बुधवार, 5 मार्च 2025

रोहित का मोटापा नहीं, उनके रिकॉर्ड्स देखिए

भारतीय क्रिकेट टीम आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रही है, लेकिन कांग्रेस की नेता डॉ. शमा मोहम्मद ने देश और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की जगह भारतीय क्रिकेट दल के कप्तान रोहित शर्मा की सेहत को लेकर ओछी टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा के शरीर को लेकर आपत्तिजनक एवं निंदनीय बयान दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने तत्काल उनके बयान से किनारा किया। डॉ. शमा ने लिखा कि “रोहित शर्मा एक खिलाड़ी के तौर पर मोटे हैं। उन्हें वजन कम करने की जरूरत है। निश्चित रूप से यह भारत का अब तक का सबसे निराशाजनक कप्तान”। कोई भी सभ्य नागरिक किसी के शरीर को लेकर इस प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकता। दरअसल, ऐसा लगता है कि नफरत और नकारात्मकता की आग कांग्रेस के खेमे में इस हद तक फैल गई है कि उसके दायरे में अब केवल भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं है अपितु उसके निशाने पर कोई भी आ सकता है। कांग्रेस की प्रवक्ता की इस टिप्पणी के बाद उनकी जमकर आलोचना हो रही है। डॉ. शमा को भी मजबूरी में यह टिप्पणी हटानी पड़ी है। हालांकि अपनी ओछी एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से माफी नहीं माँगी है। यह बताता है कि उन्होंने अपने नेताओं के दबाव में पोस्ट तो हटा ली लेकिन उनका मौलिक दृष्टिकोण नकारात्मक ही है। 

एक अन्य पोस्ट में कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा लिखती हैं- “अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में रोहित शर्मा में ऐसा क्या विश्वस्तरीय है? वह एक औसत कप्तान होने के साथ-साथ एक औसत खिलाड़ी भी हैं, जिन्हें भारत का कप्तान बनने का सौभाग्य मिला”। बहरहाल, डॉ. शमा को पता होना चाहिए कि रोहित शर्मा न केवल बेहतरीन खिलाड़ी हैं अपितु उनकी कप्तानी में भारत ने शानदार प्रदर्शन किया है। किसी खिलाड़ी की योग्यता को उसके रूप-रंग और शरीर की बनावट के आधार पर नहीं अपितु उसकी उपलब्धियों एवं आंकड़ों के देखना चाहिए। 

रोहित शर्मा दुनिया के उन गिने-चुने बल्लेबाजों में हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए सबसे अधिक बार शतक लगाए हैं। एक दिवसीय क्रिकेट में सबसे अधिक शतक बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में 32 शतक लगाकर रोहित शर्मा तीसरे स्थान पर हैं। सभी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में सर्वाधिक शतक लगाने के मामलों में वह दसवें स्थान पर हैं। एक दिवसीय मुकाबले में अपनी टीम के लिए सबसे अधिक दोहरे शतक (3) लगाने का कीर्तिमान भी उनके नाम है। एक दिवसीय क्रिकेट के विश्व कप में सबसे अधिक शतक (5) लगाने का अद्भुत कीर्तिमान भी उनके नाम है। एक दिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक छक्के लगाने का कीर्तिमान भी उनके नाम है। वे तेजी से रन बनाकर भारतीय टीम को प्रतिद्वंद्वी टीम के मुकाबले आगे लेकर जाते हैं। निडर होकर खेलने का अंदाज उन्हें बाकी सबसे अलग करता है। इसके अलावा और भी कई उपलब्धियां हैं, जो उन्हें विश्व के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार कराते हैं। 

