शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ से प्रदेश होगा जल-समृद्ध

जल संरक्षण को लेकर सामूहिक जिम्मेदारी का भाव जगाता है यह अभियान, निकट भविष्य में आएंगे प्रभावी परिणाम

जलाशय की सफाई करते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने अभिनव प्रयोगों से अपनी विशेष पहचान बना रहे हैं। मध्यप्रदेश में जल संरक्षण के लिए प्रारंभ हुआ ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ मुख्यमंत्री डॉ. यादव की दूरदर्शी पहल है। निकट भविष्य में हमें इसके सुखद परिणाम दिखायी देंगे। शुभ प्रसंग पर शुभ संकल्प के साथ जब कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है, तब उसकी सफलता के लिए प्रकृति एवं ईश्वर भी सहयोग करते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार ने गुड़ी पड़वा (30 मार्च) से 30 जून तक प्रदेश स्तरीय ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चलाकर जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जो जनांदोलन में परिवर्तित हो गया। सरकार को भी विश्वास नहीं रहा होगा कि जल संरक्षण जैसे मुद्दे को जनता का इतना अधिक समर्थन मिलेगा कि सरकारी अभियान असरकारी बन जाएगा और समाज इस अभियान को अपनी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार कर लेगा। ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के अंतर्गत और इससे प्रेरित होकर प्रदेश में अनेक स्थानों पर जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया गया, उनको व्यवस्थिति किया गया और वर्षा जल को एकत्र करने की रचनाएं बनायी गईं। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल और प्रतिबद्धता ने  जल संरक्षण के इस अभियान को एक जनांदोलन का रूप दे दिया है, जिससे जल संरक्षण में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।

जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत नदी की सफाई करते नागरिक

जल गंगा संवर्धन अभियान को गति देने के लिए मनरेगा योजना के अंतर्गत खेत तालाबों, अमृत सरोवरों और कूप रिचार्ज पिट का निर्माण किया गया है। साथ ही पुरानी जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार भी किया गया है। इस अभियान में 2 लाख 39 हजार जलदूतों का सक्रिय सहयोग मिला, जिन्होंने जल संवर्धन के संदेश को घर-घर तक पहुँचाया। ये जलदूत जब गाँव-गाँव, नगर-नगर और घर-घर जल संरक्षण का संदेश लेकर पहुँचे तो एक सकारात्मक वातावरण भी बना और जल संरक्षण को लेकर समाज के भीतर एक जागरूकता भी आई। नि:संदेह, यदि यह जनजागरूकता स्थायी हो जाए तो जल गंगा संवर्धन अभियान की सबसे बड़ी सफलता होगी। अभियान को शुरू करते समय सरकार ने जो लक्ष्य तय किया था, उससे कहीं अधिक परिणाम धरातल पर प्राप्त हुआ है। जल संरक्षण के लिए 38 हजार नए खेत तालाबों का निर्माण किया गया है। खंडवा जिले में 254 करोड़ रुपये की लागत से 1 लाख से अधिक कुओं को रिचार्ज किया गया, जिसके लिए खंडवा को देश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। इंदौर संभाग ने स्वच्छता और जल संरक्षण में नंबर-एक का स्थान हासिल किया है। ये दो प्रमुख उदाहरण हैं। प्रदेश के अन्य जिलों में भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है। समूचे मध्यप्रदेश में 70 हजार कुओं, बावड़ियों, नदियों और तालाबों का संरक्षण किया गया, जो जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करनेवाले हैं।

