संघ शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा के तीसरे चरण में आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के जन्म शताब्दी वर्ष से मिली सेवा कार्यों को गति
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते हैं कि “सेवा कार्यों की प्रेरणा के पीछे हमारा स्वार्थ नहीं है। हमें अपने अहंकार की तृप्ति और अपनी कीर्ति-प्रसिद्धि के लिए सेवा-कार्य नहीं करना है। यह अपना समाज है, अपना देश है, इसलिए हम कार्य कर रहे हैं। स्वार्थ, भय, मजबूरी, प्रतिक्रिया या अहंकार, इन सब बातों से रहित आत्मीय वृत्ति का परिणाम है यह सेवा।” संघ ने अपने विकास के तीसरे चरण के अंतर्गत 1989 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी के जन्मशताब्दी वर्ष के प्रसंग से सेवा कार्यों को अधिक गति और व्यवस्थित रूप देने का निर्णय लिया। आद्य सरसंघचालक के जन्मशताब्दी वर्ष का केंद्रीय भाव या उद्देश्य सेवा कार्य ही था। तत्कालीन सरसंघचालक डॉ. बालासाहब देवरस का इस बात पर अधिक जोर था कि समाज को संभालने के लिए सेवा कार्यों की आवश्यकता है। उस समय तक संघ का सामर्थ्य इतना बढ़ गया था कि उसके कार्यकर्ता व्यवस्थिति ढंग से सेवाकार्यों का संचालन कर सकते थे। तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस की प्रेरणा से 1990 में संघ में विधिवत सेवा विभाग प्रारंभ हुआ। समाज के साथ मिलकर सेवाकार्यों को विस्तार दिया जाए, इस उद्देश्य से सभी प्रांतों में ‘सेवा भारती’ का कार्य प्रारंभ किया गया। हालांकि, दिल्ली में सेवा भारती का गठन 1979 में ही हो गया था। इससे पूर्व 1977 में दिल्ली में सरसंघचालक देवरस जी ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सेवा कार्य करने का आह्वान किया था। उनकी प्रेरणा से स्वयंसेवकों ने 1977 में ही दिल्ली की जहांगीरपुरी में पहला संस्कार केंद्र (बालवाड़ी) का शुभारंभ किया, जिसका उद्घाटन स्वयं सरसंघचालक ने किया। हमें यह याद रखना चाहिए कि संघ के बीज में ही सेवा का भाव निहित था। स्वयंसेवकों के लिए सेवा अलग से करने का विषय नहीं है। संघ का मानना है कि सेवा करणीय कार्य है। यद्यपि डॉ. हेडगेवार की जन्मशताब्दी के अवसर पर सम्पूर्ण समाज को प्रेम और आत्मीयता के आधार पर संगठित करने की दिशा में सेवा कार्यों को गति देना महत्वपूर्ण कदम था।
स्वयंसेवकों ने संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जन्म शताब्दी को राष्ट्रव्यापी जागरण अभियान में बदल दिया। संघ, डॉक्टर साहब के जन्म शताब्दी वर्ष के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके इस हेतु से ‘डॉ. हेडगेवार जन्म शताब्दी समारोह समिति’ का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी रहे निहारेन्दु दत्त मुजुमदार ने की और तत्कालीन सरकार्यवाह प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य ‘रज्जूभैया’ ने महासचिव का दायित्व निभाया। इस एक वर्ष में देश के 2 लाख 16 हजार 284 गाँवों में कुल 76 हजार 427 सभाएं आयोजित की गईं, जिनमें लगभग 67 लाख लोगों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस दौरान संघ ने राष्ट्र की सामूहिक चेतना को जगाने के लिए व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया। इसमें ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, ‘संगठित हिन्दू समर्थ भारत’ और ‘नर सेवा नारायण सेवा’ जैसे उद्घोष वाले स्टीकर और पत्रक वितरित किए गए। साथ ही, डॉक्टर साहब के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित पुस्तक ‘संघ वृक्ष के बीज’ को भी लोगों तक पहुँचाया गया। इस आयोजन की व्यापकता और सफलता इतनी प्रभावी थी कि इसकी तुलना उसी समय मनाए जा रहे अन्य आयोजनों से की जाने लगी। ‘अमृत बाजार पत्रिका’ में कम्युनिस्ट नेता उदयन ने यह स्वीकार किया कि जहाँ संघ ने एक ‘साधारण व्यक्ति’ (डॉ. हेडगेवार) की जन्मशती को जन-जन के बीच महत्वपूर्ण बना दिया, वहीं उसी समय मनाई जा रही पंडित जवाहरलाल नेहरू की जन्मशती केवल सरकारी व्यवस्थाओं तक सिमट कर रह गई। आगे चलकर, वर्ष 2000 में जब संघ ने अपने 75 वर्ष