शनिवार, 13 दिसंबर 2025

मध्यप्रदेश की मोहन सरकार के दो वर्ष

सशक्त नेतृत्व और संतुलित विकास के दो वर्ष

राजनीति में नेतृत्व परिवर्तन अकसर अनिश्चितता लेकर आता है, लेकिन मध्यप्रदेश में पिछले दो वर्षों ने साबित किया है कि यदि नेतृत्व में स्पष्टता और इच्छाशक्ति हो, तो परिवर्तन ‘विकास की नई गति’ का पर्याय बन जाता है। आज, जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूर्ण कर रहे हैं, तो पीछे मुड़कर देखने पर एक ऐसी सरकार की छवि उभरती है जिसने परंपरा, आधुनिकता, कल्याकारी योजनाओं और कठोर प्रशासनिक फैसलों के बीच एक बेहतरीन संतुलन साधा है। 13 दिसंबर, 2023 को जब डॉ. मोहन यादव ने सत्ता की बागडोर संभाली थी, तब उनके सामने ‘लाड़ली बहना’ जैसी लोकप्रिय योजनाओं को जारी रखने के साथ-साथ अपनी अलग पहचान बनाने की चुनौती थी। दो साल बाद, यह कहा जा सकता है कि उन्होंने न केवल अपनी ही पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार के अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाया, बल्कि शासन की एक नई, अधिक सख्त और परिणाम-मूलक शैली भी विकसित की है।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

भाषा जोड़ती है, तोड़ती नहीं

जब कहीं से यह समाचार पढ़ने/सुनने को मिलता है कि मराठी, तमिल, तेलगू या अन्य कोई भाषा नहीं बोलने के कारण व्यक्ति के साथ मारपीट कर दी गई, तो दु:ख होता है कि संकीर्ण राजनीति हमें किस दिशा में लेकर जा रही है। हम अपनी ही भाषाओं का सम्मान क्यों नहीं कर रहे हैं? जो भाषाएं आपस में जुड़ी हैं, उनके नाम पर हम एक-दूसरे से दूर क्यों हो रहे हैं? भारत की सभी भाषाओं के शब्द भंडार एक-दूसरे के शब्दों से समृद्ध हैं। हमें तो भाषायी विविधता का उत्सव मनाना चाहिए। भारत की संस्कृति की विशेषता है कि वह विविध रूपों में प्रकट होती है। हम सब मिलकर 11 दिसंबर को महान तमिल कवि सुब्रह्मण्यम भारती की जयंती प्रसंग पर ‘भारतीय भाषा दिवस’ मनाते हैं। यह प्रसंग ही हमें भाषाओं के प्रति संवेदनशील होने की ओर संकेत करता है और बताता है कि भाषाएं मानवीय संबंधों में सेतु का कार्य करती हैं। एक-दूसरे से जोड़ती हैं। श्री भारती ने तमिल को शास्त्रीय स्वरूप से बाहर निकालकर सरल और आम बोलचाल की तमिल का प्रयोग किया ताकि उनके विचार और तमिल साहित्य का ज्ञान आम लोगों तक पहुँच सके। तमिल को प्राथमिकता देने के बावजूद सुब्रह्मण्यम भारती ने हिन्दी और तेलुगु सहित अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति भी सम्मान दिखाया। वह चाहते थे कि सभी भारतीय भाषाओं के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान हो, जिससे भारत एक सशक्त राष्ट्र बन सके। उनका स्पष्ट दृष्टिकोण था कि भारत की विभिन्न भाषाएं उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी शक्ति और सुंदरता हैं।

