अभी हाल ही भीष्म साहनी की कहानियां पढ़ी। पुस्तक का शीर्षक था - १० प्रतिनिधि कहानियां, भीष्म साहनी। किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित है। कीमत ६० रुपए। जिस तरह कोई फिल्म देखने के बाद आम आदमी फिल्म की समीक्षा कुछ इस तरह करता है- फिल्म देखकर पूरे पैसे वसूल हो गए मतलब फिल्म अच्छी है। ठीक इस किताब के लिए मैं कहूंगा जो भी किताब खरीदकर पढ़ेगा उसे पछताना नहीं पड़ेगा हालांकि मैंने तो भास्कर की लाइब्रेरी से निकाल कर पढ़ी। दस कहानियां एक से बढ़कर एक। किसी भी कहानी में किसी भी पैरे में मैं बोर नहीं हुआ। हर कहानी आपके अंर्तमन में स्थिति का चित्राकंन खींचती रहती है कहानी पढ़ते समय आपको सारे दृश्य दिखते से जान पडेगें।
१० प्रतिनिधि कहानियां
- भीष्म साहनी
मूल्य : साठ रुपए
प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
४८५५9५६/२४ अंसारी रोड,दरियागंज
नई दिल्ली- ११०००२
पहली कहानी थी वाड्चू। एक बौद्ध भिक्षु की जो मूलत: चीन का रहने वाला था। कहानी में वह भारत में रहकर ज्ञान अर्जित कर रहा था। कैसे स्थितियां बदलती रहती हैं उनका सामना कैसे सीधे साधे वाड्चू को करना पड़ता है बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया गया है। उसके निश्छल प्रेम के भी नीलम ने खूब मजे लिए, हरदम उसे जानकर चिढ़ाना भाई के मना करने के बाद भी। नीलम एक और पात्र की बहन है जो श्रीनगर में वाड्चू का अच्छा दोस्त बन गया था। इस कहानी को ही पढ़ कर लगा बहुत दिन बाद कुछ बेहतर पढऩे का मौका हाथ लगा है। उसके बाद तो एक-एक कर पूरी नौ कहानियां पढ़ गया। जब भी जहां भी समय मिला किताब निकाल कर उसमें खो जाता।
दूसरी कहानी साग-मीट। इस कहानी में लेखक ने स्त्रियों की वाचालता के गुण का बखूबी बखान किया। दो महिलाओं के बीच के वार्तालाप को कहानी के रूप में परोसा है। गजब यह है कि एक ही महिला कहानी में शुरू से अंत तक बोलती रहती है। कहानी में महिला की एक डायलॉग बड़ा मजेदार था- तू कुछ खा भी ना, तू तो कुछ भी नहीं खाती। तीसरी कहानी पाली। पाली एक बच्चे का नाम है जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त मां-बाप से बिछड़कर पाकिस्तान में ही रह जाता है। विभाजन की भयाभयता का दृश्यांकन दिल को दहला देने वाला है। वहीं मुस्लिम और हिंदू मां-बाप का ह्रïदय के भावों को जिस तरह उकेरा है, उन से यह सत्य सिद्ध कर दिया कि मां-बाप सिर्फ मां-बाप होते हैं। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। विभाजन के बाद हिंदू और मुस्लिमों के मन की स्थिति का भी खूब बखान किया। चौथी कहानी थी समाधि भाई रामसिंह। एक फक्कड़ समाजसेवी की। अच्छी और रोचक कहानी थी। फूलां नाम की पांचवी कहानी में जानवरों के प्रति लगाव दिखाया है। कैसे कोई किसी पालतू जानवर के प्रति आसक्त हो जाता है। दरअसल कहानी में म्यूनिसिपालिटी क्लर्क की पत्नी है फूलां। इनके कोई संतान नहीं होती व इनके घर में माणो नाम की बिल्ली होती है जिसे फूलां अपनी संतान की तरह पालती है। इक दिन माणो कहीं चली जाती है और फूलां उसके वियोग में पगलाई सी जाती है। छंटवी कहानी संभल के बाबू में युवा युवापन में कैसे विचार मन में चलते हैं इस बात के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है। पुरानी और नई परिस्थितियों में आए बदलाव को भी बखूबी दर्शाया है।
