किसी समय में मध्यप्रदेश की छवि एक बीमारू और पिछड़े राज्य की थी। पिछले 15-20 वर्षों में मध्यप्रदेश अपनी उस छवि से बाहर निकलकर विकसित एवं समृद्ध प्रदेश के रूप में स्थापित हो गया है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रदेश की प्रगति में और उसका वातावरण बदलने में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी सरकार की नीतियों की भूमिका प्रमुख है। प्रदेश के हिस्से आ रहे विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय पुरस्कार इस बात के साक्षी हैं कि अब मध्यप्रदेश पिछड़ा और बीमारू राज्य नहीं, अपितु विकास पथ पर नये कीर्तिमान रचनेवाला प्रदेश है। स्वच्छ भारत अभियान की रैंकिंग में उत्साह बढ़ानेवाली सफलताएं प्राप्त करने के बाद अब प्रदेश ने स्मार्ट सिटी से संबंधित विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार प्राप्त करके अपनी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में आयोजित स्मार्ट सिटी कान्क्लेव में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने जब स्मार्ट सिटी से संबंधित दो श्रेणियों के पुरस्कारों की घोषणा की तो मध्यप्रदेश ने बाजी मार ली। इंदौर को देश की सबसे स्मार्ट सिटी होने का पुरस्कार मिला, वहीं मध्यप्रदेश को देश का सबसे स्मार्ट राज्य होने का सम्मान मिला है। यानी दो मुख्य श्रेणियों में शीर्ष पर मध्यप्रदेश चमक रहा है। इसके साथ ही अपनी विरासत को सहेजने के मामले में भोपाल को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।
शुक्रवार, 29 सितंबर 2023
शनिवार, 23 सितंबर 2023
आरएसएस के विचार से परिचित कराती ‘संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति’
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति’ को आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने का एक आवश्यक और सरल दस्तावेज़ समझ सकते हैं। वैसे तो संघ के कार्य और उसे समझने के लिए आपको अनेक पुस्तकें बाजार में मिल जाएंगी किंतु लोकेन्द्र सिंह के लेखन की जो विशेषता विषय के सरलीकरण की है, वह हर उस पाठक के मन को संतुष्टि प्रदान करने का कार्य करती है, जिसे किसी भी विषय को सरल और सीधे-सीधे समझने की आदत है। लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक पढ़ते समय आपको हिन्दी साहित्य के बड़े विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल की लिखी यह बात अवश्य याद आएगी- “लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है”। इसी तरह से ‘हिन्दी साहित्य कोश’ कहता है कि “लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका लेखन पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा”। वस्तुत: इन दो अर्थों की कसौटी पर बात यहां लोकेन्द्र सिंह के लेखन को लेकर की जाए तो उनकी यह पुस्तक पूरी तरह से अपने साथ न्याय करती हुई देखाई देती है। संघ पर लिखी अब तक की अनेक किताबों के बीच यह पुस्तक आपको अनेक भाव-विचारों के बीच गोते लगाते हुए इस तरह से संघ समझा देती है कि आप पूरी पुस्तक पढ़ जाते हैं और लगता है कि अभी तो बहुत थोड़ा ही हमने पढ़ा है। काश, लोकेन्द्र सिंह ने आगे भी इसका विस्तार किया होता!