गुरुवार, 16 जून 2011

कांग्रेस को भारी पड़ेगी यह गलती

कांग्रेस ने मौलिक अधिकारों को चोट पहुंचाई
 बा बा रामदेव के अनशन को खत्म करने के लिए रात को सोए हुए निर्दोष लोगों पर जिस तरह से लाठियां बरसाई गईं उससे तो इमरजेंसी की याद ताजा हो गई। जलियावाला बाग जैसी घटना है यह। पुलिसिया बर्बरता और अत्याचार की हद हो है। ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में होता था। आखिर कांग्रेस तमाम समस्याओं से घिरे आमजन का दमन कर सिद्ध क्या करना चाहती है। हर ओर यही चर्चा आम है। चार-पांच जून की दरमियानी रात को दिल्ली के रामलीला मैदान में इस घटना को अंजाम दिया गया। मेरी छह-सात जून यानी दो दिन ट्रेन, बस, टेम्पो और आॅटो में सफर में बीते। तब मैंने देखा की हर ओर इस मसले पर कांग्रेस की निंदा हो रही है। सबके अपने-अपने सवाल हैं, जवाब हैं। लेकिन, जहां तक मेरा मानना है अनशन के पूर्व से सरकार जितना घबरा रही थी उससे कहीं अधिक अपने ही मूर्खतापूर्ण कृत्य से कांप रही है। कांग्रेस को इस दफा उसकी चतुराई महंगी पड़ती दिख रही है। बौराई कांग्रेस ने मामले पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए उन सभी राज्यों की सरकारों को बाबा रामदेव के खिलाफ हल्ला बोलने के निर्देश दे दिए, जहां उनकी सरकार है या उनके समर्थन की सरकार है। उनसे कह दिया कि बाबा रामदेव के भाजपा और आरएसएस के रिश्तों पर कुछ भी बोलो। चाहे रिश्ता हो या न हो, लेकिन तुम चीखो जितना चीख सकते हो। बाबा की संपत्ति, चरित्र पर अंगुली उठाओ। कांग्रेस के इस रुख को देखकर लगता है कि या तो कांग्रेस ने अपना आपा खो दिया है या फिर वह हिटलर के प्रोपागण्डा मिनिस्टर जोसेफ गोएबल्स के सूत्र- ‘एक झूठ को सौ बार पूरी ताकत से बोलो तो वह सच जैसा लगने लगता है।’ का पालन कर रही है। 
    कांग्रेस ने हजारों बेगुनाह लोगों पर लाठियां बरसवाकर संविधान का खुला मजाक बनाया है। भारत का संविधान अनुच्छेद 19 के तहत देश के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। हर किसी को लिखकर, बोलकर या अन्य किसी माध्यम से अपनी बात कहने का मौलिक अधिकार है। बस वह देशद्रोह और सांप्रदायिकता को बढ़ावा न देता हो। अनुच्छेद 19 बी के तहत शांतिपूर्ण और निशस्त्र सम्मेलन करने की आजादी भी दी गई है। इसके अलावा इसी अनुच्छेद के डी उपवर्ग के अनुसार भारत के नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में अबाध संचरण की आजादी मिली हुई है। ये सब व्यवस्थाएं इसलिए की गईं हैं कि ताकि आप अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से देश के किसी भी भू-भाग में जाकर कह सको। बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ किया शुरू किया गया आंदोलन और अनशन संविधान के मुताबिक जायज है उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। भ्रष्टाचार की समस्या से आज देश का हर नागरिक परेशान है। हाल ही आई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश का हर तीसरा आदमी कभी न कभी भ्रष्टाचार का शिकार होता है। यही कारण है कि बाबा रामदेव के आंदोलन को पूरे देश से इतना समर्थन मिल रहा था। बाबा रामदेव के मामले में सरकार ने इन मौलिक अधिकारों का खुलकर हनन किया है। हजारों उन लोगों के मौलिक अधिकार को चोट पहुंचाई गई है जो उस आंदोलन का हिस्सा हैं। रामदेव