आवाजें सातवीं कहानी है। जो एक मोहल्ले पर आधारित है। नया मोहल्ला बसते बसते कैसे बस जाता है उसी का चित्रण है। मक्कखन लाल इसका गजब का पात्र है। सस्ती पोपट मारका सिगरेट पीता है और चुटकी बजाकर राख झटकता है। कुल मिलाकर मनमौजी, मदमस्त और अपनी धुन का पक्का है। बनावटी बिलकुल नहीं है हर जगह पर वह मक्खनलाल ही रहता है। हमारी तरह ऑफिस में बाबू, पार्टी में हीरो, सामाजिक कार्यो में नेताजी और बौद्धिक बैठकों में विद्वान नहीं बनता। उसका तो एक ही रूप है मक्खनलाल हर जगह मक्खनलाल। तेंदुआ आठवी कहानी है। भाग्य को प्रबलता से आगे रखती है और अंत आते-आते अपनत्व की झलक भी दिखा जाती है। कहानी में यह बताया गया है कि होनी को कौन टाल सकता है? नौवी है ढोलक और दसवी साये ये भी पूर्व की भांति अपने आप में रोचक और अर्थ प्रदान हैं। ढोलक अपने बड़ी मजेदार कहानी है। इसमें बताया गया है कि किस तरह जरा सी किताबें पढ़कर नई पीढ़ी को सारी परंपराएं ढकोसला लगने लगती हैं। कैसे अपने बुर्जगों की बातें उन्हें कोरी बकवास लगती हैं। ऐसे ही एक युवा के विवाह के समय का शब्द चित्राकंन इसमें किया गया है। जिन परंपराओं से रामदेव को चिढ़ हो रही थी, अंत में एक दूसरे पढ़े-लिखे इसी पीढ़ी का वकील ने उन्हीं परंपराओं पर उसे गर्व करना सिखा दिखा। रामदेव इस कहानी का मुख्य पात्र है इसकी की विवाह हो रहा होता है, यह घोड़ी पर बैठकर बारात में जाने से मना कर देता है लेकिन वकील अपनी सूझबूझ से ऐसी परिस्थियां निर्मित करता है कि रामदेव हंसी-खुशी लपककर घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन लेने निकल पड़ता है।
१० प्रतिनिधि कहानियां
- भीष्म साहनी
मूल्य : साठ रुपए
प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
४८५५9५६/२४ अंसारी रोड,दरियागंज
नई दिल्ली- ११०००२
पहली कहानी थी वाड्चू। एक बौद्ध भिक्षु की जो मूलत: चीन का रहने वाला था। कहानी में वह भारत में रहकर ज्ञान अर्जित कर रहा था। कैसे स्थितियां बदलती रहती हैं उनका सामना कैसे सीधे साधे वाड्चू को करना पड़ता है बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया गया है। उसके निश्छल प्रेम के भी नीलम ने खूब मजे लिए, हरदम उसे जानकर चिढ़ाना भाई के मना करने के बाद भी। नीलम एक और पात्र की बहन है जो श्रीनगर में वाड्चू का अच्छा दोस्त बन गया था। इस कहानी को ही पढ़ कर लगा बहुत दिन बाद कुछ बेहतर पढऩे का मौका हाथ लगा है। उसके बाद तो एक-एक कर पूरी नौ कहानियां पढ़ गया। जब भी जहां भी समय मिला किताब निकाल कर उसमें खो जाता।
दूसरी कहानी साग-मीट। इस कहानी में लेखक ने स्त्रियों की वाचालता के गुण का बखूबी बखान किया। दो महिलाओं के बीच के वार्तालाप को कहानी के रूप में परोसा है। गजब यह है कि एक ही महिला कहानी में शुरू से अंत तक बोलती रहती है। कहानी में महिला की एक डायलॉग बड़ा मजेदार था- तू कुछ खा भी ना, तू तो कुछ भी नहीं खाती। तीसरी कहानी पाली। पाली एक बच्चे का नाम है जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त मां-बाप से बिछड़कर पाकिस्तान में ही रह जाता है। विभाजन की भयाभयता का दृश्यांकन दिल को दहला देने वाला है। वहीं मुस्लिम और हिंदू मां-बाप का ह्रïदय के भावों को जिस तरह उकेरा है, उन से यह सत्य सिद्ध कर दिया कि मां-बाप सिर्फ मां-बाप होते हैं। