सोमवार, 26 अगस्त 2024

‘तिरंगा और आरएसएस’ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण

लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' को ऑनलाइन खरीदने के लिए इमेज पर क्लिक करें।

- अंकित शर्मा (लेखक आयुध मीडिया के संस्थापक सदस्य हैं।)

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, भगवा ध्वज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम फैलाए जाते हैं। यहाँ तक कहा जाता है कि आरएसएस भगवा ध्वज को मानता है इसलिए संघ के स्वयंसेवक तिरंगा का सम्मान नहीं करते हैं। प्रखर राष्ट्रभक्त संगठन के बारे में इस प्रकार की भ्रामक बातों को यूँ तो समाज स्वीकार नहीं करता है परंतु फिर भी एक वर्ग तो भ्रम में पड़ ही जाता है। समाज को भ्रमित करनेवाले झूठे नैरेटिव का तथ्यात्मक उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ के माध्यम से दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में राष्ट्रध्वज तिरंगा, सांस्कृतिक ध्वज भगवा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया है। राष्ट्रध्वज और आरएसएस के संदर्भ में कई नए तथ्य यह पुस्तक हमारे सामने लेकर आती है। यह पुस्तक हमें बताती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने कब और किन परिस्थितियों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान में अपने प्राणों तक की आहुति दी है। इसके साथ ही यह पुस्तक राष्ट्रध्वज के निर्माण की कहानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी हमारे सामने लेकर आती है।

हम सब जानते हैं कि ध्वज, किसी भी राष्ट्र के चिंतन एवं ध्येय का प्रतीक होता है। राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्रीय  ध्वज ‘तिरंगा’ भारत की पहचान है। 1905 से ही अनेक झंडे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किये गए। जिसके बाद संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया। राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे का सम्मान होने के साथ ही भगवा ध्वज को भारत का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को अपना गुरु मानता है। भारत के ‘स्व’ से कटे हुए कुछ लोग और समूह भगवा ध्वज को नकारते हैं। साथ ही यह भ्रम भी फैलाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तिरंगे को सम्मान नहीं देता। लेकिन ऐसा कहने वाले शायद ये नहीं जानते कि एक ध्वज का मान रखना दूसरे का निरादर करना कतई नहीं है। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत की यह बात समझनी चाहिए, जिसमें वे कहते हैं कि स्वतंत्रता के जितने सारे प्रतीक हैं, उन सबके प्रति संघ का  स्वयंसेवक अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है।

पुस्तक का विमोचन मेजर गौरव आर्या ने किया। देखिए यह वीडियो -

लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ हमें स्मरण कराती है कि तिरंगे के सम्मान में संघ ने तब भी आंदोलन चलाए जब सत्ताधीश जम्मू-कश्मीर में राष्ट्र की संप्रभुता को ताक पर रखकर दो प्रधान, दो विधान, दो निशान (ध्वज) स्वीकार कर चुके थे। उन परिस्थितियों में भी संघ ने विरोध करते हुए देश में एक प्रधान, एक विधान, एक निशान होने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक राष्ट्र में एक ही ध्वज चलेगा, जो कि तिरंगा है। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के आव्हान पर हुए असहयोग आंदोलन के दौरान तिरंगा फहराते हुए स्वयंसेवकों को गोली लगने की बात हो, वर्ष 1947 में जम्मू कश्मीर में श्रीनगर की कई इमारतों पर पाकिस्तानी झंडे फहराने के विरोध में संघ के स्वयंसेवको की कार्रवाई हो, या फिर गोवा मुक्ति आन्दोलन में संघ के स्वयंसेवकों को गोली लगने के बाद भी अपने हाथ से तिरंगा न गिरने देने की घटना हो। सभी अवसरों पर संघ के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रध्वज के सम्मान में सर्वोच्च बलिदान देने का साहस दिखाया है। ऐसे कई महत्वपूर्ण तथ्य इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आते हैं। 

पुस्तक में यह भी उल्लेख आता है कि अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए संघ और राष्ट्रध्वज तिरंगे को लेकर उन लोगों ने संघ के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां फैलाईं, जिन्होंने स्वयं ही 2022 से पहले तक अपने मुख्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराया था। प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने 2022 में पहली बार अपने पार्टी मुख्यालयों पर राष्ट्रध्वज फहराया। लेखक लोकेन्द्र सिंह ने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर संघ और तिरंगे को लेकर फैलाये जाने वाले नैरेटिव से पर्दा उठाया है। अपनी पुस्तक में उन्होंने बड़ी ही सरलता से राष्ट्रध्वज के विकास की यात्रा में भगवा ध्वज का महत्व एवं तिरंगे के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक के अंतर्संबंधों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह बड़ी ही रोचक पुस्तक है। 

