मंगलवार, 26 नवंबर 2024

तिरंगे पर आरएसएस की सोच को सामने लाती है ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’

- सौरभ तामेश्वरी 

ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है। आक्रमण के समय में पराक्रम का, संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देने का काम ध्वज करता है, इसलिए स्वतंत्रता के पहले से ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रकट होती रही है। राष्ट्रध्वज को तिरंगे के रूप में स्वीकार किए जाने से पहले अनेक देशभक्तों ने अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर भारत के राष्ट्रध्वज तैयार किए थे। राष्ट्रध्वज को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भी एक सोच और भावना थी। महात्मा गांधी से लेकर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने राष्ट्रध्वज को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेकिन कुछ लोग केवल तिरंगा और आरएसएस को लेकर ही चर्चा करते हैं। उस पर भी आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर एक फेक नैरेटिव बनाने का कार्य किया जाता है। कहा जाता है कि आरएसएस तिरंगे को मान्यता नहीं देता है? जबकि संघ के संविधान में राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे के प्रति सम्मान और निष्ठा रखने की बात स्पष्ट रूप से दर्ज है। वास्तव में तिरंगे को लेकर संघ की क्या सोच है? राष्ट्रध्वज की विकास यात्रा से लेकर तिरंगे और संघ के अंतर्संबंधों पर विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ में मिलते हैं। यह पुस्तक वर्तमान संदर्भों में महत्वपूर्ण है।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों और उनसे जुड़े ऐतिहासिक प्रसंगों का रोचक वर्णन ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

- प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी

लेखक लोकेन्द्र सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कवि, कहानीकार, स्तम्भलेखक होने के साथ ही यात्रा लेखन में भी उनका दखल है। घुमक्कड़ी उनका स्वभाव है। वे जहाँ भी जाते हैं, उस स्थान के अपने अनुभवों के साथ ही उसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व से सबको परिचित कराने का प्रयत्न भी वे अपने यात्रा संस्मरणों से करते हैं। अभी हाल ही उनकी एक पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों के भ्रमण पर आधारित है। हालांकि, यह एक यात्रा वृत्तांत है लेकिन मेरी दृष्टि में इसे केवल यात्रा वृत्तांत तक सीमित करना उचित नहीं होगा। यह पुस्तक शिवाजी महाराज के किलों की यात्रा से तो परिचित कराती ही है, उससे कहीं अधिक यह उनके द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ या ‘हिन्दू साम्राज्य’ के दर्शन से भी परिचित कराती है। स्वयं लेखक ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है- “इस यात्रा के कारण शिवाजी महाराज के दुर्गों का ही दर्शन नहीं किया अपितु अपने गौरवशाली इतिहास से जुड़े, जो हमारी पाठ्यपुस्तकों और राष्ट्रीय विमर्श में शामिल ही नहीं रहा। इस यात्रा ने ‘स्वराज्य’ की कल्पना को उस समय में मन में गहरे उतार दिया, जब हम भारत की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ‘स्वराज्य’ कैसा होना चाहिए, शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व के अध्ययन से इसको भली प्रकार समझा जा सकता है। हम कह सकत हैं कि श्री शिवछत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा ने हमें ‘स्व’ की अनुभूति करायी और ‘स्व’ की समझ भी बढ़ायी। यह यात्रा अविस्मरणीय है”। उल्लेखनीय है कि शिवाजी महाराज के जीवन में किलों का बहुत महत्व है। हिन्दवी स्वराज्य में लगभग 300 दुर्ग थे। इन दुर्गों को ‘स्वराज्य के प्रतीक’ भी कहा जाता है। स्वराज्य के मजबूत प्रहरी के तौर पर किलों के महत्व को समझकर छत्रपति शिवाजी महाराज नये दुर्गों का निर्माण करने में और पुराने दुर्गों को दुरुस्त करने में महाराज मुक्त हस्त से खर्च करते थे। यही कारण है कि महाराष्ट्र में मुहिम निकालने की परंपरा है, जिसमें यात्रियों के बड़े-बड़े जत्थे शिवाजी महाराज के किलों का दर्शन करने के लिए जाते हैं। शुक्राचार्य ने शुक्रनीति में दुर्गों का महत्व बताते हुए लिखा है- 

“एक: शतं योधयति दुर्गस्थ: अस्त्रधरो यदि।

शतं दशसहस्त्राणि तस्माद् दुर्गं समाश्रयेत्।।”

अर्थात् दुर्ग की सहायता से एक सशस्त्र मनुष्य भी सौ शत्रुओं से लोहा ले सकता है और सौ वीर दस हजार शत्रुओं से लड़ सकते हैं। इसलिए राजा ने दुर्ग का आश्रय लेना चाहिए।

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जनजातीय गौरव को बढ़ावा देने में अग्रणी मध्यप्रदेश

 

(जनजातीय गौरव दिवस के प्रसंग पर आलेख)