एक कप्तान के तौर पर भी वे अब तक के सबसे सफल कप्तानों में से एक हैं। उनकी कप्तानी में भारत बिना कोई मैच हारे एक दिवसीय क्रिकेट के विश्व कप में अंतिम मुकाबले तक पहुँची। वर्ष 2024 में टी-20 का विश्व कप उनकी कप्तानी में ही जीते हैं। अब तक रोहित शर्मा ने 140 मैचों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें भारत ने 101 मैच जीते हैं। जबकि भारत को 33 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा 3 मैच ड्रॉ रहे हैं। रोहित शर्मा के रिकॉर्ड पर नजर डाले तो आईसीसी की प्रतियोगिताओं में उन्होंने 92.8 प्रतिशत मैचों में जीत हासिल की है। उनके बाद दूसरे नंबर पर रिकी पोंटिंग हैं, जिन्होंने अपनी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया को 88.3 प्रतिशत मैच जिताए हैं। वहीं, महान खिलाड़ी क्लाइव लॉयड ने 88.2 प्रतिशत मैचों में वेस्टइंडीज को जिताया है। यह सब उपलब्धियां देखे बिना किसी के शरीर को आधार बनाकर ओछी टिप्पणी करना नकारात्मक मानसिक अवस्था को प्रदर्शित करता है।

किसी भी क्षेत्र में देश के लिए बेहतर करने का जज्बा रखनेवाले प्रतिभावान लोगों का सम्मान कैसे बढ़ाया जाता है, उनका हौसला कैसे बढ़ाया जाता है, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को यह बात भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीखनी चाहिए। जब भारतीय क्रिकेट टीम 2023 में एक दिवसीय क्रिकेट का विश्वकप हार गई, तब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को कमजोर नहीं होने दिया। उनका हौसला बढ़ाया। जिसका परिणाम रहा कि भारत की टीम बहुत जल्दी एक बड़ी हार से उबर आई और 2024 में टी-20 क्रिकेट में विश्व विजेता बनकर भारत का परचम फहरा दिया।

शनिवार, 1 मार्च 2025

अब नहीं चलेगी हिन्दी विरोध की राजनीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने तमिलनाडु में फिर से हिन्दी विरोध की राजनीति होते देखना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके पुत्र उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए हिन्दी विरोध की राजनीति को हवा देना शुरू कर दिया है। उनको लगता है कि राज्य में अपनी प्रासंगिकता को बचाने और भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यही एक रास्ता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री स्टालिन झूठ का सहारा लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। जब भारत के दक्षिणी हिस्से से उन्हें हिन्दी विरोध में कोई खास समर्थन मिलता नहीं दिखा तो उन्होंने अपनी कुटिल मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल सहित अन्य राज्यों में भाषायी संघर्ष का विस्तार करने की दृष्टि से बयानबाजी प्रारंभ कर दी है। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्षुद्र राजनीति करने के लिए ऐसे मूखर्तापूर्ण बयान दे रहा है कि उससे उसकी ही जगहंसाई हो रही है। 

भारत के उत्तरी हिस्से के राज्यों के नागरिकों को भाषा के आधार पर भड़काने के लिए उन्होंने कहा कि “अन्य राज्यों के प्यारे बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिन्दी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? हिन्दी उत्तर भारत की भाषाओं को निगल गई है। भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी जैसी भाषाएं अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं”। 

हद है, उन्हें भाषा और बोली का अंतर भी नहीं पता। उन्हें भाषा के विकास का इतिहास पढ़ना चाहिए। यह सब भाषाएं नहीं हैं अपितु हिन्दी की बोलियां हैं, जो हिन्दी के संसार को समृद्ध करती हैं। हिन्दी ने इन्हें निगला नहीं है अपितु इनका संरक्षण किया है। यदि भारत में भारतीय भाषाओं को निगलने का काम कोई कर रहा है, तो वह अंग्रेजी है। हमारे नीति-नियंताओं ने स्वतंत्रता के बाद भारतीय भाषाओं की विरासत को महत्व देने की जगह अंग्रेजी के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया था। जिसके कारण नयी पीढ़ी विदेशी भाषा को सीखने के प्रयत्न में अपनी मातृभाषा से दूर होने लगी। 

