शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के हथियार और उनकी विशेषताएं

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मंत्र देनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज

सिंहगढ़ किले पर तानाजी मालुसरे और अन्य मावलों की अलग-अलग हथियारों के साथ प्रतिमाएं बनी हुई हैं।

एक उन्नत राष्ट्र के लिए रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। शासन में ‘स्व बोध’ की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने रक्षा उत्पादन में भी स्वदेशी के महत्व को स्थापित किया। उन्होंने पैदल सैनिकों के हथियारों से लेकर नौसेना के लिए लड़ाकू जहाज तक स्वदेशी तकनीक पर तैयार कराए थे। सैन्य उपकरणों एवं हथियारों के निर्माण में छत्रपति की दृष्टि अत्यंत सूक्ष्म थी, वे देश-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखकर हथियारों के डिजाइन को अंतिम रूप देते थे। छत्रपति ने विदेशी नौकाओं एवं जहाजों की होड़ करके वैसे ही बड़े जहाज नहीं बनवाए बल्कि उन्होंने अपने समुद्री तटों पर तेजी से चलनेवाली छोटी नौकाओं पर जोर दिया। इन्हीं छोटी लड़ाकू नौकाओं ने अंग्रेजों, पुर्तगालियों और मुगलों के हथियारों से सुसज्जित सैन्य जहाजों को हिन्द महासागर के किनारे पर डुबो दिया था। हिन्दवी स्वराज्य की नौसेना के बेड़े में बड़े आकार के जहाज भी शामिल थे।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

पाश्चात्य मीडिया के भारत विरोध नैरेटिव को उजागर करने वाले पत्रकार

 भारतीय पक्ष का पहरुआ पत्रकार : उमेश उपाध्याय

छवि निर्माण में मीडिया की प्रभावी भूमिका होती है। इसलिए मीडिया का कार्य बहुत जिम्मेदारी और जवाबदेही का है। मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह पत्रकारिता के सिद्धांतों एवं मूल्यों का पालन करते हुए समाचारों एवं अन्य सामग्री का प्रसार करे। समाचारों के निर्माण, प्रकाशन एवं प्रसारण में निष्पक्षता, संतुलन एवं सत्यता जैसी बुनियादी बातों का पालन करे। परंतु ध्यान आता है कि मीडिया का एक हिस्सा अपने निहित एजेंडा को लेकर कार्य करता है। भारत में ही नहीं अपितु विदेश में भी मीडिया का एक वर्ग ऐसा है, जो भारत के प्रति दुराग्रहों से भरा हुआ है। विदेशी मीडिया में भारत विरोधी नैरेटिव पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय बारीक नजर रखते थे। उन्होंने अपने विश्लेषणों से सिद्ध किया कि भारत के संदर्भ में रिपोर्टिंग करते समय विदेशी मीडिया की कलम तंगदिली से चलती है। भारत के ऐसे पत्रकारों को विदेशी मीडिया खूब स्थान देती है, जो भारत की छवि को बिगाड़ने के लिए वास्तविक तथ्यों की अनदेखी करके लेखन करते हैं। इसी वर्ष (2024) उनकी पुस्तक ‘वेस्टर्न मीडिया नैरेटिव ऑन इंडिया: फ्रॉम गांधी टू मोदी’ प्रकाशित होकर आई थी, जिसने पत्रकारिता एवं अकादमिक जगत में सबका ध्यान आकर्षित किया। अगस्त, 2024 में जब भोपाल में उनसे भेंट हुई, तब मैंने आग्रह किया कि यह पुस्तक हिन्दी पाठकों के लिए भी अनुवादित होकर आनी चाहिए। हिन्दी दुनिया के पाठकों को भी विदेशी मीडिया की संकीर्ण मानसिकता के बारे में जानकारी होनी चाहिए। मीडिया को परिभाषित करते हुए पाश्चात्य विद्वानों ने इसे ‘वॉचडॉग’ कहा है। उमेश जी के विश्लेषण पढ़ने के बाद ध्यान आता है कि इस ‘वॉचडॉग’ की निगरानी भी आवश्यक है। अन्यथा यह किसी के प्रभाव में बहककर निर्दोष को अपना शिकार बना सकता है। पुस्तक लिखने से पूर्व भी उमेश जी भारत के संदर्भ में पाश्चात्य मीडिया के पक्षपाती दृष्टिकोण को अपने लेखों एवं व्याख्यानों के माध्यम से लगातार उजागर करते रहे हैं।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

परीक्षा में फेल-पास से बड़ा है जीवन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक जिम्मेदार अभिभावक की भांति देश के भविष्य के साथ संवाद का एक क्रम बनाया है- परीक्षा पे पर्चा। उनके इस प्रयास का अनुकरण सभी परिवारों में होना चाहिए। परीक्षा के तनावपूर्ण वातावरण को समाप्त करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों से इसी प्रकार संवाद करें और उनके भीतर आत्मविश्वास एवं सकारात्मकता जगाएं। अधिकतम अंक पाने की दौड़ में हमने परीक्षा में सफलता को जीवन से बड़ा बना दिया, जिसके कारण कई होनहार विद्यार्थी किन्हीं कारणों से कम अंक पाने पर अवसाद में चले जाते हैं या फिर इसे अपनी विफलता मानकर जीवन को ही समाप्त करने का गलत निर्णय कर बैठते हैं। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए विद्यार्थी के मन में भाव जागृति करना अपनी जगह है, लेकिन उसे ही सफलता के रूप में स्थापित कर देना ठीक बात नहीं है।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

अवैध अप्रवासियों की वापसी

अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भारत भेजे जाने पर विपक्षी दल जिस प्रकार से राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि नियम-कायदों एवं संविधान में उनका विश्वास है या नहीं? संविधान केवल चुनावी सभाओं में लहराने के लिए नहीं होता है, अपितु जीवन में उसका पालन करना होता है। किसी भी देश में रहने के लिए वहाँ के नियम-कानूनों का पालन करना चाहिए। अमेरिका से भारत के उन नागरिकों को वापस भेजा जा रहा है जो वहाँ अवैध रूप से रह रहे थे। अवैध अप्रवासियों के कारण किस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उसकी अनुभूति भारत को भली प्रकार से है। अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के कारण भारत के कई हिस्सों में जनसांख्यकीय असंतुलन के साथ ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे पैदा हो गए हैं। सामाजिक संगठन और आम नागरिक कब से भारत सरकार से माँग कर रहे हैं कि अवैध बांग्लादेशियों एवं रोहिंग्या मुसलमानों को पहचान करके उन्हें वापस भेजा जाए।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

दिल्ली में रोहिंग्या बने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे का कारण

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट ‘दिल्ली में अवैध अप्रवासी : सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण’ को गंभीरता से देखने की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट जनसांख्यकीय असंतुलन के भयावह परिणामों की ओर से संकेत करती है। अवैध अप्रवासियों से न केवल सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, अपितु लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। जेएनयू की रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश और म्यांमार से रोहिंग्या सहित अन्य मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में घुसपैठ करके दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में बस गई है। इसके कारण दिल्ली की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, जो दिल्ली आज से 10-15 साल पहले हुआ करती थी, आज नहीं है। अवैध अप्रवासियों के कारण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। संसाधनों पर भी दबाव बढ़ा है। स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ा है। जो मजदूर वर्ग कल तक हरियाणा, पूर्वांचल, ओडिशा, केरल के लोग होते थे, वे अब रोहिंग्या हैं। इन अवैध घुसपैठियों के कारण भारतीय नागरिकों से मजदूरी सहित अन्य काम छिन गया है।