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— लोकेन्द्र सिंह राजपूत (Lokendra Singh Rajput) (@lokendra_777) February 13, 2023
विगत 8–9 वर्षों में ऐसा वातावरण बना है, जो ‘भारत के विचार’ को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। स्मरण करना चाहिए धर्मयुद्ध ‘महाभारत’ के रण में अर्जुन जिस रथ पर सवार थे, उस पर भी ध्वज के साथ महावीर हनुमानजी विराजित थे। #hlft42 #HAL #AeroIndia2023 @HALHQBLR pic.twitter.com/teMifJGM0r
महाभारत में अर्जुन के रथ और उस पर विराजे हनुमानजी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुए विश्व इतिहास का सबसे बड़ा एवं प्रमुख युद्ध है– महाभारत। कौरवों के साथ जहां शक्तिशाली योद्धा और विशाल सेनाएं थीं, वहीं पांडवों के साथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे। जब अर्जुन युद्ध मैदान में जाने के लिए रथ पर सवार हो रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से प्रार्थना करो और अपने रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित होने का आग्रह करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा ही किया। अर्जुन के आह्वान पर हनुमानजी आकर उनके रथ पर विराजित हुए और श्रीकृष्ण स्वयं सारथी बने। युद्ध के दौरान हनुमानजी और श्रीकृष्ण की कृपा से अर्जुन के रथ को न केवल बल एवं गति मिली अपितु भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं के दिव्यास्त्रों से सुरक्षा भी मिली। महाभारत की कथा में यह भी आता है कि युद्ध की समाप्ति के बाद जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि पहले आप उतरिए, मैं बाद में उतरता हूं। तब भगवान बोले- नहीं, अर्जुन पहले तुम उतरो। भगवान के आदेशनुसार अर्जुन रथ से उतर गए। उसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ से उतर गए, तभी शेषनाग पाताल लोक चले गए। अर्जुन के रथ को संभालने में शेषनाग भी सहयोग कर रहे थे। रथ पीछे न हटे और जमीन में न धंसे, इसके लिए शेषनाग रथ के पहियों को संभाले हुए थे। भगवान श्रीकृष्ण के रथ से हटने के बाद महापराक्रमी हनुमानजी भी चले गए। जब सब दिव्य शक्तियों ने रथ को छोड़ दिया तो वह अग्नि की ज्वालाओं में घिर गया और धूं-धूं करके जलने लगा। यह सब देखकर अर्जुन आश्चर्यचकित हो श्रीकृष्ण से से पूछता है- भगवन, ये सब क्या लीला है?
श्री कृष्ण बताते हैं कि हे अर्जुन, ये रथ तो भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल गया था, क्योंकि पताका लिए हनुमानजी और मैं स्वयं रथ पर बैठा था, इसलिए यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। अब जबकि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया, इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया।
यह तो महाभारत की कथा है। वैसे भी हनुमानजी अतुलित बल के प्रतीक हैं। उन्हें वायुदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त है। यानी जिस तरह हनुमानजी हवा से बातें करते हुए अपने बल से अरिदल का संहार करते थे, उसी तरह लड़ाकू प्रशिक्षक विमान का सामर्थ्य है। यहाँ इस कथा का उल्लेख करने का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि ‘एचएलएफटी-42’ पर हनुमानजी का चित्र अंकित करने से उसे भी अर्जुन के रथ ‘नंदी घोष’ की तरह दिव्यता प्राप्त हो जाएगी। मैंने सिर्फ इस ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है कि भारत सरकार ने एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर दिया है, जिसमें अपने सांस्कृतिक प्रतीकों का प्रदर्शन करने में कोई बाधा और संकोच नहीं है। ‘एचएलएफटी-42’ का सामर्थ्य तो उसमें उपयोग की जानेवाली तकनीक से ही आएगा। उल्लेखनीय है कि अगली पीढ़ी के इस सुपरसोनिक प्रशिक्षक विमान को हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) तैयार कर रहा है। एचएएल की ओर से कहा गया कि इस विमान में एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड ऐरे, एलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, वायर कंट्रोल प्रणाली द्वारा इंफ्रारेड सर्च एंड ट्रैक विद फ्लाई जैसी आधुनिक विमानन सुविधाएं होंगी।विश्वास है कि अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ भारत के बढ़ते कदम उसे नयी ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे।
स्वदेश ग्वालियर समूह के सभी संस्करणों में प्रकाशित यह आलेख |
वाह❤️💙
जवाब देंहटाएंजय हिन्द 🇮🇳🔥
धन्यवाद शिवम जी। जय हिन्द
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