पशुओं को क्रूरता से बचाने के लिए केंद्र सरकार के आदेश का विरोध जिस तरह केरल में किया गया, कोई भी भला मनुष्य उसे विरोध प्रदर्शन नहीं कह सकता। यह सरासर क्रूरता का प्रदर्शन था। इसे अमानवीय और राक्षसी प्रवृत्ति का प्रकटीकरण कहना, किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं होगा। केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में कांग्रेसी इतने अंधे हो जाएंगे, इसकी कल्पना भी शायद देश ने नहीं की होगी। कम्युनिस्टों का चरित्र इस देश को भली प्रकार मालूम है। केरल में रविवार को जिस प्रकार कम्युनिस्ट संगठनों ने केंद्र सरकार के आदेश का विरोध करने के लिए 'बीफ फेस्ट' का आयोजन किया, सार्वजनिक स्थलों पर गौमांस का वितरण किया, निश्चित तौर पर विरोध प्रदर्शन का यह तरीका निंदनीय है। लेकिन, कम्युनिस्ट पार्टियों के इस व्यवहार से देश को आश्चर्य नहीं है। कम्युनिस्टों का आचरण सदैव ही इसी प्रकार का रहा है, भारतीयता का विरोधी। केरल में कम्युनिस्ट जब अपनी विचारधारा से इतर राष्ट्रीय विचारधारा से संबंध रखने वाले इंसानों का गला काट सकते हैं, तब गाय काटने में कहाँ उनके हाथ कांपते? उनका इतिहास यही सिद्ध करता है कि हिंदुओं का उत्पीडऩ उनके लिए सुख की बात है। लेकिन, कम्युनिस्ट आचरण का अनुसरण करती कांग्रेस का व्यवहार समझ से परे है। देश की बहुसंख्यक हिंदू आबादी यह देखकर दु:खी है कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल, जिसे उसने लंबे समय तक देश चलाने के लिए जनादेश दिया, आज वह उसकी ही आस्था और भावनाओं पर इस प्रकार चोट कर रहा है।
बुधवार, 31 मई 2017
बुधवार, 24 मई 2017
निंदक नियरे राखिए...
केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी अभियान 'खुले में शौच मुक्त भारत' पर अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में लेख लिखकर विवादों में आईं आईएएस अधिकारी दीपाली रस्तोगी को मध्यप्रदेश सरकार ने क्लीनचिट दे दी है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए देशभर में प्रभावी ढंग से अभियान चला रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में तैनात आदिवासी कल्याण विभाग की आयुक्त दीपाली रस्तोगी ने कुछ दिन पहले इस अभियान को लेकर कुछ सवाल उठाए थे। दीपाली रस्तोगी के अपने लेख में अभियान को लेकर सरकार के अतिउत्साह की आलोचना जरूर की थी, लेकिन यह सीधे तौर पर न तो केंद्र सरकार की आलोचना थी और न ही उन्होंने प्रदेश सरकार पर सवाल उठाए थे। अपने लेख में उन्होंने अभियान के क्रियान्वयन में आ रही दिक्कतों और पानी की कमी को लेकर शौचालय के औचित्य पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अपने लेख में व्यावहारिक परेशानियों का जिक्र किया था। अपने लेख में एक जगह जरूर रस्तोगी थोड़ी अधिक नकारात्मक हो गईं थीं, जब उन्होंने अभियान की मंशा को अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से जोड़ दिया था। जैसा कि होता है इस लेख को सरकार की आलोचना बताया गया। जमकर बहसबाजी शुरू हुई। सरकारी अधिकारी द्वारा सरकारी अभियान के खिलाफ इस प्रकार आलोचनात्मक लेख लिखना 'सेवा नियमों के विरुद्ध' बताया जाने लगा। बीच बहस में सामान्य प्रशासन विभाग ने रस्तोगी को नोटिस जारी कर जवाब माँग लिया था। जवाब में रस्तोगी ने कहा था कि उनकी भावना अभियान की आलोचना करने की कतई नहीं थी। उन्होंने तो सिर्फ उस व्यावहारिक परेशानी का जिक्र किया था, जो ग्रामीण क्षेत्र में जलसंकट की वजह से सामने आती है। यदि हम जमीन पर उतरकर देखें तब रस्तोगी के सवाल वाजिब दिखाई देते हैं। निसंदेह शौच मुक्त भारत आवश्यक है, लेकिन उससे पहले भारतीय समाज के सामने और भी बुनियादी जरूरतें हैं। बहरहाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक यह मामला पहुँचा। अंतत: सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी को सम्मान देते हुए एक सराहनीय निर्णय लिया। सरकार की ओर से सामान्य प्रशासन विभाग के राज्यमंत्री लालसिंह आर्य ने कहा कि दीपाली रस्तोगी ने लेख में कुछ गलत नहीं लिखा है। हर एक को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का अधिकार होना चाहिए। उनकी मंशा सरकार की खिलाफत करने की नहीं थी। यह निर्णय लेकर सरकार ने विचार प्रक्रिया और उसकी अभिव्यक्ति को अवरुद्ध होने से बचा लिया।
