अ रविन्द केजरीवाल आहिस्ता-आहिस्ता संदिग्ध होते जा रहे हैं। उनका काम करने का तरीका भी ड्रामैटिक है। आम आदमी पार्टी के गठन के बाद देशवासियों को नई तरह की राजनीति की एक उम्मीद नजर आई थी। हालांकि सवाल तो आम आदमी पार्टी (आआपा) के गठन के साथ ही उठने लगे थे, अरविन्द केजरीवाल की मंशा पर। अन्ना का आंदोलन छोड़कर (कैश कराकर) राजनीतिक पार्टी बनाने की जरूरत क्या थी? अन्ना हजारे के विरोध के बाद भी केजरीवाल रुके क्यों नहीं? फिर भी आआपा से एक उम्मीद थी, जो अब धूमिल होती नजर आ रही है। अरविन्द केजरीवाल की नई तरह की राजनीति का आशय अगर हंगामा खड़ा करने से था तो यह विशाल लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। आआपा के राजनीतिक स्टंट और स्टैण्ड भी गड़बड़ा गए हैं। मुस्लिम वोटों के लालच में केजरीवाल के लिए सांप्रदायिकता बड़ा मसला हो गया है, भ्रष्टाचार कहीं पीछे छूट गया है। जिसके खिलाफ चुनाव लड़ा, चुनाव से पूर्व जिसे पानी पी-पीकर कोसा, उसी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली सरकार की कुर्सी पर विराजमान हो गए। जिसे महाभ्रष्ट बताया, उसी के समर्थन से सरकार बना ली। 'हम किसी से समर्थन न लेंगे और न देंगे' सार्वजनिक मंच से बच्चों की सौगंध लेकर की गई इस घोषणा को सत्ता लोलुप आम आदमी पार्टी के कर्ताधर्ता अरविन्द केजरीवाल ने भूलने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया। आम आदमी पार्टी के व्यवहार से आरोप सच साबित होते दिख रहे हैं कि यह कांग्रेस की 'बी' पार्टी है। ईश्वर से प्रार्थना है कि यह सच न हो वरना वैकल्पिक राजनीति की बात करने वाले किसी भी सद्चरित्र व्यक्ति पर कोई भरोसा नहीं करेगा। खैर, यह तो साफ दिखने लगा है कि यूपीए सरकार के महाभ्रष्ट आचरण के खिलाफ शुरू हुई आम आदमी पार्टी की मुहिम अब भाजपा और नरेन्द्र मोदी विरोध में तब्दील होती दिख रही है। कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई ये लड़ाई कम से कम अब तो भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है।
आम चुनाव के नजदीक आते-आते अरविन्द केजरीवाल के प्रमुख टारगेट नरेन्द्र मोदी हो गए हैं, जबकि मोदी स्वयं भ्रष्ट सरकार को हटाकर व्यवस्था परिवर्तन की बात देशभर में कर रहे हैं। केजरीवाल भ्रष्ट सरकार को हटाने की मांग तो अब करते नहीं दिख रहे बल्कि भ्रष्ट सरकार को सत्ता से बेदखल करने वाले मोदी का विरोध करते जरूर दिख रहे हैं। इसका क्या आशय निकाला जाए? आआपा भ्रष्टाचार के खिलाफ है या नरेन्द्र मोदी के? अरविन्द केजरीवाल से यह सवाल पूछने वाले लोगों की खासी तादाद है। अन्य नेताओं के निजी विमान में यात्रा करने पर हंगामा खड़ा करते आए केजरीवाल इंडिया टुडे ग्रुप के आयोजन में निजी विमान से पहुंचे। इंडिया टुडे ग्रुप के इस कॉन्क्लेब में कई प्रबुद्ध लोगों ने केजरीवाल से यही सवाल पूछा। जिसका सटीक जवाब केजरीवाल नहीं दे सके। अन्य कई सवालों पर भी उनके पास कोई बहाना नहीं था। देशभर में सवाल पूछते घूम रहे केजरीवाल 'आपकी अदालत' में भी पत्रकार रजत शर्मा के सवालों के जवाब नहीं दे सके। अरविन्द केजरीवाल के