शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

धर्मान्तरण रोधी कानून से किसके पेट में दर्द

 ध र्मान्तरण पर हिन्दू संगठनों खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पानी पी-पीकर गाली दे रहे तथाकथित सेक्यूलरों ने शायद इतिहास के पन्ने नहीं पलटे। वैसे भी ये 'सेक्यूलर जमातें' तो इतिहास को अपने हिसाब से रचने के लिए कुख्यात हैं। यदि इतिहास का निष्पक्ष अध्ययन 'सेक्यूलरों' ने किया होता तो संभवत: ये मतान्तरण जैसा लांछन हिन्दू धर्म पर लगाने की हिमाकत न कर पाते। बहरहाल, सेक्यूलर जाति तो हिन्दू धर्म पर प्रश्न चिह्न लगाने, राष्ट्रवादी विचार को कोसने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को खलनायक साबित करने के मौके खोजने का ही काम करती रहती है। आगरा में कुछ मुसलमानों के हिन्दू बनने की घटना तो इनके लिए वियाग्रा की खुराक साबित हो रही है। उनसे रहा नहीं जा रहा। वे उछल-उछलकर हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों का मुंह नोंचना चाह रहे हैं। आगरा की घटना से करीब दो माह पूर्व मध्यप्रदेश के शिवपुरी में संयुक्त परिवार को मुसलमान बना लिया गया था। ग्वालियर और भोपाल के समाचार पत्रों ने इस घटना को प्रकाशित भी किया लेकिन इन ढकोसलावादी सेक्यूलरों ने ऐसी ऊर्जा तब नहीं दिखाई थी। क्या तब धर्मान्तरण की घटना ठीक थी? क्या वर्षों से होता आ रहा हिन्दुओं का धर्मान्तरण जायज है? कभी तलवार के दम पर तो कभी प्रलोभन और धोखा देकर हिन्दुओं को मुसलमान-ईसाई बना लेना ठीक है? क्या यह सेक्यूलरों का दोहरा चरित्र नहीं है? क्या इसे मनुष्यों के बीच बैर भाव बढ़ाने की मानसिकता नहीं माना जाना चाहिए? निश्चित ही हिन्दुओं के मन में यह बात उठती है कि ये तथाकथित बुद्धिजीवी सदैव उन्हें बेइज्जत करने का अवसर खोजते रहते हैं।  
        अपने इस लेख से आगरा की घटना को सही ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। धर्मान्तरण अगर प्रलोभन देकर किया गया है तो यह निन्दनीय है। अपने इतिहास से सबक लेकर अब तो सरकारों को जाग जाना चाहिए। इस तरह की घटना दोबारा न घटे, इसके ठोस उपाय किए जाने चाहिए। आगरा की घटना से जन्मी बहस को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। एक तो, तथाकथित सेक्यूलरों के चेहरे से नकाब एक बार फिर हट गए हैं। जनता जान गई है उन लोगों को जो धर्मान्तरण जैसी बीमारी को भी चयनित दृष्टिकोण से देखते हैं। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बीमारी का इलाज खोजने की बहस ने जोर पकड़ लिया है। धर्मान्तरण पर मचे हो-हल्ला के बीच धर्मान्तरण रोधी कानून बनाए जाने की मांग जोर-शोर से उठने लगी है। धर्मान्तरण रोधी कानून बनाने की मांग से इन सेक्यूलरों की स्थिति भी खराब हो गई है। क्योंकि इनका असल मकसद हंगामा खड़ा करना था। जिन हिन्दू संगठनों पर प्रलोभन देकर जबरन धर्मान्तरण का आरोप लगाया जा रहा था, उन्होंने ही धर्मान्तरण को सामाजिक बुराई बताकर उसे रोकने के लिए कानून बनाने की अपील सरकार से की है। इसके बाद से सेक्यूलर जमातें अपनी बगलें झांक रही हैं। भारतभूमि को एक रंग में रंगने का ख्वाब पालकर यूरोप और अरब के इशारे पर हिन्दुओं के धर्मान्तरण में लिप्त साम्प्रदायिक ताकतों में भी उथल-पुथल मच गई है। दूध का दूध, पानी का पानी हो गया है। देश को साफ नजर आ रहा है कि धर्मान्तरण से असल में कौन पीडि़त है, किसे लाभ है और धर्मान्तरण रोधी कानून की मांग पर पेट किसका दुखने लगा है। अब कुछ छिपा नहीं है। 
