- सौरभ तामेश्वरी
ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है। आक्रमण के समय में पराक्रम का, संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देने का काम ध्वज करता है, इसलिए स्वतंत्रता के पहले से ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रकट होती रही है। राष्ट्रध्वज को तिरंगे के रूप में स्वीकार किए जाने से पहले अनेक देशभक्तों ने अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर भारत के राष्ट्रध्वज तैयार किए थे। राष्ट्रध्वज को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भी एक सोच और भावना थी। महात्मा गांधी से लेकर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने राष्ट्रध्वज को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेकिन कुछ लोग केवल तिरंगा और आरएसएस को लेकर ही चर्चा करते हैं। उस पर भी आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर एक फेक नैरेटिव बनाने का कार्य किया जाता है। कहा जाता है कि आरएसएस तिरंगे को मान्यता नहीं देता है? जबकि संघ के संविधान में राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे के प्रति सम्मान और निष्ठा रखने की बात स्पष्ट रूप से दर्ज है। वास्तव में तिरंगे को लेकर संघ की क्या सोच है? राष्ट्रध्वज की विकास यात्रा से लेकर तिरंगे और संघ के अंतर्संबंधों पर विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ में मिलते हैं। यह पुस्तक वर्तमान संदर्भों में महत्वपूर्ण है।