सही-गलत के पैमाने भी अलग-अलग हैं। अपनों के लिए अलग और दूसरों के लिए अलग। किसी पार्टी के नेता पर भ्रष्टाचार या कानून तोडऩे का आरोप मात्र लगे तो केजरीवाल चाहते हैं कि उस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। निश्चित ही कार्रवाई की जानी चाहिए, जरूर की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है। तत्काल जांच कराने के बाद उक्त भ्रष्ट नेता को न केवल पार्टी से बाहर करना चाहिए बल्कि जेल भी भेजना चाहिए। भ्रष्टाचार की रकम भी वसूल करनी चाहिए। लेकिन, केजरीवाल की नीयत पर तब सवाल उठते हैं, जब उनकी पार्टी के नेताओं पर आरोप लगते हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। महिलाओं को प्रताडि़त करने का गंभीर आरोप आआपा के नेता सोमनाथ भारती पर लगा। वेबसाइट के माध्यम से अवैध तरीके से लोगों को ठगने का आरोप भी सोमनाथ भारती पर लगा। लेकिन, नतीजा क्या हुआ। ४९ दिन की दिल्ली सरकार में आखिर तक सोमनाथ भारती कानून मंत्री के पद पर सुशोभित होते रहे। अरविन्द केजरीवाल के ये दोहरे मापदण्ड आखिर क्या जाहिर करते हैं? क्या ऐसे राजनीतिक बदलाव आएगा?
अरविन्द केजरीवाल आजकल एक आरोप नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी पर लगा रहे हैं कि दोनों अंबानी की जेब में हैं। उनका कहना है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी अंबानी से चंदा ले रहे हैं। अगर इनकी सरकार केन्द्र में आई तो बदले में अंबानी को फायदा पहुंचाया जाएगा। असल में सरकार अंबानी के इशारे पर चलेगी। यानी अरविन्द कहना चाहते हैं कि जिससे चंदा लिया जाता है, सरकार उसके इशारे पर चलती है। फिर तो अरविन्द केजरीवाल से गंभीर सवाल बनता है। उनकी पार्टी को विदेशी लोगों और संस्थाओं से भारी मात्रा में चंदा मिल रहा है। विदेश से चंदा तो और अधिक संदिग्ध हो जाता है। अंबानी से चंदे पर सवाल उठाते अरविन्द यह क्यों नहीं बताते कि उनकी पार्टी किन शर्तों और संधि के आधार पर विदेशी नागरिकों और संस्थाओं से चंदा ले रही है? अगर अरविन्द सरकार में आते हैं तो इस विदेशी चंदे के बदले देश को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी? आम आदमी पार्टी की वेबसाइट के मुताबिक ही आआपा को ७ मार्च २०१४ की तारीख तक ७३.६ प्रतिशत चंदा भारत के लोगों और संस्थाओं से मिला है। जबकि २६.४ प्रतिशत चंदा विदेशी लोगों और संस्थाओं से मिला है। सबसे अधिक ९.५ प्रतिशत यूनाईटेड स्टेट्स, ४.६ प्रतिशत यूनाईटेड अरब अमीरात इसके अलावा यूनाईटेड किंगडम सहित अन्य देशों से आम आदमी पार्टी को फंड मिल रहा है। अरविन्द केजरीवाल में दिल्ली की जनता ने भरोसा दिखाया था लेकिन केजरीवाल पहले तो कहे से पलटे और सरकार बनाई फिर जिम्मेदारी से भाग गए। दिल्ली की जनता से किए गए बिजली-पानी सहित अन्य वादे आज भी वहीं की वहीं हैं। बुजुर्ग कह गए हैं कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती। आम चुनाव में धोखे-धड़ाके से यदि काठ की हाड़ी चढ़ भी जाए तो क्या अरविन्द केजरीवाल बताएंगे कि अरब अमीरात और यूनाईटेड स्टेट्स सहित अन्य देशों की जेब में होगी सरकार?