यदि स्टालिन वाकई तमिल भाषा को लेकर संवेदनशील हैं, तब उन्हें अंग्रेजी के प्रभुत्व का विरोध करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार का तो उन्हें धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने तमिल एवं अन्य भारतीय भाषाओं के महत्व को स्थापित करने के अनेक प्रयास किए हैं। तमिल भाषा और संस्कृति की महिमा का बखान करने में प्रधानमंत्री मोदी कोई अवसर नहीं चूकते हैं। उन्होंने इस बात पर बार-बार बल दिया है कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जो पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। तमिल इतिहास के संरक्षण और सम्मान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सिंगापुर में तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना, जकार्ता के मुरुगन मंदिर में महाकुंभाभिषेकम समारोह में उनकी भागीदार और संसद में सिंगोल की प्रतिष्ठा से प्रदर्शित हुई। उनकी पहल पर ‘काशी-तमिल संगमम’ और ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ जैसी अनूठी पहल प्रारंभ हुई है। इस पहल के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि “काशी और तमिलनाडु के बीच शाश्वत सभ्यतागत संबंधों का उत्सव मनाते हुए, यह मंच सदियों से विकसित आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को एक साथ लाता है”।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन जिस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने वे हिन्दी विरोध की राजनीति करना चाह रहे हैं, वह शिक्षा नीति तो भारतीय भाषाओं का संरक्षण करती है। पहली बार है जब शिक्षा नीति में मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन को प्राथमिकता दी है। 

शिक्षा नीति के त्रिभाषा सूत्र को अपनाने और एक भाषा के रूप में भारतीय भाषा सीखने को हिंदी थोपना नहीं कह सकते। त्रिभाषा सूत्र में विद्यार्थी अपनी रुचि की भाषा को चुन सकता है। उसके सामने कोई बंधन या मजबूरी नहीं है। हिन्दी को थोपने के आरोप तब सही माने जाते जब हिन्दी सीखना अनिवार्य किया जाता। इसलिए स्टालिन का हिन्दी विरोध केवल और केवल संकीर्ण राजनीति है। उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। हिन्दी विरोध को हवा देकर वे भ्रम का वातावरण खड़ा करना चाहते हैं, ताकि उसमें से अपनी राजनीतिक जमीन के लिए कुछ रास्ता बनाया जा सके। उम्मीद है कि तमिलनाडु की जनता उनकी इस संकीर्ण राजनीति में नहीं उलछेगी। 

कहना होगा कि तमिलनाडु समेत पूरे दक्षिण भारत के तमाम राज्यों में हिन्दी के प्रति अब वह व्यवहार नहीं रहा, जो दशकों ऐसी ही संकीर्ण राजनीति ने बनाया था। अब वहाँ के लोग हिन्दी सीखने में उत्साह दिखा रहे हैं क्योंकि हिन्दी सीखने से उनके लिए संपूर्ण भारत में रोजगार के अवसर खुलते हैं। एक तरह से देखें तो हिन्दी विरोध की राजनीति तमिलनाडु की जनता के विकास के मार्ग को भी अवरुद्ध करती है। इसलिए भी ऐसा माना जा सकता है कि तमिलनाडु के लोग स्टालिन के भड़काने से भड़केंगे और बहकेंगे नहीं। वे सब दशकों पुरानी मानसिकता और छलावे से निकलकर बहुत दूर आ चुके हैं।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के हथियार और उनकी विशेषताएं

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मंत्र देनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज

सिंहगढ़ किले पर तानाजी मालुसरे और अन्य मावलों की अलग-अलग हथियारों के साथ प्रतिमाएं बनी हुई हैं।

एक उन्नत राष्ट्र के लिए रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। शासन में ‘स्व बोध’ की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने रक्षा उत्पादन में भी स्वदेशी के महत्व को स्थापित किया। उन्होंने पैदल सैनिकों के हथियारों से लेकर नौसेना के लिए लड़ाकू जहाज तक स्वदेशी तकनीक पर तैयार कराए थे। सैन्य उपकरणों एवं हथियारों के निर्माण में छत्रपति की दृष्टि अत्यंत सूक्ष्म थी, वे देश-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखकर हथियारों के डिजाइन को अंतिम रूप देते थे। छत्रपति ने विदेशी नौकाओं एवं जहाजों की होड़ करके वैसे ही बड़े जहाज नहीं बनवाए बल्कि उन्होंने अपने समुद्री तटों पर तेजी से चलनेवाली छोटी नौकाओं पर जोर दिया। इन्हीं छोटी लड़ाकू नौकाओं ने अंग्रेजों, पुर्तगालियों और मुगलों के हथियारों से सुसज्जित सैन्य जहाजों को हिन्द महासागर के किनारे पर डुबो दिया था। हिन्दवी स्वराज्य की नौसेना के बेड़े में बड़े आकार के जहाज भी शामिल थे।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

