गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

मोदी, मोदी और मोदी


 भा रत की राजनीति इस समय मोदीमय है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के जिक्र के बिना शायद ही कोई दिन बीतता हो। इसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें जमाए नरेन्द्र मोदी की कुशल रणनीति कह सकते हैं। मोदीफोबिया से ग्रस्त कांग्रेस के नेता यहां तक कि राहुल गांधी भी
आए दिन मोदी का जिक्र कर ही देते हैं। भाजपा में वटवृक्ष बनते जा रहे नरेन्द्र मोदी से पार्टी के क्षत्रपों में भी भय है। उन्हें डर है कि 'मोदी बरगद' की छांव में वे मुरझा न जाएं। इसीलिए मैं प्रधानमंत्री-मैं प्रधानमंत्री का राग अलाप कर पार्टी के नेता मोदी बहस शुरू कर देते हैं। हाल के घटनाक्रम देखकर स्पष्ट होता है कि राजनीति के नए चाणक्य नरेन्द्र मोदी का ही कमाल है कि वे एक दिन भी खबरों से परे नहीं जाते। दिल्ली में फिक्की के महिला सम्मेलन को संबोधित करना हो या फिर कोलकाता में उद्योगपतियों के कार्यक्रम में भाषण देना हो, इस तरह के तमाम आयोजन और बहस को मोदी की रणनीति के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए।
नरेन्द्र मोदी मंच लूटने में माहिर हैं। उनकी लोकप्रियता फिलहाल सिर चढ़कर बोल रही है। इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी का भाषण सुनने के लिए भीड़ इतनी अधिक थी कि फिक्की के महिला सम्मेलन का स्थान बदलकर एक पांच सितारा होटल करना पड़ा। फेसबुक और ट्विटर पर मोदी के भाषण के कुछ हिस्से बड़ी तेजी के साथ शेयर हुए और उतनी ही तेजी से उन पर कंमेट आए। मोदी ने फिक्की के महिला सम्मेलन में महिला सशक्तिकरण की बात बड़े जोरदार ढंग से रखकर महिलाओं का भरोसा भी जीत लिया। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या, बढ़ते लिंगानुपात की निंदा की। लड़कियों को समान अवसर उपलब्ध कराने की वकालत की। महिला उद्यमियों की तारीफ की और उन्हें सरकार की ओर से अधिक मदद उपलब्ध कराने की बात कही। फिक्की में महिलाओं से मुखातिब होने के मौके को नरेन्द्र मोदी ने खूब कैश कराया। इस बहाने उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनकी सरकार महिला हितैषी होगी। महिला सशक्तिकरण की नीतियां नए सिरे से तय की जाएंगी। इसके लिए नीति निर्माण की प्रक्रिया में महिलाओं को शामिल किया जाएगा। ५० प्रतिशत महिला आरक्षण बिल का जिक्र कर नरेन्द्र मोदी ने सरकार में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने का भी संकेत दिया।
फिक्की में दिए भाषण पर बहस खत्म हो पाती उससे पहले ही नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस और मीडिया को एक और मसला पकड़ा दिया। कोलकाता में तीन बड़े व्यापारिक संगठनों भारत चेम्बर ऑफ कॉमर्स, इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स और मर्चेंट चेम्बर ऑफ कॉमर्स की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने सीधे यूपीए पर हमला बोला और ममता बनर्जी को रिझाने के लिए वामपंथियों को भी लपेटे में ले लिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के किए गड्ढे मैं गुजरात में भर रहा हूं तो बंगाल में ३२ साल में वामपंथियों ने जो गड्ढे किए हैं उन्हें भरने का काम ममता बनर्जी कर रही हैं। राजग के विस्तार की योजना निश्चित ही मोदी के दिमाग में है। जयललिता से उनकी अच्छी बनती है। ममता जरूर नैनो प्रकरण के बाद से मोदी से नाराज हैं। लेकिन, ममता दीदी की पटरी कांग्रेस के साथ भी नहीं बैठ रही है। वे राजग में पहले भी शामिल रह चुकी हैं। इसीलिए मोदी ममता का पक्ष लेकर प्रधानमंत्री पद के लिए अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश में हैं। आखिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी विकल्प तो उन्हें ही ढूंढऩा है जो राजग में नीतिश की जगह ले सके। क्योंकि ज्यादा संभावना है कि मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए घोषणा होते ही नीतीश कुमार राजग से अलग हो जाएंगे। 
नरेन्द्र मोदी ने कोलकाता के अपने इस भाषण में सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया। मोदी ने कहा कि कांग्रेस में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोई अपना नेता ही नहीं मानता। यह तकरीबन सच भी है, जिससे पूरा हिंदोस्तान वाकिफ है। यह बयान देने के पीछे मोदी के गहरे निहितार्थ हैं, जिन्हें समझना जरूरी है। उन्होंने संकेत दिया है कि देश को कैसा नेता चाहिए रबर स्टम्प या फिर जिसका जनाधार हो यानी नरेन्द्र मोदी। मनमोहन सिंह के बहाने नरेन्द्र मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से एक फ्रेम आमजन को दी है कि आप ही फिट करके देखिए कि प्रधानमंत्री कुर्सी पर कौन जमेगा? 