जो भी सच जानने में रुचि रखते हैं, उन्हें ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अवश्य पढ़नी चाहिए। यह छोटी पुस्तक है। लेखक ने गागर में सागर को समेटने का प्रयास किया है, जिसमें वे सफल रहे हैं। लेखनी में सहजता और सरलता है। पुस्तक अपने पहले अध्याय से लेकर आखिरी अध्याय तक पाठकों को बांधे रखने की क्षमता रखती है। ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ का प्रकाशन राष्ट्रीय विचारों को समर्पित अर्चना प्रकाशन, भोपाल ने किया है।

स्वदेश, भोपाल में 18 अगस्त 2024 को प्रकाशित लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' की समीक्षा। समीक्षक हैं आयुध मीडिया के तेजतर्रार पत्रकार अंकित शर्मा।

पुस्तक : राष्ट्रध्वज और आरएसएस

लेखक : लोकेंद्र सिंह

पृष्ठ : 56

मूल्य : 70 रुपये

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल


तिरंगा और आरएसएस पर यह वीडियो शृंखला अवश्य देखिए-

भाग-1 : तो भगवा झंडा होता राष्ट्रध्वज

भाग-2 : RSS में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा

भाग-3 : तिरंगे के सम्मान में संघ ने दिया बलिदान

क्या हुआ जब आरएसएस कार्यालय में तिरंगा लेकर पहुँचे कांग्रेसी नेता

आरएसएस करता है तिरंगे का सम्मान- डॉ. मोहन भागवत

रविवार, 25 अगस्त 2024

प्रशांत जी, इतनी भी क्या जल्दी थी…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, महाकौशल प्रांत के सह-प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेयी का हृदयघात से निधन

जब से सूचना मिली है कि प्रशांत जी नहीं रहे, मन है कि विश्वास ही नहीं कर रहा है। मन थोड़ी देर सहज रहता है, फिर अचानक से ध्यान आता है कि प्रशांत जी नहीं रहे, तो बेचैनी बढ़ जाती है। फिर अगले ही क्षण इस अविश्वसनीय समाचार को ‘असत्य’ मानकर मन सहज हो जाता है। कुलमिलाकर मन मानने को तैयार नहीं है कि आज से ठीक 14 दिन बाद यानी 8 सितंबर को जिसका जन्मदिन था, वह 46 वर्ष की अल्पायु में ही हमको छोड़कर जा चुका है। जिसका हृदय धर्म, देश, समाज और मित्रों के लिए खूब धड़कता था, 24 अगस्त को अचानक से उसकी हृदय गति ही रुक गई। हृदयघात ने हम सबके ‘प्रशांत’ को छीन लिया। सोच रहा हूँ कि नियति को भी क्या सूझी होगी कि एक हँसता-खिलता फूल चट से तोड़ लिया…..

शनिवार, 17 अगस्त 2024

आंतरिक सुरक्षा को लेकर सजग है आरएसएस

“कोई पूछता है कि देश के लोग सुरक्षित क्यों हैं? तो मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और किस्मत से आरएसएस है”। - न्यायमूर्ति केटी थॉमस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पूर्व जज केटी थॉमस का बयान

सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति केटी थॉमस के इस कथन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों की देशभक्ति एवं बलिदान की कथाएं हैं। जब हम इतिहास के पृष्ठ पलटते हैं तो संघर्ष के समय में आरएसएस के कार्यकर्ता साहस के साथ मोर्चा लिए खड़े दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार पाकिस्तान ने आक्रमण किया तब, 1962 में चीन ने पीठ में छुरा घोंपा तब और उसके बाद भी जब देश पर शत्रु ने हमला किया तब, प्रत्येक अवसर पर संघ के स्वयंसेवकों ने यथासंभव देश की सुरक्षा में अपना योगदान दिया। गोवा मुक्ति आंदोलन में तो संघ ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। इस आंदोलन में उज्जैन, मध्यप्रदेश के ही एक स्वयंसेवक राजाभाऊ महाकाल ने तिरंगे की शान में सीने पर गोली खाई थी। युद्ध ही क्यों, संघ के स्वयंसेवक शेष समय में भी आंतरिक सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत आरएसएस के समविचारी संगठन अपने निहित कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ समाज का इस प्रकार प्रबोधन करते हैं कि वहाँ अराजकतावादी ताकतें पनप नहीं पाती हैं। 