पाश्चात्य मीडिया के भारत विरोध नैरेटिव को उजागर करने वाले पत्रकार

 भारतीय पक्ष का पहरुआ पत्रकार : उमेश उपाध्याय

छवि निर्माण में मीडिया की प्रभावी भूमिका होती है। इसलिए मीडिया का कार्य बहुत जिम्मेदारी और जवाबदेही का है। मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह पत्रकारिता के सिद्धांतों एवं मूल्यों का पालन करते हुए समाचारों एवं अन्य सामग्री का प्रसार करे। समाचारों के निर्माण, प्रकाशन एवं प्रसारण में निष्पक्षता, संतुलन एवं सत्यता जैसी बुनियादी बातों का पालन करे। परंतु ध्यान आता है कि मीडिया का एक हिस्सा अपने निहित एजेंडा को लेकर कार्य करता है। भारत में ही नहीं अपितु विदेश में भी मीडिया का एक वर्ग ऐसा है, जो भारत के प्रति दुराग्रहों से भरा हुआ है। विदेशी मीडिया में भारत विरोधी नैरेटिव पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय बारीक नजर रखते थे। उन्होंने अपने विश्लेषणों से सिद्ध किया कि भारत के संदर्भ में रिपोर्टिंग करते समय विदेशी मीडिया की कलम तंगदिली से चलती है। भारत के ऐसे पत्रकारों को विदेशी मीडिया खूब स्थान देती है, जो भारत की छवि को बिगाड़ने के लिए वास्तविक तथ्यों की अनदेखी करके लेखन करते हैं। इसी वर्ष (2024) उनकी पुस्तक ‘वेस्टर्न मीडिया नैरेटिव ऑन इंडिया: फ्रॉम गांधी टू मोदी’ प्रकाशित होकर आई थी, जिसने पत्रकारिता एवं अकादमिक जगत में सबका ध्यान आकर्षित किया। अगस्त, 2024 में जब भोपाल में उनसे भेंट हुई, तब मैंने आग्रह किया कि यह पुस्तक हिन्दी पाठकों के लिए भी अनुवादित होकर आनी चाहिए। हिन्दी दुनिया के पाठकों को भी विदेशी मीडिया की संकीर्ण मानसिकता के बारे में जानकारी होनी चाहिए। मीडिया को परिभाषित करते हुए पाश्चात्य विद्वानों ने इसे ‘वॉचडॉग’ कहा है। उमेश जी के विश्लेषण पढ़ने के बाद ध्यान आता है कि इस ‘वॉचडॉग’ की निगरानी भी आवश्यक है। अन्यथा यह किसी के प्रभाव में बहककर निर्दोष को अपना शिकार बना सकता है। पुस्तक लिखने से पूर्व भी उमेश जी भारत के संदर्भ में पाश्चात्य मीडिया के पक्षपाती दृष्टिकोण को अपने लेखों एवं व्याख्यानों के माध्यम से लगातार उजागर करते रहे हैं।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

परीक्षा में फेल-पास से बड़ा है जीवन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक जिम्मेदार अभिभावक की भांति देश के भविष्य के साथ संवाद का एक क्रम बनाया है- परीक्षा पे पर्चा। उनके इस प्रयास का अनुकरण सभी परिवारों में होना चाहिए। परीक्षा के तनावपूर्ण वातावरण को समाप्त करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों से इसी प्रकार संवाद करें और उनके भीतर आत्मविश्वास एवं सकारात्मकता जगाएं। अधिकतम अंक पाने की दौड़ में हमने परीक्षा में सफलता को जीवन से बड़ा बना दिया, जिसके कारण कई होनहार विद्यार्थी किन्हीं कारणों से कम अंक पाने पर अवसाद में चले जाते हैं या फिर इसे अपनी विफलता मानकर जीवन को ही समाप्त करने का गलत निर्णय कर बैठते हैं। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए विद्यार्थी के मन में भाव जागृति करना अपनी जगह है, लेकिन उसे ही सफलता के रूप में स्थापित कर देना ठीक बात नहीं है।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