अब नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी देखा जाए तो नरेन्द्र मोदी कहीं आगे दिखते हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े गए चुनावों में कांग्रेस को कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है जबकि नरेन्द्र मोदी अपनी दम पर तीसरी बार गुजरात में सरकार बनाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर खम ठोंक रहे हैं। राहुल गांधी राष्ट्रीय बहस और संवेदनशील मुद्दों के दौरान राष्ट्रीय पटल से गायब रहते हैं जबकि मोदी हमेशा चर्चा में रहते हैं। हाल ही में राहुल गांधी का सीआईआई में दिया गया भाषण काफी सराहा गया लेकिन उतनी ही उसकी आलोचना भी हुई। ठीक यही स्थिति कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में दिए भाषण की रही। जिसमें उन्होंने कार्यकर्ताओं को नई दिशा देने की जगह भावुक भाषण दिया। यहां तक की उन्होंने राजनीति को जहर का प्याला ही बता दिया। खैर, राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के सामने कहीं नहीं टिकते उसके कारण हैं। राहुल गांधी अपने भाषण में देश की समस्याएं तो बखूबी उठाते हैं लेकिन उनके पास समाधान नहीं है। उनके भाषण से सवाल तो बहुत उपजते हैं लेकिन जवाब राहुल गांधी के पास नहीं है। सीआईआई में दिए भाषण में राहुल कहते हैं कि भारत के सामने कई समस्याएं हैं। इन समस्याओं का समाधान जरूरी है। लेकिन, समाधान कैसे होगा? यह राहुल नहीं बता पाते हैं। राहुल कहते हैं कि युवाओं को सस्ती और बेहतर शिक्षा देने की जरूरत है। हकीकत यह है कि उनकी ही सरकार के दौरान शिक्षा महंगी होती जा रही है। हाल ही में केन्द्रीय विद्यालयों की फीस में भी बढ़ोतरी की गई है। निजी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की मनमर्जी तो जग जाहिर है। शिक्षा सस्ती और सर्व सुलभ कैसे होगी? इसकी नीति राहुल गांधी नहीं बता सके। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार चंद लोग चला रहे हैं। सरकार चलाने के लिए आमजनता की भागीदारी की जरूरत है। सरकार में सबको कैसे, कहां और किस स्तर तक भागीदार बनाया जाएगा, इसका भी जवाब राहुल गांधी अपने भाषण में नहीं देते हैं। जबकि नरेन्द्र मोदी समाधान पर बात करते हैं। उनके पास हर सवाल का जवाब है। हाल ही में नरेन्द्र मोदी ने इंडिया टुडे कॉनक्लेव में शिरकत की थी। तब उनसे वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने पूछा था कि आप गुजरात दंगे के सवालों से बचते क्यों हैं? मोदी ने जवाब में कहा था कि मैं किसी भी सवाल से न तो डरता हूं और न ही बचता हूं। यदि मैं डरता तो यहां दिग्गज पत्रकारों के बीच नहीं आता। इस दौरान मोदी ने पूछे गए तमाम सवालों के जवाब तर्क के साथ रखकर अपना विजन देश के सामने रखा। विदेश नीति कैसी हो, देश के विकास की योजना क्या हो, एफडीआई को लागू किया जाए तो कैसे, भ्रष्टाचार दूर करने की योजना और सुरक्षा के मसले पर बेबाकी से अपना पक्ष रखा। इंडिया टुडे के एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़ा एक सवाल किया। जिसके जवाब में उन्होंने बड़ा सधा हुआ जवाब दिया, जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि सुरक्षा तो हर किसी को चाहिए, क्या मुस्लिम और क्या हिन्दू। इसलिए मेरी नीति है कि हर आदमी को उसके अधिकार और सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि एक रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे नरेन्द्र मोदी कॉनक्लेव, ऑनलाइन भाषण, छात्रों, फिक्की और उद्योगपतियों के आयोजनों में शिरकत कर अपना विजन देश के सामने रखते जा रहे हैं। बहस-मुहाबिस के बीच नमो बता रहे हैं कि वे देश के प्रधानमंत्री बने तो देश की तस्वीर क्या होगी? 

12 टिप्‍पणियां:

  1. मोदी शरणम गच्छामि!
    अति सुंदर आलेख...

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  2. समय के गर्भ में है अभी तो बहुत सी बातें ...
    देखें क्या होने वाला है २०१४ में ...

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  3. आशाएं बनी रहें .... और पूरी भी हों
    सटीक, सधा लेख

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  4. सम्पूर्ण भारतवर्ष की आशापूर्ण दृष्टि उनपर टिकी हुई है, देखते हैं क्या होता है !

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  5. देखें ऊंट किस करवट बैठता है..

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