देश की सुरक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर और सजग रहते हैं। बाहरी दुश्मनों से निपटने के लिए देश की सीमा पर अदम्य साहसी भारतीय सेना खड़ी है। किंतु, विदेशी ताकतें भारत को भीतर से भी तोडऩे के लिए षड्यंत्र रचती रहती हैं। ऐसे में सेना जैसा अनुशासन रखने वाले सजग नागरिकों की आवश्यकता रहती है, जो आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में देश के सुरक्षा बलों के अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध हो सकें। संघ के स्वयंसेवक शाखा में ऐसा ही अनुशासन और सजगता सीखते हैं। स्वयंसेवकों के इसी अनुशासन को आधार बना कर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संघ के स्वयंसेवक तीन दिन में सेना के लिए तैयार हो सकते हैं। 

Statement of former judge KT Thomas on Rashtriya Swayamsevak Sangh

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार और समाज दोनों को ही समय-समय पर बाहरी और भीतरी हमले के संबंध में चेताता रहा है। देश की आंतरिक सुरक्षा संघ की प्राथमिकता में शामिल है। इसलिए संघ की शीर्ष बैठकों में आंतरिक सुरक्षा के विषय पर निरंतर चर्चा होती रहती है। मुम्बई बम धमाकों (वर्ष 1993) के बाद तो संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने बाकायदा 'देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे' शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया था। अपने इस प्रस्ताव में संघ ने देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति चिंता जताई, उसे और अधिक मजबूत करने की माँग सहित पाँच प्रमुख आग्रह सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए। इसके बाद 1994 में 'आंतरिक सुरक्षा' और 1995 में 'आंतरिक परिस्थिति' शीर्षक से प्रस्ताव पारित किया था। वर्ष 1995 के अपने प्रस्ताव में संघ ने स्वयंसेवकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय एकता और अपने सांस्कृतिक मूल्यों का बोध जगाकर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत एकात्म समाज को खड़ा करने के कार्य को और भी अधिक गतिमान और बलवान बनाने के लिए पूरी शक्ति से जुट जाएं। संघ ने राष्ट्रीय सुरक्षा-1996, राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती-2001, आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां-2004, आतंकवाद और भारत की आंतरिक सुरक्षा-2006 प्रस्ताव पारित कर भी आंतरिक सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं चिंता को प्रकट किया। इसके साथ ही अन्य प्रस्तावों में भी कहीं न कहीं संघ के नीति निर्माता समूह ने आंतरिक सुरक्षा को मुद्दे को सम्मिलित किया है। 

यदि हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो संघ के समविचारी संगठनों के प्रयास के कारण ही यहाँ अराजक एवं विभाजनकारी ताकतें सक्रिय नहीं हो पाईं। प्रदेश के कुछ हिस्सों नक्सलियों के प्रभाव में आए, किंतु नक्सली उन हिस्सों को पूरी तरह से लाल गलियारे में परिवर्तित नहीं कर पाए। क्योंकि, उन क्षेत्रों के नागरिकों के बीच संघ का काम पहले से उपस्थित था और जहाँ नहीं था, वहाँ संघ ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। संघकार्य से उन क्षेत्रों के नागरिकों में अपने राष्ट्रभक्ति की भावना प्रकट हुई और वह नक्सलियों के जाल में नहीं फंस पाए। मध्यप्रदेश में संघ की उपस्थिति को मजबूत माना जाता है। यहाँ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं, अपितु सुदूर वनवासी क्षेत्रों में भी संघ प्रत्यक्ष एवं समविचारी संगठनों के माध्यम से समाज हित में कार्य कर रहा है। शिक्षा एवं स्वावलंबन के लिए वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन वनवासी समाज के बीच में काम कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद भी सामाजिक कार्यों के माध्यम से इन क्षेत्रों में सक्रिय है। यह जान लेना जरूरी होगा कि वनवासी समाज के बीच समाजकंटक ताकतें पूरी ताकत के साथ सक्रिय हैं। यह ताकतें समाज को बांटने के लिए हर प्रकार के षड्यंत्र रच रही हैं। वनवासियों को हिंदू समाज से तोडऩे और उन्हें अपने ही मूल के प्रति विद्रोही बनाने का दुष्चक्र भी देश विरोधी ताकतें रचती हैं। किंतु, वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन अपने सेवाकार्यों से वनवासी समाज को अपना बना लेते हैं और उनके मन में कोई भ्रम ही उत्पन्न नहीं होने देते। जो वनवासी बंधु समाजकंटकों के संपर्क में आ भी जाते हैं, उनका भी मन बदलने में देर नहीं लगती। संघ अपने निस्वार्थ सेवाकार्यों से उन्हें जागरूक कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम और सेवाभारती सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। उनके प्रयास से ऐसे क्षेत्रों में विद्यालय प्रारंभ हुए हैं, जहाँ सरकार भी शिक्षा का उजियारा लेकर नहीं पहुंच सकी। पूर्ण एवं एकल विद्यालयों के माध्यम से संघ के स्वयंसेवक बच्चों को शिक्षित ही नहीं कर रहे, अपितु उनको संस्कार भी देने का कार्य करते हैं। उनको राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी जोड़ते हैं।

