शनिवार, 25 दिसंबर 2021
‘अटलपथ’ पर चल रही सरकार
रविवार, 5 दिसंबर 2021
भारत में दर्शन का आधार है ‘संवाद’
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥2॥
समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् l
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥3॥
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥4॥
ऋग्वेद के 10वें मंडल का यह 191वां सूक्त ऋग्वेदका अंतिम सूक्त है। इस सूक्त में सबकी अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले अग्निदेव की प्रार्थना, जो आपसी मतभेदों को भुलाकर सुसंगठित होने के लिए की गयी है। आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें। समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर एवं विरोध त्याग करके अपना काम करें। हम सबकी प्रार्थना एकसमान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण मन-चित्त-विचार समान हों। मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ। तुम सबके संकल्प एकसमान हों, तुम्हारे ह्रदय एकसमान हों और मन एकसमान हों, जिससे तुम्हारा कार्य परस्पर पूर्णरूपसे संगठित हों।