के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लगाकर कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 19 डी का हनन किया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहा यह आंदोलन शांतिपूर्ण था। संविधान अनुच्छेद 19 बी के तहत शांतिपूर्ण तरीके से आयोजन की इजाजत देता है। तब फिर क्यों सरकार ने पुलिस के माध्यम से आधी रात को लाठियां बरसाकर हजारों लोगों को रामलीला मैदान से खदेड़ा। जिनमें महिलाएं, बच्चे और वृद्ध शामिल थे। इसमें मानवाधिकारों और महिला अधिकारों का भी हनन हुआ।
    आंसू गैस के गोले खुले भाग में दागने का नियम है। लेकिन, तमाम नियमों को ताक पर रख पुलिस ने पांड़ाल के भीतर आंसू गैस के गोले छोड़े। इस दौरान मंच पर भी आग लग गई। पुलिस की इस लापरवाही से बड़ा हादसा भी हो सकता था। मैदान में हजारों लोगों की जान मुश्किल में आ सकती थी। धारा 144 भी उपद्रव होने या उसकी आशंका की स्थिति में लागू की जाती है। सवाल उठता है कि निहत्थे और सोते हुए लोग क्या उपद्रव कर सकते थे। कांग्रेस के इशारे पर हुई इस कार्रवाई ने पूरे देश को झझकोर कर रख दिया है। संविधान द्वारा देश के नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों को भी तार-तार कर दिया है। लोगों का आक्रोश देख कर लग रहा है कि भविष्य में कांग्रेस को यह गलती बहुत भारी पड़ेगी।
    कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का इस कार्रवाई से दोगला चेहरा भी उजागर होता है। एक ओर सरकार दिल्ली में आकर देशद्रोह और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले लोगों का संरक्षण करती दिखती है। वहीं दूसरी ओर शांतिपूर्ण ढंग से अपनी परेशानी बयां सकते लोगों का दमन करते दिखती है। इसी सरकार ने कश्मीर को लेकर दिल्ली में ही जहर उगलते लोगों पर एक एफआईआर तक दर्ज नहीं की। कश्मीर के पत्थरबाजों को शांत करने के लिए 100 करोड़ का राहत पैकेज जारी किया। जबकि वे देशहित में पत्थर कतई नहीं बरसा रहे थे, भाड़े पर और आईएसआई के कहने पर सेना पर पत्थरबाजी कर रहे थे। इतना ही नहीं सरकार इससे भी चार कदम आगे चली गई। सुप्रीम कोर्ट में देशद्रोह का मामला विचाराधीन होने के बावजूद बिनायक सेन को राष्ट्रीय योजना आयोग की समिति में शामिल कर लिया गया। हमेशा नक्सलियों से वार्ता का आतुर सरकार ने इन निर्दोश लोगों पर लाठियां क्यों चलाईं समझ से परे है। इसी कांग्रेस के कुछ नुमाइंदे दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की मौत पर विधवा विलाप करते हैं और उसे ‘आप’ व ‘जी’ लगाकर संबोधित करते हैं वहीं देशहित में आवाज उठा रहे बाबा रामदेव को ठग कह रहे हैं। आश्चर्य है।
    आश्चर्य इस पर भी है कि मानवता के पैरोकार और गरीबों के मसीहा राहुल गांधी पूरे एपीसोड में कहीं नजर नहीं आ रहे। जबकि भट्टा परसौल में महिलाओं पर हुए अत्याचार पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने खूब प्रलाप किया किया था। लेकिन, यहां आधी रात को हुई पुलिसिया कार्रवाई में महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा पर एक आंसू तक नहीं टपकाया। एक लाइन बोलकर भी पूरे घटनाक्रम का विरोध नहीं किया। वहीं हमारे प्रधानमंत्री ने इस पर भी अपनी मजबूरी जाहिर कर दी। वैसे उनसे देश की जनता को और दूसरे बयान की उम्मीद भी नहीं थी।