अवैध अप्रवासियों की वापसी

अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भारत भेजे जाने पर विपक्षी दल जिस प्रकार से राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि नियम-कायदों एवं संविधान में उनका विश्वास है या नहीं? संविधान केवल चुनावी सभाओं में लहराने के लिए नहीं होता है, अपितु जीवन में उसका पालन करना होता है। किसी भी देश में रहने के लिए वहाँ के नियम-कानूनों का पालन करना चाहिए। अमेरिका से भारत के उन नागरिकों को वापस भेजा जा रहा है जो वहाँ अवैध रूप से रह रहे थे। अवैध अप्रवासियों के कारण किस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उसकी अनुभूति भारत को भली प्रकार से है। अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के कारण भारत के कई हिस्सों में जनसांख्यकीय असंतुलन के साथ ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे पैदा हो गए हैं। सामाजिक संगठन और आम नागरिक कब से भारत सरकार से माँग कर रहे हैं कि अवैध बांग्लादेशियों एवं रोहिंग्या मुसलमानों को पहचान करके उन्हें वापस भेजा जाए।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

दिल्ली में रोहिंग्या बने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे का कारण

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट ‘दिल्ली में अवैध अप्रवासी : सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण’ को गंभीरता से देखने की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट जनसांख्यकीय असंतुलन के भयावह परिणामों की ओर से संकेत करती है। अवैध अप्रवासियों से न केवल सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, अपितु लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। जेएनयू की रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश और म्यांमार से रोहिंग्या सहित अन्य मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में घुसपैठ करके दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में बस गई है। इसके कारण दिल्ली की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, जो दिल्ली आज से 10-15 साल पहले हुआ करती थी, आज नहीं है। अवैध अप्रवासियों के कारण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। संसाधनों पर भी दबाव बढ़ा है। स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ा है। जो मजदूर वर्ग कल तक हरियाणा, पूर्वांचल, ओडिशा, केरल के लोग होते थे, वे अब रोहिंग्या हैं। इन अवैध घुसपैठियों के कारण भारतीय नागरिकों से मजदूरी सहित अन्य काम छिन गया है।

शनिवार, 25 जनवरी 2025

हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी ‘रायगढ़’

 राष्ट्रीय पर्यटन दिवस पर विशेष

श्री दुर्गदुर्गेश्वर रायगड़ में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने शौर्य प्रदर्शन करना सूर्या फाउंडेशन के युवाओं का दल

श्री दुर्गदुर्गेश्वर अर्थात् हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी- रायगढ़। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रायगढ़ हिन्दवी स्वराज्य का बेजोड़ किला है। किला अपने उत्तर और पूर्व से काल नदी से घिरा हुआ है। सह्याद्रि की लहरदार घाटियों एवं घने जंगल में छिपा यह किला दूर से नजर नहीं आता है। यह भी रायगढ़ की विशेषता है। यह किला दुर्जय है। महाराज के जीवित रहते रायगढ़ न केवल प्रतिष्ठा अर्जित कर रहा था अपितु अजेय भी रहा। सब प्रकार से अत्यंत सुरक्षित होने के कारण यूरोप के यात्रियों ने रायगढ़ को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ भी कहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज सन् 1670 में हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी को राजगढ़ से रायगढ़ लेकर आए। राजसी गौरव एवं भव्यता के साथ 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह रायगढ़ पर सम्पन्न हुआ। राज्याभिषेक समारोह में उपस्थित अंग्रेज प्रतिनिधि ऑक्झिंडन ने रायगढ़ राजधानी की सामरिक सुरक्षा और दुर्जेयत्व की प्रशंसा में अपनी दैनंदिनी में लिखा है-“यह किला केवल विश्वासघात से ही जीता जा सकता है, अन्यथा यह दुर्जेय है”। उसका यह कथन लगभग 15 वर्षों के पश्चात् सन् 1689 में प्रमाणित हुआ जब औरंगजेब की सेना के घेरे के समय दुर्गपति सूर्याजी पिसाल द्वारा विश्वासघात करने के कारण किले पर मुस्लिम सल्तनत का अधिकार हुआ। उस समय रायगढ़ में हिन्दवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति शंभूराजे का शासन था।