अरविन्द केजरीवाल अपनी बात से इतनी अधिक बार पलटी मार चुके हैं कि उनके संबंध में एक लोकप्रचलित कहावत बन गई है - 'यू टर्न यानी केजरीवाल टर्न।Ó उनकी पार्टी का मुख्य एजेण्डा है भ्रष्टाचार को खत्म करना। अब तक आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल के लिए भ्रष्टाचार ही देश का सबसे बड़ा मुद्दा था। इसी मुद्दे पर उन्हें दिल्ली में अभूतपूर्व सफलता हाथ लगी थी। लेकिन, अब वे मुस्लिम वोटों पर डोरे डालने लगे हैं। वोट बैंक की सस्ती राजनीति में अब आआपा भी कूद पड़ी है। आआपा सांप्रदायिकता का कार्ड खेल रही है। 'सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा है।' केजरीवाल ने मुस्लिमों के बीच इंडियन इस्लामिक कल्चर सेंटर में यह बयान देकर मुस्लिमों का नया रहनुमा बनने की कोशिश की है। आआपा के चोटी के नेता प्रशांत भूषण के कश्मीर मसले पर दिए गए बयान को भी इसी संदर्भ में देखने की जरूरत है। राजनीतिक बदलाव की बात करने वाली पार्टी आआपा भारतीय राजनीति के उसी मार्ग पर आगे बढ़ रही है जिस पर अन्य पार्टियों के पग चिन्ह हैं। आम आदमी पार्टी जातिवादी की राजनीति से भी अछूति नहीं है। पूर्व पत्रकार आशुतोष गुप्ता को दिल्ली में चांदनी चौक से टिकट देना, जातिवाद की राजनीति का बेहतरीन नमूना है। अरविन्द केजरीवाल को लगता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें जो हाईप मिली उसे आम चुनाव में भुना लेना चाहिए। लोकप्रियता बरकरार रखने, मीडिया में छाए रहने और चर्चा का विषय बने रहने के लिए वे राजनीति के नए-नए पैंतरे चल रहे हैं। टिपीकल राजनीतिज्ञ बनने की दिशा में अरविन्द बढ़ रहे हैं। आआपा के गठन से राजनीति में भले बदलाव न दिख रहा हो लेकिन अरविन्द केजरीवाल में आमूलचूल परिवर्तन दिख रहा है। यह भी कह सकते हैं कि अरविन्द के व्यक्तित्व, सोच और विचारधारा पर पड़ा आवरण अब हट रहा है। अरविन्द केजरीवाल अपने मूल में प्रकट हो रहे हैं। अन्ना हजारे भी कहते हैं कि अरविन्द अब सत्ता लोलुप हो गया है। उसकी नजर कुर्सी पर है। कुर्सी पाने में या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने में अरविन्द केजरीवाल कितने सफल होते हैं, जल्द ही इसका फैसला हो जाएगा। आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की राजनीति का आकलन करते समय हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि अरविन्द केजरीवाल एण्ड टीम ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए अन्ना हजारे का जमकर इस्तेमाल किया है। केजरीवाल एण्ड टीम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन से राजनीति में आने की अपनी राह बनाई है। आम आदमी पार्टी के जन्म से लेकर अब तक के सफर से तस्वीर कुछ साफ हो गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई यह लड़ाई अब कम से कम भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं दिखती।
लोकेन्द्रजी, यह लेख पढ़कर लगता है कि अरविन्द केजरीवाल जितने अराजक और पालतू हैं, उतने की झूठ बोलने में भी उनको महारत हासिल है...केजरीवाल की ईमानदारी पर भरोसा करना जनता की बहुत बड़ी भूल होगी...देश की जनता इस बात को समझे...
जवाब देंहटाएंइसमें कोई शक नहीं की केजरीवाल के पीछे कोई और ताकत है ... और शर्तिया ये ताकत देश को और लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए तो नहीं ही है ...
जवाब देंहटाएंअजब निराले राजनीति पग।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख आज नहीं तो कल अरविंद केजरीवाल जोकर ही कहलाएगा लेकिन कुछ लोगो को भ्रमित करने सफल हो गया, जिससे देश का विसवास जीतने मी अब किसी भी देशभक्त संस्था को समय लगेगा।
जवाब देंहटाएं