    अनशन के प्रारंभ से लेकर इस काण्ड तक बाबा रामदेव की भी कुछ गलतियां रहीं। यथा: जब सरकार बाबा से बात करने स्वयं आ रही थी तो बाबा को उसके पास स्वयं जाने की जरूरत नहीं थी। बाबा को बातचीत के लिए एक प्रतिनिधि मंडल भेजना चाहिए था, खुद को हर काम में आगे नहीं रखना था। बाबा ने अन्ना हजारे की भी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने साफ कह दिया था कि यह सरकार दगाबाज है। कभी भी सरकार पीठ में छुरा घोंप सकती है। बाबा भूल गए कि उनका मुकाबला सरकार की चालाक चौकड़ी से था। कपिल सिब्बल सरकार ऐसे चतुर वफादार सिपाही है जिसने दुनिया की आंखों में धूल झौंकने की पूरी कोशिश की थी। कपिल सिब्बल ने पता नहीं गणित के किस नायाब फार्मूला से सिद्ध कर दिया था कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ ही नहीं है। ऐसे चुतर लोगों की चाल में बाबा फंस गए थे। लेकिन, पता नहीं किसकी मति ने फेरी खाई और रात में सोते हुए लोगों पर आंसू गैस के गोले छुड़वा दिए, लाठियां चलवा दीं। इनमें हजारों की संख्या में महिलाएं और उनके साथ आए बच्चे शामिल थे। कल्पना करिए कि ऐसी अफरा-तफरी में वृद्धों, महिलाओं और बच्चों की क्या हालत हुई होगी। वह भी दिल्ली जैसे शहर में आधी रात को। बताया जा रहा है कि पांच हजार लोग अभी तक अपने सगे-संबंधियों से बिछड़े हुए हैं।
    लाख विरोध के बाद भी कांग्रेस अभी तक अपनी इस कार्रवाई को जायज ठहरा रही है। घटना के बाद कांग्रेस ने बाबा रामदेव की संपत्ति का हिसाब-किताब लगाने में, उनकी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से संबंध की खोज-खबर लेने में ओर बाबा रामदेव के कारोबार को सूचीबद्ध करने में जितनी सक्रियता दिखाई है, अगर उतनी कालाधन वापस लाने में दिखाई होती तो देश का कुछ भला होता। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में और भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई ठोस कानून बनाने में तत्परता दिखाई होती तो शायद लोगों को इतने बड़े आंदोलन में शामिल होने की नौबत ही नहीं आती। लेकिन, कांग्रेस की मंडली में जमा भ्रष्ट नेताओं की ऐसी मंशा है ही नहीं। खैर, अभी तो इसे आंदोलन की शुरुआत ही माना जाना चाहिए। अगर बाबा रामदेव सरकार को माफ करके अनशन वापस भी ले ले तो जल्द ही कोई न कोई एक नया अन्ना हजारे या बाबा रामदेव भ्रष्टाचार, महंगाई, बेलगाम होती कानून व्यवस्था से पीड़ित जनता का नेतृत्व करने आ सामने आ ही जाएगा। 
यह लेख भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र एलएन स्टार के ११ जून को प्रकाशित अंक में भी पढ़ा जा सकता है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. लोकेन्द्र भाई गज़ब का तल्ख़ है आपके आलेख में...सोचने पर मजबूर के दे...आपकी भाषा में आज उग्रपन के साथ दर्द भी देखा...ऐसा मुझे लगा...
    सही कह रहे हो आप, कांग्रेस को यह गलती बहुत भारी पड़ने वाली है...

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  2. बिलकुल सत्य बात कही आप ने..
    खंग्रेस को यह गलती बहुत भरी पड़ेगी...दरअसल खंग्रेस की मनसा है ही नहीं कला धन वापस लेन की तो उल जलूल कम करके ध्यान भटकना चाहती है..
    मगर हिन्दुस्थान अब जाग रहा है...खान्ग्रेसियों की मौत आती है तो वो इटली की और भागते हैं..
    जय बाबा रामदेव

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