मंगलवार, 23 मई 2017
मिशन बन गई है नर्मदा सेवा यात्रा
सदानीरा नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है। मध्यप्रदेश की समृद्धि नर्मदा से ही है। नर्मदा के दुलार से ही देश के हृदय प्रदेश का दिल धड़कता है। मध्यप्रदेश के साथ-साथ माँ नर्मदा अपने अमृत-जल से गुजरात का भी पोषण करती है। नर्मदा का महत्त्व दोनों प्रदेश भली प्रकार समझते हैं। माँ नर्मदा का अधिक से अधिक स्नेह प्राप्त करने के लिए दोनों प्रदेश वर्षों तक आपस में झगड़े भी। यह संयोग ही है कि नर्मदा के तट पर पैदा हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उसके जल से आचमन करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दोनों नर्मदा के उद्गम स्थल पर आकर उसके ऋण से उऋण होने का संकल्प लेते हैं। मध्यप्रदेश में 148 दिन से संचालित 'नमामि देवी नर्मदे : नर्मदा सेवा यात्रा' का पूर्णता कार्यक्रम वन प्रदेश अमरकंटक में 15 मई, 2017 को आयोजित किया गया। परंतु, वास्तव में यह पूर्णता कार्यक्रम कम था, बल्कि नदियों के महत्त्व के प्रति जन-जागरण की मजबूत नींव पर नदी संरक्षण के भव्य स्मारक के निर्माण कार्य का शुभारम्भ था। नर्मदा सेवा यात्रा की पूर्णता पर नर्मदा सेवा मिशन की घोषणा यहाँ की गई। कृषकाय हो रही नर्मदा को संवारने का संकल्प दोनों लोकप्रिय नेताओं ने स्वयं ही नहीं लिया, अपितु नर्मदा के लाखों पुत्रों को भी कराया। ऐसी मान्यता है कि यदि हमारे संकल्प शुभ हों, तब प्रकृति भी उनको पूरा करने में हमारी मदद करती है। पर्यावरण और नदी संरक्षण का यह शुभ संकल्प तो प्रकृति की गोद में बसे अमरकंटक की पावन धरती पर ही लिया गया है, इसलिए इसके फलित होने की संभावना स्वत: ही बढ़ गई है।
शनिवार, 20 मई 2017
सूना हो गया नदी का घर
माँ नर्मदा के सेवक और उसके सुयोग्य बेटे अनिल माधव दवे के देवलोक चले जाने की खबर ऐसी है कि सहसा उस पर भरोसा करना कठिन होता है। उनका नाम आते ही सदैव मुस्कुराता हुआ चेहरा, शांत चित्त और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर व्यक्तित्व हमारे सामने उपस्थित होता है। उनके जिक्र के साथ नकारात्मक भाव, उदासी और खालीपन मेल नहीं खाता। इसीलिए हृदयघात के कारण उनकी मृत्यु की खबर अविश्वसनीय प्रतीत होती है। लेकिन, सत्य यही है। अनेक संभावनाओं से भरा एक संत राजनेता भारतीय राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में रचनात्मकता की एक बड़ी लकीर खींचकर चला गया है। स्व. अनिल माधव दवे की पहचान आम राजनेता की नहीं थी। वह धवल राजनीति के पैरोकार थे। लिखने-पढ़ने वाले और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की गहरी समझ रखने वाले राजनेता के तौर पर उनको याद किया जाएगा। वह जब किसी गंभीर विषय पर बोल रहे होते थे, तब सभा/संगोष्ठी में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति ध्यानपूर्वक उनको सुनता था। उनकी वाणी में गजब का माधुर्य था। कर्म एवं वचन में समानता होने और गहरा अध्ययन होने के कारण, उनकी कही बातों का गहरा असर होता था। उनके प्रति एक बौद्धिक आकर्षण था। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में एक ऊंचाई प्राप्त करने के बाद भी किसी फलदार वृक्ष की भांति उनका स्वभाव सदैव विनम्र ही रहता था। यही कारण था कि उनका सम्मान भारतीय जनता पार्टी में ही नहीं, अपितु विरोधी राजनीतिक दल में भी था। सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय सभी विचारधारा के लोग और संगठन भी उनसे विचार-विमर्श करते थे।
शनिवार, 13 मई 2017
धर्म की आड़ में अधर्म कब तक?