‘संघ और तिरंगे’ पर दुष्प्रचार का उत्तर है- राष्ट्रध्वज और आरएसएस

- कृष्णमुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ 

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक एवं जानेमाने ब्लॉगर लोकेन्द्र सिंह की नवीन कृति ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अर्चना प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित है। राष्ट्रीय विचारों पर तथ्यात्मक लेखन के चलते लेखक की अपनी सशक्त पहचान है। इसके लिए वे साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश सहित अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत हैं। उनकी अब तक 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से कुछ पुस्तकों में उन्होंने सह-लेखक और संपादक के तौर पर भी भूमिका निभाई है। इनमें से उनकी चर्चित कृति ‘संघ दर्शन: अपने मन की अनुभूति’ रही है। लोकेन्द्र सिंह की सद्य: प्रकाशित कृति ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ भी शिवाजी महाराज से जुड़े यात्रा संस्मरणों पर आधारित इसी कड़ी की पुस्तक है।

देखिए- RashtraDwaj Aur RSS | Book Introduction by Sourabh Tameshwari | In the presence of Major Gaurav Arya


शनिवार, 11 जनवरी 2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर आरएसएस के प्रचारक के विचार

पुस्तक चर्चा : बाबा साहब के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति - राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संबंध में सबने अपने-अपने दृष्टिकोण बना रखे हैं। उनके विचारों एवं व्यक्तित्व को समग्रता से देखने के प्रयास कम ही हुए हैं। बाबा साहब को लेकर राजनीतिक क्षेत्र से उठी एक बहस जब देश में चल रही है, तब एक पुस्तक ‘राष्ट्र-ऋषि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पढ़ने में आई। अर्चना प्रकाशन, भोपाल से प्रकाशित यह पुस्तक केवल 80 पृष्ठ की है लेकिन लेखक निखिलेश महेश्वरी जी ने ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयत्न बड़ी कुशलता से किया है। बाबा साहब से जोड़कर अकसर उठनेवाली बहसों के लगभग सभी मुद्दों को छूने और उन पर एक सम्यक दृष्टिकोण पाठकों के सामने रखने का कार्य लेखक ने किया है। राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाकर जिस एकात्मता के लिए बाबा साहब ने प्रयास किए, उसी एकात्मता के लिए साहित्य के धर्म का निर्वहन निखिलेश जी ने किया है। लेखक का मानना है कि बाबा साहब आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जिन्होंने समाज जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि निखिलेश महेश्वरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। आप इस समय देश के सबसे बड़े शैक्षिक संगठन विद्या भारती में मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री हैं। यह पुस्तक पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति संघ में अपार श्रद्धा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस सामाजिक समता का स्वप्न बाबा साहब ने देखा था, वह संघ की शाखा से लेकर समाज में साकार होता दिखायी देता है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति बाबा साहब से लेकर महात्मा गांधी तक कर चुके हैं।