जल गंगा संवर्धन अभियान में जल संरक्षण के लिए काम करनेवाले नागरिकों का सम्मान करते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रेरित हैं। याद हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल संरक्षण के लिए जनांदोलन चलाने का आह्वान किया था। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह किया कि वह अपने स्तर पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए प्रयास करे। प्रधानमंत्री मोदी की पहलकदमी पर भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल मिशन के अंतर्गत ‘कैच द रेन’ अभियान को शुरू किया है। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है। यह अभियान व्यक्तियों, समुदायों और सभी हितधारकों को वर्षा जल संचयन संरचनाएं बनाने तथा जल संरक्षण की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इसी तर्ज पर ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ को जनता के बीच ले जाने का अनुकरणीय कार्य किया है। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. यादव, दोनों ही प्रकृति, पर्यावरण एवं समाज के प्रति गहरी संवेदनाएं रखते हैं। राजनीति से इतर वे इन सब विषयों पर बात रखते हैं और लोगों को इस दिशा में प्रेरित भी करते हैं। उल्लेखनीय है कि अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 120वें संस्करण में प्रधानमंत्री मोदी ने जल संरक्षण को देश के लिए अत्यंत आवश्यक बताया था। उन्होंने जल संचय जन-भागीदारी अभियान के महत्व पर भी जोर दिया और कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि “जो प्राकृतिक संसाधन हमें मिले हैं, उसे हमें अगली पीढ़ी तक सही सलामत पहुँचाना है”। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में चलाए गए जल गंगा संवर्धन अभियान ने प्रधानमंत्री के इस दृष्टिकोण को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अकसर सरकारी अभियान विज्ञापनों एवं कागजों में दम तोड़ देते हैं या फिर उनकी सफलता सोशल मीडिया तक सीमित रह जाती है। यह आंदोलन अपने वांछित लक्ष्य से आगे निकल रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अभियान को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया है। उनका मानना है कि जल ही हमारे जीवन के अस्तित्व का आधार है, इसलिए इसकी एक-एक बूंद बचाना अनिवार्य है। उनकी गहरी प्रतिबद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इस अभियान की देखरेख की जिम्मेदारी सभी जिलों के प्रभारी मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को सौंपी है। लोग बड़ी संख्या में श्रमदान कर पानी को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। जिला प्रशासन विशेष रूप से नदियों के किनारे देशी प्रजातियों के पौधे रोप रहा है। इससे जमीन के नीचे जल-स्तर बढ़ रहा है और मिट्टी को नुकसान से बचाया जा रहा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया है। स्कूल और कॉलेजों में जल-संरक्षण पर जन-जागरण अभियान, रैलियां, निबंध प्रतियोगिताएं, जल संवाद और ‘जल प्रहरी’ जैसी गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है। अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग और मूल्यांकन प्रणाली की व्यवस्था की गई है, जिसमें सभी गतिविधियों की जीआईएस ट्रैकिंग और इंपैक्ट वैल्यूएशन किया जा रहा है। सरकार ड्रोन से सर्वेक्षण, वैज्ञानिक तरीके से जलग्रहण क्षेत्र की मैपिंग और भू-जल पुनर्भरण तकनीकों का उपयोग कर रही है। इन सब प्रबंधों से स्पष्ट तौर पर प्रतीत होता है कि प्रदेश सरकार का यह अभियान मुख्यमंत्री के सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्यों में से एक है। इस अभियान का उद्देश्य केवल जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना ही नहीं, बल्कि उनकी निरंतर देखरेख और संरक्षण सुनिश्चित करना भी है। सरकार ने इन स्रोतों की सफाई, सीमांकन और पुनर्जीवन के लिए जनभागीदारी को प्रोत्साहित किया है। लोग बड़ी संख्या में श्रमदान कर जल संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं।

इस अभियान के दूरगामी परिणाम अपेक्षित हैं। बारिश के मौसम में इसके और अधिक प्रभावी परिणाम दिखेंगे, जिससे भूजल स्तर में सुधार होगा, हरियाली बढ़ेगी और मिट्टी में नमी आएगी। इससे पूरे प्रदेश में जल संकट को दूर करने में सहायता मिलेगी। इसके अलावा, इस अभियान ने समाज की मनोवृत्ति पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे जल संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में उभरा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह अभियान निश्चित रूप से मध्यप्रदेश को जल-समृद्ध राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