मध्यप्रदेश एक समय में आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का जाल भी फैल गया था। परंतु, सिमी का काम मध्यप्रदेश में चल नहीं सका। मध्यप्रदेश के जाग्रत समाज ने सिमी का भण्डा फोड़ दिया और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित सरकार ने आतंकी संगठन को प्रतिबंधित करने में कतई देर नहीं लगाई। संघ के स्वयंसेवक लगातार सरकार को चेता रहे थे कि प्रदेश में स्टूडेंट मूवमेंट के नाम पर आतंकी संगठन खड़ा हो रहा है। बाद में, जब आतंकी बम धमाकों में सिमी की संल्पितता उजागर हुई, तो संघ की चेतावनी सबको स्मरण हुई। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ आंतरिक सुरक्षा पर चिंता ही व्यक्त नहीं करता है, अपितु उसके स्वयंसेवक सदैव देश की सुरक्षा के लिए चौकन्ने रहते हैं। जिन क्षेत्रों में संघ का कार्य प्रभावी ढंग से चलता है, वहाँ समाज जाग्रत रहता है। उन क्षेत्रों में ऐसी स्थिति कतई नहीं रहती कि लोगों को अपने पड़ोस की भी जानकारी न हो। बल्कि, उन क्षेत्रों में लोगों का आपस में आत्मीय संपर्क एवं संवाद रहता है। इस कारण वहाँ समाज के बीच कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि छिप नहीं सकती। संघ का मानना है कि देश की अखण्डता के लिए आवश्यक है कि देश भीतर से भी मजबूत हो। देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो और यह सब संभव है, समाज के जाग्रत एवं संगठित रहने से। इसलिए संघ का जो समाज संगठन का कार्य है, वह भी आंतरिक सुरक्षा में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होता है।

15 अगस्त 2024 को स्वदेश भोपाल में प्रकाशित- देश की रक्षा के लिए तत्पर संघ

रविवार, 4 अगस्त 2024

जीवित, जाग्रत क्रांति पुरुष हैं हिन्दवी स्वराज्य के दुर्ग

- पुरु शर्मा 

यात्राएं हमेशा रुचिकर होती हैं। उनका अपना लोक, चरित्र और व्यवहार होता है। यात्रा अपरिचय को परिचय में बदलती है, अज्ञात को ज्ञात में। यायावरी का यही गुण लेखक तथा उसके लेखन को समृद्ध करता है, उसे पैना बनाता है। उद्देश्यपूर्ण यात्राएं सदैव सार्थक सर्जन का आह्वान करती हैं। चलने से चेतना और बहने से पानी निर्मल होता है। कल्पना के पंखों पर सवार मन जाने कहां-कहां उड़ता फिरता है। अगर कोलंबस, वास्को डिगामा, मेगास्थनीज आदि ने यात्राएं न की होतीं तो अमेरिका को कौन जानता, भारत का इतिहास क्या होता? अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा यात्रा न की होती तो क्या यात्रा-साहित्य नर्मदा माई की अविरलता और प्रवाहशीलता से परिचित हो पाता?

यात्राओं ने हमेशा साहित्य, समाज, संस्कृति और वैचारिकी को मांजा है, पुष्ट तथा समृद्ध किया है। पैरों में पंख बांधकर उड़ते रामवृक्ष बेनीपुरी हों या यायावरी को याद करते अज्ञेय, 'अजंता की ओर' संघबद्ध कला-कलाप को निहारते जानकीवल्लभ शास्त्री और 'स्मरण को पाथेय बनने दो' की पुकार लगाते विष्णुकांत शास्त्री, सभी ने अपनी यात्राओं में जीवन के नए सूत्रों को खोजा। 

देखिए- युवा पत्रकार कृष्ण मुरारी अटल के साथ 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन' पर विशेष चर्चा