सोमवार, 8 दिसंबर 2025

बाबर की औलादें

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने कथित तौर पर बाबरी मस्जिद की नींव रखकर ‘बाबर की औलादों’ को जिंदा कर दिया है। अब तहरीक मुस्लिम शब्बन नाम के संगठन ने ग्रेटर हैदराबाद में बाबरी स्मारक बनाने का ऐलान किया है। ये घटनाएं केवल अपने मत-संप्रदाय के प्रति अपना विश्वास प्रकट करने का विषय नहीं है, बल्कि देश की न्यायिक व्यवस्था, सांप्रदायिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों को चुनौती देने की कोशिश के तौर पर इन्हें देखना चाहिए। यह एक प्रकार से अलगाववादी सोच है, जो पहले भी भारत का विभाजन करा चुकी है। यह सोच इसलिए और भी अधिक खतरनाक दिखायी दे रही है क्योंकि ये किसी सिरफिरे कट्टरपंथियों की घोषणा मात्र नहीं है, अपितु इस विचार के पीछे मुसलमानों की अच्छी-खासी भीड़ भी खड़ी दिखायी दे रही है। कथित बाबरी मस्जिद की नींव रखने के लिए जिस तरह सिर पर ईंटें ढोकर लाते मुसलमानों की भीड़ दिखायी दी, उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर’ के नारों के बीच लाखों समर्थकों का जुटना और बाबरी मस्जिद के निर्माण की बात दोहराना, साफ तौर पर मुस्लिम समुदाय की सांप्रदायिक लामबंदी को स्पष्टतौर पर रेखांकित करता है।

रविवार, 7 दिसंबर 2025

डॉक्टर साहब के विचारों से पोषित है संघ की यात्रा

जिस प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज को आत्मदैन्य की स्थिति से बाहर निकाल कर आत्मगौरव की भावना से जागृत किया, उसी प्रकार डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भी हिन्दू समाज का आत्मविश्वास जगाकर बिखरे हुए हिन्दुओं को एकजुट करने का अभिनव कार्य आरंभ किया। दोनों ही युगपुरुषों ने लगभग एक जैसी परिस्थितियों में संगठन का कार्य प्रारंभ किया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिन उद्देश्यों के साथ हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के मूल में भी उसी ‘स्व बोध’ का संकल्प है। भारत का स्वदेशी समाज जागरूक और संगठित रहे, उसमें ही सबका हित है। स्वराज्य प्राप्ति के बाद भारत किस प्रकार अपने खाये हुए वैभव और गौरव को प्राप्त करे, यह चिंतन-धारा युगद्रष्टा डॉक्टर हेडगेवार के मन में चलने लगी थी। उसी चिंतन-धारा में से संघ धारा का एक सोता फूटा था। डॉक्टर साहब ने जिस प्रकार का संकल्प व्यक्त किया था, उसी के अनुरूप नागपुर के मोहिते बाड़ा रूप गोमुख से निकली संघधारा आज सहस्त्र धारा के रूप में समाज को सिंचित कर रही है।

सोमवार, 1 दिसंबर 2025

स्वयं को अनंतकाल तक बनाए नहीं रखना चाहता संघ

संघ शताब्दी वर्ष : संघमय बने समाज, संघ का लक्ष्य है कि संपूर्ण हिन्दू समाज संगठित हो और संघ उसमें विलीन हो जाए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज जिस विराट स्वरूप में दिखायी देता है, उसका संपूर्ण चित्र संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के मन में था। संघ समय के साथ उनकी संकल्पना के अनुरूप ही विकसित हुआ है। इस संदर्भ में संघ के विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी अपनी पुस्तक ‘कार्यकर्ता’ में लिखते हैं- “जैसे कोई कुशल चित्रकार पहले अपने मन के संकल्प चित्र की केवल आउटलाइन खींचता है। क्या कोई कह सकता है कि आउटलाइन के आगे उसके सामने कुछ भी नहीं है। ऐसा तो नहीं। उसके मन में तो पूरा चित्र स्पष्ट रूप से रेखांकित हुआ करता है, और कागज पर खींची हुई आउटलाइन में धीरे-धीरे उसी के अनुसार रंग भरते-भरते, उमलते हुए रंगों से कल्पना साकार होती है। अंग्रेजी में इसे ‘प्रोग्रेसिव अनफोल्डमेंट’ कहा जाता है। इसका अर्थ है कि जो बात पहले से ही मौजूद रहती है, वही समय के अनुसार उत्तरोत्तर अधिकाधिक प्रकट होकर दिखाई देना प्रारंभ होती है। संघ कार्य का भी इसी प्रकार प्रोग्रेसिव अनफोल्डमेंट हुआ है”। अपनी 100 वर्ष और चार चरणों की यात्रा में संघ के विस्तार के बाद अब आगे क्या, यह चर्चा सब ओर चल रही है। शताब्दी वर्ष के निमित्त संघ में भी यह चर्चा खूब है। इसका संकेत भी हमें संस्थापक सरसंघचालक डॉक्टर साहब की संकल्पना में मिलता है। आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार कहते थे कि “संघ कार्य की जुबली मनाने की कल्पना नहीं है। यानी कि शतकानुशतक संघ अपने ही स्वरूप में समाज को संगठित करने का कार्य करता रहेगा, यह कल्पना नहीं है”। डॉक्टर साहब चाहते थे कि संघ यथाशीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करे और समाज में विलीन हो जाए। संघ का अगला ‘प्रोग्रेसिव अनफोल्डमेंट’ समाज के साथ एकरूप होना ही है। इसलिए संघ और समाज के लिए पाँचवा चरण बहुत महत्वपूर्ण रहनेवाला है। संघ अपने पाँचवे चरण में समाज के साथ एकरस होना चाहता है। यानी संघ जिन उद्देश्यों को लेकर चला है, वह समाज के उद्देश्य बन जाएं। यानी भारतीय समाज संघमय हो जाए। समाज और संघ में कोई अंतर न दिखे।

शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

भारत के विचार की विजय पताका

श्री अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर पर धर्म ध्वजा की प्रतिष्ठा का यह प्रसंग अविस्मणीय है। यह केवल एक मंदिर पर फहराने वाला ध्वज नहीं है अपितु भारत के विचार की विजय पताका है। सदियों की तपस्या, संघर्ष और आस्था एक होकर भव्य श्रीराम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वमजा के रूप में साकार हुई है। वास्तव में, 25 नवंबर, 2025 भारत की सांस्कृतिक चेतना के लिए ‘सार्थकता का दिन’ बन गया। जैसा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “सार्थकता के इस दिन के लिए जितने लोगों ने प्राण न्योछावर किए, उनकी आत्मा तृप्त हुई होगी। आज मंदिर का ध्वजारोहण हो गया। मंदिर की शास्त्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो गई। राम राज्य का ध्वज, जो कभी अयोध्या में फहराता था, जो पूरी दुनिया में अपने आलोक से समृद्धि प्रदान करता था, वह आज धीरे-धीरे ऊपर उठते हुए अपनी आंखों से देखा है। इस भगवा ध्वज पर रघुकुल का प्रतीक कोविदार वृक्ष है। यह वृक्ष रघुकुल की सत्ता का प्रतीक है”।

रविवार, 23 नवंबर 2025

सज्जनशक्ति को साथ ले, संघ के स्वयंसेवकों ने समाज परिवर्तन के प्रयासों को दी गति

संघ शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा के चौथा चरण द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ के जन्म शताब्दी वर्ष से शुरू हुआ 

अपने सुदीर्घ सामाजिक यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक-एक कदम आगे बढ़, अपना सामर्थ्य बढ़ाता रहा और उसके अनुरूप देशहित में अपनी भूमिका का विस्तार करता रहा है। संघ के स्वयंसेवक एक गीत गाते हैं- "दसों दिशाओं में जाएं, दल-बादल से छा जाएं, उमड़-घुमड़कर हर धरती को नंदनवन सा लहराएं..."। अपने तीन चरण की यात्रा के साथ संघ अब देशव्यापी संगठन हो चुका था। समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में भी भारतीयता का पोषण करने वाला वातावरण बनाने के लिए समविचारी संगठन प्रारंभ हो ही गए थे। अब आवश्यकता थी कि सब कार्यों में समाज की सज्जनशक्ति को जोड़कर उन कार्यों को और अधिक प्रभावी बनाया जाए। किसी भी रचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्य की स्थायी सिद्धि के लिए आवश्यक है कि समाज के प्रमुख जन उस कार्य को अपना मानें और उसे यशस्वी बनाने में अपनी भूमिका निभाएं। समाज की सज्जनशक्ति तक पहुंचना और उन्हें संघधारा में लेकर आना, इसके लिए संघ ने अपने द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य 'श्रीगुरुजी' की जन्मशताब्दी वर्ष को सुअवसर के तौर पर देखा।