मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

अर्जुन के रथ से लड़ाकू विमान पर महाबली हनुमान


बेंगलुरु में चल रहे एयरो इंडिया शो में प्रदर्शित भारत के नए सुपरसोनिक फाइटर ट्रेनर एयरक्राफ्ट ‘एचएलएफटी-42’ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। दरअसल, इस आधुनिक लड़ाकू प्रशिक्षक विमान की पूंछ पर महाबली पवनपुत्र हनुमानजी अंकित हैं। निश्चित ही यह आनंद की बात है कि भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है। विमान का डिजाइन बनानेवालों के मन अवश्य ही भारत बोध से भरे हुए होंगे। वर्तमान केंद्र सरकार भी भारतीयता से ओतप्रोत नवाचारों का स्वागत करती है। भारतीयता को उसके सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में उसे कोई संकोच नहीं, अपितु आनंद ही होता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में विगत आठ–नौ वर्षों में ऐसा वातावरण बना है, जो ‘भारत के विचार’ को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमें स्मरण करना चाहिए धर्मयुद्ध ‘महाभारत’ के रण में अर्जुन जिस रथ पर सवार थे, उस पर भी ध्वज के साथ महावीर हनुमानजी विराजित थे। संभव है कि लड़ाकू विमान की अभिकल्पना अर्जुन के रथ से प्रेरित हो।

महाभारत में अर्जुन के रथ और उस पर विराजे हनुमानजी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुए विश्व इतिहास का सबसे बड़ा एवं प्रमुख युद्ध है– महाभारत। कौरवों के साथ जहां शक्तिशाली योद्धा और विशाल सेनाएं थीं, वहीं पांडवों के साथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे। जब अर्जुन युद्ध मैदान में जाने के लिए रथ पर सवार हो रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से प्रार्थना करो और अपने रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित होने का आग्रह करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा ही किया। अर्जुन के आह्वान पर हनुमानजी आकर उनके रथ पर विराजित हुए और श्रीकृष्ण स्वयं सारथी बने। युद्ध के दौरान हनुमानजी और श्रीकृष्ण की कृपा से अर्जुन के रथ को न केवल बल एवं गति मिली अपितु भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं के दिव्यास्त्रों से सुरक्षा भी मिली। महाभारत की कथा में यह भी आता है कि युद्ध की समाप्ति के बाद जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि पहले आप उतरिए, मैं बाद में उतरता हूं। तब भगवान बोले- नहीं, अर्जुन पहले तुम उतरो। भगवान के आदेशनुसार अर्जुन रथ से उतर गए। उसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ से उतर गए, तभी शेषनाग पाताल लोक चले गए। अर्जुन के रथ को संभालने में शेषनाग भी सहयोग कर रहे थे। रथ पीछे न हटे और जमीन में न धंसे, इसके लिए शेषनाग रथ के पहियों को संभाले हुए थे। भगवान श्रीकृष्ण के रथ से हटने के बाद महापराक्रमी हनुमानजी भी चले गए। जब सब दिव्य शक्तियों ने रथ को छोड़ दिया तो वह अग्नि की ज्वालाओं में घिर गया और धूं-धूं करके जलने लगा। यह सब देखकर अर्जुन आश्चर्यचकित हो श्रीकृष्ण से से पूछता है- भगवन, ये सब क्या लीला है? 

श्री कृष्ण बताते हैं कि हे अर्जुन, ये रथ तो भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल गया था, क्योंकि पताका लिए हनुमानजी और मैं स्वयं रथ पर बैठा था, इसलिए यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। अब जबकि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया, इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया। 

यह तो महाभारत की कथा है। वैसे भी हनुमानजी अतुलित बल के प्रतीक हैं। उन्हें वायुदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त है। यानी जिस तरह हनुमानजी हवा से बातें करते हुए अपने बल से अरिदल का संहार करते थे, उसी तरह लड़ाकू प्रशिक्षक विमान का सामर्थ्य है। यहाँ इस कथा का उल्लेख करने का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि ‘एचएलएफटी-42’ पर हनुमानजी का चित्र अंकित करने से उसे भी अर्जुन के रथ ‘नंदी घोष’ की तरह दिव्यता प्राप्त हो जाएगी। मैंने सिर्फ इस ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है कि भारत सरकार ने एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर दिया है, जिसमें अपने सांस्कृतिक प्रतीकों का प्रदर्शन करने में कोई बाधा और संकोच नहीं है। ‘एचएलएफटी-42’ का सामर्थ्य तो उसमें उपयोग की जानेवाली तकनीक से ही आएगा। उल्लेखनीय है कि अगली पीढ़ी के इस सुपरसोनिक प्रशिक्षक विमान को हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) तैयार कर रहा है। एचएएल की ओर से कहा गया कि इस विमान में एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड ऐरे, एलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, वायर कंट्रोल प्रणाली द्वारा इंफ्रारेड सर्च एंड ट्रैक विद फ्लाई जैसी आधुनिक विमानन सुविधाएं होंगी।विश्वास है कि अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ भारत के बढ़ते कदम उसे नयी ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे। 

स्वदेश ग्वालियर समूह के सभी संस्करणों में प्रकाशित यह आलेख

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