छ त्तीसगढ़ की राजनीतिक राजधानी जरूर रायपुर है लेकिन छत्तीसगढ़ का असली रंग तो बस्तर में ही है। संभवत: यही कारण है कि बस्तर को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। अहो बस्तर, तुम भाग्यशाली हो, अभी भी प्रकृति की गोद में हो। इंद्रावति नदी तुमको सिंचित करती है। वरना तो विकास के नाम पर कितने शहर कांक्रीट के जंगल बन गए। सघन वन, ऊंचे-नीचे पहाड़ और आदिवासी लोकरंग से समृद्ध है बस्तर। बस्तर का जिला मुख्यालय जगदलपुर शहर है। जगदलपुर राजधानी रायपुर से करीब 305 किलोमीटर दूर स्थित है। सड़क मार्ग से जगदलपुर पहुंचने में 5 से 6 घंटे का सफर तय करना पड़ता है। सड़क मार्ग के दोनों और हरे-भरे, ऊंचे और घने पेड़ हैं, जो खूबसूरत बस्तर की तस्वीर दिखाते हैं। ये नजारे कहते हैं कि अगर आप घुमक्कड़ हो तो सही जगह आए हो, स्वागत है तुम्हारा।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से एक शोध कार्य के संदर्भ में बस्तर जाने का मौका मिला। पांच दिन बस्तर की वादियों और बस्तर के सरल स्वभाव के लोगों के बीच रहना हुआ। बस्तर की ज्यादातर आबादी वनवासी (आदिवासी) है। कुछ आबादी देश के अन्य प्रान्तों से आकर बस गई है या बसाई गई है। ग्वालियर-चंबल संभाग के भिण्ड जिले के प्रेम भदौरिया बताते हैं कि काफी पहले उनका परिवार भिण्ड से कारोबार के लिए जगदलपुर आया था। यहां की आबोहवा इतनी रास आई कि वे यहीं बस गए। वे बताते हैं कि बस्तर के एक राजा ने ग्वालियर-चंबल संभाग के कई ठाकुरों को यहां लाकर बसाया था। वनवासी समाज के बीच यहां एक गांव ठाकुरों का भी है। व्यापार करने के लिए मारवाडिय़ों ने भी यहां दुकानें जमा रखी हैं। उड़ीसा से बस्तर बेहद नजदीक है। यही कारण है कि उड़ीसा के लोग भी यहां आकर बस गए हैं। बस्तर के लोग भी कामकाज और बेहतर इलाज के लिए विशाखापट्नम जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुरेश रावल बताते हैं कि मूलत: वे भी उड़ीसा के हैं। काफी पहले यहां आकर बस गए हैं। बस्तर को समझने और देखने में श्री सुरेश रावल का बहुत सहयोग मिला। एक ढाबा पर, एक ही टेबल पर हम चार लोग खाना खा रहे थे। इनमें से एक पंजाब, दूसरा उड़ीसा, तीसरा उत्तरप्रदेश और चौथा यानी मैं मध्यप्रदेश का मूल निवासी था। मुझे छोड़कर बाकी के तीन सज्जन बस्तर में ही रच-बस गए थे। यानी कह सकते हैं बस्तर छत्तीसगढ़ी संस्कृति का गढ़ तो है ही देशभर की साझा संस्कृति की झलक भी यहां देखने मिलती है।