सायंकालीन स्वदेश में 10 जुलाई, 2025 को प्रकाशित आलेख

जिहादियों के निशाने पर भारत और हिन्दू

 कन्वर्जन के नेटवर्क का एक छोटा-सा प्यादा है जमालुद्दीन उर्फ छांगुर

भारत को ‘गजवा-ए-हिंद’ बनाने और ‘लव जिहाद’ की साजिशें केवल गल्प नहीं है, बल्कि हिन्दू धर्म और भारत के लिए इन्हें बड़े खतरे के तौर पर देखा जाना चाहिए। ‘गजवा-ए-हिंद’ और ‘लव जिहाद’ की अवधारणाओं को नकारना एक प्रकार से सच्चाई से मुंह मोड़ना है। यह आत्मघाती प्रवृत्ति है। सच को स्वीकार करके उसका समाधान निकालने का प्रयत्न करना ही एक जागृत समाज की पहचान है। भारत में प्रतिदिन ही इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह स्थापित होता है कि लव जिहाद और गजवा-ए-हिंद के पीछे बड़े कट्टरपंथी गिरोह शामिल हैं। उत्तरप्रदेश में पकड़ा गया बहुस्तरीय कन्वर्जन का नेटवर्क चलानेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा, इस व्यापक नेटवर्क का एक प्यादा भर है। अभी हाल ही में हिन्दू लड़कियों से लव जिहाद के लिए मुस्लिम लड़कों की फंडिंग करने के आरोप कांग्रेस के मुस्लिम नेता एवं पार्षद अनवर कादरी पर लगे हैं। जरा सोचकर देखिए कि भारत में हिन्दुओं को कर्न्वट करने का धंधा कितने बड़े पैमाने पर चल रहा है। 

हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के इस खेल में केवल इस्लामिक संस्थाएं ही नहीं है अपितु चर्च भी शामिल है। पूर्वोत्तर के राज्यों में चर्च ने अपने पैर किस तरह फैलाए हैं, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। जनजातीय क्षेत्रों में चर्च व्यापक स्तर पर कन्वर्जन का धंधा चला रहा है। चर्च ने पंजाब को अपना हॉट स्पॉट बना रखा है। पंजाब के कितने ही गाँव ईसाई बन गए हैं। इसकी अनेक कहानियां बिखरी पड़ी हैं। हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के लिए इस्लामिक संस्थाओं और मिशनरीज को बड़े पैमाने पर विदेशों से फंडिंग होती है। छांगुर बाबा की गिरफ्तारी के बाद हो रहे खुलासों में यह सब सामने आ रहा है। केवल 5-6 साल में ही कन्वर्जन का धंधा फैलाकर साइकिल पर सामान बेचनेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन ने छांगुर बाबा बनकर आलीशान कोठी, लग्जरी गाड़ियों और कई फर्जी संस्थाओं का मालिक बन गया है। जांच एजेंसियों के अनुसार, जमालुद्दीन खुद को हाजी पीर जलालुद्दीन बताता था। लड़कियों को बहला-फुसलाकर जबरन उनका धर्मांतरण करवाता।

छांगुर पीर के निशाने पर हिन्दू लड़कियां होती थीं। जातियों के अनुसार लड़कियों की कीमत तय थी। किस जाति की लड़की को फंसाकर मुसलमान बनाने पर कितना पैसा मिलेगा, इसका विवरण जाँच एजेंसियों को मिला है। ऐसा नहीं है कि समाज में यह बातें पहले सामने नहीं आई हैं, लेकिन उस समय इन बातों को सांप्रदायिक बताकर खारिज कर दिया जाता था। कन्वर्जन और लव जिहाद के घिनौने अपराध पर पर्दा डालने वाले तथाकथित सेकुलर बौद्धिक जमात छांगुर पीर के कारनामों पर भी चुप्पी साधकर बैठी हुई है। सेकुलर जमात की यह चुप्पी हिन्दू समाज को ध्यान से सुननी चाहिए।

