शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

गुलाब भेंट करने का शिष्टाचार

मैं ठहरा अल्हड़ प्रेमी
प्रेम की व्याकरण में शून्य
राजा गुलाब भेंट करने का
क्या जानूं मैं शिष्टाचार।

उस रोज पता चला
रंग अलग भाव अलग
जब पहली ही मुलाकात में
थमाया तुम्हें लाल गुलाब।

प्रभु, पूरे पागल तो तुम
कुछ तो तुम सोचो-समझो
भला कौन देता-लेता है
पहले-पहल लाल गुलाब।

प्रेम करने लगा हूँ तुम्हें
इसलिए ले आया लाल गुलाब
चलो छोड़ो तुम ही बताओ अब
तुम्हें कब कौन-सा दूं गुलाब।

सीधे प्रेम पर आने से पहले
थोड़ी दोस्ती करो तुम मुझसे
जाओ, रोज गार्डन चंडीगढ़
और लेकर आओ पीला गुलाब।

फिलहाल मेरी ओर से
तुम्हारी मासूमियत के लिए
गुलाब बाग, उदयपुर से
लाई हूं यह सफेद गुलाब।

तुम रचना चाहो यदि
मेरी प्रशंसा में कुछ गीत
रोज गार्डन, ऊंटी से
लाना मुस्कुराता गुलाबी गुलाब।

सीख जाएं हम दोनों प्रेम
सम्मान-स्वाभिमान एक-दूजे का
पहुंच जाना राष्ट्रीय गुलाब बाग
चुन लाना सुर्ख लाल गुलाब।

अच्छी तरह समझ लो यह भी
जिसे करते हैं टूटकर प्रेम
उसे कभी भी, विग्रह के बाद भी
सच्चे लोग नहीं देते काला गुलाब।

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