारत प्रांत महामंत्री, संस्कार भारती
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संगठित और समरस समाज के माध्यम से राष्ट्र को आगे ले जाने का जो सपना डॉ. हेडगेवार ने देखा था, उसकी एक झलक दिखाने का प्रयास धूलिकण प्रदर्शनी के माध्यम से किया गया है।
- संजय राठौर, अध्यक्ष, श्री कला संस्था, भोपाल










सभी चित्र : सौरभ कुमार, सागर चौधरी और प्रान्शुल श्रीवास्तव

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