हिन्दू नाम रखकर पहले हिन्दू लड़कियों को प्रेम के नाम पर फंसाना और फिर उन्हें छांगुर के पास लाकर दबाव डालकर एवं धमकाकर मुसलमान बनाने के इस धंधे को क्या कहेंगे? हम माने या न माने, उनके लिए यह सब सवाब का काम है, भारत को ‘गजवा-ए-हिंद’ बनाना है। हिन्दू लड़कियों को धोखे से प्रेम में फंसाना और उन्हें मुसलमान बनाना, उनके लिए जिहाद का काम है। हिन्दू समाज पर हो रहे इस हमले को रोकने के लिए उसे स्वयं भी जागृत होना होगा और इस संबंध में गंभीरता से चिंतन करना होगा। इसके साथ ही सरकारों को भी इस मामले में गंभीरता से ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह सब देश की एकता-अंखडता के लिए भी संभावित खतरा है।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

हिन्दी-मराठी को लड़ाने की राजनीति

अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए नेता किस हद तक उतर आते हैं, यह देखना है तो महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही हलचल पर नजर जमा लीजिए। मराठी अस्मिता के नाम पर हिन्दी का विरोध करते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों 20 वर्ष बाद एक मंच पर आ गए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है, उस समय भी हिन्दी प्रदेश के लोगों को परेशान करना और उनके साथ मारपीट करना, ठाकरे एंड कंपनी का धंधा हो गया था। लेकिन बाद में शिवसेना के शीर्ष नेताओं को समझ आया कि हिन्दी का विरोध करके उनकी राजनीति सिमट रही है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता का स्वभाव इस प्रकार का नहीं है। कहना होगा कि हिन्दी के विस्तार में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका रही है। चाहे वह भारतीय फिल्म उद्योग हो, जिसने देश में ही नहीं अपितु दुनिया में हिन्दी का विस्तार किया या फिर साहित्य एवं राजनीतिक नेतृत्व रहा हो। महाराष्ट्र की जमीन ऐसी नहीं रही, जिसने भाषायी विवाद का पोषण किया हो। इस प्रकार की राजनीति के लिए वहाँ कतई जगह नहीं है। ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर जितना अधिक हिन्दी भाषी बंधुओं को परेशान करेंगे, उतना ही अधिक वह और उनकी राजनीति अप्रासंगिक होती जाएगी।

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

हमारे आसपास की जरूरी कहानियां, जो जीवन सिखाती हैं

17 साल की लेखिका की 13 चुनी हुई कहानियां – वत्सला@2211


अपने पहले ही कहानी संग्रह ‘वत्सला @2211’ के माध्यम से 17 वर्षीय लेखिका वत्सला चौबे ने साहित्य जगत में एक जिम्मेदार साहित्यकार के रूप में अपनी कोमल उपस्थिति दर्ज करायी है। उनके इस कहानी संग्रह में 13 चुनी हुई कहानियां हैं, जो हमें कल्पना लोक के गोते लगवाती हुईं, कठोर यथार्थ से भी परिचित कराती हैं। सुधरने और संभलने का संदेश देती हैं। बाल कहानियों की अपनी दुनिया है, जिसमें बच्चे ही नहीं अपितु बड़े भी आनंद के साथ खो जाते हैं। यदि ये बाल कहानियां किसी बालमन ने ही बुनी हो, तब तो मिथुन दा के अंदाज में कहना ही पड़ेगा- क्या बात, क्या बात, क्या बात। बहुत दिनों बाद बाल कहानियां पढ़ने का अवसर मिला। एक से एक बेहतरीन कहानियां, जिनमें अपने समय के साथ संवाद है। अतीत की बुनियाद पर भविष्य के सुनहरे सपने भी आँखों में पल रहे हैं। एक किशोर वय की लेखिका ने अपने आस-पास की दुनिया से घटनाक्रमों को चुना और उन्हें कहानियों में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में मानवीय संवेदनाएं हैं। सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूकता है। अपने कर्तव्यों के निर्वहन की ललक है। अपनी जिम्मेदारियों का भान है। संग्रह के प्राक्कथन में वरिष्ठ संपादक गिरीश उपाध्याय ने उचित ही लिखा है- “ये कहानियां भले ही एक बच्ची की हों, लेकिन इनमें बड़ों के लिए या बड़े-बड़ों के लिए बहुत सारे संदेश, बहुत सारी सीख छिपी हैं, बशर्ते हम उन्हें समझने की और महसूस करने की कोशिश करें”।