      धर्मान्तरण की समस्या से भारत बुरी तरह पीडि़त है। धर्मान्तरण समूची मानव जाति के लिए खतरा है। इतिहास गवाह है कि धर्मान्तरण की आग में कई जातियां खाक हो चुकी हैं। हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई गहरी होने का एक बहुत बड़ा कारण जबरन धर्मान्तरण रहा है। औरंगजेब की तरह कुछ धर्मान्ध शासकों ने तलवार से इतने जनेऊ काटे कि दो कौमों के बीच खून की लकीर खिंच गई। गुरु तेगबहादुर के बलिदान की कीमत पर भी धर्मान्तरण रुका नहीं। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है- 'इस देश के मुसलमानों में इस्लाम के मौलिक स्वभाव, गुण और उसके ऐतिहासिक महत्व का ज्ञान बहुत ही छिछला रहा है। भारत में मुसलमानों का अत्याचार इतना भयानक रहा है कि सारे संसार के इतिहास में उसका कोई जोड़ नहीं मिलता। इन अत्याचारों के कारण हिन्दुओं के हृदय में इस्लाम के प्रति जो घृणा उत्पन्न हुई, उसके निशान अभी तक बाकी हैं? ' अंग्रेजी राज का संरक्षण पाकर चर्च ने भी सम्प्रदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाया है। यहां तक कि ईसाई बनाने के लिए एक ही सम्प्रदाय के लोगों में ऊंच-नीच की भावना को खड़ा कर दिया। ईसाई मिशनरीज ने बड़ी चालाकी से जोर-शोर से मतान्तरण का खेल खेला। मध्यप्रदेश में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित नियोगी कमीशन की रिपोर्ट वर्ष १९५७ में प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट से उजागर हुए ईसाई मिशनरीज के खेल ने देश में हलचल पैदा कर दी थी। रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया था कि ईसाई मिशनरियों ने स्कूल, अस्पताल और अनाथालयों का निर्माण गरीब भारत की सेवा के लिए नहीं किया है। ईसाई मिशनरीज का तो एक मात्र उद्देश्य है, सेवा की आड़ में धोखाधड़ी से गरीब लोगों का धर्मान्तरण करना। धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से भारत आए ईसाई मिशनरीज की चालाकियों को हमारे महापुरुष काफी पहले समझ चुके थे। स्वामी विवेकानन्द ने तो शिकागो में आयोजित धर्म संसद में ईसाई मिशनरीज की गतिविधियों पर तीखा कटाक्ष किया था। उन्होंने कहा कि भारत में धर्म बांटने की जरूरत नहीं है, धर्म तो वहां विपुल मात्रा में फैला हुआ है। दुनिया को अहिंसा का अनोखा पाठ पढ़ाने वाले और सभी धर्मों का समान रूप से आदर करने वाले महात्मा गांधी को भी ईसाई मिशनरीज की इन करतूतों से सख्त एतराज था। गांधीजी धर्मान्तरण को भारत के लिए गलत मानते थे। वे इसके खिलाफ थे। ईसाई मिशनरीज के अनैतिक कृत्य देखकर गांधीजी को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा- 'भारत में तथा अन्यत्र जिस ढंग से मिशनरियों द्वारा लोगों का धर्मान्तरण किया जा रहा है, उसे किसी भी तरह से उचित मान सकना मेरे लिए असम्भव है। यह एक ऐसी भूल है जो संसार के शान्ति-पथ पर अग्रसर होने में कदाचित् सर्वाधिक बाधक है। किसी विशेष पद्धति पर आग्रह रखना या किसी विशेष मजहबी मान्यता को बार-बार दोहराना ऐसे उग्र झगड़ों का कारण बन सकता है, जिससे अन्त में भीषण रक्तपात मच जाए।' उन्होंने यह भी कहा- 'जब तक ईसाइयत का प्रचार एवं धर्मान्तरण विश्व में जारी रहता है, विश्व में शान्ति कदापि नहीं हो सकती।' धर्मान्तरण जैसी प्रवृत्ति मानव जाति के लिए कितनी खतरनाक है, महात्मा गांधी के उक्त कथन से इसे आसानी के साथ समझा जा सकता है। उन्होंने धर्मान्तरण को तत्काल रोकने के संकेत भी अपने विचारों से दिए हैं। 
