संघ शताब्दी वर्ष : वंदेमातरम और आरएसएस - भाग 2
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साहित्य में वंदेमातरम की स्पष्ट छाया दिखायी देती है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए ‘वंदेमातरम’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा और राष्ट्र-निर्माण का आधार है, जो भाषा, क्षेत्र से ऊपर उठकर एकता का संदेश देता है। यही कारण है कि संघ के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीयता की अलख जगाने के लिए अपने लेखन में वंदेमातरम का खूब उपयोग किया है। संघ गीतों में वंदेमातरम की गूंज है, तो वंदेमातरम पर लेख और पुस्तकों की रचना भी की गई है। जब भी वंदेमातरम को सांप्रदायिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया गया और उसकी अवमानना करने का प्रयास किया गया, तब-तब संघ के स्वयंसेवकों ने मुखरता से वंदेमातरम के पक्ष में अपनी कलम चलायी है। अगर हम संघ साहित्य का गहनता से अध्ययन करेंगे तो हमें स्पष्टतौर पर उसमें वंदेमातरम की छाया दिखायी देगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थिंक टैंक रहे, चिंतक-मनीषी श्रद्धेय रंगा हरि जी ने वंदेमातरम पर अनूठी पुस्तक की रचना की है- ‘वंदेमातरम की आत्मकथा’। यह पुस्तक केवल राष्ट्रगीत के इतिहास का वर्णन नहीं करती, बल्कि इसे एक जीवंत इकाई के रूप में प्रस्तुत करती है, जो राष्ट्र के जन्म और संघर्ष की गाथा स्वयं अपने मुख से सुना रही हो। इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। यानी इसके माध्यम से वंदेमातरम की गौरवगाथा संपूर्ण देश में प्रसारित करने का प्रयास संघ ने किया।
‘वंदेमातरम की आत्मकथा’ में श्रद्धेय रंगा हरि जी ने उन राजनीतिक और सांप्रदायिक विवादों का भी बेबाकी से जिक्र है जो इस गीत के साथ जुड़े रहे। इसमें जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और रवींद्रनाथ टैगोर के बीच हुए पत्र-व्यवहार और विमर्श का विश्लेषण भी शामिल है। उन्होंने यह भी बताया है कि दुनिया के अन्य देशों के राष्ट्रगीत अकसर स्वतंत्रता के बाद या राष्ट्र बनने के बाद लिखे गए, लेकिन ‘वंदेमातरम’ संभवतः एकमात्र ऐसा गीत है जिसने राष्ट्र निर्माण से पहले क्रांति को जन्म दिया।
वंदेमातरम को आधार मानकर और ‘वंदेमातरम’ पद को लेकर संघ में कई गीत रचे गए हैं, जो स्वयंसेवकों के मन में राष्ट्रभक्ति की ज्योति को दैदीप्यमान रखते हैं। एक गीत मुझे व्यक्तिगत तौर पर बहुत प्रिय है। देशभक्ति की भावना को जगानेवाले इस गीत की प्रत्येक पंक्ति के आखिर में ‘वंदेमातरम’ आता है-
राष्ट्र की जय चेतना का गान वंदे मातरम्,
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गान वंदे मातरम्।।
वंशी के बहते स्वरों का प्राण वंदे मातरम्,
झल्लरी झनकार झनके नाद वंदे मातरम्,
शंख के संघोष का संदेश वंदे मातरम्।।
इसी तरह, संघ में संस्कृत में एक गीत गाया जाता है- “वंदे त्वां भूदेवीम् आर्य मातरम्। जयतु जयतु पदयुगलम् ते निरन्तरम्॥ वंदे मातरम्...” इस गीत के आगे के पदों में ठीक उसी तरह भारत की वंदना की गई है, जिस प्रकार बंकिम बाबू ने ‘वंदेमातरम’ में की है। गीत में कहा गया है कि आप (भारत माता) हिमालय (हिम-नग) से जन्मी हैं (पार्वती स्वरूपा), आप हमें स्वाभिमान और सद्बुद्धि देती हैं। आप अपनी विशाल सेना और अनगिनत भुजाओं से अपने पुत्रों (देशवासियों) का तारण (रक्षा) करती हैं। करोड़ों-करोड़ों कंठ आपकी जय-जयकार करते हैं। आप साक्षात लक्ष्मी (कमला) हैं, आप निर्मल (अमला) और अतुलनीय हैं। आप बल प्रदान करने वाली, शत्रुओं का नाश करने वाली (रिपु-हरणीम्) और उनके घमंड को चूर करने वाली हैं।
‘वंदेमातरम’ से पूर्ण विजय तक राष्ट्र की आराधना :
एक अन्य गीत को देखिए- “पूर्ण विजय संकल्प हमारा, अनथक अविरत साधना। निशिदिन प्रतिपल चलती आयी, राष्ट्रधर्म आराधना। वंदे मातृभूमि वंदे, वंदे जगजननी वंदे।।” इस गीत में मातृभूमि की वंदना करते हुए स्वयंसेवक संकल्प व्यक्त करते हैं कि जब तक पूर्ण विजय नहीं हो जाएगी, तब तक हम राष्ट्रधर्म की आराधना करते रहेंगे। यह पूर्ण विजय का संकल्प क्या है? भारत माता को परम वैभव पर सुशोभित करना ही, स्वयंसेवकों का एकमेव संकल्प है। एक अन्य गीत को देखिए- “वन्दे जननी भारत धरणी शस्य श्यामला प्यारी। नमो नमो सब जग की जननी कोटि कोटि सुतवारी॥” इसमें स्वयंसेवकों ने भारत माता के सौंदर्य का बखान ‘वंदेमातरम’ की तर्ज पर ही किया है। जैसे स्वयंसेवक कवि ने कल्पना की है कि उन्नत हिमालय माँ का मुकुट है, सिंधु भारत माता के पाँव पखार रहा है। हरियारी से माँ का आँचल है। गंगा-यमुना सहित अन्य नदिया जीवनरस देती हैं। यहाँ माया, मथुरा और अयोध्या जैसे नगर हैं, जहाँ स्वयं ईश्वर ने लीलाएं रची हैं। “भारत वंदे मारतम् जय, भारत वंदे मातरम्।।” गीत के प्रत्येक पद के आखिर में स्वयंसेवक ‘वंदेमातरम’ का जयघोष करते हैं। संघ में इस प्रकार के गीतों की एक लंबी शृंखला है।