देखिए : पत्रकारिता में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान

बुधवार, 8 जनवरी 2025

घर-घर दीप जलाएं… आओ, एक और दीपावली मनाएं

प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ


एक वर्ष पहले पौष शुक्ल द्वादशी (22 जनवरी, 2024) को भारतवासियों ने त्रेतायुग के बाद एक बार फिर अपने आराध्य भगवान श्रीराम के स्वागत में घर-घर दीप जलाए थे। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में जब श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब प्रत्येक रामभक्त की आँखों से नेह की धारा बह रही थी। आखिर रामभक्त भाव-विभोर हों भी क्यों नहीं, लगभग 500 वर्षों की प्रतीक्षा एवं संघर्ष के बाद जन्मभूमि में उल्लासपूर्वक श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। यह दिन भारत के लिए अविस्मरणीय है। प्रत्येक भारतवासी का मन था कि श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को उत्सव की परंपरा में शामिल कर दिया जाए। जैसे रावण का वध करके प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना को हमने दीपोत्सव के रूप में त्रेतायुग से आज तक अपनी स्मृति में संजोकर रखा है, उसी तरह श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव को भी ‘दीपावली’ की भाँति ही मनाया जाए। पौष शुक्ल द्वादशी को प्रत्येक हिन्दू घर रोशन हो और देहरी-मुडेर पर दीपों की मालिका जगमगाए।

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

पत्रकार सुरक्षित होंगे, तभी बचेगा लोकतंत्र

छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकार के हत्यारों को मिले कड़ी सजा

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता एवं पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। कहना होगा कि किसी भी देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है। भारत में भी पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी हत्या कर दी जाती है। हालिया घटना छतीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर से जुड़ी हुई है। हत्या के बाद उनके शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से प्लास्टर कर दिया गया। मुकेश की हत्या के पीछे एक रिपोर्ट को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह रिपोर्ट घटिया सड़क निर्माण की पोल खोलने से संबंधित है। पत्रकार मुकेश की रिपोर्ट के अनुसार, ठेकेदार सुरेश चंद्राकार ने मिरतुर से गंगालूर के बीच सड़क बनाने का ठेका लिया था, लेकिन सड़क अधूरी बनने के बाद भी प्रशासन ने 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया। इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। इसी मामले को स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्रकार ने उजागर किया था। उनकी खोजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद सड़क निर्माण की परियोजना पर छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच बैठा दी थी। पूरी आशंका है कि इसी कारण ठेकेदारों ने मुकेश को अपने निशाने पर ले लिया। मामले में मुख्य आरोपी सहित चार लोग पकड़े गए हैं।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

आक्रांता और लुटेरा ही था गजनवी

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को बताया लुटेरा

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को आक्रमणकारी और डाकू-लुटेरा बताकर खलबली मचा दी है। आसिफ ने समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि “महमूद गजनवी आता था और लूटमार करके वापस चला जाता था। हालांकि, हमारे यहाँ उसे हीरो के तौर पर चित्रित किया जाता है, लेकिन मैं उसे हीरो नहीं मानता”। उनके बयान को पाकिस्तान में ‘एंटी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के दूसरे बड़े नेता रक्षा मंत्री के बयान को ‘भारतीय सोच’ बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान महमूद गजनवी को अपना आदर्श मानता है। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों को गजनवी का नाम दिया है। हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना बिल्कुल ठीक है क्योंकि जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ लूट-मार की थी, तब पाकिस्तान नाम का अस्तित्व ही नहीं था। भले ही पाकिस्तान इतिहास को झुठलाए लेकिन यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान का साझा इतिहास है। वह इतिहास बताता है कि पाकिस्तान के लिए भी महमूद गजनवी एक लुटेरा ही था।

रविवार, 5 जनवरी 2025

अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत राम

देखें यह वीडियो- इंडोनेशिया से लेकर कंबोडिया तक और थाईलैंड से तुर्किस्तान तक ‘सिय राम मय सब जग जानी’


मानव देह में भगवान श्रीराम ने जिन शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना की, वे सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। इसलिए राम केवल भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में आराध्य हैं। जीवन की अलग-अलग भूमिकाओं में मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श राम ने प्रस्तुत किया है। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है- “मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है? उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ”। इस प्रसंग से ही स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में राम के नाम की महिमा क्यों है? क्यों दुनियाभर में उन्हें पढ़ा और पूजा जाता है। राम का जीवन मर्यादा सिखाता है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व का भाव जगाता है। राम का संदेश मनुष्य को देवत्व की ओर लेकर जाता है। संपूर्ण विश्व में रामराज्य की अवधारणा साकार हो, मूल्य आधारित समाज व्यवस्था निर्मित हो, इसलिए सब अपने यहाँ राम का चरित्र लेकर गए हैं। भारत के स्वाभिमान श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखायी पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भाँति यहाँ भी कण-कण में राम व्याप्त हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रामायण का मंचन इंडोनेशिया में किया जाता है। इंडोनेशिया के मुस्लिम भगवान राम को अपना नायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