पूरे किए, तो स्वयंसेवकों ने इस गति को बनाए रखा और अपनी पहुँच को और बढ़ाते हुए 4 लाख 25 हजार गाँवों तक व्यापक संपर्क स्थापित किया। यह आँकड़ा स्वयं में गवाह है कि डॉ. हेडगेवार के विचार बीज किस प्रकार एक विशाल और अटूट ‘संघ वृक्ष’ का रूप ले चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार के जन्मशती वर्ष पर सेवा कार्यों को संचालित करने के लिए सभी प्रांतों में सेवा भारती की अलग-अलग इकाइयां गठित हुईं। ‘सेवा, संस्कार, समर्पण और स्वावलंबन’ का संकल्प लेकर सेवा भारत की ये ईकाइयां शहर तथा ग्रामीण क्षेत्र की निर्धन बस्तियों में शिक्षा, चिकित्सा, संस्कार और स्वावलंबन के प्रकल्पों का संचालन करती हैं। सेवा कार्यों के संचालन के लिए स्वयंसेवकों ने डॉ. हेडगेवार जन्मशती के अवसर पर ‘सेवा निधि’ एकत्र कर कार्यकर्ताओं की एक विशाल शृंखला तैयार की। इनके बल पर आज स्वयंसेवक सवा लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चला रहे हैं। प्रांतों की ईकाइयों में समन्वय रहे तथा वे एक-दूसरे के अनुभव का लाभ उठाएं, इसके लिए ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ का गठन हुआ। संघ की प्रेरणा से प्रारंभ हुईं संस्थाएं- वनवासी कल्याण आश्रम, विद्या भारती, विश्व हिन्दू परिषद, भारत विकास परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, दीनदयाल शोध संस्थान, भारतीय कुष्ठ निवारक संघ, विवेकानंद केंद्र, भाउराव देवरस सेवा न्यास सहित अन्य भी अपने-अपने कार्य क्षेत्र में सेवा कार्यों का संचालन करती हैं।
संघ केवल शाखा तक केंद्रित न रह जाए, इस बात की चिंता आद्य सरसंघचालक डॉक्टर साहब को प्रारंभ से थी। अप्रैल, 1926 में रामनवमी के मेले के अवसर पर वे स्वयंसेवकों को रामटेक लेकर पहुँचे। रामटेक में रामनवमी यात्रा के समय भारी भीड़ रहती थी तथा अनेक यात्रियों को अव्यवस्था के कारण धक्का-मुक्की का कष्ट तो सहना ही पड़ता था उन्हें देव दर्शन भी ठीक तरह से नहीं मिल पाते थे। डॉक्टरजी की प्रेरणा से स्वयंसेवकों ने यात्रा की संपूर्ण व्यवस्था को संभाल लिया, जिससे उस सबने आनंददायक वातावरण में यात्रा पूरी की। भारत विभाजन के समय संघ के स्वयंसेवकों ने आगे रहकर जिस समर्पण के साथ विभाजन की विभीषिका के पीड़ितों की सेवा-सुश्रुषा की, उसका स्मरण उनकी आज की पीढ़ी भी नहीं भूली हैं। उसके बाद अनेक प्रसंग आए, जो साक्षी बने कि संघ संस्कार से संस्कारित स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। 1950 में बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों को सहारा। 1950 में ही असम में आए भयंकर भूकम्प के दौरान राहत कार्य। 1962 में चीनी आक्रमण के समय भारतीय सेना की मदद। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय दिल्ली में यातायात व्यवस्था एवं घायल जवानों के लिए रक्त उपलब्ध कराना। अन्य युद्धों के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने अपने दायित्व का निर्वहन किया। 1972-73 में महाराष्ट्र में पड़े भयंकर अकाल के दौरान सब प्रकार की मदद। 1966 बिहार में अकाल के दौरान लोगों की सहायता। 1973 में कर्णाटक में सूखे कारण उत्पन्न हुए संकट में राहत कार्य। 1977 में आंध्रप्रदेश में चक्रवात के दौरान राहत-सेवाकार्य। 1977 में ही तमिलनाडु तट पर चक्रवात और इसी वर्ष राजस्थान में बाढ़ के प्रकोप में लोगों की सहायता। 1978 में दिल्ली में यमुना की बाढ़, 1979 में गुजरात में मच्चू बाँध टूटने से आई विपदा, 1983 में असम में दंगे, 1984 में भोपाल में गैस त्रासदी, 1987-88 गुजरात का सूखा, 1988 में केरल में ट्रेन दुर्घटना, 1996 में चरखी-दादरी में विमान दुर्घटना, 2000 में गुजरात में भयंकर भूकंप से लेकर अभी हाल में कोरोना महामारी के प्रकोप में हमने स्वयंसेवकों के सेवाभाव की अनुभूति की है।
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| संघ शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर 'स्वदेश ज्योति' में 16 नवंबर को प्रकाशित लोकेन्द्र सिंह का साप्ताहिक कॉलम |



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