भारत सरकार घाटी में फैले अलगावाद पर कठोर कार्रवाई करने की बजाय विद्रोहियों से बातचीत कर सुलह चाहती है। इसके लिए 38 सदस्यीय सर्वदलीय शिष्टमंडल घाटी में है। कश्मीर आजादी या फिर सेना को पंगु बनाने की शर्त पर ही अलगाववादी शांत होंगे (उसके बाद कुछ और भी मांग कर सकते हैं), यह निश्चित तौर पर तय है।
दरअसल जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच अलगाव का मुख्य कारण है संविधान की अस्थायी अनुच्छेद ३७०। जम्मू-कश्मीर समस्या भारत की अनेक समस्याओं की तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू की ही देन हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण हैं शेख अब्दुल्ला। अब्दुल्ला उनकी दुर्बलता था। खैर इतिहास में जाने की बजाय वर्तमान में ही विचरण कर लेते हैं।
... बहुत ही चिंता का विषय है कि हम अलगाववादियों को दबाने, उन्हें निस्तनाबूत करने की बजाय हम उनसे बात करने को आतुर रहते हैं। यह समस्या सिर्फ कश्मीर के अलगाववादियो के साथ नहीं है वरन नक्सलियों के साथ भी है। कश्मीर में उत्पात मचा रहे पाकिस्तान के भाड़े के टट्टू भारत के वीर सैनिकों का विरोध कर रहे हैं। जिनकी दम पर आज तक कश्मीर और जम्मू बचा हुआ है। ये चाहते हैं कि सेना से विशेष सैन्य अधिकार कानून को वापिस ले लिया जाए, ताकि खुलकर पाकिस्तान से आए घुसपैठियों की खातिरदारी कर सकें और उन्हें दिल्ली, जयपुर व मुंबई में बम फोडऩे के लिए भेज सकें। बाद में भारत विरोधी लोगों का वर्चस्व घाटी में बढ़ाकर कश्मीर को भारत से छीन लिया जाए। राष्ट्रवादी चिंतक, सेना के अधिकारियों का साफ मत है कि अगर विशेष सैन्य अधिकार वापिस लिया जाता है या उसमें कटौती की जाती है तो हालात सुधरने के बजाय निश्चित तौर पर बिगड़ जाएंगे। तुष्टिकरण की नीति के चलते हमारे देश की राजनीति हमेशा से अलगाववादियों से मुकाबला करने की जगह उनके आगे घुटने टेक देती है। उसी का नतीजा है भारत को कोई भी आंखे दिखा देता है। चीन भी उनमें से एक है। हे प्रभु उस ३८ सदस्यीय शिष्टमंडल को ज्ञान देना ताकि कोई ऊलजलूल निर्णय न कर बैठे और विपक्ष और भारत भक्तों को इतनी ताकत देना की वे ऐसे किसी निर्णय को पारित न होने दें। जिससे जलते अंगारों के बीच हमारे सेना के जवानों को नंगा करके खड़ा न करा जा सके।
मेरा मत है कि अगर वाकई कश्मीर के हालत सुधारना चाहते हैं तो वहां लागू अस्थायी अनुच्छेद ३७० को हटा देना चाहिए। यह धारा कश्मीर को शेष भारत से पृथक करती है। इस धारा के कारण ही वहां अलगाववादियों को पनपने का मौका मिलता है। धार ३७० और अलगाववादियों के कारण कश्मीर में अब तक क्या हुआ है जरा गौर करें-
- घाटी बदरंग हो गई। वहां से हिन्दू को निकाल बाहर कर दिया गया। वे अपना शेष जीवन शरणार्थी शिविरों में काटने को मजबूर हैं। कई मौत के घाट उतार दिए गए तो कई बलात् मुसलमान बना लिए गए।
- राज्य के दिशा-निर्देश नहीं बल्कि अलगाववादियों का बनाया कैलेंडर घाटी में चलता है। उत्पातियों के दबाव में इस्लामी देशों की तर्ज पर रविवार का अवकाश रद्द कर शुक्रवार का अवकाश दिवस बना दिया गया है। विश्वविद्यालय, सरकारी कार्यालय, बैंक व अन्य संस्थानों ने उसी अनुसार दैनिकक्रम तय कर लिया है।
- जब चाहे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान कर दिया जाता है। बीच-चौराहे पर ध्वज जलाकर सरकार को सीधे-सीधे चुनौती दी जाती है।
- घाटी में जाने वाले वाहनों से अलगाववादियों ने वीजा मांगना शुरू कर दिया है।
- २० वर्षों में १६०० से अधिक दिन हड़ताल में बीते हैं। यानी २० वर्षों में पांच वर्ष हड़ताल और बंद में बीते हैं।