धर्म की सीख

धार्मिक कहानियां सिखाती हैं जीने की कला


AI द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र

सार्थक और देवकी का परिवार बहुत धार्मिक है। उनके माता-पिता अकसर श्री रामचरितमानस और श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। एक दिन सार्थक और देवकी अपनी माँ के पास बैठे थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी कि मम्मी और पापा धार्मिक किताबें क्यों पढ़ते रहते हैं। एक ही प्रकार की पुस्तक को बार-बार पढ़ने से क्या होता है? दरअसल, सार्थक और देवकी को धर्म-अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की उतनी अधिक जानकारी नहीं थी क्योंकि वे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहाँ के पाठ्यक्रम में भी भारत की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।

पंचिंग बैग नहीं है हिन्दू धर्म

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने दिए सनातन विरोध बयान

तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल और नेताओं ने हिन्दू धर्म को पंचिंग बैग समझ लिया है। अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और एक खास वोटबैंक को खुश करने के लिए अकसर तथाकथित सेकुलर नेता हिन्दू धर्म को लक्षित करके विवादित बयानबाजी करते रहते हैं। कोई सनातन धर्म की तुलना डेंगू से करता है तो कभी सनातन के समूल नाश पर सेमिनार कराए जाते हैं। कभी संसद में जोश में आकर कह दिया जाता है कि “जो लोग अपने आपको हिन्दू कहते हैं, वो चौबीस घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा; नफरत, नफरत, नफरत; असत्य, असत्य, असत्य कहते हैं”। अब केरल के मुख्यमंत्री एवं कम्युनिस्ट नेता पिनराई विजयन ने सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करके हिन्दू विरोध की मानसिकता को प्रकट किया है। उनकी टिप्पणी बताती हैं कि सनातन धर्म के संबंध में उनकी समझ बहुत उथली है और उन्होंने जानबूझकर हिन्दू धर्म को निशाना बनाने का प्रयास किया है। यही कारण है कि कि मुख्यमंत्री विजयन की टिप्पणियों का विरोध न केवल भारतीय जनता पार्टी कर रही है अपितु कांग्रेस ने भी विरोध किया है। हालांकि, विश्व हिन्दू परिषद ने विपक्षी दल में शामिल सभी राजनीतिक दलों की सोच पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि कांग्रेस के नेताओं की ओर से जो विरोध दर्ज कराया जा रहा है, वह गोल-मोल है।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

एकात्मता का दर्शन है- महाकुंभ

महाकुंभ का संदेश : एक हो पूरा देश


भारत की संस्कृति का आधार एकात्मता का स्वर है। भारतीय समाज में जो ऊंच-नीच की बीमारी आई, वह विशेष कालखंड की देन है। सत्य तो यह है कि भारत की संस्कृति में ऊंच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं। यह दुनिया की इकलौती संस्कृति है जो कहती है कि हम सबमें ईश्वर का अंश है। यानी जो पिंड तुम्हारा है, वही पिंड मेरा है। भारत का दर्शन न तो जाति के आधार पर और न ही रंग-रूप एवं वेष-भूषा के आधार पर लोगों में विभेद करता है। भारत का दर्शन तो सबको अपना मार्ग चुनने की स्वतंत्रता देता है। यह बात हिन्दुत्व की आलोचना करनेवालों को समझनी चाहिए। हिन्दुत्व और भारतीयता के मूल विचार को समझना है तो उसका एक अवसर महाकुंभ के रूप में आ रहा है। कुंभ ऐसा मेला है, जहाँ भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। सभी जाति-बिरादरी, प्रांत, भाषा और संप्रदाय के लोग कुंभ में शामिल होते हैं, बिना किसी भेदभाव के। सब मिलकर संगम में डुबकी लगाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा है कि “महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है। कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है। इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं। लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेक अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है। अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा”।