सोमवार, 11 जुलाई 2016

आतंकी से सहानुभूति क्यों?

 आतंकवादी  संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के 22 वर्षीय कमांडर बुरहान वानी की मौत पर जम्मू-कश्मीर में मातम ही नहीं मनाया जा रहा है, बल्कि उपद्रव भी किया जा रहा है। सेना और पुलिस को निशाना बनाकर हमले किए जा रहे हैं। इस उपद्रव में अब तक करीब 20 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं। बुरहान वानी खतरनाक आतंकवादी था। उसके सिर पर दस लाख का इनाम था। बुरहान वानी भी इस्लामिक उपदेशक डॉ. जाकिर नाइक से प्रेरित था। उसकी मौत से हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन को बहुत बड़ा नुकसान होगा। दरअसल, वानी हिजबुल मुजाहिदीन के पोस्टर बॉय के रूप में स्थापित हो चुका था। खुद को आगे रखकर वह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के लिए घाटी के मुस्लिम युवाओं की भर्ती करता था। उसकी मौत से आतंकवादी तैयार होने की यह प्रक्रिया टूटेगी। इसलिए वानी की मौत को पुलिस, सेना और सरकार आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कामयाबी मान रही है।
      हिंसक उपद्रव देखकर यह समझना कठिन हो रहा है कि खूंखार आतंकवादी के समर्थन में पत्थरबाजी, गोलाबारी और आगजनी करने वाले यह लोग कौन हैं? इन्हें वानी से सहानुभूति क्यों है? हमने पिछले सप्ताह भी ढाका हमले के बाद सवाल उठाया था कि 'आतंकवाद और इस्लाम का क्या संबंध है?' यह प्रश्न फिर से प्रासंगिक हो उठा है। इस पर एक सार्थक विमर्श मुसलमानों को ही करना चाहिए। मुसलमानों की इस तरह की हरकतों से उनके प्रति आम समाज में अविश्वसनीय छवि बनती है। आतंकवादी की मौत के विरोध में जम्मू-कश्मीर में आग लगाने के षड्यंत्र को जब देखते हैं तब ध्यान आता है कि कैसे आतंकवादी के लिए कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में गायबाना नमाज अदा की गई। बाकायदा नमाज अदा कर मस्जिदों से निकले मुसलमानों ने पुलिस और सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर हिंसक उपद्रव किया। आखिर मस्जिद में उन्होंने क्या शिक्षा पाई? 
          आश्चर्य तब और बढ़ जाता है जब आतंकी बुरहान वानी और उसके उत्पाती समर्थकों के हित में देशभर में सहानुभूति का वातावरण बनाया जाता है। हत्यारों के प्रति इस लगाव से भारत सरकार और आम समाज के माथे पर बल पडऩा स्वाभाविक है। अलगाववादी नेताओं के बयान फिर भी समझ में आते हैं कि वे पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर के मुसलमानों को भड़काने का प्रयास करते हैं और उनका धंधा-पानी इसी से चलता है। लेकिन, देश के तथाकथित बुद्धिजीवी आतंकियों के पक्ष और सरकार के विरोध में जब दिखते हैं तब उनकी नीयत पर शक होता है। भारत के प्रति उनकी निष्ठा भी प्रश्रांकित होती है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुला का बयान भी बेहद आपत्तिजनक और भड़काऊ किस्म का है। उनके बयान का सीधा अर्थ यही निकलता है कि सरकार ने बुरहान वानी को मारकर बहुत बड़ी गलती कर दी है। गौरतलब है कि आतंकवादी अफजल की फांसी से पूर्व भी अब्दुला ने गैर जिम्मेदारान बयान दिया था कि अफजल को फांसी पर चढ़ाया तो जम्मू-कश्मीर में आग लग जाएगी। जिन्हें जम्मू-कश्मीर की आवाम को सही दिशा दिखानी चाहिए, वह ही ऐसे मौकों पर उसे भड़काने का काम करते हैं। देशद्रोह के आरोपी उमर खालिद ने भी अपना रंग दिखा दिया है। जिन लोगों को खालिद मासूम नजर आ रहा था, उन्हें अपनी आँखों पर चढ़ा चश्मा और कानों में ठूंसी रूई निकाल लेनी चाहिए। 
          बहरहाल, तमाम 'बुरहान वानियों' और उनके समर्थकों को समझ लेना चाहिए कि आतंक के रास्ते पर कुछ भी हासिल नहीं होगा। वानी की मौत से सरकार ने जम्मू-कश्मीर के भटके युवाओं को स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंक का साथ निभाने वालों का अंजाम ठीक नहीं होगा। हालांकि यह अलग विषय है कि मुसलमान इस संदेश को कितना आत्मसात करते हैं? लेकिन, सरकार ने एक बात स्पष्टतौर पर जाहिर कर दी है कि जम्मू-कश्मीर और देश का माहौल बिगाडऩे का प्रयास करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। आतंकियों से प्रेम रखने वाले उत्पातियों से निपटने के लिए सरकार सेना के 1200 जवान हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में भेज रही है। आतंकवाद के खिलाफ सरकार के यह ठोस कदम जरूर रंग लाएंगे। आतंकियों के समर्थकों को हतोत्साहित करने के लिए भी सरकार को कोई योजना बनानी चाहिए। 

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