शुक्रवार, 12 मई 2017
उचित नहीं आआपा का 'राजनीतिक अभ्यास'
आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में जिस प्रकार से ईवीएम से छेड़छाड़ का प्रदर्शन किया है, उसे किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। आआपा सरकार ने दो संवैधानिक संस्थाओं (विधानसभा और चुनाव आयोग) का एक तरह से उपहास उड़ाया है। आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज जब ईवीएम जैसी दिखने वाली मशीन पर मतदान प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रदर्शन कर रहे थे, तब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर सरकार के तमाम मंत्री-नेता सदन में हँस रहे थे। यह हँसी किसलिए थी? क्या इसलिए कि उन्होंने अपने दावे को सच करके दिखाया? क्या इसलिए कि उन्होंने भाजपा की जीत को धोखेबाजी सिद्ध कर दिया? क्या इसलिए कि उन्होंने चुनाव आयोग को झूठा साबित कर दिया? आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल और समूची पार्टी की इस हँसी में दंभ था, दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति थी, धूर्तता थी और नकलीपन था। भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देने की जगह विधानसभा में खेले गए इस नाटक से आआपा की कलई पूरी तरह खुल कर सामने आ गई है।
सोमवार, 8 मई 2017
स्वच्छता की ओर बढ़ते कदम
एक बार फिर केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत किए गए सर्वे के परिणाम देश के सामने रखे हैं। सर्वे के आंकड़ों पर भरोसा करें, तब यह स्पष्ट है कि हम स्वच्छता की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल, स्वच्छता अभियान के परिणाम पर भरोसा करने का कारण मात्र आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमने अनुभव किया है कि धीरे-धीरे स्वच्छता हमारी आदत होती जा रही है। अब हम यहाँ-वहाँ कचरा फेंकने से बचते हैं, जबकि पहले कहीं भी कचरा फेंकने में कोई संकोच नहीं होता था। स्वच्छता अभियान के कारण हमारे मन का संस्कार हुआ है। स्वच्छता के प्रति जागरूक करने वाले सार्वजनिक हित के विज्ञापन और लघु फिल्मों ने हमारे मन को चेताया है। स्वच्छ शहरों की रैंकिंग घोषित करने की सरकार की नीति का भी कहीं न कहीं प्रभाव पड़ रहा है। जागरूक नागरिक और शहर की सरकारें चाहती हैं कि उनके शहर के माथे पर 'अस्वच्छ शहर' का कलंक नहीं लगे। इस तथ्य को हम सर्वे के परिणाम में अनुभूत कर सकते हैं। पूर्व के सर्वेक्षणों में जो शहर स्वच्छता के मामले में बहुत पीछे थे, इस सर्वे में उन्होंने अपनी स्थिति सुधारी है। अर्थात् हम स्वच्छता की ओर बढ़ रहे हैं। हालाँकि हमें पूरी ईमानदारी से यह भी स्वीकार करना होगा कि तस्वीर जितनी उजली दिखाई जा रही है, उतनी है नहीं।
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