1949 के समाचारपत्र में ‘वंदेमातरम’ :
स्वयंसेवकों ने समाचारपत्र प्रकाशित किए तो अवसर आने पर वहाँ भी वंदेमातरम की प्रतिष्ठा को बढ़ाने का कार्य किया। जालंधर में संघ के स्वयंसेवक ‘आकाशवाणी’ नामक समाचारपत्र का प्रकाशन करते थे। 11 दिसंबर, 1949 को उस समाचारपत्र में स्वयंसेवकों ने मैडम भीकाजी कामा द्वारा बर्लिन में फहराए गए भारत के पहले राष्ट्रीय ध्वज को प्रकाशित किया। समाचारपत्र में ध्वज के साथ-साथ राष्ट्रगान, जन-गण-मन और राष्ट्रगीत, वंदेमातरम, दोनों के अखंड स्वरूप को भी प्रकाशित किया था। यह राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति संघ के स्वयंसेवकों की श्रद्धा की अभिव्यक्ति है।
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| जालंधर से प्रकाशित आकाशवाणी, 11 दिसंबर 1949 |
शाखा पर ‘वंदेमातरम’ :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के लिए ‘वंदेमातरम’ का महत्व प्रारंभ से है। संघ के बारे में नासमझीपूर्ण बातें करनेवाले लोगों को कभी संघ की शाखा पर जाकर देखिए, वंदेमातरम का जयघोष गूंजता आपको सुनायी देगा। अपने देशी खेल खेलते समय स्वयंसेवक जोश, उत्साह, साहस के संचार के लिए जिन जयघोषों को उच्चारित करते हैं, उनमें वंदेमातरम प्रमुख है। हम किसी भी शहर में चले जाएं, वहाँ वंदेमातरम का पूर्ण गायन करनेवाले लोगों में सबसे अधिक संख्या संघ के स्वयंसेवकों की ही मिलेगी क्योंकि संघ के ज्यादातर कार्यक्रमों में वंदेमातरम का पूर्ण गायन किया जाता है। इसके अलावा, संघ की प्रेरणा से चलने वाले सरस्वती शिशु मंदिर स्कूलों में भी अखंड वंदेमातरम सिखाया जाता है।
राष्ट्रगीत वंदेमातरम् के 150 वर्ष होने पर माननीय सरकार्यवाह जी का वक्तव्यhttps://t.co/oOGHZz4pBD
— RSS (@RSSorg) November 1, 2025
सरकार्यवाह दत्ताजी का आह्वान :
अब जबकि संपूर्ण देश अमर रचना ‘वंदेमातरम’ के 150 वर्ष पूर्ण होने पर आनंदित है और उत्सवों का आयोजन कर रहा है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से वक्तव्य आना- वंदेमातरम और संघ के बीच गहरे संबंधों को प्रकट करता है। सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने अपने वक्तव्य में कहा है- “मातृभूमि की आराधना और संपूर्ण राष्ट्र जीवन में चेतना का संचार करने वाले अद्भुत मन्त्र ‘वंदेमातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के शुभ अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रगीत के रचयिता श्रद्धेय बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। 1875 में रचित इस गीत को 1896 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रकवि श्रद्धेय रविंद्रनाथ ठाकुर ने सस्वर प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। तब से यह गीत देशभक्ति का मंत्र ही नहीं अपितु राष्ट्रीय उद्घोष, राष्ट्रीय चेतना तथा राष्ट्र की आत्मा की ध्वनि बन गया। ‘वंदेमातरम’ राष्ट्र की आत्मा का गान है जो हर किसी को प्रेरणा देता है। आज जब क्षेत्र, भाषा, जाति आदि संकुचितता के आधार पर विभाजन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब “वंदेमातरम्” वह सूत्र है, जो समाज को एकता के सूत्र में बांधकर रख सकता है। भारत के सभी क्षेत्रों, समाजों एवं भाषाओं में इसकी सहज स्वीकृति है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित सम्पूर्ण समाज से आवाहन् करता है कि वंदेमातरम् की प्रेरणा को प्रत्येक हृदय में जागृत करते हुए “स्व” के आधार पर राष्ट्र निर्माण कार्य हेतु सक्रिय हों और इस अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को उत्साहपूर्वक भागीदारी करें”।
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| संघ शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर 'स्वदेश ज्योति' में 21 दिसंबर, रविवार को प्रकाशित साप्ताहिक स्तम्भ |