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। विभाजन के बाद हिंदू और मुस्लिमों के मन की स्थिति का भी खूब बखान किया। चौथी कहानी थी समाधि भाई रामसिंह। एक फक्कड़ समाजसेवी की। अच्छी और रोचक कहानी थी। फूलां नाम की पांचवी कहानी में जानवरों के प्रति लगाव दिखाया है। कैसे कोई किसी पालतू जानवर के प्रति आसक्त हो जाता है। दरअसल कहानी में म्यूनिसिपालिटी क्लर्क की पत्नी है फूलां। इनके कोई संतान नहीं होती व इनके घर में माणो नाम की बिल्ली होती है जिसे फूलां अपनी संतान की तरह पालती है। इक दिन माणो कहीं चली जाती है और फूलां उसके वियोग में पगलाई सी जाती है। छंटवी कहानी संभल के बाबू में युवा युवापन में कैसे विचार मन में चलते हैं इस बात के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है। पुरानी और नई परिस्थितियों में आए बदलाव को भी बखूबी दर्शाया है।
आवाजें सातवीं कहानी है। जो एक मोहल्ले पर आधारित है। नया मोहल्ला बसते बसते कैसे बस जाता है उसी का चित्रण है। मक्कखन लाल इसका गजब का पात्र है। सस्ती पोपट मारका सिगरेट पीता है और चुटकी बजाकर राख झटकता है। कुल मिलाकर मनमौजी, मदमस्त और अपनी धुन का पक्का है। बनावटी बिलकुल नहीं है हर जगह पर वह मक्खनलाल ही रहता है। हमारी तरह ऑफिस में बाबू, पार्टी में हीरो, सामाजिक कार्यो में नेताजी और बौद्धिक बैठकों में विद्वान नहीं बनता। उसका तो एक ही रूप है मक्खनलाल हर जगह मक्खनलाल। तेंदुआ आठवी कहानी है। भाग्य को प्रबलता से आगे रखती है और अंत आते-आते अपनत्व की झलक भी दिखा जाती है। कहानी में यह बताया गया है कि होनी को कौन टाल सकता है? नौवी है ढोलक और दसवी साये ये भी पूर्व की भांति अपने आप में रोचक और अर्थ प्रदान हैं। ढोलक अपने बड़ी मजेदार कहानी है। इसमें बताया गया है कि किस तरह जरा सी किताबें पढ़कर नई पीढ़ी को सारी परंपराएं ढकोसला लगने लगती हैं। कैसे अपने बुर्जगों की बातें उन्हें कोरी बकवास लगती हैं। ऐसे ही एक युवा के विवाह के समय का शब्द चित्राकंन इसमें किया गया है। जिन परंपराओं से रामदेव को चिढ़ हो रही थी, अंत में एक दूसरे पढ़े-लिखे इसी पीढ़ी का वकील ने उन्हीं परंपराओं पर उसे गर्व करना सिखा दिखा। रामदेव इस कहानी का मुख्य पात्र है इसकी की विवाह हो रहा होता है, यह घोड़ी पर बैठकर बारात में जाने से मना कर देता है लेकिन वकील अपनी सूझबूझ से ऐसी परिस्थियां निर्मित करता है कि रामदेव हंसी-खुशी लपककर घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन लेने निकल पड़ता है।
vakai bandhu bahut achchhi samiksha ki hai ab to bas kahani padane ka man hai....
जवाब देंहटाएंvakai bandhu bahut achchhi samiksha ki hai ab to bas kahani padane ka man hai....
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi jaankaari di kitaab ki ye to jarur kharidunga!!! par February me jab gaon jaaunga!!
जवाब देंहटाएंमुझे एक ही कहानी याद है "अहम् ब्रह्मास्मि" जोकि शायद भीष्म साहनी की है।
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