      तथाकथित बुद्धिजीवी अगर वास्तव में धर्मान्तरण को मानव सभ्यता के लिए खतरा मानते हैं, तो उन्हें सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए। महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा छोड़कर आगरा की घटना पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्पष्टीकरण और फिर से ऐसी घटना न होने का आश्वासन चाह रहे विपक्षी दलों को भी धर्मान्तरण रोकने के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया में सक्रियता के साथ सरकार के साथ चलना होगा। अल्पसंख्यकों के ठेकेदार यदि वास्तव में धर्मान्तरण से खतरा महसूस कर रहे हैं तो उन्हें भी धर्मान्तरण रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के लिए सरकार के हाथ मजबूत करने होंगे। लेकिन, चयनित धर्मान्तरण को ही मानव सभ्यता के लिए खतरा मानने वाले सेक्यूलर, साम्प्रदायिक राजनीतिक दल और अल्पसंख्यकों के ठेकेदार संगठन क्या सरकार के साथ आएंगे? इनका अब तक का इतिहास और चाल-चरित्र तो यही बताता है कि ये सिर्फ हंगामा खड़ा करना जानते हैं। धर्मान्तरण रोकने का कानून बन गया तो विदेश से आ रहे अकूत धन-दौलत पर सुख भोगने का अवसर इनके हाथ से चला जाएगा। वर्ष १९७८ में जनता दल के सांसद ओमप्रकाश पुरुषार्थी ने निजी विधेयक लाकर धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग की थी। सेवा की प्रतिमूर्ति कही जाने वाली मदर टेरेसा ने इस विधेयक का जमकर विरोध किया था। मदर टेरेसा का उद्देश्य सेवा करना था तो उन्हें धर्मान्तरण विरोधी कानून से क्या तकलीफ हो गई थी कि वे बौखला गईं। अन्य इस्लामिक और ईसाई संगठनों के प्रमुखों ने भी इस विधेयक का विरोध किया। भाजपा शासित केन्द्र सरकार ने जब से धर्मान्तरण रोकने के लिए कानून बनाने की बात की है तब से आगरा की घटना को आधार बनाकर धर्मान्तरण पर स्यापा कर रहे तमाम सेक्यूलर बुद्धिजीवियों को उल्टे दौरे पड़ गए हैं। कल तक धर्मान्तरण की घटनाओं का विरोध करने वाले अब धर्मान्तरण रोकने के लिए कानून बनाने की बात पर बौखलाए हुए हैं। लेकिन, इस सबके बीच यह सही समय है जब धर्मान्तरण जैसी गंभीर बीमारी का इलाज किया जा सकता है। केन्द्र सरकार को इस दिशा में जल्द ही ठोस कदम उठाना चाहिए। ताकि इंसान को हिन्दू, मुसलमान और ईसाई बनाने की जगह मुकम्मल इंसान बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। 

1 टिप्पणी:

  1. जिन टिप्पणियों पर सचमुच बवाल मचना चाहिए उन पर तो बोलती बंद होजाती है लोगों की , और जो सामान्य रूप से ( किसी के विरुद्ध नहीं ) कह दी जातीं हैं उन पर हाय-तौबा मच जाती है . चैनलों को मसाला मिल जाता है . अभी साक्षी महाराज का दिया बयान इस बात का प्रमाण है . इसी तरह वर्षों से जो हिन्दुओं का (जबरन , प्रलोभन या मजबूरी में स्वेच्छा से ) धर्मान्तरण करवाया जाता रहा है उसके लिए तो हम धार्मिक स्वतंत्रता के हिमायती हो गए पर यदि फिर से कोई हिन्दू धर्म अपनाना चाहे या उसके लिए प्रेरित करे तो वह संविधान के नियमों का उल्लंघन है . यह दोहरी नीति क्यों . कोई नीति गलत है तो वह सबके लिए होनी चाहिए .

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