मध्यप्रदेश वह राज्य है, जिसकी पहल पर देश को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मिला है। यह बात तो हर कोई मानता है कि मध्यप्रदेश की सरकार ने जनजातीय नायकों का गौरव बढ़ाने के लिए उनसे जुड़े स्मारकों का आगे बढ़कर विकास किया है। राजा शंकरशाह और रघुनाथ शाह, रानी कमलापति, रानी दुर्गावती, टंट्या मामा और भीमा नायक से लेकर कई नायकों के योगदान से लोगों को परिचित कराने के उल्लेखनीय कार्य किए हैं। मंडला के मेडिकल कॉलेज का नाम बलिदानी हृदयशाह के नाम पर किया गया। वहीं, छिंडवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम ‘राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय’ किया। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया गया। जबलपुर में 100 करोड़ की लागत से ‘रानी दुर्गावती स्मारक’ को विकसित किया जा रहा है। जनजातीय गौरव को बढ़ाने के साथ ही जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए भी मध्यप्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। विगत 20 वर्षों में जनजातीय योजनाओं का बजट 1000 प्रतिशत बढ़ा है। मध्यप्रदेश पहला राज्य है, जहाँ जनजातीय समुदाय के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण के लिए पेसा कानून को लागू किया गया है। जनजातीय समुदाय से आनेवाली पहली महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गरिमामयी उपस्थिति में 15 नवंबर, 2022 को मध्यप्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंडों को पेसा कानून की सौगात मिली।

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

न्यायपालिका और दबाव समूहों की राजनीति

भारत के वर्तमान मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में इको-सिस्टम की राजनीति को सबके सामने उजागर करने का काम किया है। उनका यह साक्षात्कार ध्यानपूर्वक सुना जाना चाहिए और उस पर विचार-मंथन भी होना चाहिए। देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो अकसर संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास करता है। जब भी कोई संवैधानिक संस्था उनकी इच्छा के अनुरूप निर्णय नहीं करती है, वे उस संस्था की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठाने लगते हैं। उनके निशाने पर न्यायपालिका भी रहती है। इसी ओर मुख्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने संकेत किया है। उन्होंने कहा है कि “कुछ दबाव समूह हैं जो मीडिया के माध्यम से न्यायपालिका पर दबाव डालकर अनुकूल फैसला हासिल करने की कोशिश करते हैं”। वे यह भी कहते हैं कि “इन दबाव समूहों के बहुत से लोग कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं तो आप स्वतंत्र हैं, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं”।

गुरुवार, 7 नवंबर 2024

हिन्दुओं के हितों की चिंता में सबसे आगे हैं भाजपा-मोदी

हिन्दू मंदिर पर खालिस्तानी आतंकियों के हमले के विरुद्ध एकजुट होकर प्रदर्शन करता कनाडा का हिन्दू समाज

भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति हिन्दू समाज में गहरा विश्वास है। इसका कारण है कि जब भी हिन्दू हित की बात आती है, हिन्दू समाज को भाजपा और मोदी अपने साथ खड़े दिखायी देते हैं। वहीं, अन्य पार्टियां हिन्दुओं के हितों की रक्षा के मामले में खुलकर बोलने से बचती हैं। उन्हें गाजा और फिलिस्तीन के मुसलमानों का दर्द तो अनुभव हो जाता है लेकिन बांग्लादेश से लेकर कनाडा तक उन्हें हिन्दुओं की दर्दनाक पुकार सुनायी ही नहीं देती है। अपने दुर्व्यवहार के लिए कुख्यात रोहिंग्याओं के समर्थन में भी उनके झंडे-पोस्टर दिखायी दे जाते हैं लेकिन निर्दोष हिन्दू समाज पर हो रहे हमले उन्हें दिखायी नहीं देते हैं। वहीं, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी हिन्दुओं पर होनेवाले हमलों का आगे आकर विरोध करते हैं और हिन्दुओं की हिम्मत बनने का प्रयास करते हैं। 

हालिया मामला कनाडा का है, जहाँ कट्टरपंथी खालिस्तानियों ने हिन्दू मंदिर, महिलाओं एवं बच्चों पर हमला किया है। इस मामले में जहाँ विपक्षी दल स्पष्ट विरोध करने की जगह इधर-उधर की बातें कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिर पर हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि हिंसा के ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कभी कमजोर नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘जानबूझकर किया गया हमला’ और ‘हमारे राजनयिकों को डराने का कायरतापूर्ण प्रयास’ करार दिया। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि कनाडा सरकार न्याय सुनिश्चित करेगी और कानून का शासन बनाए रखेगी।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

तीर्थाटन का केंद्र बन रहा है मध्यप्रदेश

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है। मध्यप्रदेश में धर्म-अध्यात्म से जुड़े ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग खिंचे चले आते हैं।

देखें: मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल